मां बनना कितना मुश्किल है – अर्चना खण्डेलवाल :Moral Stories in Hindi  

मनु खाना नहीं खा रही है तो रहने दो, आप उसके पीछे क्यों पड़ी रहती हो? जब भूख लगेगी खा लेगी, आप लोगों ने तो खाने को बहुत बड़ा मुद्दा बना रखा है, पूनम खीझते हुए बोली जो ऑफिस का काम लैपटॉप पर कर रही थी और मनु के रोने की आवाज से उसे बार-बार परेशानी हो रही थी।

आज पूनम की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए वो ऑफिस का काम घर से ही कर रही थी, लेकिन उसकी भतीजी दो साल की मनु बार-बार खाना ना खाकर अपनी मम्मी निशा को दौड़ा रही थी, और वो कभी इस कमरे से उस कमरे तक उसके पीछे भाग रही थी।

उसे मनु से ज्यादा गुस्सा अपनी भाभी निशा पर आ रहा था, भाभी आपको और कोई काम नहीं है क्या? जो इसके पीछे फुर्सत से भाग रही हो?

दीदी, ये खाना खा लेगी तो मेरा सबसे बड़ा काम हो जायेगा, बाकी काम तो मैं मिनटों में कर लूंगी, पर मनु को खाना खिलाने में मुझे घंटों लग जाते हैं, ये खाना खा लेगी तो मैं भी खा लूंगी, निशा आराम से बोली।

क्या भाभी? बच्ची ही तो है, भूख लगेगी तो खा लेगी, आप तो खा लो, वो मेल टाइप करते हुए बिना पलकें ऊपर उठाएं बोले जा रही थी, मम्मी आप भाभी को समझाते क्यों नहीं हो?

पूनम की बात सुनकर निशा मुस्कराने लगी, दीदी जब तुम मां बनोगी तब पता चलेगा कि अगर बच्चे ने खाना नहीं खाया तो कितनी चिंता होती है, अगर बच्चे ने खाना खा लिया तो कितनी खुशी भी होती है, मां के मन को संतुष्टि मिलती है।

निशा की हां में हां मिलाते हुए उसकी सास सरिता जी भी बोली, हां मेरी लाड़ो जब तू मां बनेंगी तब पता चलेगा कि ये मां की ममता, फ्रिक, चिंता, संतुष्टि क्या होती है।

ये सब आप लोगों के पुराने चोंचले है, मेरा तो मानना है कि जब बच्चे को भूख लगेगी वो तभी खायेंगा, उसके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।

पूनम, ये जबरदस्ती नहीं है, भला इतना छोटा बच्चा कैसे बतायेगा कि उसे भूख है या नहीं, वो तो आधे समय तो रोता ही रहता है, उसकी भूख प्यास का ध्यान तो मां को ही रखना होता है, कोई ना जब तेरे दिन आयेंगे तब तुझे पता चलेगा, सरिता जी मुस्कराते हुए बोली।

कुछ दिनों बाद मनु को तेज बुखार आ गया, निशा दिन-रात उसकी देखभाल में लगी रही तो उसे भी बुखार आ गया, वैसे भी बच्चे को चोट लगे या बुखार आयें, मां तो वैसे ही आधी बीमार हो जाती है, इसी कारण वो रसोई में भी अच्छे से खाना नहीं बना पाई, रसोई सरिता जी ने संभाला ली तो पूनम चिढ़कर बोली, क्या भाभी मनु को ठीक ना कर सकी तो आराम करने के बहाने खुद बीमार हो गई, और मम्मी को इस उम्र में काम करना पड़ रहा है। आपको तो बच्चे की बीमारी का बहाना चाहिए।

ये सुनते ही निशा सन्न रह गई, तभी सरिता जी बोली, निशा पूनम को अभी कुछ पता नहीं है, ये आज जितना कड़वा तुम्हारे लिए बोल रही है, इसको अभी इसकी गलती बतायेंगे तो भी समझ नहीं आयेगी।

पूनम मुझे रसोई संभालने में कोई दिक्कत नहीं है, मेरे हाथ-पैर अभी चलते हैं और मैंने तुम दोनों  बच्चों को संभाला है तो मैं कुछ भी संभाल सकती हूं।

अपनी भाभी की मदद नहीं कर सकती हो तो कड़वे बोल बोलकर उसका मन तो मत दुखाओं, आखिर तुझे किस बात से दिक्कत है? सरिता जी की बात सुनकर पूनम का मुंह बन गया और वो अपने कमरे में चली गई, दो-तीन दिन बाद मनु ठीक हो गई।

कुछ महीनों से सरिता जी अपनी बेटी के लिए रिश्ता देख ही रही थी कि एक जगह का रिश्ता उन्हें जंच गया, पूनम और सोहित भी आपस में मिल लिए, उसे पूनम के ऑफिस काम से भी दिक्कत नहीं थी, घर-बार भी अच्छा था, धूमधाम से सगाई संपन्न हुई।

सभी घरवाले शादी की तैयारियों में लग गये, आखिर शादी वाला दिन भी आ गया, सभी मौसियां, मामियां और रिश्तेदार सलाह देने लगे कि इतनी उम्र में शादी कर रही हो पूनम, बच्चे भी जल्दी कर लेना।

पढ़ाई करने और नौकरी की वजह से पूनम तीस की हो चली थी, जब वो तैयार नहीं थी तो पूनम के भाई की शादी कर दी गई, अब जाकर वो भी शादी के लिए तैयार हुई थी।

पूनम की विदाई हो गई, ससुराल में उसे सबने प्यार और सम्मान से रखा, एक सुबह खुशखबरी मिली कि वो मां बनने वाली हैं, ये उसका और सोहित का फैसला था, नौ महीने गर्भ में बच्चे को रखा तो उसे दादी-नानी याद आ गई।

मां बनने के लिए कितनी तकलीफ झेलनी होती है, उसकी परेशानियों को ससुराल वाले समझ रहे थे, और उसका पूरा ख्याल रख रहे थे, लेकिन वो मन ही मन ग्लानि के बोझ से दबी जा रही थी।

जब उसकी भाभी निशा गर्भवती थी, तो उसे भी बहुत परेशानी होती थी, तब पूनम उनका बड़ा मजाक उड़ाती थी। सुबह उससे उठा नहीं जाता था, खाने का मन कभी करता तो कभी नहीं करता था, पूरे शरीर का वजन बढ़ गया था, पैरों में सूजन आ गई थी, ऐसे में भी वो भाभी पर हुक्म चलाती थी, मम्मी को उनकी मदद करने से रोकती थी, भाभी की कोई भी परेशानी पूनम को नाटक ही लगती थी। वो अपने ऑफिस और दोस्तों के साथ व्यस्त रहती थी, अब उसे महसूस हो रहा है कि मां बनना कितना मुश्किल है, ऐसे में ससुराल वाले साथ ना दें तो बड़ा मुश्किल हो जाता है।

बच्चे का जन्म हुआ तो पूनम का मन एक पल में ममता से भर गया, मां तो बच्चे के गर्भ में आते ही उससे प्रेम करने लगती  है।  अपनी छोटी सी गुड़िया को देखकर वो खिल गई, सारे दर्द भुल गई, सवा महीने ससुराल में रहने के बाद वो मायके रहने गई।

एक रात को गुडिया सो रही थी तो पूनम बेचैन सी दिखी, पर मन तो बार-बार उसे दूध पिलाने का कर रहा था।

निशा और सरिता जी ने उसकी बेचैनी भाप ली, अरे! इतनी बेचैन क्यों है? जब उसे भूख लगेगी, वो रोकर तुझे दूध पिलाने के लिए कहेगी, ये सुनते ही पूनम को अपने पुराने दिन याद आ गये।

मम्मी और भाभी मुझे क्षमा कर दीजिए, मैंने मम्मी आपका और भाभी का कभी सम्मान नहीं किया, अब स्वयं मां बनी हूं तो अहसास हुआ कि मां बनना कितना मुश्किल है और जब स्वयं मां बनते हो, तभी मां की भावनाओं और ममता का अहसास होता है, बच्चे को गर्भ में रखना एक तपस्या के समान होता है, उसके आने के बाद उसके भूख, प्यास की चिंता ही लगी रहती है, अभी तो गुडिया इतनी छोटी है, फिर भी मुझे बार-बार ख्याल आ रहा है, वो उठी क्यों नहीं?

कहीं भूखी तो नहीं है? दूध के लिए जागी क्यों नहीं?

मेरा भी मन कुछ खाने का नहीं कर रहा है, ये कैसा बन्धन है, जो मां बनने के बाद ही समझ आता है।

मम्मी, आप कितने प्यार से मेरे नखरे झेलते‌ थे, मैं आपको कितना परेशान करती थी, पर अब मेरी बारी है, मेरी भी बेटी आ गई है, मैं भी मां बन गई हूं।

हां, तभी तो हम तुझे कहते थे कि जब तू मां बनेगी, तभी पता चलेगा, सरिता जी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और निशा ने अपनी ननद को गले लगा लिया।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खण्डेलवाल  

#जब तुम मां बनोगी तब पता चलेगा

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