“…पापा प्लीज हमें छोड़कर मत जाइए…!”
” यह बात अपनी मां से कहो… उसी ने तो मुझे जाने को कहा है… !”
“नहीं पापा… प्लीज पापा…!” बोलते हुए दोनों बच्चियां पापा के पैरों में झूल गईं…
धैर्य ने परी और मीरा दोनों को खुद से अलग किया, और अपने कमरे में जाकर अपना जरुरी सामान समेटने लगा…
दोनों बच्चियां दरवाजे पर आकर खड़ी हो गईं… परी को रोता देख कर छोटी बहन मीरा भी रोने लगी…
सात साल की परी भाग कर मम्मी के पास गई… मम्मी एक दीवार का सहारा लिए… खुद दीवार बनी खड़ी थी… ऐसा लग रहा था जैसे उसमें और दीवार में कोई अंतर ही ना हो…
” मम्मा पापा को बोलो ना… हमें छोड़कर ना जाएं… बोलो ना… बोलो ना मम्मा…!”
कनक कुछ नहीं बोली… बस उसने खुद को दीवार से अलग कर सोफे में धंसा दिया… थोड़ी देर में धैर्य अपना सामान ले कर बाहर आ गया… मीरा उसके पैरों में फिर से लटक गई…” पापा…!”
धैर्य ने उसे उठाकर गोद में ले लिया… उसका माथा चूम कर… उसे वापस नीचे रख दिया…
” पापा… आप फिर कब आएंगे…!”
धैर्य कुछ बोलता… उससे पहले ही कनक बोल पड़ी…” पता नहीं… पापा अब कब आएंगे… चलो तुम लोग कमरे में जाओ…!”
तभी बाहर जोरों की बिजली कड़क उठी… धैर्य ने दरवाजा खोला ,तो बाहर काली रात में घनघोर बारिश हो रही थी…
उसके कदम कुछ देर रुके, तो कनक बोली…” अगर चाहो तो रात रुक सकते हो… सुबह चले जाना…!”
धैर्य ने बिना पलट कर देखे ही जवाब दिया…” कोई जरूरत नहीं… रात से ज्यादा जब रास्ता धुंधला हो… तो रात ज्यादा भली लगती है…!”
धैर्य ने कदम बाहर निकाला ही था, की परी ने पीछे से आवाज दिया…” पापा… छाता…!”
धैर्य का मन उमड़ पड़ा… उसने पलट कर परी के हाथ से छाता ले लिया… उसके गालों पर अपने प्यार का एक टुकड़ा रख… भरी आंखों से, छाता खोल बाहर निकल गया…
तेज बारिश और हवा में चलते हुए… उसके कदम बार-बार पीछे की तरफ हो रहे थे… उसकी आंखों के आगे आज से तकरीबन दस साल पहले का वाकया घूम रहा था…
यही काली रात थी… जब मां को पता चला था धैर्य और कनक के रिश्ते के बारे में…”काम वाली की बेटी की इतनी हिम्मत कैसे हो गई, कि वह मेरे घर की बहू बनने का सपना देखने लगी…!”
पर धैर्य… वह तो जाने कब से कनक को अपने मन में बसाए हुए था…” नहीं मां मैं कनक को नहीं छोड़ सकता…!”
” तो घर छोड़ दो…!”
” ऐसा कैसे कह सकती हो मां… मां… इतनी रात को मैं कहां जाऊंगा… मां सुनो तो… मां……!”
पर मां ने उसकी सारी बातें अनसुनी कर दी…
धैर्य ने कनक के साथ एक अलग जिंदगी शुरू की थी… पिछले दस सालों से सब ठीक था… दो फूल सी बच्चियां भी थीं आंगन में…
लेकिन अचानक आज कनक को उसकी मां का फोन आया…” मालकिन की तबीयत बहुत खराब है… लगता है नहीं बचेंगी… यहां कोई भी नहीं उनकी सेवा करने को… उनके अड़ियल स्वभाव के कारण कोई टिकता नहीं उनके पास…!”
” मैं आ जाऊं क्या…?”
” नहीं कनक… जान लेगी क्या उनकी… तुम्हें देखकर तो उनकी रही सही सांस भी छूट जाएगी… अगर धैर्य बाबू को भेज सको… तो भेज दो…!”
” लेकिन मां… वे तो अपनी मां के ही बेटे हैं… उन्हीं की तरह जिद्दी… मैं तो कितनी बार मना चुकी हूं… लेकिन कभी नहीं गए…!”
इसलिए आज कनक ने साफ कह दिया…” जो अपनी मां का नहीं हो सका… वह हमारा क्या होगा… क्या इसी दिन के लिए मां ने तुम्हें जन्म दिया था, कि उनकी सेवा के समय भी तुम तमाशा देखते रहो…!”
” क्यों इतना सुना रही हो कनक… तुम तो सब जानती हो ना…!”
” ठीक है… लेकिन अभी उन्हें तुम्हारी जरूरत है… मैं यहां देख लूंगी…!”
” लेकिन अगर उन्होंने वापस नहीं आने दिया तो……!”
” तो रह लेना वहीं… पर इस बार छोड़ कर मत आना…!”
बस स्टैंड आ चुका था… धैर्य का तन मन दोनों… पूरी तरह गीला हो गया था…
दूसरे दिन शाम तक वह मां के पास पहुंच गया… मां को इतना होश भी नहीं था… कि वह बेटे को पहचान सके…पापा थे ही नहीं… नौकर चाकरों की चांदी मची हुई थी…
मां को देखने वाला… प्यार करने वाला… कोई नहीं था… धैर्य ने वहां रह कर सब कुछ संभाल लिया…
मां की जी जान लगाकर सेवा करने लगा… कोई पंद्रह दिन बाद जाकर… मां ने आंखें खोली… धैर्य की मेहनत रंग ले आई थी… महीना दिन होते-होते मां चलने फिरने लगी…
इस बीच ऐसा लगा जैसे धैर्य कहीं गया ही नहीं था… दोनों के बीच कभी कुछ हुआ ही नहीं था… ना कभी धैर्य ने किसी बात का जिक्र किया, और ना ही मां ने…
आज मां आराम से बाहर, बारिश के बाद खिली धूप को देखती हुई… नम आंखों से बैठी थी…
धैर्य ने पीछे से आकर उनके कांधे पर हाथ रखा और पास में बैठते हुए बोला…” कैसी हो मां…!”
” ठीक हूं… धैर्य अब तुम जा सकते हो… तुम्हें नहीं आना चाहिए था… कितना नुकसान हो रहा होगा…!”
धैर्य का मन बुझ सा गया…” मां… फिर जाने को बोल रही हो…!”
मां की नम आंखों से एक बूंद छलक पड़ी… मां ने उसके गालों पर अपना हाथ रख दिया…” कैसी हैं मेरी पोतियां… क्या नाम रखा उनका… अब जल्दी से सबको बुला ले… अब बेटे से ज्यादा बहू और पोतियों की जरूरत है मुझे…
दस सालों से जिस काली रात का साया मेरी जिंदगी पर छाया हुआ था… देखो उसकी भोर हो गई है… कितनी सुहानी गुनगुनी भोर…
रश्मि झा मिश्रा…
साप्ताहिक विषय… काली रात.…