बारात आ गई, बारात आ गई”, यह सुनकर मेहमान बारात के स्वागत के लिए होटल के बाहर के गेट की तरफ चल पड़े। वैसे ज्यादा लोग थे भी नहीं। बहुत करीबी 25-30 रिशतेदार या खास दोस्त ही रहे होगें और लड़के वालों की तरफ से तो इतने भी नहीं थे। दस बारह ही थे, बाकी तो बाजा बजाने वाले थे।
क्यूंकि वियान और उसका परिवार कनैडा से आए थे तो यहां पर उनके अनुसार कुछ दूर के रिशतेदार है, जिनसे अब आना जाना भी नहीं और समय भी कम है, क्योंकि उनहें जल्दी वापिस भी जाना था। वो तो सिरफ वियान की शादी के लिए ही भारत आए थे।
वो लोग तो बीस साल से वहीं पर ही रह रहें है। यहां पर तो उन्होंने अपना घर वगैरह बेच ही दिया था।उनहें भारतीय संस्कारी बहू चाहिए थी, इसलिए वो आए हैं।
यहां पर सिरफ उनकी एक दूर की रिशतेदार थी जिसके द्वारा ये रिशता तय हुआ था, वैसे तो रिश्ता मैट्रिमोलियन ऐजेंसी द्वारा तय हुआ था लेकिन , शशी जो कि अपने आप की दूल्हे की कजन कहती थी , उसकी थोड़ी बहुत लड़की वालों से जानकारी थी।
दुल्हन बनी मन्नत और ब्यूटी पार्लर वाली लड़की ही कमरे में थे, बाकी सब तो नीचे चले गए। मन्नत की तीन सहेलियां ही आने वाली थी, दो निशा और रिचा तो आ गई, अभी सलोनी नहीं आई थी। सलोनी का घर दूर था। देहली जैसे महानगर में आना जाना कौनसा आसान है शायद ट्रैफिक में फस गई होगी और उसकी दो साल की बच्ची भी थी तो आने में देर हो गई होगी।
मन्नत जयमाला के लिए तैयार थी। एक हफ्ते में ही सब तय हो गया। मन्नत की शुरू से ही इच्छा थी बाहर जाने की। पढ़ाई में तो रूचि कम थी तो अपने बल पर तो जाना मुशकिल था। शादी करके जाने वाला तरीका ही आसान लगा। जब ऐजेंसी वालों ने ये रिशता सुझाया तो उनहें सब ठीक लगा।ऐसे बाहर के रिशतों पर तो यकीन ही करना पड़ता है, पूछ पड़ताल तो तभी हो अगर कोई अपना खास बाहर रहता हो। वैसे भी आजकी भागदौड़ वाली जिंदगी में इतना समय किसके पास है।
कैनेडा से वियान और उसकी मां ही आए थे। बाकी के कुछ लोग उनके भारत में रहने वाले मित्र थे।वियान के पिताजी बीमारी के कारण नहीं आए और बहन जीजा को छुट्टी नहीं मिली, ये वियान की मां का कहना था। रिशता पक्का होते समय ही यह तय हो गया था कि उनहें कुछ नहीं चाहिए, बस वो अपनी लड़की का बाहर जाने के खर्च का इंतजाम और होटल में सादी सी शादी का इंतजाम कर दे।
कपड़े वगैरह भी कम खरीदें, बाकी अपनी इच्छानुसार कुछ देना चाहें तो गहने वगैरह दे दें। वियान और उसकी मां इतनी नम्रता से बात करते कि झट से यकीन हो जाए। कहीं किसी बात में शक की गुजाईंश नहीं लगती थी। मन्नत के पिता, भाई, मामा के दिल मे थोड़ा डर तो था बाहर के रिशते को लेकर, लेकिन ऐजेंसी वालों के बीच में होने से तसल्ली भी थी।
बारात आ गई, सब शगुन हुए, फेरों की तैयारी वहीं होटल में ही की गई थी। जयमाला के समय मन्नत की सहेली सलोनी भी पहुचं गई, लेकिन वो पीछे ही खड़ी थी, आगे काफी भीड़ थी। बाद में सब खाने पीने में मस्त हो गए, तो एक बार मन्नत भी अपने कमरे में मेकअप ठीक करवाने आ गई, वहीं पर सलोनी उससे मिली। हंसी मजाक की माहौल था। मन्नत बहुत खुश थी, उसका पासपोर्ट तो बना ही हुआ था। वियान के अनुसार एक हफ्ते बाद वो तो चला जाएगा, बाहर की कार्यवाही पूरी होते ही वो भी वहीं आ जाएगी।
तभी फेरें के लिए बुलावा आ गया। सलोनी ने तो दूल्हे को दूर से ही सेहरे में देखा था तो वो तो बहुत
