रश्मि इस वक्त तेरा पार्टी में जाना सही नहीं है, तेरे पापा भी घर पर नहीं है, और अगर कल को कुछ हो जाता है तो पापा मुझे बहुत ही डांटेंगे, मैं उनसे पूछे बिना तुझे जाने की आज्ञा नहीं दे सकती हूं, सरला ने समझाकर कहा ताकि रश्मि मान जायें।
ओहह!! मेरी प्यारी मम्मी कर दी ना वो ही मिडिल क्लास वाली बात, ऐसे ही कुछ नहीं हो जाता है, मैं आज के जमाने की पढ़ी-लिखी लड़की हूं, और मेरे पास मोबाइल है, इतने सारे दोस्तों के साथ जाऊंगी तो डर भी नहीं है, रात को दो बजे तक तो आ ही जाऊंगी, रश्मि ने फिर से कहा।
मैंने माना तेरी दोस्त का जन्मदिन है, पर क्या रात को बारह बजे बाद ही मनाना जरूरी है क्या? वैसे ही हमारे धर्म में सारे काम सुबह ब्रह्मा मूहूर्त के बाद ही होते हैं, रात को जागने वाले और जन्मदिन मनाने वालों को निशाचर कहा जाता है, सरला ने फिर से कहा।
मम्मी, आप तो अपनी पुरानी सोच रहने ही दो, टीना के फार्म हाउस पर जायेंगे, बारह बजे बाद उसके जन्मदिन का केक काटेंगे, थोड़ी बहुत मस्ती करेंगे और दो -तीन बजे तक आ जाऊंगी, कार से जायेंगे और कार से ही आयेंगे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल नहीं कर रहें हैं, सब दोस्त जायेंगे, दो -तीन घंटे में वापस आ जायेंगे।
हां, वो तो ठीक है, पर जन्मदिन कल शाम को, आस-पास भी तो मनाया जा सकता है, इतनी दूर जाने की क्या जरूरत है? तू अभी शाम को जाने की बोल रही है, फिर रात तक आयेगी, मुझे तो ठीक नहीं लग रहा, सरला ने कहा।
मम्मी, आपको जिस तरह नानाजी ने बंदिश में रखा, मैं उस तरह नहीं रह सकती हूं, अरे!! मैं बड़ी हो गई हूं, अपने पैरों पर खड़ी हूं, तो मैं समझदार हूं, अपना भला-बुरा खुद समझती हूं, फिर भी आपसे आज्ञा ले रही हूं, पापा तो टूर पर गये है, दो दिन बाद वापस आयेंगे, उन्हें क्या पता चलेगा?
ये तो मैं आपको बताकर जा रही हूं, वरना झूठ बोलकर भी जा सकती थी, रश्मि रूआंसी होकर बोली, क्या फायदा ऐसी पढ़ाई-लिखाई और नौकरी का जब आप अपनी मर्जी से कुछ कर भी नहीं सकते, आपको वो ही दकियानूसी सोच के साथ में जीना है।
सरला जी को रश्मि की बात ठीक तो नहीं लग रही थी और युवा बेटी को बाहर भेजने से डर भी लग रहा था तो ये भी कशमकश में थी कि रश्मि को उन्होंने हॉस्टल भेजा, बाहर नौकरी के लिए भेजा, फिर आज उनका मन उसे बाहर भेजते हुए क्यों घबरा रहा था?
