सुषमा जी की बेटी अवंती की शादी को लगभग 4 महीने हो चुके थे।अवंती की शादी एक बहुत अच्छे घराने में उसी शहर में हुई थी।उसके ससुराल में उसके पति आशीष के अलावा उसके सास ससुर कंचन जी और संदीप जी थे और एक छोटी ननद थी दिया..जो अभी कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी।संदीप जी सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे और एक बड़े ओहदे पर काम करते थे।उसका पति आशीष एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था।
अवंती का रिश्ता उसकी बुआ ने कराया था और उसके ससुराल वाले अच्छे खाते-पीते इज्ज़तदार लोग थे और साथ ही साथ शरीफ भी थे।उनकी शराफत का पता तो तभी चल गया था जब रिश्ते की बात पक्की होने पर उन्होंने दहेज में कुछ भी लेने से साफ साफ मना कर दिया था और अवंती के पापा आलोक जी के सामने संदीप जी ने हाथ जोड़कर कहा था,”आप हमें अपनी बेटी दे रहे हैं इससे बड़ी चीज़ हमें और क्या चाहिए।कृप्या हमें लेनदेन के मामले से दूर ही रखें।मैं इन सब बातों में बिल्कुल विश्वास नहीं रखता…आपकी बेटी हमारे घर की लक्ष्मी बनकर आएगी बस हमें यही चाहिए”।
संदीप जी की बातें सुनकर सभी लोग हैरान रह गए थे कि जहां आजकल लोग दहेज के लालच में भारी-भरकम डिमांड रख देते हैं वहीं उन्होंने कुछ भी लेने से मना कर दिया था।आलोक जी और अवंती की मम्मी सुषमा जी उनकी बातें सुनकर बहुत प्रसन्न हुए थे।
अवंती के मायके में उसके माता-पिता के अलवा उसका एक बड़ा भाई निशांत..भाभी रश्मि थी जिनकी अभी 2 साल पहले ही शादी हुई थी और अभी उनके कोई बच्चा नहीं था।अवंती की अपनी भाभी रश्मि के साथ बहुत बनती..दोनों बहनों की तरह रहती थी।सुषमा जी ने भी कभी रश्मि और अवंती में फर्क नहीं किया था।रश्मि को अपने मायके की तरह ससुराल में भी हर काम करने की पूरी आज़ादी थी इसीलिए तो उसने शादी के बाद भी अपनी नौकरी जारी रखी थी।
सुषमा जी को उसकी नौकरी करने से कोई एतराज़ नहीं था और वह अवंती के कामों के साथ-साथ रश्मि के भी कितने काम कर देती।हालांकि रश्मि कई बार मना भी करती तो सुषमा जी उसे प्यार से कहती,”क्या अवंती और तेरे में कोई फर्क है” तो रश्मि उनके गले लग कर कहती,” मैंने ज़रूर कोई मोती दान किए होंगे मम्मी जी, जो आपके जैसी सास मुझे मिली है..नहीं तो मेरी सहेलियां जो अपनी सासों के बारे में बातें बताती हैं उनकी बातें सुनकर तो मैं सोच भी नहीं सकती कि आज के जमाने में आप जैसी सास भी है” और सुषमा जी प्यार से उसके गाल थपथपा देती।
अवंती की शादी में रश्मि ने सुषमा जी के साथ मिलकर सारी ज़िम्मेदारी उठा रखी थी और अवंती के साथ बाज़ार जाकर उसे सारी खरीदारी भी उसकी मनपसंद की करवाई थी।आलोक जी का अपना अच्छा खासा व्यापार था और निशांत भी उनके साथ ही व्यापार में हाथ बंटा रहा था। आलोक जी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की शादी में कोई भी कमी रहे…इसीलिए उन्होंने अवंती की शादी बड़ी धूमधाम से की।अवंती भी नौकरी करती थी और उसके ससुराल वालों को भी उसके आगे नौकरी करने से कोई एतराज़ नहीं था।
शादी के बाद अवंती अपनी ससुराल चली गई तो सुषमा जी को घर खाली खाली सा लगने लग पड़ा कभी-कभी तो वह उसे याद कर अकेले रो देती क्योंकि रश्मि भी दफ्तर चली जाती थी और निशांत और आलोक जी अपनी फैक्ट्री में..हालांकि शादी से पहले भी अवंती नौकरी करती थी लेकिन शाम को घर वापिस आने से उसकी चुलबुली बातों से घर पूरा रौनक से भर उठता।उसकी वही चुलबुली बातें याद कर सुषमा जी कई बार रात के खाने की मेज़ पर भी रो पड़ती तो उस समय रश्मि उन्हें दिलासा देती।एक मां की मनोदशा वो अच्छी तरह समझती थी और उन्हें आलिंगन में लेती और प्यार से अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाती।
