कमली अपने दो साल के बच्चे को गोद में उठाए भागती जा रही थी। अंधेरा गहराता जा रहा था और बारिश भी अपना पूरा जोर लगाए हुए थी| सुनसान सड़क कोई दुकान भी खुली नजर नहीं आ रही थी| अपनी पुरानी घिसी हुई साड़ी से बच्चे को ढकने की नाकाम कोशिश कर रही थी| एक दीवार की ओट दिखाई पड़ी तो छिप कर वहीं बैठ गई। फिर भी डर लग रहा था कि कहीं बच्चा ना रो पड़े और पीछा करते हुए वो बदमाश कहीं फिर से उसे ना पकड़ लें। जब पीछे से आते हुए वो बदमाश दिखाई पड़े तो कलेजा मुंह को आ रहा था। अपने हाथों से ज़ोर से बच्चे के मुंह को बंद किया और भगवान का नाम लेकर कोने में दुबक गई|
लाखन अपने साथी से बोल रहा था, “लगता है वो निकल गई हाथ से| इस बार दिखाई पड़ी तो छोडूंगा नहीं उसको| ऐसा मज़ा चखाऊंगा कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी|”
“छोड़ यार बहुत बारिश हो रही है| उसके चक्कर में सारा नशा भी उतर गया| चल वापस ठिकाने पर चलते हैं।” दुसरे साथी ने कहा और वहां से वापस मुड़ लिए|
कमली का पूरा शरीर कांप रहा था लेकिन अब उसे तसल्ली हो गई थी कि वो लोग वापस चले गए हैं। बस अब एक ठिकाने की तलाश थी जहां वो ये बरसात की एक रात गुजार सके| उसके बाद फिर कभी इस शहर की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखेगी| अपने गांव मां के घर चली जाएगी| इस शहर ने उसे सिर्फ तकलीफ के अलावा और कुछ नहीं दिया| जिस मर्द के भरोसे यहां आई थी उसने तो औरों के हाथों में सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया|
थके कदमों से थोड़ा आगे चली तो एक झुग्गी दिखाई पड़ी जिसका दरवाजा खुला था| बिना पूछे ही वो अंदर आ गई| उसने सोंचा कोई औरत तो होगी इस झुग्गी में, लेकिन अंदर तो एक हट्टा कट्टा आदमी हीं था| शराब की बदबू सारी झुग्गी में फैली हुई थी। वो घबराकर वापस मुड़ने को हुई तो उस आदमी ने अपनी जगह से उठते हुए कहा ,” क्या बात है कहां से आई हो?,,
“जी..जी .… वो आसरा चाहिए था। बच्चा बीमार है। ,,
” तो फिर वापस क्यों जा रही हो| मेरी घरवाली आज नहीं है घर पर| लेकिन तुम रह सकती हो यहां।
कमली को घबराता देख। वो फिर बोला , ” घबराओ मत…. बच्चे को कुछ खिला दो और कपड़े सुखा लो। मैं पास वाली खोली में जा रहा हूं| तुम अंदर से दरवाजा बंद कर लो। ,,
कमली डर तो रही थी लेकिन बच्चे की तरफ देखकर उसे ये बात ठीक लगी और उसने उस आदमी के बाहर निकलते हीं फटाक से कुंडी लगा ली। कपड़े सुखाकर और कुछ खा कर अब उसे थोड़ी राहत मिली| सुबह पौ फटने से पहले हीं वो झुग्गी से निकल कर स्टेशन पर पहूंच गई|
उस अंजान आदमी को सामने से तो नहीं लेकिन मन हीं मन धन्यवाद दे रही थी और साथ ही भगवान को भी धन्यवाद कर रही थी कि इस निर्दयी दुनिया में कुछ भले लोग भी हैं, जो किसी की मजबूरी को मौका नहीं समझते। इस बरसात की काली रात में उसे अब रौशनी की किरण नजर आ रही थी।
#काली रात /
सविता गोयल