अखिलेश दो दिन बाद आयेंगे, रश्मि तो रात तक आ ही जायेगी, बेटी की खुशी के लिए उन्होंने उसे भेज दिया और सब दोस्तो के फोन नंबर भी ले लिए, इकलौती बेटी थी तो उसकी हर इच्छा पूरी की थी, आज मन नहीं था, फिर भी उसे भेज दिया।
सरला जी की आंख ही नहीं लग रही थी, वो रह-रहकर करवटें बदल रही थी, उनके मन में दस विचार चल रहे थे, अखिलेश से भी बात कर ली पर उसे रश्मि के बारे में बताया नहीं, रात के बारह भी बज गये, रश्मि सकुशल फार्म हाउस पहुंच गई थी, वीडीयो कॉल करके अपने दोस्तों को दिखा भी रही थी, सरला के मन को तसल्ली मिली कि चलो दो घंटे बाद तो उसकी बेटी आ जायेगी, दिनभर की थकी सरला कमरे में चली गई और उसकी आंख लग गई।
सवेरे अचानक से नींद टूटी, देखा छह बज रहे हैं, रश्मि का ख्याल आया तो उसने रश्मि को फोन लगाया, रात के दो बजे का बोलकर गईं थीं, अभी तक भी नहीं आई, उसके फोन पर करीब अनजान नंबर से दस कॉल थे, ओहह! रात को फोन वो वाइब्रेट मोड़ पर कर देती थी, तभी शायद घंटी की आवाज सुनाई नहीं दी।
रश्मि का फोन नहीं लग रहा वो स्विच ऑफ आ रहा था, उसने उस अनजान नंबर पर फोन लगाया, तो तुरन्त वहां से आवाज आई, आप सिटी हॉस्पिटल आ जाइये जो सेक्टर दस में है।
सरला का मन शंका से भर गया, क्या हो गया जो अस्पताल बुलाया, सब कुछ ठीक ही होगा, अपने मन को तसल्ली देते हुए ईश्वर का नाम लेकर वो अस्पताल पहुंची।
आपकी बेटी जिस कार में सवार थी, वो लड़का शराब के नशे में कार चला रहा था, रात को हाइवे पर ट्रक से जबरदस्त टक्कर हो गई है, कार में सवार पांच में से तीन लोगों की जान चली गई है और दो गंभीर हालत में है, उनमें से आपकी बेटी रश्मि भी है, काफी चोट आई है, हमें उनका दायां पैर काटना पड़ा ताकि आगे संक्रमण नहीं फैले, आपको रात भर से फोन लगा रहे थे, आपसे बात नहीं हो सकी।
ये सुनते ही सरला के पैरों तले जमीन सरक गई, कल की काली रात उसकी जिंदगी की सबसे गहरी काली रात बन गई, जिसने रश्मि से उसकी खुशी छीन ली, रश्मि अब अपाहिज की तरह जीयेगी, ये ख्याल आते ही वो चीख पड़ी, आस-पास वालों ने संभाला, कुछ घंटे बाद अखिलेश भी वापस आ गये।
अपनी बेटी और पत्नी की ऐसी स्थिति देखकर वो मन ही मन दुखी हो रहे थे, पर दोनों को संभालना भी जरूरी ही था।
मल्टीपल ऑपरेशन हुए, कुछ दिनों बाद रश्मि की जान तो बच गई, लेकिन उस काली रात को वो नहीं भुला पा रही थी, जिसने उसे अपाहिज बना दिया।
अपनी इकलौती बेटी की ये हालत देखकर सरला जी मन ही मन कुढ़ती रहती, काश! उस दिन वो कमजोर नहीं पड़ती और रश्मि को जाने नहीं देती।
रश्मि पलंग पर लेटी हुई थी, दोनों आंखों की कोर से आंसू बह रहे थे, मम्मी काश! मैंने उस रात आपकी बात मान ली होती, आपकी सोच सही थी, रात तो सोने के लिए होती है, ये रात की पार्टी और मस्ती कई बार भारी पड़ जाती है, उस रात जब एक्सीडेंट हुआ तो कोई रात को मदद के लिए नहीं आया, मेरे पांव
कार में फंस गया था, अगर दिन का समय होता तो कोई ना कोई मदद के लिए आ ही जाता और मेरा पैर बच ही जाता, अब मुझे एक अपाहिज की तरह जीना होगा, पुरानी सोच, पुरानी बातें, पुराने नियम इतने भी गलत नहीं है। हमने अपनी सुविधा के लिए सबको एकदम से नकार दिया है, जल्दी सोने और जल्दी उठने का नियम बहुत सोच समझकर बनाया होगा, काश! मैं उस काली रात को घर से ना निकलती, और रश्मि सुबकने लगी।
कुछ महीनों बाद सरला और अखिलेश ने गूगल पर सर्च किया, जयपुर फुट के बारे में, रश्मि को वहां लेकर गये, रश्मि अब कृत्रिम पैर लगाकर चलने लगी, अपने दैनिक काम आराम से करने लगी, कुछ महीनों बाद वो वापस ऑफिस भी जाने लगी, लेकिन मन में एक कसक, एक दर्द हमेशा के लिए यह गया, जो कभी भर ना सका, उस काली रात को वो कभी भुला ना पाई।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खण्डेलवाल