इधर अवंती भी अपने ससुराल में वैसे तो खुश थी लेकिन कई बातें उसे अपने घर से बड़ी अलग सी लगती।ज़ाहिर सी बात थी..हर घर का अपना अलग माहौल होता है। लेकिन अवंती इस बात को समझना नहीं चाहती थी और अपने ससुराल में भी अपने मायके जैसा माहौल ही ढूंढती लेकिन वह उसे कहां से मिलता।
वैसे तो उसके ससुराल में सारे उसे बहुत प्यार करते।छोटी ननद दिया भी उसके आगे पीछे घूमती और कॉलेज से आते ही उसे अपने दोस्तों की बातें बताती और कई बार दोनों ननद भाभी शॉपिंग भी करने जाती।लेकिन अवंती को उसकी कई बातें चुभती थी।जैसे कई बार वह निशांत और उसके साथ पिक्चर देखने चली जाती या फिर घूमने चली जाती।
अवंती आशीष के साथ अकेले जाना चाहती थी।चाहे दिया हर बार नहीं जाती थी कभी-कभी ही उनके साथ जाती।लेकिन अवंती को उसका उनके साथ जाना नापसंद था।इसी तरह से ही वह लोग खाने-पीने के मामले में भी समय के बहुत पाबंद थे।अवंती को यहां का माहौल थोड़ा अलग सा लगता।
अवंती की सास कंचन जी यह बात समझती थी और उन्होंने अवंती से कहा भी,”बहू,मैं जानती हूं यह तुम्हारे लिए नया माहौल है लेकिन तुम्हारे ऊपर कोई पाबंदी नहीं है।तुम अपनी तरह से भी रह सकती हो लेकिन हर घर के कुछ कायदे और नियम होते हैं जो सबको ही निभाने पड़ते हैं”।
अवंती को इन सब बातों से बड़ी चिढ़ होती।उसे इस बात से भी चिढ़ होती कि आशीष ऑफिस से आकर सीधा माता-पिता के कमरे में चला जाता और थोड़ी देर उनके पास बैठकर ही उसके पास आता..लेकिन वह चाहती थी कि उसका पति सीधा ही दफ्तर से आकर सीधा उसके पास ही आए क्योंकि वह आशीष से पहले ही दफ्तर से आ जाती थी।
अवंती यह सारी बातें जब भी मायके आती कभी अपनी मां से या बहुत बार तो अपनी रश्मि भाभी से ही कहती और हंस कर अपने ससुराल वालों का मज़ाक उड़ाती और कहती,”मेरे घर में मेरी ननद दिया तो जासूस है।हम दोनों पति पत्नी के साथ पिक्चर देखने और घूमने चल पड़ती है” और उसका मज़ाक उड़ाते हुए ज़ोर-ज़ोर से हंसती तब यह सब बातें बोलते हुए वह भूल जाती कि किसी समय वह भी अपने भाई भाभी के साथ ऐसे ही घूमने जाया करती थी।उस समय उसकी बातें सुन रश्मि उसे कोई जवाब नहीं देती और बस मुस्कुरा उठती।सुषमा जी सब कुछ देखती सुनती थी और सच्चाई भी जानती थी लेकिन उस समय उसका बचपना समझ चुप रह जाती।
एक बार इसी तरह अवंती अपने मायके आई हुई थी और अपने ससुर जी की निंदा कर रही थी।उस समय रश्मि तो अपने दफ्तर गई हुई थी और अवंती अपने दफ्तर से छुट्टी लेकर मां को मिलने आ गई थी।सुषमा जी ने आज अपनी बेटी की पसंद का सारा खाना बनाया हुआ था।खाना खाते हुए सुषमा जी उसे बड़े प्यार से निहार रही थी और सोच रही थी कि बेटियां कैसे इतनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं और कैसे अपने मायके का आंगन छोड़ ससुराल की देहरी लांघ जाती हैं।
“मां,तुम्हारे जैसा खाना तो सच में कोई बना ही नहीं सकता” अवंती खाना खाते-खाते बोली।
“क्यों, मैंने तो सुना है तेरी सास कंचन जी भी बहुत अच्छा खाना बनाती हैं”।
“हां, बनाती तो हैं पर इतना अच्छा नहीं जितना तुम बनाती हो मां”।
“अपनी मां के हाथों का स्वाद सब बच्चों को अच्छा लगता है”कहते हुए सुषमा जी मुस्कुरा पड़ी।
“नहीं ,यह बात नहीं है मम्मी” अवंती खाना खाते खाते बोली।
“क्यों क्या हुआ”?
