औरत कितनी भी मजबूर हो,निष्ठुर हो पर वो हार जाती है ।हां हार , उससे जिसे ………।
सोच ही रही थी कि सुधीर की आवाज़ सुनाई पड़ी ।सुनती हो ज़रा इधर तो आना देखो ना दवाई की सीसी नही खुल रही …और वो सुन कर भागी भागी गई उस इंसान के दवाई की सीसी खोलने जो एक समय में खुंखार हुआ करता था।
वो तो क्या पूरा घर उसकी आवाज़ से कांपता था।माल है कि उसके खिलाफ कोई बड़ा हो जाये फिर वो चाहे मां हो या बाप,भाई हो या बहन।और जब इन सब कि हिम्मत नही पड़ी थी उसके खिलाफ जाने की तो वो तो नई नई
आई थी उसे तो थोड़ा वक़्त लगेगा उसे समझने में पर सांस और ननद ने मिल कर समझा दिया था कि देखो थोड़ा सिर फिरा, ज़िद्दी और गुस्सैल है पर मन का बहुत मुलायम है जितनी जल्दी वो गुस्सा होता है उतनी ही जल्दी मान भी जाता है।
उसने देखा कि बढ़ती उम्र के साथ भाई बहन तो थोड़े मन मौजी हो गए पर सासू मां अभी भी उसके बिगड़ने से डरती थी । इसलिए जहां तक हो सके उन्हीं के मन का काम करती और रही उसकी तो जब उसने सारे माहौल का जायेगा ले लिया तो उसी में ढल गई ।और जिंदगी सामान्य तौर से चलने लगी ,इस बीच जब वो गर्भवती हुई तो सबसे ज्यादा ईश्वर से वो ये प्रार्थना करती कि उसकी जो भी औलाद हो वो बाबू जी के जैसी हो।समय जीतने लगा पूछा के पांव पालने में ही नज़र आने लगे ।उम्र जैसे जैस बढ़ने लगी हूबहू अपने बाप की परछाईं बन गया।
वही रोबिला अंदाज़,वही गुस्सा वही जिद्द ये कह लो की कोई हरकत नही छोड़ा था। और यही इस उम्र में उसकी चिंता का कारण था।भाई ढलती उम्र के साथ पति के तेवर तो मद्धम पड़ गए पर बेटे के तेवर सातवें आसमान पर थे। कैसे होगा इसका गुजारा,कौन लड़की आकर इसे संभालेगी कैसे जिंदगी कटेगी भगवान जाने । क्या मेरी तरह आज के दौर में भी कोई है जो इतने सिर फिरे को अपना सके ।वो सोच ही रही थी कि सुधीर की नरम मुलायम आवाज़ ने उसके ध्यान मुद्रा को भंग कर दिया।और वो उसके पास पहुंच कर सीसी बोलते हुए सोचने लगी।स्त्री सब से जीत जाती है पर अपने ही पति और औलाद से हार जाती है।
क्योंकि एक के बिना गुजारा नही होता।और दूसरे को नौ महीने कोइ में रखती है।वाह रे! औरत की किस्मत।