पार्थ , बहुत महँगी है ये तो ….. बिल्कुल ऐसी ही शर्ट लोकल मार्केट से आधे से भी कम रेट में मिल जाएगी । हम अंबाला से ले लेंगे । तू ऐसा कर इसकी फ़ोटो ले ….. शिमला और ऊपर से मॉल रोड , बहुत ही महँगा सामान मिलता है यहाँ पर ….. ठीक है ना ?
सविता की बात सुनकर उसका बेटा चुप रहा पर उसका चेहरा उतर गया था । बेटे का मुँह देखकर माँ के दिल में टीस और ममत्व हिलोरें लेने लगा । बार- बार उसका हाथ अपने कंधे पर टिके पर्स पर जा रहा था । सविता ने साथ में आए भतीजे की तरफ़ इस आस से देखा कि शायद वह बुआ के पक्ष में बोलेगा पर वह दूसरी चीजों को देखने में व्यस्त था ….. या शायद अपने आप को दूसरों के झंझटों से दूर रखना चाहता था ।
सविता ने कनखियों से देखा कि पार्थ की नज़र उसी शर्ट पर लगी थी । एक बार तो दिल किया कि चलो दिलवा देती हूँ पर ढाई हज़ार बहुत होते हैं…. ऐसी कोई ख़ास भी नहीं दिख रही थी शर्ट…. बेहद साधारण कॉटन की थी । क्या करुँ, आज पार्थ का बर्थडे भी है….. सविता उधेड़बुन में फँसी थी कि तभी भतीजे वरुण ने कहा —-
मैं दूँ क्या बुआ पैसे ?
नहीं… नहीं…. हैं मेरे पास । इतना कहकर सविता ने पर्स में से पैसे टटोले । सौ- पचास के नोट इकट्ठे करने के बाद पंद्रह सौ ही जमा हुए … पति के द्वारा दिए ख़र्चे के रुपयों को वह छेड़ना नहीं चाहती थी । आख़िरकार पर्स की वह ज़िप खोलनी ही पड़ गई , जहाँ उसने इमरजेंसी के लिए पाँच हज़ार रुपये जोड़कर रखे थे । बहुत ही बुझे मन से उसने ढाई हज़ार रुपये दुकानदार के हाथ में रखें और शर्ट का लिफ़ाफ़ा पार्थ के हाथ में पकड़ा दिया ।
दुकान से निकलने के बाद सविता की इच्छा ही नहीं रही थी कि अब घूमें पर वह अनमनी सी चलती रही । अब वह मन ही मन पछता रही थी कि एक सूती सी शर्ट के लिए बेकार ही ढाई हज़ार रुपये खर्च कर दिए । उसे अपनी भावनाओं पर क़ाबू रखना चाहिए था …. बच्चे तो कह ही देते हैं । पर दूसरे ही क्षण ख़्याल आया कि अब बच्चा कहाँ रहा है पार्थ….. एम०एस० सी० कर रहा है, क्या उसने एक बार भी नहीं सोचा कि इतने पैसे माँ कहाँ से लाएगी? पापा ने गिने चुने रुपये दिए होंगे ।
सविता तीन दिन पहले ही अंबाला से अपने बेटे पार्थ के साथ शिमला आई थी । पार्थ को हिमाचल यूनिवर्सिटी में कुछ काम था इसलिए सविता ने सोचा कि चलो भतीजे वरुण से भी मिल आऊँगी और पार्थ अपना काम कर लेगा पर यहाँ आकर पता चला कि वरुण की पत्नी अवनि की तबीयत ठीक नहीं चल रही इसलिए उसने सोचा कि चार- पाँच दिन रुक जाती हूँ….. नहीं तो भाई- भाभी भी कहेंगे कि बहू की ख़राब हालत देखकर भी नहीं रुकी । बस आज पार्थ का जन्मदिन था तो सविता ने वरुण से कहा—
वरुण… चल बेटा , पार्थ के लिए छोटा सा केक ले आते हैं ।
और घूमते- घूमते वे इस कपड़ों की दुकान में आ पहुँचे । ख़ैर रास्ते में ही सविता ने मन को समझा लिया कि चलो कोई बात नहीं, कम से कम पार्थ तो खुश है बर्थडे वाले दिन । रुपये- पैसे तो आते- जाते रहते हैं , वैसे भी ये रुपये तो उसने खुद से जोड़े थे । खर्चे के रुपये तो पति ने अलग दे रखे हैं ।
घर पहुँच कर सविता ने बाज़ार से लाया केक , समोसे , बर्फ़ी मेज़ पर सजाई और चाय बनने रख दी । आज अवनि भी काफ़ी बेहतर महसूस कर रही थी । केक कटने और चाय- नाश्ते के बाद पार्थ अपने दोस्त के साथ फ़ोन पर बातें करने बालकनी में चला गया । तभी वरुण ने कहा—
बुआ, वैसे आपने भी हद कर दी आज तो । एक मामूली सी शर्ट के लिए ढाई हज़ार रुपये खर्च कर दिए । फूफाजी को पता चल गया ना तो …..
