यह क्या अनु..!! तुम तो अभी आई हो, और आते ही रसोई घर का काम करना शुरू कर दिया…? पहले चाय पानी पियो..! इसके बाद थोड़ा आराम करो। काम तो हमेशा बना ही रहता है, हजारों किलोमीटर का सफर तय करने के बाद थकावट तो लग रही होगी । ससुर जी बोले।
एसी 3 टायर का रिजर्वेशन था उसमें आराम करते हुए आई है थकावट का तो कोई प्रश्न नहीं उठाता। अगर काम कर रही है तो इसमें कौन सी बड़ी बात है सासू मांँ अपने पति नवीन से बोली।
नवीन- याद रखो सोनाली आज जैसा बोओगी, कल वैसा काटोगी। फिर मत बोलना, हमने कभी चेताया ही नहीं।
सोनाली- देखो जी तुम घरेलू मामले में ज्यादा दखलअंदाजी न करो। घर को कैसे चलाना है वह मैं देख लूंँगी।
नवीन- देखो तुम्हारा बेटा अंशुल आते ही बिस्तर पर खर्राटे लेने लगा। दोनों तो साथ-साथ ही आए हैं फिर अनु रसोई घर में काम कर रही है। अरे भाग्यवान..! तुम्हारा बेटा है इसलिए सो रहा है और अनु दूसरे की बेटी है इसीलिए आते ही लगा दिया रसोई में…! उसके बारे में भी तो सोचना तुम्हारा काम है।
सोनाली- देखो जी मैंने तुम्हें कई बार बोला है। तुम सास,बहू के बीच में बोलना बंद करो। मुझे किसके साथ कैसा व्यवहार करना है, यह मुझे अच्छे से पता है।
पापा जी चाय लाई हूंँ, लीजिए आप लोग पी लीजिए। अनु तीन कप चाय बना कर लाई सास,ससुर और स्वयं के लिए।
बहू तुम भी चाय पी कर थोड़ा आराम कर लो..!
अनु- नहीं पापा जी मैं ठीक हूंँ।
सोनाली – यह आराम करेगी, तो खाना कौन बनाएगा मैं…!!
अगर तुम्हारा बेटा अकेला आता है, तब तो तुम खाना बनाती हो न…? कम से कम एक टाइम तो खाना बना कर बहू को खिला दो। इसके बाद जब तक अनु बहू रहती है तुम्हें रसोईघर में जाने नहीं देती। वह स्वयं नये- नये व्यंजन बनाती रहती है।
सोनाली -तुम बहू की वकालत करना बंद करो..!
अनु- मम्मी यह देखो आपके लिए साड़ी लाई हूंँ और पापा यह आपके लिए कुर्ता पजामा… कैसे लगे।
नवीन- अरे वाह यह तो बहुत सुंदर है अनु बेटा..! तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है।
सोनाली- “मुंँह बिचकाते हुए बोली अरे..! यह कपड़े तो मेरे बेटे की कमाई के हैं, कौन सा यह अपने बाप के घर से लाई है।”
नवीन -”अरे भाग्यवान..! कभी तो अच्छा बोल लिया करो।”
दोपहर में सब लोग खाना खाते समय एकदम शांत थे। सभी को मौन देखकर नवीन ने कहा-
“अनु बेटा..!तुमने खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया है।”
“घरेलू है, तो खाना भी नहीं बना पाएगी क्या..? इसे कौन सा कलम चलाने ऑफिस जाना है, व्यंग्य बाण भेदते हुए सोनाली बोली।”
अनु सासू मांँ की बातें सुनकर मन ही मन बहुत दुखी हो जाती। सासू मांँ के व्यवहार के कारण वह ससुराल नहीं आना चाहती हैं। वह अंशुल से बहुत प्यार करती है और अंशुल अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते हैं। इसलिए कुछ दिनों के बाद वह स्वयं ही कहने लगती है चलो..! गांव मम्मी-पापा से मिलकर आते हैं।
सोनाली के मन में अनु के लिए बहुत जलन रहती। हमेशा उसे ताने देती, कि मैंने अपने बेटा को कितनी कठिन परिस्थितियों में पढ़ा लिखा कर बड़ा किया है। लेकिन मुझे उसका प्रतिफल कुछ नहीं मिल पाया।
मेरे बेटे की पूरी पगार की यह मालकिन बनकर बैठी है। पूरा ऐसो आराम से जीवन गुजार रही है। सारा जीवन तपस्या मैंने की, और वरदान का फल इसे मिला। अंशुल- मम्मी, पापा आप लोग हमारे साथ मुंबई चलकर रहिए। आप लोगों के वहां रहने से हम लोगों को बहुत खुशी होगी। अनु ने भी हां मे हां मिलाई।
“सोनाली ने अजीब सी नजरों से अनु को घूरते हुए कहा जब मेरा बेटा बोल रहा है, तुझे बीच में बोलने की क्या जरूरत है। मेरे घरेलू मामलों में तू बीच में कुछ मत बोला कर..!”
