रात के बारह बज चुके थे,सुषमा की आंखे नींद से भारी हो रही थी, लेकिन वो सो नहीं पा रही थी, उसका बेटा गगन बैंगलौर से फ्लाईट से आ रहा था तो जब तक वो बेटे को देख न ले , उसे नींद आती ही नहीं थी।ये रोज की बात थी, गगन किसी बहुत अच्छी प्राईवेट फर्म में उच ओहदे पर था, लेकिन जैसा कि आजकल आनलाईन काम करने का चलन हो चुका हैं, और विदेशी कंपनियों से डील होती रहती है तो दिन रात का अंतर जैसे खत्म हो गया है।
कभी रात को बारह बजे मीटिंग है तो कभी दो बजे, क्योंकि उस देश में उस समय आफिस टाईम है। और आधा महीना तो सफर में ही निकलता था। शादी को तीन साल होने के आए। बहू शीबा प्राईवेट एडिड स्कूल में टीचर है, तो उसका तो आने जाने का समय निश्चित है। वो स्वभाव की बुरी नहीं, सब कुछ अच्छे से मैनेज कर रही है। उसकी दो शादी शुदा ननदें उसी शहर में हैं तो आना जाना लगा ही रहता है।
सब कुछ ठीक होते हुए भी सास बहू में कभी कभी तकरार का माहौल बना जाता है, लेकिन कुछ ज्यादा नहीं। अब जब बारह बज गए है तो शीबा को तो नींद आएगी ही, जब गगन आएगा तो वो दरवाजा खोल देगी। खाना वो फ्लाईट में खाकर आएगा , तो बस चेंज करके सो जाएगा। चाय काफी की उसे इस समय की आदत नहीं है।
लेकिन सुषमा को चैन कहां, वो कभी लेटती है तो कभी बैठती है। वो मुंह से तो कुछ नहीं कहती लेकिन मन में उसे गुस्सा आ रहा है कि पति अब तक घर नहीं आया और ये देखो, कैसे निशचिंत होकर सो रही है। उसे याद है वो जमाना, जब तक दीपक ( उसके पति) दुकान से घर न आ जाते वो खाना नहीं खाती थी।
उस समय सयुंक्त परिवार था। दीपक तीन भाई थे, सास ससुर भी थे। छोटा नौकरी पर चला गया और दुकान पर दोनों भाई पिता के साथ बैठ गए। समय के साथ बंटवारा हो गया। गगन के पिता दीपक भी चल बसे , गगन को नौकरी करनी था तो दुकान चाचा ने संभाल ली, और सब आराम से अलग हो गए। अब भी आपस में अच्छे संबध थे।
गगन की मां अपने समय का सोचती कि कैसे सब औरते उस जमाने में आदमियों के रात घर आने तक बैठी रहती, बच्चों को खिला दिया जाता। फिर सब आदमी खाना खाते, सास और बहुएं बाद में । मजाल है कोई पहले सो जाए या खाना खा ले। कोई बीमार वगैरह हो तो अलग बात थी।
उस समय सब बहुएं आपस में अकेले में सास का मजाक उड़ाती कि बुढ़िया को चैन नहीं पड़ता, काम धंधा कुछ करती नहीं, बस बैठी हुक्म चलाती रहती है। घर में कोई बीमार होता तो सबसे ज्यादा चिंता माता को ही होती। उसे नींद ही न आती, रात में भी उठकर माथे पर हाथ रख रख कर देखती।
अब सुषमा की वही स्थिति है। बेटियों का दो दिन फोन न आए तो फोन तो नहीं करती कि क्या तंग करना, वो काम में व्यस्त होगीं लेकिन मन में एक इतंजार सा रहता। घर में कुछ भी अच्छा बनता तो उसका मन होता कि काश ये रीना, मीना के पास पहुंच जाए, लेकिन ये संभव न हो पाता।
बहू से तो न कह पाती लेकिन गगन को कभी कभी कह देती, बेटा, आजकल तो वो जो मोटर साईकल पर आते हैं वो सामान पहुँचा ही देते है, कुछ मँहगा भी नहीं पड़ता ये बादामों वाली खीर दोनों बहनों को भिजवा दे। और गगन कहता, मां तुम भी ना, हर घर में सब कुछ बनता है, लेकिन माँ के दिल को कौन समझे, जब तक इंसान स्वंय उस स्थिति तक नहीं पहुंचता सच में ही समझ नहीं पाता।
सुषमा को गगन का इंतजार था, उसका फोन आया भी होगा तो पत्नी को, क्यूंकि उसके लिए तो मां सो गई होगी। एक बजने को हो गया, तभी उसे गगन के आने की आवाज आई और उसके मन को चैन आया, और वो चैन से लेट गई। वो रात को खाना खाने के बाद अपने कमरे से कम ही बाहर निकलती, लेकिन अगर गगन देर से आता तो परदे की ओट से देख कर ही मन को शांत कर लेती और सुबह उससे मिलती, दिल तो करता कि उसे अपने अंक में भर ले, लेकिन ऐसा करके वो शीबा को नाराज करना नहीं चाहती थी।
गगन , शीबा और सुषमा जब सुबह मिले तो सुषमा ने बेटे की पंसद का नाशता तैयार करवाया, उसे मनुहार से ऐसे खिला रही थी, जैसे चार दिन से उसने खाया ही न हो।
मां बस अब बहुत हो गया, गगन ने उठते हुए कहा। शीबा अच्छे मूड में थी, मां बेटे की बातों पर मुस्करा रही थी। “ कोई बात नहीं, एक गुलाब जामुन और खा लो, मां के दिल को तसल्ली हो जाएगी, मुझे पता है रात को मां आपके आने के बाद ही सोई है, तभी तो आंखे लाल है, मैं तो भई सो गई थी, तुम्हारे आने पर ही उठी थी”।
शीबा, तुम ठीक कहती हो, गगन का तो रोज का ही काम है, देर से आना, कई कई दिन काम के सिलसिले में बाहर रहना और बेटियां अपने अपने घरों में व्यस्त है, लेकिन मां का दिल क्या होता है, यह जब तुम मां बनोगी तभी समझोगी कि माँ बच्चे का रिशता क्या होता है।गल्त तुम भी नहीं हो और गल्त मैं भी नहीं। चिंता न करो मां, सब प्रभु इच्छा, गगन ने कहा और दोनों अपने अपने काम पर चले गए।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
वाक्य- जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा