पिछले एक हफ्ते से आरोही कालिज में होने वाले प्रोग्राम की तैयारी में लगी हुई थी। लेक्चरार तो वो साईंस विषय में थी, लेकिन उसकी कल्चरल प्रोगरामों में बहुत रूचि थी और संगीत की लैक्चरार स्नेहा से उसकी दोस्ती भी बहुत थी। तो प्रिसिंपल साहब भी उसे स्नेहा का साथ देने के इच्छुक रहते और उसको समय भी देते ताकि उसके काम पर भी असर न पड़े , विधार्थियों की पढ़ाई भी होती रहे और प्रोग्राम की तैयारी भी अच्छे से हो। आसपास के आठ दस कालिजों का दो दिन का ‘ यूथ फैस्टिवल’ इस साल आरोही के कालिज में ही होना था।
शहर के इस नामी गिरामी कालिज में आरोही पिछले तीन साल से नौकरी कर रही थी। उसका अपना घर वहां से चार घंटे की दूरी पर एक कस्बे में था। यहां आरोही को कालिज में आवास की सुविधा भी मिली हुई थी। अभी उसकी शादी नहीं हुई थी।
अब लड़की सुंदर, सुशील अच्छे घर से हो तो वर भी वैसा होना चाहिए। वैसे भी अभी आरोही का ध्यान ज्यादातर अपने कैरियर पर था। आरोही कालिज की छात्राओं में बहुत लोकप्रिय भी थी। कुछ छात्राएं तो उसकी सहेलियों के समान थी।यह सिर्फ लड़कियों का कालिज था , शहर में लड़कों का कालिज भी थोड़ी दूरी पर था।
कई बार इकट्ठे सैमीनार भी होते रहते है। आजकल पुराने जमाने का समय नहीं। लड़के लड़कियों में दोस्ती होना एक आम सी बात है। आरोही पुराने जमाने की नहीं थी लेकिन फिर भी उसके अपने उसूल और विचार थे।
जमाना कैसा भी हो, सैफ्टी बहुत जरूरी है। अक्सर अच्छे लोग ही होते है, मगर फिर भी निर्भया कांड , गुड़िया वाली घटना, कलकता डा. से दिल दहला देने वाली क्रूरता कहीं न कहीं मन को विचलित कर ही देती है। हर रोज अखबार में कोई न कोई ऐसी घटना पढ़ने को मिल जाती है, जो कि इंसानियत को शर्मसार करने के लिए काफी है।
समाज के कुछ ऐसे कुतिस्त प्रवर्ति के लोगों ने लड़कियों के लिए डर का माहौल बना दिया है, वरना आदमी औरत दोनों बराबर है। इसीलिए लड़कियों पर न चाहते हुए भी कुछ बंदिशे लगा दी जाती है। आरोही के मन में औरतों, लडकियों, के लिए एक विशेष जगह थी, जिसे एक तरह की समाज सेवा भी कहा जा सकता है।
आरोही के मित्रवत व्यवहार से ही कालिज की कई लड़कियां उससे अपनी कुछ निजी बातें भी शेयर कर लेती थी। वो भी एक बड़ी बहन की तरह सही सलाह देती और पढ़ाई की बात तो कोई जब चाहे उससे कर लेता।
यूथ फैस्टिवल का प्रोग्राम उसी दिन समाप्त हुआ था तो आरोही बहुत खुश तो थी ही, थकी हुई भी बहुत थी। फरी होते ही वो सीधे अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहती थी। तभी उसे ध्यान आया कि सुबह से मोबाईल तो देखा ही नहीं, वैसे भी प्रोग्राम के चलते वो साईलैंट पर था। पर्स से निकाला तो उसकी परेशानी की सीमा न रही, इतने सारे मिस्ड काल , घर से ममी, पापा और उसके जीजा जी के।
फटाफट मैसेज देखा तो पता चला कि उसकी बड़ी बहन का पैर
सीढ़ियों से फिसला और सिर से बहुत खून बह गया। हस्पताल में दोपहर से एडमिट थी। उसे खून की जरूरत थी। दोनों बहनों और मां का ब्लड गरूप एक ही था जो कि बहुत कम लोगों का होता है।
मां की उमर भी थी और शूगर की मरीज भी थी, इसलिए उनका खून नहीं लिया जा सकता था। इसीलिए आरोही को फोन कर रहे थे। शायद कालिज के लैंडलाईन पर भी फोन किया, और उसकी दो कुलीगस को भी, लेकिन सब लोग प्रोग्राम में ही व्यस्त थे।
ओह, क्या हो गया ये, अब उसने फोन लगाया तो मां ने रोते हुए पूरी बात बताई। डाक्टर ने कहा था कि ये रेअर ब्लडगरूप है, ब्लड बैंक में भी नहीं मिला और उनका शहर भी छोटा ही है और बड़े शहर ले जाने की स्थिति में बहन नहीं थी। क्योंकि आरोही का ब्लडगरूप वही था, इसीलिए सुबह से उसे फोन कर रहे थे।
रात के आठ बजने वाले थे, आरोही कैसे जाए, टैक्सी में अकेले जाना खतरे से खाली नहीं था। रात का समय और वो भी अमावस की काली रात, और कोई था भी नहीं जिसे साथ ले सके। दिन का समय होता तो और बात थी।
आन लाईन बुकिंग के चक्कर में न पड़कर वो सीधा बस स्टैंड पहुंची और खुशकिस्मती से जल्दी ही बस भी मिल गई। चार घंटे का सफर,रात के एक बजे से पहले किसी भी हालत में पहुंचना संभव नहीं था। बस आधी से ज्यादा भरी हुई थी, वोल्वो नहीं , आम सरकारी बस थी।
उसने सुबह से ढ़ग से कुछ खाया भी नहीं था, और तो और फोन की बैटरी भी बहुत कम थी, जल्दी जल्दी में न तो चार्ज किया और न ही पावर बैक अप उठाया।बस दो चार कपड़े डाले और चल पड़ी। रास्ते में एक जगह बस रूकी तो उसने बड़ी मुशकिल से चाय बिस्किुट निगला , बुरी तरह सिरदर्द और जैसे सारा शरीर टूट रहा था।
गनीमत थी कि पास में चार्जर था तो उसने पांच मिंट वहीं जहां चाय पी फोन चार्ज कर लिया। आजकल कई बसों में होता है, लेकिन इस बस में नहीं था। बस चल पड़ी, धीरे धीरे करते काफी सवारियां उतर गई। जहां आरोही ने उतरना था वहां पहुंचने में अभी आधा घंटा था। बस में एक आदमी, डराईवर और कंडक्टर ही रह गए थे।
आरोही का दिल जोर जोर से धड़क रहा था, काली रात, हर तरफ अंधेरा, उसके मन में एक ख्याल आ रहा था, एक जा रहा था। मन ही मन भगवान को याद कर रही थी। हे भगवान, आज तूं ही रक्षा करना।
शहर लगभग आने ही वाला था तो कंडक्टर उसके पास आया और पूछा कि उसे कहां उतरना है, क्योंकि शहर शुरू होते ही लोग बीच बीच में उतरते रहते है। वो एक आदमी भी रास्ते में उतर गया।
आरोही के मुंह से बड़ी मुश्किल से निकला कि वो बस स्टैंड पर ही उतरेगी। जब बस स्टैंड आया तो वहां भी इक्का दुक्का लोग, और वो उतर तो गई लेकिन हस्पताल वहां से पांच छः किलोमीटर दूर था। अभी बस वही खड़ी थी, ड्राईवर ने पूछा कि उसे कहां जाना है, तो उसने हकलाते हुए बताया कि उसकी बहन हस्पताल में है तो उसे वहां जाना है।
ड्राईवर कडंक्टर ने आपस में बात की और उन्होनें कहा कि वो चाहे तो उसे बस में वहां तक छोड़ सकते है। आरोही के पास कोई दूसरी रास्ता नहीं थी, वैसे भी वो समझ गई कि वो गल्त लोग नहीं है। उसने हां में सिर हिलाया और फिर से बस में बैठ गई। वहां पहुचंकर कडंक्टर उसे हस्पताल के अंदर तक छोड़कर आया और उसकी बहन की हालचाल भी पूछा।
आरोही के भाई ने उसका दिल से आभार व्यक्त किया और उसका फोन नं ले लिया। समय पर आरोही की बहन को खून चढ़ा दिया गया और अब वो खतरे से बाहर थी।
आरोही और उसका परिवार ड्राईवर, कंडक्टर को आज भी परिवार समान मानते है। सच में ही दुनिया में कुछ लोग बुरे है ,लेकिन ज्यादातर लोग अच्छे है।आरोही को आज भी वो काली रात नहीं भूलती लेकिन उसके लिए वो रात काली नहीं थी, बल्कि उसकी बहन के लिए तो जीवनदान देनें वाली थी।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- काली रात