काली रात- श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

अपनी मौसेरी बहन की शादी अटेंड करके आनंद अपने परिवार के साथ वापस घर लौट रहा था। रात का समय था। सभी गप्पें मारते, हॅंसी मजाक करते हुए गाड़ी में अपना सफर तय कर रहे थे।

फ्रंट सीट पर आनंद, ड्राइवर के साथ बैठा था। बीच वाली सीट पर उसके माता-पिता, छोटी बहन और पीछे की सीट पर उसकी पत्नी निशा अपनी साल भर की बेटी रोशनी को गोद में लिए बैठी थी। हॅंसी- ठिठोली चल रही थी। गाड़ी फुल स्पीड में सड़क पर दौड़े जा रही थी।

लेकिन अगले ही पल यह सारी खुशियाॅं मातम में बदल गई। अंधेरे के कारण टर्निंग पर ड्राइवर को सामने से आता हुआ ट्रक दिखाई नहीं दिया और ट्रक और गाड़ी की जोरदार टक्कर हो गई। गाड़ी के परखच्चे उड़ गए। आनंद उसके माता-पिता और बहन ने तो वही मौके पर ही दम तोड़ दिया। आसपास के लोगों ने किसी तरह गाड़ी के शीशे तोड़कर और गेट काटकर बुरी तरह से लहुलुहान

और बेहोश निशा को मलबे में से निकालकर अस्पताल में एडमिट किया। राहत की बात यह थी कि मासूम रोशनी बिल्कुल सही सलामत थी। दो दिन बाद जब निशा को होश आया तो उसकी चीखों से पूरा हॉस्पिटल हिल गया। वह तो मानो जिंदा लाश ही बन गई थी। उसकी माॅं और उसकी चाची सास जो घर के बिल्कुल बगल में रहती थी दोनों ने मिलकर किसी तरह उसे संभाला।

निशा सारे दिन आनंद की फोटो को सीने से चिपकाए ऑंसू बहाती रहती। उस काली रात को कोसती रहती जिसने उसकी सारी खुशियों को लील लिया। इसी तरह एक महीना बीत गया। निशा की मम्मी ने उसे अपने साथ चलने के लिए बहुत मनाया। लेकिन, निशा तैयार नहीं हुई “माॅं इस घर में मेरे आनंद की यादें हैं। मैं इसे छोड़कर नहीं जाऊॅंगी।”

उसकी यह हालत देखकर उसकी चाची सास ने कहा “यदि निशा नहीं जाना चाहती तो इसे यहीं रहने दीजिए। मैं हूॅं ना। मैं इसका ध्यान रखूॅंगी।”

इस एक महीने में निशा की माॅं ने भी देखा था कि चाचा सास किस तरह से निशा और रोशनी को संभाल रही थी। उनके भरोसे उन दोनों को छोड़कर निशा की माॅं घर आ गई। निशा की चाची सास ने भी निशा की माॅं के भरोसे का मान रखा। वह निशा का बहुत ध्यान रखती। उसके खाने पीने से लेकर रोशनी की परवरिश तक हर काम वही करने लगी। रात को भी वह जाकर निशा के पास ही सोती ताकि, उसे अकेलापन ना महसूस हो। उनका बेटा मयंक भी अधिकतर रोशनी के साथ खेलने निशा के घर आ जाता। रोशनी भी मयंक के साथ बहुत खुश रहती। यह सब देखकर धीरे-धीरे निशा भी संभलने लगी थी। सदमे से बाहर आने लगी थी।

तभी एक दिन चाचा सास ने कहा “निशा, मेरी मानो, तो तुझे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए यह पहाड़ से जिंदगी अकेले कैसे कटेगी?”

यह सुनते ही निशा चीख पड़ी “चाची जी, मेरी जिंदगी में आनंद की जगह कोई नहीं ले सकता।”

यह सुनते ही चाची ने उसे सीने से लगा लिया “मैं सब समझती हूॅं बेटा। लेकिन, रोशनी की सही परवरिश के लिए पिता का साया बहुत जरूरी है। मैं किसी गैर से नहीं मयंक से शादी के लिए कह रही हूॅं। रोशनी भी उसके साथ कितना घुल मिल गई है। तू भी हम लोगों के साथ ही रहेगी और सबसे बड़ी बात रोशनी अपने ही परिवार में बड़ी होगी। मेरी बात पर विचार करना।”