उतावली थी, लेकिन उसकी बेटी परी को बहुत जोरों से नींद आ रही थी, साथ में वो नैनी( केयर टेकर) को लेकर आई हुई थी ।खाना पीना कमरे में ही हो गया था। मन्नत को तो जाना ही था, आधे घंटे में परी को सुलाकर और नैनी को कमरे में बिठाकर वो नीचे मंडप में फेरों वाले स्थान पर आ गई।
पंडित जी विधिविधान से मंत्र , पूजा वगैरह करवा रहे थे। दूल्हें ने काफा सुदंर, बड़ा सा सेहरा बांधा हुआ था। मन्नत ने भी हल्का सा घूंघट निकाला हुआ था। बीच में किसी ने कहा भी कि सेहरा कुछ उपर कर लो, फोटो में चेहरा तो आ ही नहीं रहा, लेकिन दुल्हे की मां मुस्करा कर रह गई। एक रस्म में पंडित जी ने दूल्हे को चरणामृत पीने को दिया तो दूल्हे को सेहरा हटा कर पीना पड़ा।
दूल्हे को देखते ही सलोनी को चक्कर आ गया, वो तो गिरते गिरते बची। ये तो उसका पति विहान है, जिसका वो आज तक ईंतजार कर रही है। अभी कुछ दिन पहले ही जब उससे बात हुई तो वीजा न लगने की बात कर रहा था और आज दूसरी शादी कर रहा है।
सलोनी ने हिम्मत करके अपने आप को संभाला , कहीं उसका वहम तो नहीं क्यूंकि दूल्हे के मूंछे थी जबकि विहान के नहीं थी। वो एक बार अच्छे से उसे और देखना और उसकी आवाज सुनना चाहती थी।उसकी शादी के समय विहान की मां नहीं आई थी, बहन और पिताजी आए थे। सलोनी ने अपनी दोनों सहेलियों निशा और रिचा को इशारे से बुलाया और अपनी शंका जाहिर की। ओह इतना बड़ा धोखा, पहले सलोनी और अब मन्नत के साथ, समय कम था, लेकिन क्या किया जाए। लेकिन कुछ तो करना ही था।
अभी फेरों के इलावा कई रस्में बाकी थी।चुपके से पीछे से आकर निशा ने कहा कि अगली रस्म तभी होगी जब आप हमें हमारा नेग यानि की सोने या चांदी की अंगूठी देगें। ये सालियों का नेग होता है। वियान की मां ने हंसते हुए पर्स में से चांदी की अगूंठिया निकाली और उन्हे देने लगी तो रिचा ने कहा, वाह आप तो बड़े होशियार हो, सब लेकर आए, लेकिन जीजा जी अपने हाथ से दें ,
वियान देने लगा तो निशा ने कहा कि फोटो के साथ लेगें, फोटो खींचने के लिए सेहरा उपर किया तो सलोनी ने पूरे ध्यान से देखा, सचमुच ही विहान था, कैसे भूल सकती है वो अपने पति और बेटी के बाप को। एक हफ्ता वो उसके साथ रही हनीमून पर।दिल और दिमाग दोनों सुन्न थे।
लेकिन तुरंत पुलिस को फोन किया, निशा और रिचा ने किसी तरह आगे रस्में न होने दी।” रूक जाओ, ये शादी नहीं हो सकती”, पुलिस को आया देखकर सब हैरान। जब सारा भेद खुला तो पता चला कि पुलिस को तो वियान यानि कि विहान की कबसे तलाश थी।
ये वो शातिर बंदा था जिसने पुलिस रिकार्ड अनुसार तीसरी बार ये झूठी शादी की। सलोनी ने सब बताया। उसे तो अभी पता चला कि उससे पहले भी वो न जाने कितनी शादीयां कर चुका है।ये सब तो अब पुलिस पता लगाएगी।
शादी का माहौल मातम में बदल गया लेकिन मन्नत की जिंदगी बर्बाद होने से बच गई। वियान और उसके सब साथी, शशी समेत सब जेल में हैं। पता चला है कि उसका तो ये धंधा ही है, शादी करके नकद, गहने लेना, मौजमस्ती करना और निकल लेना।आखिर पकड़ में आ ही गया। सलोनी और उसके घर वाले जेल में गए और उस पर केस भी किया हुआ है।
सलोनी जब उससे मिली तो लगा माफी मांगने।भूल जाओ बच्चू, बहुत बच निकले, काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती, अब भुगतो अपनी करनी का फल। अब तुमसे कानून ही निपटेगा।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
कहावत- काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती।