लावण्या टेढ़ी-मेढ़ी गांव की मेड़ पर उछल-उछल कर चल रही थी। अरे लावण्या खेत में कितनी सब्जी हो गई है कुछ तुड़वा लो..! लावण्या अपनी धुन में इधर-उधर कुछ देख- देख कर चल रही थी। अम्मा की बात सुनकर लावण्या भी खेत से भिंडी तरोई और टिंडे तुड़वाने में मदद करने लगी।
लावण्या बहुत खूबसूरत बाला थी झुक कर भिंडी के पेड़ों से भिंडी तोड़ रही थी, उसने ध्यान नहीं दिया उसकी लंबी चोटी भिंडी के पेड़ों से उलझ गई।
अचानक अहा..! की आवाज से अम्मा ने उसे डांटते हुए कहा।
कैसे काम करती हो..?
तुम्हारे बाल देखो भिंडी के पेड़ में उलझ गए हैं। कितनी बार कहा है, खेत में जब आया करो तो बालों को अच्छे से ऊपर बांध लिया करो। और कहते-कहते अम्मा ने लावण्या के बालों को भिंडी के पेड़ से मुक्त कराया।
अम्मा देखो चारों तरफ काले- काले बादल घिर आए हैं, लगता है जोरो से बारिश होने वाली है। चलो ना अब घर चलते हैं नहीं तो भींग जाएंगे। अम्मा बोली तुम घर जाओ और देखो आंगन में गेहूं सूखने डाले हैं वह उठा लेना, नहीं तो वह भींग जाएंगे। लावण्या खेत की मेड़ पर इतराते हुए घर चली गई।
विष्णु देव अपनी पत्नी साबी के साथ गांव आए थे, नौकरी लगने के बाद शहर में ही उन्होंने बहुत प्रॉपर्टी बनायी थी। जमीन से जुड़े रहने के कारण जब भी समय मिलता, गांव आ जाते थे। इस गाँव की प्रापर्टी उन्हें अपने नाना जी से विरासत में मिली थी। बच्चे गांव आना पसंद नहीं करते थे इसलिए वह शहर में ही रहते।
विष्णु देव खेतों की तरफ घूमने गए। वहां रामानंद अपने बच्चों और पत्नी के साथ खेतों में से सब्जियां तोड़ रहे थे। उन्हें देखते हुए बोले कैसे हो रामानंद…?
रामानंद जी और बच्चों ने दौड़कर विष्णु देव के पैर छुए।
कब आए हो भैया..?
कल रात को ही आये थे।
अरे..! बता देते तो खाना घर में बनवा देते।
नहीं रामानंद खाना तुम्हारी भाभी ने बना लिया था। कुशल छेम पूछते हुए जैसे ही जाने लगे, रामानंद ने ढेर सारी सब्जियां उनको थमाते हुए कहा-
भैया यह अपने खेत की ताजी-ताजी सब्जियां हैं, ले जाइए। विष्णु देव ने पहले मना किया, फिर रामानंद के आग्रह को टाल नहीं सके।
दूध का बड़ा सा लोटा लेकर अम्मा ने लावण्या को थमाते हुए कहा, जाओ विष्णु देव चाचा के घर दे आओ।
लावण्या ने चाचा के घर की हवेली का दरवाजा खटखटाया। चाची निकल कर आई। चाची को देखते ही लावण्या ने उन्हें प्रणाम किया।
अरे लावण्या..! तुम तो बड़ी हो गई हो?
कौन सी कक्षा में पढ़ रही हो।
इसी साल बीए फाइनल की परीक्षा दी है चाची। लावण्या को दुलराते हुए- बहुत प्यारी, खूबसूरत बच्ची हो। लावण्या थोड़ा मुस्कुराई और शरमाते हुए जमीन की तरफ देखने लगी।
अम्मा ने आपके लिए दूध भिजवाया है, और कहा है कि किसी चीज की भी जरूरत हो तो बता दीजिएगा।
लावण्या को देखकर साबी के मन में कई भावनाएं जन्म लेने लगी। अगर यह बच्ची हमारे घर की बहू बन जाए तो सचमुच हमारे घर में भी मिट्टी की सुगंध, और हमारी परम्पराएं बनी रहेगी।
साबी ने विष्णुदेव से कहा लावण्या मुझे बहुत अच्छी लगती है। देखा नहीं कितनी खूबसूरत विनम्र स्वभाव की बच्ची है। अगर यह हमारे घर की रौनक बन जाए तो हमारा गांव से भी आना-जाना बना रहेगा और हमारे घर में भी हमारे संस्कारों का वजूद बना रहेगा। क्योंकि बच्चों को तो पता ही नहीं कि हमारी परंपराएं क्या है।
अरे..! तुमने तो मेरी मुंह की बात छीन ली। मुझे भी लावण्या को देखकर यह विचार आया है।
विष्णु देव जी के दो लड़के थे, वेद और क्रश। वेद ने अभी नई-नई कंपनी जॉइनिंग की है। अच्छा खासा पैकेज है। उसके लिए माता-पिता एक अच्छी लड़की की तलाश में थे। लावण्या को देखकर दोनों पति-पत्नी का लग रहा था कि उनकी तलाश खत्म हुई।
क्या वेद लावण्या को पसंद करेगा..? विष्णु देव ने कहा हमारे बच्चे तो हमारी बात मानते हैं, मुझे विश्वास है कि वह अवश्य ही मेरी बात मानेगा।
फोन करके विष्णु देव ने वेद को गांव बुलाया। वेद गांव जाना बिल्कुल पसंद नहीं करता था, लेकिन विष्णु देव की बात को टाल भी न सका और उसी दिन गांव आ गया।
क्यों बुलाया है पापा ..?
बेटा अपने गांव की मिट्टी को मत भूलो..!
कितनी बार कहा है पापा, मुझे गांव आना पसंद नहीं है। तब तक लावण्या सरसों का साग लेकर आई।
चाची यह लो…! अम्मा ने सरसों का साग और मक्का की रोटी भिजवायी है। लावण्या को देखकर वेद के मन में आकर्षक जागा।
मम्मी यह कौन है..? इसका नाम लावण्या है साबी बोली।
तुम रामानंद चाचा की बेटी हो…वेद बोला।
लावण्या ने हां में सिर हिलाया।
क्या कर रही हो..?
लावण्या और वेद को बात करते हुए देखकर विष्णु देव और साबी की आपस में नजरें मिली और नजरों ही नज़रों में कुछ कह कर खुश हुए।
दूसरे दिन- मम्मी मैं रामानंद चाचा के बर्तन वापिस कर आऊं।
हां- हां क्यों नहीं..?
वेद रात के बर्तन वापिस करने लावण्या के घर गया। दरवाजा लावण्या ने खोला, वेद उसे देखकर खुश हो गया।
लावण्या की अम्मा एक बड़ा गिलास भरकर दुधाड़ी का गाढ़ा दूध और घर की बनी हुई बर्फी लेकर आई।
लावण्या की अम्मा को देखते हुए तुरंत वेद ने उन्हें प्रणाम किया।
अम्मा खुश होते हुए बोली लो लला…खा लो..!
वेद लावण्या से बोला, अगर तुम्हारे पास समय है तो खेतों की तरफ घूम कर आते हैं।
अम्मा तुरंत बीच में बोली- लला हमारे गांव में लड़का, लड़की अकेले नहीं घूमते हैं। लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे इसलिए लावण्या के साथ इसके भाई को भी साथ लेकर जाओ।
तीनों मिलकर खेतों की तरफ घूमने गए। वेद खेत और वहां की हरियाली देखकर बहुत खुश हो रहा था। शायद वह पहले खेतों की तरफ कभी नहीं गया था। आज उसे पहली बार गांव आना अच्छा लग रहा था। लावण्या के साथ वह बात करने का कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहता था।
वेद को लावण्या बहुत अच्छी लगी। वह उसकी खूबसूरती का दीवाना हो गया। उसे ऐसा लग रहा था की लावण्या से खूबसूरत लड़की उसने आज से पहले कभी नहीं देखी। लावण्या का बात करने का अंदाज एवं उसका व्यवहार उसे भा गया था।
एक दिन मम्मी वेद को छेड़ते हुए बोली, बेटा तुम्हें लावण्या कैसी लगती है..? वह बहुत अच्छी लड़की है। क्या वह हमारे साथ तालमेल बैठा पायेगी..?
कहकर थोड़ा झेंप गया। मम्मी मुस्कुराते हुए बोली, अच्छा बच्चू….!
तुम उसकी चिंता मत करो वह बहुत समझदार लड़की है।
लावण्या से मिलकर ढेर सारे सपने मन में संजोए बेद शहर वापस चला गया।
मौका देखकर विष्णु देव ने रामानंद से वेद और लावण्या के रिश्ते की बात चलायी। रामानंद का परिवार इस रिश्ते से फूला नहीं समा रहा था।
“यह हमारे और लावण्या के लिए सौभाग्य की बात होगी, कि लावण्या आपके घर की बहू बने- रामानंद ने कहा।”
आप लोग समय निकालकर शहर आइये। इसी नवरात्रि में दोनों का रोका कर देंगे, विष्णु देव ने बोला।
वेद ने लावण्या के दिल पर दस्तक दे दी थी। वह भी अपने होने वाले कुंवर जी के लिए सपने सजाने लगी।
नवरात्रि के दूसरे दिन ही रामानंद ने अपने परिवार के साथ जाकर रोका कर दिया। दोनों परिवारों में मध्य एक संबंध स्थापित हो गया।
शहर से वापस आकर रामानंद और उनकी पत्नी चिंतित थे। बेटी का इतने बड़े घर में विवाह कर रहे हैं और हमारे पास उनको देने लायक इतना पैसा नहीं है। हम दहेज कहांँ से कैसे जुटाएंगे?
अचानक, अम्मा बोली “चकरोट वाला खेतवा” बेंच देते हैं। उसकी अच्छी खासी कीमत मिल जाएगी। रामानंद भी सहमत हो गए।
जब विष्णु देव को पता चला कि रामानंद खेत बिक्री करके विवाह करना चाह रहे हैं तो वह दौड़े हुए गांव आए और रामानंद से मिले।
हम यह क्या सुन रहे हैं रामानंद..!
तुम अपना खेत बिक्री करके बेटी का विवाह करना चाहते हो। अरे हम तुम्हारी बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं तुम्हें कंगाल नहीं…!
तुमने कैसे सोच लिया कि तुम्हारा खेत बिकवा कर हम खुश होंगे।
अरे..! हमारे पास भगवान की कृपा से सब कुछ है, बस एक बेटी की जरूरत है।
किसान का जीवोपार्जन के लिए एकमात्र सहारा खेत ही होते हैं और वह भी तुम….! हम तुम्हारे संबंधी बन रहे हैं। कम से कम एक बार मुझे बोला होता।
मुझे एक रुपया भी दहेज में नहीं चाहिए। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बेटी चाहिए।
वेद को दिन-रात चैन नहीं था। वह उठते- बैठते, सोते-जागते लावण्या के ही सपना देखते रहता।
वह अपने दोस्तों से कहता- कि जरुर लावण्या पिछले जन्म की कोई अप्सरा रही होगी, तभी तो इतनी खूबसूरत है।
कुछ महीनो के बाद रामानंद जी के घर में शहनाई बजी। वेद के सभी दोस्त शहर वाले थे, लेकिन उनके लिए सख्त हिदायत थी कि वह गांव में अनुशासन से रहेंगे। जयमाला के समय लावण्या अपनी सहेलियों के साथ स्टेज पर आई, वेद उसे ऐसे देख रहा था मानो उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसके माता-पिता और मित्र मंडली सब एक साथ जोर-जोर से हंसने लगे। उनकी हंसी सुनकर वेद को होश आया और वह सकुचाते हुए दूसरी तरफ देखने लगा।
विष्णु देव ने बेटे के विवाह में एक रुपए भी नहीं लिया। उनका मानना है, जिसने अपनी बेटी दे दी उसने अपना सब कुछ दे दिया। लावण्या अपनी ससुराल वालों की विचारधारा पर नतमस्तक हो गयी। मन ही मन यह प्रण लिया, कि आप लोगों को शिकायत का मौका कभी नहीं दूँगी।
दूसरे दिन लावण्या की विदाई होकर शहर आ गई। सभी रीति रिवाज के अनुसार कार्यक्रम होते गए। वेद लावण्या से बात करना चाह रहा था, लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था। साबी अपने बेटे के मन की इच्छा को समझ गई। वह बोली बेटा,बहू बहुत थक गये है उन्हें आराम करने दिया जाए।
लावण्या बहुत थकी हुई थी जैसे ही थोडा एकांत मिला वह खर्राटे मार कर सोने लगी। वेद धीरे से कमरे में गया लावण्या को सोता हुआ देखकर उसने उसकी नींद में खलल डालना ठीक नहीं समझा और वह भी सो गया।
शाम के समय सभी ने दरवाजा खटखटा कर जगाया और कहा बहू..! तुम्हें तैयार करने के लिए ब्यूटीशियन आई है। तुम रिसेप्शन के लिए तैयार हो जाओ। उसने कुछ नहीं कहा बस हाँ में सिर हिला दिया।
लावण्या हल्के गुलाबी रंग के लहंगा चोली में इतनी खूबसूरत लग रही थी कि उसका मुकाबला करने के लिए वहां कोई नहीं था। उसकी देह का गुलाबी रंग और लहंगा चोली का रंग एक जैसा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे भगवान ने सबकी सुंदरता चुरा कर उसके अंदर डाल दी है।
एक दिन वेद ने लावण्या से कहा चलो हम लोग कहीं बाहर घूम कर आते हैं।
लावण्या- जम्मू चलते हैं वहां माता रानी के दर्शन भी हो जाएंगे और घूमना भी। हम लोग अकेले नहीं मम्मी-पापा और भाई को भी साथ ले जाएंगे। हम लोग एक साथ घूमने जाएंगे उससे घूमने का आनंद कई गुना बढ़ जाएगा।
लावण्या – हम अपनी जिंदगी की शुरुआत भगवान के दर्शन से करते हैं। मैंने तो बस बोला है बाकी आपकी इच्छा। हम अपने परिवार के साथ जायेंगे तो मुझे घर वालों के साथ ज्यादा घुलने -मिलने का मौका मिलेगा और हमारा घर वालों के साथ रिश्ता भी दृढ़ होगा।
वेद ने मम्मी से कहा तो घर वाले भी सब जाने के लिए तैयार हो गए।
मम्मी ने लावण्या से कहा बेटा हम लोग बाहर घूमने जा रहे हैं तुम अपनी मनपसंद ड्रेस पहन सकती हो। वेद ने कहा देखो मैंने तुम्हारी रख ली है तुम्हें भी मेरी बात माननी पड़ेगी।
लावण्या बोली वह क्या…?
तुम मेरे साथ जींस टाप पहन कर चलोगी।
लेकिन सब लोग क्या सोचेंगे। मेरे घर में कोई ऐसा नहीं सोचेगा। तुमने बोला है न..! मेरी बात मानोगी।
थोड़ी देर में वह जींस टॉप पहने हुए स्टाइलिस्ट तरीके से उसने सिर को ढका हुआ था। उसका यह पहनावा देखकर घर वाले बहुत खुश हुए। इसमें वेद की बात भी रह गई और उसका पहनावा भी बहुत सुंदर था।
मैं तो लावण्या को गांव वाली समझ रहा था लेकिन इसने कितने सुंदर तरीके से अपने आप को हमारे तौर तरीकों में ढाल लिया है।
जम्मू पहुंचकर पूरे परिवार ने माता रानी के दर्शन किए। जिंदगी की शुरुआत में ही अपनों के साथ घूमने का समय मिला। मम्मी पापा को तो लावण्या पहले से ही बहुत पसंद थी लेकिन पूरे सफर में वह सभी का बहुत ध्यान रख रही थी।
उसके हर कदम से ऐसा लग रहा था, कि उसे सब की बहुत परवाह है। वेद के मन में लावण्या के लिए दुगना प्यार पनप उठा।
दूसरे दिन मम्मी पापा ने वेद से कहा-
बेटा..! हम लोगों को किसी आवश्यक कार्य से जल्दी घर जाना है और तुम लोग अब पूरा कश्मीर और आसपास की जगह आराम से घूम कर आना।
लावण्या की समझदारी से परिवार के साथ घूमना- फिरना भी हो गया और हनीमून भी।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर,पश्चिम बंगाल
#काली रात