निशा का मन इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था।लेकिन ,जब भी वह मयंक और रोशनी को साथ-साथ खेलते देखती तो वह इसके लिए सोचने पर मजबूर हो जाती।

एक दिन निशा को मार्केट से कुछ जरूरी सामान लाना था।चाची सास कीर्तन में गई हुई थी और वह रोशनी को इस तरह अकेले छोड़कर नहीं जा सकती थी। तभी वहाॅं मयंक आया और रोशनी को गोद में उठाते हुए बोला “चल रोशनी, आज गार्डन में खेलने चलते हैं।”

यह देखकर निशा बोली “तुम जब तक रोशनी के साथ खेल रहे हो, मैं तुरंत मार्केट जाकर आती हूॅं और वह मार्केट की ओर निकल गई। अभी वह घर से निकली ही थी कि उसके दिमाग में यह विचार आया ‘मार्केट तो मैं बाद में भी जा सकती हूॅं।लेकिन, आज सही मौका है जब मैं मयंक से बात करके उसके मन की बात जान सकती हूॅं।’ यह सोचकर वह बीच रास्ते से ही वापस लौट आई और गार्डन की ओर बढ़ चली। वहाॅं रोशनी बग्धी में खेल रही थी और मयंक झूले पर बैठा वीडियो कॉल कर रहा था। निशा तेजी से उसकी और बढ़ीं। लेकिन, तभी मयंक की आवाज में उसके बढ़ते कदमों को रोक दिया।

वह वीडियो कॉल में किसी लड़की से बातें कर रहा था “जान, कुछ ही दिनों की बात है। फिर हम दोनों साथ में इस झूले पर झूलेंगे। एकबार निशा शादी के लिए मान जाए। फिर उसकी सारी प्रॉपर्टी मेरे नाम करवाकर इसे डिवोर्स दे दूॅंगा। फिर यह जाने और इसकी बच्ची।मम्मी भी इतने दिनों से इसीलिए तो इसके आगे पीछे घूम रही है।” यह कहकर वह जोर से हॅंस पड़ा।

यह सारी बातें सुनकर निशा की ऑंखों के आगे अंधेरा छा गया। इतना बड़ा धोखा और तुरंत अपने रूम की ओर दौड़ी। आनंद की फोटो को सीने से लगाकर फफक पड़ी “आनंद, आज समझ आया तुम और मम्मी पापा क्यों इन लोगों से दूर रहते थे।”

फिर उसने तुरंत अपने पापा को फोन लगाकर सारी बातें बताई। “इतना बड़ा धोखा। बेटा, तू रोशनी को लेकर यहाॅं आ जा।”

“पापा आपको क्या लगता है यह लोग मुझे इतनी आसानी से आने देंगे?”

“ठीक है मैं ही कुछ करता हूॅं। कहते हुए उसके पापा ने फोन रख दिया और फिर उसकी चाची सास को फोन लगाकर कहा “निशा की माॅं की तबीयत बहुत खराब है। वह निशा से मिलना चाहती है। मैं कल उसके भाई को उसे लाने के लिए भेज देता हूॅं।”

यह सुनते ही उसकी चाची सास तपाक से बोली “भाई साहब, आप लोग वहाॅं भाभी जी का ध्यान रखिए। हम कल सुबह निशा को लेकर वहाॅं पहुॅंच जाऍंगे।”

दूसरे दिन सुबह-सुबह ही निशा की चाची सास अपने पति बेटे मयंक निशा और रोशनी को लेकर निशा के पीहर पहुॅंच गई। निशा की माॅं की तबीयत बहुत नाजुक थी। उन्होंने चाचा सास का हाथ पकड़ कर कहा “निशा और मयंक की शादी देख लूॅं तो मैं भी चैन से आखरी साॅंस लूॅं।”

यह सुनते ही चाचा सास का मन खुशी से नाच उठा ” बिल्कुल देखेंगी। सिर्फ निशा की ही क्यों रोशनी की भी शादी देखेंगी।”

तभी निशा के पापा ने कहा “चलिए, लंच कर लेते हैं। फिर शाम में सगाई और कल शादी।”

“बिल्कुल शुभ काम में देरी कैसी!”उन तीनों से उनकी खुशी संभाले नहीं संभाल रही थी।

लंच के बाद निशा के पापा मयंक के पिताजी को अपने दोस्तों से मिलवाने लगे।

“इनसे मिलिए यह है मेरे जिगरी दोस्त अनिल। मेरे बेस्ट फ्रेंड और हमारे फैमिली लॉयर।”