अनु चुप हो गई। मन ही मन सोचने लगी कि- मैं ऐसा क्या करूंँ जो मेरी सासू मांँ हमसे खुश रहे।
गांव आए हुए अनु को आठ-दस दिन हो गए थे। वह घर के समस्त कार्य करने के पश्चात बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाती। अनु के कामों से सोनाली खुश नहीं थी।
एक दिन सोनाली सिर दर्द का बहाना बनाकर खटिया से उठी नहीं। अनु से बोली कि जानवरों को सानी- चारा कर दो। और हां मेरा सिर दर्द ज्यादा ही है, इसलिए मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी। तुम घर का काम निपटा कर जानवरों का गोबर उठाकर घूरे में डाल देना।
अनु- जी मम्मी जी। आप निश्चिन्त होकर आराम करिए मैं सब काम कर लूँगी। अनु के आने के बाद सोनाली बिल्कुल फुर्सत में रहती और पड़ोस में जाकर बस अपनी बहू की बुराई करती रहती थी।
“आ गई है महारानी..! अब कुछ दिन गोबर उठायेगी तो दिमाग ठीक रहेगा।”
अरे जीजी, अपने गांव की बहुएं तो कुछ काम करना नहीं चाहती हैं, वह तो मुंबई शहर की पली बड़ी लड़की है उससे वह सब काम मत कराओ..! पड़ोसन बोली।
मैं भी तो गांव में रहकर सब काम कर रही हूंँ, उसको भी तो पता होना चाहिए। कि गांव का जीवन कितना मुश्किल होता है।
“जीजी, एक बार अगर उसका मुंह खुल गया तो फिर जीवन भर के लिए खुलता ही रहेगा। इसलिए तुम्हारी अच्छी बहू है, उसे मुंह खोलने का अवसर मत दो..!”
उसके जाने के बाद तो तुम्हें सब करना ही है। क्यों न वह घर के काम कर ले, तुम बाहर जानवरों का काम कर लिया करो।
नहीं…उसके सामने मैं कोई काम नहीं करूंगी, सब उसी से करवाऊंगी। मैंने यह सब काम करते हुए बेटे का पालन-पोषण किया है।
अगर बहू ने गांव आना बंद कर दिया, तो तुम्हारे बेटे की हिम्मत नहीं है कि वह गांव आ सके। इसलिए मैं तो कहती हूँ तुम्हारी बहु अच्छी है। उसके साथ अच्छा बर्ताव करो, पड़ोसन बोली।
सोनाली – मेरा बेटा मेरे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार है। उसकी इतनी हिम्मत नहीं, कि वह गांव आने के लिए मना कर दे।
जीजी ..! ऐसा मत करो वह पढ़ी-लिखी संस्कारित परिवार की बेटी है। इसीलिए अपना मुंँह नहीं खोल रही है।
गेहूं की कटाई शुरु हो चुकी थी, चारों तरफ भूसा की
की गंद हवाओं में घुल गई थी। अनु को यह मौसम सूट नहीं करता था, उसको बहुत छींक आ रही थी।
सोनाली- लगता है तुम्हें कोई बड़ी बीमारी है जो हर समय छींकते रहती हो।
मम्मी इसे “डस्ट इंफेक्शन” है इसलिए ऐसा मौसम इसे सूट नहीं करता है।
अंशुल तुझे बोलने की जरूरत नहीं है, मैंने इससे पूछा यही जवाब देगी।
जी मम्मी यह बिल्कुल सही कह रहे हैं। मुझे थोड़ा भी आसपास डस्ट होता है, तो छींक आने लगती हैं। इसका मतलब तुझे बीमारी है..!