इतना कहकर वह अवनि की तरफ़ देखकर कुटिलता से हँसा ।
हाँ बेटा , महँगी तो मुझे भी बहुत लगी पर आज उसका बर्थडे है यही सोचकर ख़रीद दी । कोई बात नहीं, आज के दिन तो तेरे फूफा भी मना ना करते ।
लेकिन बुआ, आपने कुछ ज़्यादा ही सिर नहीं चढ़ा रखा पार्थ को ?
ना बेटा, ऐसी बात नहीं । और फिर बच्चों की एक आध ज़िद पूरी ही करनी पड़ती है कभी-कभी…..
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई कि अवनि बोली —
हमारे माँ बाप ने तो कभी ऊँटपटाँग ज़िद पूरी नहीं की….. जन्मदिन था तो क्या घर लुटवा दोगी बुआ जी ?
बहू , जब तुम माँ बनोगी ना तब पता चलेगा कि एक माँ के जीवन में इस दिन का क्या महत्व होता है । इस बात का ज़िक्र बंद कर दो , मैं नहीं चाहती कि ढाई हज़ार के ऊपर मेरे बच्चे के दिल पर ज़ोर पड़े ।
सविता ने जिस रुखाई से यह बात कही उसे सुनकर वरुण और अवनि दोनों ही सकपका गए । तभी सविता ने बात का रुख़ पलटते हुए कहा—
अच्छा…. ये बताओ कि समोसा पार्टी के बाद अब रोटी की भूख किस- किसको है, सुबह की दाल- सब्ज़ी पड़ी है… रोटी सेंक दूँगी । अवनि के लिए दलिया बनाया है ।
तभी पार्थ अंदर आया और सविता से बोला —
मम्मी! नीरज का फ़ोन सुनकर मैं अंदर आने को मुड़ा ही था कि पापा का फ़ोन आ गया था । वे पूछ रहे थे कि कब आओगे, मैंने कह दिया कि अब तो भाभी काफ़ी ठीक है, एक आध दिन में आ जाएँगे । पापा बहुत मिस कर रहे हैं आज मुझे । मुझे तो आज पहली बार लगा कि पापा भी हमें मिस करते हैं ।
हाँ बेटा….. बाप ऐसे ही होते हैं , बस हम औरतों की तरह अपने मन की बातें कह नहीं पाते ।
अवनि , बेटा अब तो तुम्हारी तबियत ठीक है ना ? निकलूँ तो मैं भी परसों तक ?
हाँ बुआ, वहाँ फूफा जी को भी परेशानी हो रही होगी । अब तो मैं ठीक हूँ ।
तक़रीबन दो साल बाद की बात है कि सविता की माँ का देहान्त हुए छह महीने हुए थे और अवनि के बेटे का पहला जन्मदिन आने वाला था । वैसे तो माँ की बरसी इत्यादि की सारी क्रियाएँ तेरहवीं के दिन संपन्न हो गई थी पर फिर भी परिवार के सदस्य की मृत्यु को अभी साल पूरा नहीं हुआ था । अवनि अपने बेटे के जन्मदिन को लेकर बहुत ही उत्साहित थी । वह रोज़ सास से फ़ोन पर इस बात का ज़िक्र छेड़ते हुए कहती—-
मम्मी जी! नवल का जन्मदिन आ रहा है ना तो मैंने बहुत ही सुंदर कोलॉज तैयार किया है । जब ये बड़ा हो जाएगा ना तो देखा करेगा बस पहले बर्थडे की सारी पिक्चर बीच में लगाकर फ़्रेम करवाऊँगी ।
पर अवनि , अभी माँ जी को गए पूरा साल नहीं हुआ । इस बार परिवार के लोग ही मिलकर मना लेंगे ।अगले साल खूब धूमधाम से मनाएँगे ।
मम्मी जी…. मेरे भाई- बहन तो आएँगे ही जरुर , चाहे उन्हें बुलाना या मत बुलाना । उन्होंने तो सबने तैयारी कर ली है । और दादी कौन सा जवान गई है ?
बेटा , बात जवान और बूढ़े की नहीं होती पर तुम्हारे पापा जी और उनके भाई- बहनों की तो वे माँ थी ।
ख़ैर वरुण की माँ को अंत में कहना पड़ा कि—
बेटा , इस साल नवल का जन्मदिन शिमला में ही अपने दोस्तों और मायके वालों के साथ मिलकर मना लो । मैं और तुम्हारे पापा जी मंदिर जाकर भगवान से अपने पोते के लिए प्रार्थना कर आएँगे । हाँ… तुम्हारे देवर को भेज दूँगी ।
कुछ दिनों बाद सविता अपने मायके गई तो उसके कानों तक यह खबर पहुँची , उन्होंने बातों- बातों में अपनी भाभी से इस बारे में पूरी जानकारी ली तो उन्हें पता चला कि उस दिन के बाद से अवनि ने सास से बात ही नहीं की , यह सुनकर सविता ने कहा —
अरे भाभी …. माँ का दिल था , बुला लेती यहीं । बेटे के पहले जन्मदिन पर उसकी उत्सुकता स्वाभाविक थी ।चलिए, मैं वीडियो कॉल करती हूँ ।
बुआ की कॉल देखकर अवनि ने फ़ोन उठाया । सास को सविता के साथ बैठी देखकर वह समझ गई कि बुआ को कोल्ड वॉर के बारे में सारी बात पता चल चुकी है इसलिए पहले से ही सफ़ाई देती हुई बोली —-
अब बताओ बुआ जी, क्या हमें दादी का दुख नहीं था पर एक उम्र के बाद तो सबको ही जाना है । और मेरे घरवाले तो बहुत ही एक्साइटेड थे ।
हाँ बेटा…. तुम अपनी जगह ठीक हो और भाभी अपनी जगह क्योंकि जिनकी मृत्यु हुई थी वो इनके पति की माँ थी और अवनि , अब तुम ख़ुद एक माँ हो , माँ- बच्चे के बीच के भावनात्मक लगाव को समझाने की ज़रूरत नहीं है । याद है ना तुम्हें…. कई साल पहले जब शिमला में मैंने पार्थ के लिए ढाई हज़ार की एक शर्ट ली थी तो तुमने कहा था कि जन्मदिन के नाम पर घर तो नहीं लुटवाया जा सकता ….. तो आज वही सवाल तुमसे किया जा सकता है कि जिस छोटे से बच्चे को जन्मदिन का पता ही नहीं उसके नाम पर रिश्ते तो समाप्त नहीं किए जा सकते ना ?
अवनि चुपचाप बुआ सास की बातें सुन रही थी । उसके चेहरे पर आते- जाते भावों को देखकर सविता समझ रही थी कि अवनि को अपने व्यवहार पर पछतावा है इसलिए उसने सविता के चुप होने पर केवल इतना कहा- सॉरी मम्मी जी ।
पहला जन्मदिन # जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा
Karuna Malik करुणा मालिक