“वहां मुझे इतनी मुझे इतनी आज़ादी नहीं लगती।वहां सभी खाने के समय के बड़े पाबंद हैं।ऐसा लगता है जैसे तुम जेल में रह रहे हो।रात को 9:00 बजे तक सभी खाना खा लेते हैं और तुम्हें तो पता है मुझे थोड़ा सा लेट खाने की आदत है”, अवंती ने अपनी शिकायत बताइए
“तो इसमें कौन सी बुराई है…अच्छी बात है ना..इसी बहाने तेरी आदत भी सुधर जाएगी।तुझे याद नहीं मैं तेरी इस आदत के लिए तुझे कितना डांटती थी”।
“हां, लेकिन यहां मैं तो अपनी मर्ज़ी करती थी ना”।
“बेटी, मायके में और ससुराल में थोड़ा सा फर्क तो होता ही है”, सुषमा जी ने उसे समझाना चाहा।
“हां, होता है पर अगर सच्ची बताऊं तो मुझे वहां इतना अच्छा नहीं लगता जितना मुझे यहां आराम था”।
“क्यों क्या कभी कंचन जी ने तुझे कुछ कहा है?या तेरी ननद ने या आशीष ने कभी तुझे कुछ कहा हो”?
“नहीं नहीं, उन्होंने ऐसे तो मुझे कुछ नहीं कहा लेकिन देखो ना आशीष आते ही अपने माता-पिता के कमरे में चला जाता है।मैं दफ्तर से पहले आ जाती हूं उससे यह नहीं होता कि सबसे पहले मेरे पास आए।आते ही पहले उनके पास जाएगा और वहां थोड़ी देर समय बिताकर और वहीं उनके पास चाय पीकर ही अपने कमरे में आता है”।
“तो तू चाय कहां पीती है”?
“मैं तो अपने कमरे में ही पीती हूं”।
“यह तो गलत बात है..तू उनके साथ चाय क्यों नहीं पीती”?
“बस, ऐसे ही मुझे अकेले अच्छा लगता है”।
“यह बात तो गलत है अवंती”, सुषमा जी ने समझाना चाहा।
” मेरे ससुर जी हैं ना.. हैं तो वैसे रिटायर्ड लेकिन सारा दिन कभी किसी ना किसी काम में लगे रहते हैं। यह नहीं कि चैन से दो घड़ी बैठ जाएं।कभी माली के साथ बगीचे की साफ सफाई में लगे होते हैं तो कभी नौकर रामू के साथ राशन का सामान ला रहे होते हैं।अरे यह काम जब नौकरों के हैं तो उनको करने दो ना पर..उन्होंने हर बात में अपनी टांग फंसानी ही होती है”।
“अवंती, यह क्या तरीका है बात करने का”? सुषमा जी थोड़े गुस्से में बोली।
“और क्या मम्मी, पापा तो ऐसा कभी नहीं करते”।
” तेरे पापा को फुर्सत ही कहां है फैक्ट्री के काम से जो वो घर के कामों में अपना समय दे पाएंगे”, सुषमा जी ने कहा।
“हां वो तो है पर फिर भी..और एक मेरी सास है जो कि नौकरों के होते हुए भी खुद खाना ज़्यादा बनाती है और नौकरों से कम काम करवाती हैं।मुझे तो देख कर उन्हें हंसी सी आती है कि ऐसा बेवकूफ भी कोई हो सकता है भला”।
उसकी बातें सुनकर सुषमा जी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया था और लेकिन उन्होंने अपने गुस्से को काबू में किया और अंवती के खाना खत्म होने का इंतज़ार किया।खाना खाने के बाद अवंती सुषमा के साथ कमरे में बैठने आई तो सुषमा जी उसे समझाते हुए बोली,” देख बेटी,आज मैं तुझे एक नसीहत देती हूं…मायके में आकर कभी भी ससुराल की निंदा मत करना।
देख,हर घर के अपने कायदे कानून होते हैं..अपना रहने देने का ढंग होता है।हर लड़की को अपने ससुराल के रंग ढंग को अपनाना पड़ता है।तू अपनी भाभी को भी देख.. रश्मि कैसे इस घर में रच बस गई है।तू उस दिन उसके साथ दिया की बात कर रही थी कि वह तेरे और आशीष के साथ घूमने जाती है..क्या तू भूल गई कि तू भी रश्मि और निशांत के साथ जाया करती थी इस बात को याद कर अवंती का चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया।
और जो तू आलोक जी की कितनी बातें करती हैं उनके जैसा भला मानस तो मैंने आज तक नहीं देखा।अरे,एक रिटायर्ड आदमी अपना समय बिताने के लिए कुछ तो करेगा ना।फिर क्या हुआ अगर वह नौकरों के साथ काम कर रहे हैं अपने घर का ही तो कर रहे हैं ना।इतने बड़े ओहदे से रिटायर होने के बाद भी उनमें बिल्कुल भी अकड़ नहीं है।
तुझे क्या यह नज़र नहीं आता और क्या तुम भूल गई कि जहां समाज में कितने दहेज लोभी भरे पड़े हैं वहां उन्होंने हमसे एक पैसा भी नहीं लिया और जहां तक मैं जानती हूं उन्होंने दिया और तेरे में कभी भी कोई फर्क नहीं समझा।
और तू जो यह बात कर रही है कि आशीष अपने माता पिता के पास दफ्तर के बाद सीधा चला जाता है तो क्या माता-पिता का हक शादी के बाद बेटे के ऊपर से हट जाता है।अगर वह तीनों इकट्ठे बैठकर चाय पीते हैं तो क्या तुझे आवाज़ नहीं लगाते”।
“लगाते हैं, लेकिन मैं मना कर देती हूं”।
“तो फिर तू बता इसमें गलती किसकी है…अगर वह इकट्ठे चाय पीते हैं तो तू उनके साथ बैठकर चाय क्यों नहीं पीती।
निशांत की बात अलग है वह अपने पिता के साथ ही फैक्ट्री से वापिस आता है और रश्मि भी थोड़ी देर बाद ही दफ्तर से आती है और हम सब इकट्ठे बैठकर लाॅबी में चाय पीते हैं क्या भूल गई..और कंचन जी तो बहुत ही भली औरत हैं।जब भी उनकी मेरे साथ फोन पर बात हुई है या मुलाकात हुई है उन्होंने हमेशा तेरी तारीफ ही की है। तेरी एक भी बुराई उन्होंने मुझे कभी नहीं गिनाई।
क्या उन्हें तेरे अंदर कोई बुराई नज़र नहीं आती होगी। लेकिन नहीं..उन्होंने कभी भी तेरी कोई भी कमी मुझे बतानी ज़रूरी नहीं समझी…कारण यही कि वह तुझे अपना मानती है और अपनों की बुराइयां नहीं की जाती यह वह अच्छी तरह से जानती हैं।
तू मायके में आकर जो ससुराल की निंदा करती है इससे तू अपना ही सम्मान घटा रही है।आज तू अपनी भाभी के सामने या मेरे सामने जो बातें करती है क्या इससे तेरा सामान बढ़ेगा क्या?धीरे-धीरे एक समय ऐसा आएगा जब तेरी इस निंदा से तेरी भाभी और भाई तेरे ससुराल वालों का या आशीष का सम्मान करना बंद कर दें तो तुझे उस समय बहुत बुरा लगेगा और इसका कारण भी तू स्वयं खुद ही होगी।इसलिए इस बात को याद रख कि जब भी मायके आओ हंसते खेलते रहो और अपने ससुराल की निंदा कभी मत करो और तेरे जैसे ससुराल तो किस्मत वालों को मिलते हैं”।
अवंती अपनी मां की बातें सुन सोच में पड़ गई थी।कुछ देर बाद सुषमा जी चाय बनाने बाहर चली गई तो अवंती सोच रही थी कि उसकी मां सच ही तो कह रही थी कि वह भी तो अपने भाई भाभी के साथ उसी तरह घूमने जाती थी जैसे दिया जाती है और तब तो रश्मि भाभी और निशांत भैया के व्यवहार से उसे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि उन्हें कभी उसके साथ जाने से गुस्सा आया हो। हालांकि उसने कभी-कभी अपना गुस्सा दिया पर ज़़ाहिर कर दिया था इसीलिए शायद अब उसने उनके साथ जाना बंद कर दिया था।
अवंती को अब अपनी सोच पर शर्म आ रही थी कि वह कैसे इतना बुरा सोच सकती है।उसकी सास तो उसकी पसंद का टिफिन बनाकर हमेशा उसे पकड़ाती है।कभी भी उसको काम करने नहीं देती बल्कि उनकी कोशिश यही होती है कि वह उससे कम से कम काम करवाएं और खुद ही आशीष को बोल कर उनको इकट्ठे घूमने भेज देती हैं और उसके ससुर जी छुट्टी वाले दिन हमेशा उसकी पसंद का ही नाश्ता बाज़ार से खुद जाकर लेकर आते हैं।
अवंती के सोचते-सोचते सुषमा जी चाय लेकर कमरे में आ गई थी।अवंती मां को देख कर बोली,” मां, तुम सही कह रही हो…मैं ही गलत थी आपने मुझे सही रहते ही बता दिया नहीं तो शायद मेरे व्यवहार से मैं धीरे-धीरे अपनी प्यारी ननद और शायद अपने ससुराल वालों से भी दूर होती जाती और इधर मायके में भी अपने ससुराल वालों का सम्मान खुद ही घटा देती।मैं आपकी नसीहत हमेशा याद रखूंगी” और यह कहकर अवंती मां के गले लग गई।
इतनी देर में ही रश्मि भी दफ्तर से आ गई और आते ही बोली,” क्या बात है आज मां बेटी में बड़ी खिचड़ी पक रही है। मम्मी जी, आप भूल गई इसने तो अभी चले जाना है रहना तो मैंने ही है आपके साथ”।
“हां हां जानती हूं, मेरी असली बेटी तो तू ही है।अभी तेरे लिए भी चाय लेकर आती हूं”।
“नहीं मम्मी जी, आप रहने दें..मैं खुद ही बना लेती हूं.. आप इतनी देर अवंती से बात कीजिए।मेरी अभी निशांत और पापा जी से भी बात हुई है वह दोनों भी आ रहे हैं हम सब इकट्ठे बैठकर ही चाय पिएंगे”।
थोड़ी देर बाद सभी इकट्ठे बैठकर चाय पी रहे थे और इतनी देर में ही सुषमा जी ने कंचन जी को फोन कर आग्रह कर रात के खाने पर सभी को बुला लिया था।
रात को जब अवंती वापिस जा रही थी तो अपने साथ-साथ मां और मायके का स्नेह और मां की नसीहत भी लेकर जा रही थी जो आगे जाकर उसके बहुत काम आने वाली थी ऐसा वह जानती थी।
#स्वरचितएवंमौलिक
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।