नहीं मम्मी बीमारी नहीं, थोड़ा डस्ट अवॉयड कर देते हैं ठीक हो जाता है।
तू सीधे-सीधे क्यों नहीं कहती, कि तुझे गांँव आने की इच्छा ही नहीं है। और यह दुनिया भर के नाटक कर रही है।
नहीं मम्मी जी यह तो मेरा ससुराल है, यहां मैं हमेशा आना चाहूंगी।
अंशुल मम्मी का स्वभाव जानता था, इसलिए उसने पहले ही अनु को बता दिया था। अनु बोली कोई बात नहीं, कभी न कभी उनका स्वभाव जरूर बदलेगा ऐसा मुझे विश्वास है।
एक दिन सोनाली बाथरूम में रपट गई। अपने आप को बचाते हुए हाथ के बल धड़ाम से गिरी, जिससे उनकी हाथ की हड्डी टूट गई। अनु ने दौड़कर सोनाली को उठाया और उनके हाथ में मजबूती से कपड़ा बांध दिया।
अस्पताल ले गई। उनके हाथ में प्लास्टर चढ़ गया। अब वह अपना भी कोई काम नहीं कर पा रही थी। दैनिक दिनचर्या के लिए वह अनु पर निर्भर थी।
नवीन – कितनी बार कहा है कि झूठ- मूठ बीमारी का बहाना मत बनाया करो भगवान ने सच में तुम्हें असहाय बना दिया है।
अंशुल की छुट्टी खत्म होने को थी। अनु, अंशुल से बोली तुम अकेले मुम्बई चले जाओ। जब तक मम्मी जी ठीक नहीं होती है, तब तक मेरा यहां रहना जरूरी है।
अंशुल ने भी हांँ में अपनी सहमति व्यक्त की।
अनु तुम बहुत अच्छी हो। मम्मी की इतनी ज्यादती के बावजूद तुम उनका कितना अच्छे से ख्याल रख रही हो। मम्मी की तरफ से मैं तुमसे माफी मांग रहा हूंँ।
उसकी जरूरत नहीं, तुम्हें महशूस हुआ मेरे लिए वही बहुत है।
अनु ने सासु माँ को नहला कर धूप में खटिया पर बैठा दिया,वहीं पर बालों में तेल लगा कर कंघी करने लगी।
नवीन भी आकर खटिया पर बैठ गये।
नवीन – बेटा..! एक कप चाय मिलेगी।
जी पापा..!
आप लोग बात करिए, तब तक हम आप लोगों के लिए चाय बना कर लाते हैं। कहते हुए अनु रसोईघर की तरफ बढ़ गई।
अनु के जाते ही ….देखो…! तुम अनु को कितना अनाप-शनाप बोलती रहती हो। वह तुम्हारा सम्मान करती है, इसलिए कभी पलटकर तुम्हें जबाब नहीं दिया।
वह अंशुल के साथ वापिस जा सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
पूरा घर संभालते हुए तुम्हारी कितनी सेवा कर रही है। हमें भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमें इतनी अच्छी बहू मिली है।
तुम अब आगे से उसके साथ अच्छा व्यवहार करना, कहीं ऐसा न हो कि बेटा, बहू हमसे दूर हो जाए।
सोनाली – आपने बिल्कुल ठीक कहा।
अनु चाय लेकर आ गई…. लीजिए आप लोग चाय पीजिए।
तुम भी अपने लिए चाय ले आओ बेटा…! मम्मी के मुंह से अपने लिए बेटा सुनना उसके लिए आश्चर्यजनक था।
बेटा पता नहीं क्यों…तुम्हें मैं अपने दिल से स्वीकार नहीं कर पा रही थी। ईर्षावश तुम्हें खरी-खोटी सुनाती रहती थी।
बेटा मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। अगर हो सके तो मुझे माफ कर दो… कहते हुए सोनाली ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए।
नहीं मम्मी जी…! आप हाथ जोड़कर मुझे पाप की भागी मत बनाइए। आप के हाथ हमेशा आशीर्वाद स्वरुप हमारे सिर पर बने रहे यही कामना करतें हैं।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित,मौलिक, अप्रकाशित
हल्दिया, पश्चिम बंगाल
#साजिश