तभी निलेश (निशा का भाई) की आवाज आई”पापा सुभाष अंकल का फोन है।”

“आप लोग बातें करिए। मैं भी आता हूॅं।” कहकर वह निलेश की ओर बढ़ चले।

“भाई साहब, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप लोगों की वजह से ही निशा के जीवन में फिर से खुशी आई है। अब आपसे यही विनती है कि उसे बच्ची का ध्यान रखिएगा। बेचारी पर दोहरी मार पड़ी है। बहुत ही गलत हुआ है।”अनिल ने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“दोहरी मार”? मयंक के पापा ने चौंकते हुए पूछा।

“पति और परिवार की मौत का दुख कम था कि अभी कुछ दिन पहले ही पता चला कि इसके ससुर ने वसीयत की थी कि यदि आनंद को कुछ हो जाएगा तो सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट को चली जाएगी। अब आनंद ने तो अपनी वसीयत बनाई नहीं। इसलिए सारी प्रॉपर्टी ट्रस्ट को चली गई है। मैं, निशा के पापा को ये ट्रस्ट के पेपर ही दिखाने आया था तो उसने मुझे रोक लिया की सगाई के बाद जाना।”

यह सुनते और पेपर देखते  ही उनके चेहरे का रंग उड़ गया। वह तुरंत ही अपने कमरे में गये और अपनी पत्नी और मयंक से बोले “हम तो बुरी तरह ठगे गए जिसे हम हीरे की खान समझ रहे हैं, वह तो काला कोयला निकला। कोई प्रॉपर्टी नहीं है उसके नाम। सारी प्रॉपर्टी आनंद के पापा ने पहले ही ट्रस्ट को सौंप दी थी ।”

“हे भगवान हमारी तो किस्मत ही फूटी है मैंने क्या-क्या नहीं किया इस लड़की के लिए।” मयंक की माॅं ने सर पर हाथ देते हुए कहा।

“मम्मी पापा, मैं अब इस फक्कड़ से शादी नहीं करूंगा।आपने कहा था शादी के बाद प्रॉपर्टी अपने नाम कर इसे डाइवोर्स दे देना। अब तो उसके पास कोई प्रॉपर्टी ही नहीं है तो मैं तो चला यहाॅं से।”

यह विचार करके भी बाहर निकले “हमें एक बहुत अर्जेंट काम आ गया है इसलिए सगाई अभी नहीं हो सकती।” बोलते हुए मयंक के पापा अपनी पत्नी और मयंक के साथ बाहर की ओर बढ़ने लगे।

तभी निशा के भाई निलेश की आवाज आई “अरे! अंकल जी, इतनी भी क्या जल्दी है? पहले यह तो सुन लीजिए और हाॅल में उनकी रूम में हुई सारी बातचीत गूॅंजने लगी। सारी बातें सुनकर उनके माथे से पसीना बहने लगा।

“आपने क्या सोचा था आप मेरी बेटी को इतनी आसानी से धोखा दे दोगे। सारी प्रॉपर्टी मेरी बेटी के ही नाम है और मैं भी बिल्कुल ठीक हूॅं। यह तो सिर्फ एक ट्रैप था तुम लोगों के मुॅंह से सच बुलवाने का। इस बार तो तुम्हें छोड़ दे रहे हैं लेकिन, अगले बार अगर तुमने मेरी बेटी के साथ कुछ गलत करने को सोचा तो तुम्हें भगवान भी नहीं बचा सकेगा।” निशा की माॅं ने उसकी चाची सास का गला पकडते हुए कहा।

तभी निशा सामने आकर मयंक के तमाचा मारते हुए कहती है “निकल जाओ। तुम सब यहाॅं से। मैं तुम लोगों की सूरत भी नहीं देखना चाहती। तुम जैसे लोगों के कारण ही भरोसा शब्द से लोगों का भरोसा उठ जाता है।”

कुछ दिन बाद  निशा अपने उस मकान को किराए पर चढ़ा देती है क्योंकि वह उन धोखेबाज लोगों के साए से भी दूर रहना चाहती थी और अपने माता-पिता के बगल में ही मकान ले लेती हैं और एक अच्छी कंपनी में जाॅब भी कर लेती है और सम्मानपूर्वक जीवन जीते हुए अपने बच्ची रोशनी को बड़ा करती है।

धन्यवाद

साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता #काली रात

लेखिका -श्वेता अग्रवाल

धनबाद,झारखंड

शीर्षक -काली रात

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