काली रात – मधु वशिष्ठ :  Moral Stories in Hindi

मेरी उपस्थिति शायद किसी को महसूस ही नहीं हो रही थी। तीनों बहनें चाचा जी के बेटे से गले मिलकर रो रही थी, भैया यह कैसी काली रात आई हमने तो अपने पिता को ही खो दिया और वह चाचा जिनको कि पिताजी और माता जी सौ सौ गालियां देते थे कि इन्होंने दादा जी से धोखे से उनके मरने से पहले अपने नाम ज्यादा जमीन करवा ली और चाची ने तो शादी में जेवर चढ़ने के बाद दादी

को वापस किए ही नहीं, उन्हीं जेवरों में माता जी का भी हिस्सा था। चाचा जी के तीन बेटे थे और हमारे  तीन बहनों में मैं अकेला भाई था। बड़ी दीदी की शादी के समय मैं ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर के इम्तिहान दे चुका था। हमारे पास में खेत का एक छोटा सा टुकड़ा ही था उसको गिरवी रखकर

दीदी का विवाह होना निश्चित हुआ था। दादा और दादी तो स्वर्ग सिधार चुके थे , चाचा ने भी कोई मदद नहीं की थी। शादी में शहर में रहने वाले बड़े मौसा जी भी आए थे उन्होंने पिताजी को बताया कि वह

बिल्लू को यानि कि मुझे अमेरिका भिजवा देंगे और वहां ही वह काम करके डॉलर में वह आपको पैसे भेजेगा। घर की सब गरीबी दूर हो जाएगी। मां के पास रखे हुए कुछ गहने बेचे गए और जाने कहां से कुछ करके मुझे नौकरी  करने के लिए अमेरिका भेजा गया। 

        पिताजी को मालूम था कि मैं लाजो से शादी करना चाहता हूं परंतु पिताजी को यह भी मालूम था कि लाजो के पापा तो कुछ भी देने में असमर्थ है और शायद यही कारण था कि पिताजी ने मुझे अमेरिका में ही कमाने के लिए भेजने की सारी जुगत लगा दी। सारे घर को मुझसे बहुत उम्मीदें थी

बहनों ने अपने प्यार का वास्ता दिया तो मां ने अपने बेचे गए गहनों का और उस काली रात को ,जी हां, मेरे लिए तो वह काली रात ही थी। मैं पहली बार हवाई जहाज में बैठा था और पूरे रास्ते घर को याद

करते हुए रोता हुआ जा रहा था। अमेरिका पहुंचकर मौसा जी के बेटे ने जो मुझे काम दिलवाया था वह एक होटल में सफाई और वेटर का था। मेरे रहने का इंतजाम जिस कमरे में हुआ था वहां चार लोग और पहले से ही रह रहे थे। मैं इस समय मोबाइल नहीं  था। घर के पास वाले पब्लिक बूथ पर से ही

पिताजी बात कर पाते थे। आने वाली चिट्ठियों में केवल यही जिक्र होता था कि कब से मैं डॉलर भेजना शुरू करूंगा और घर की गरीबी दूर होगी? अमेरिका में उस समय भी कंप्यूटर का ही चलन था। कमरे में रहने वाले एक लड़के के साथ मैंने थोड़ा बहुत कंप्यूटर चलाना सीखा। कभी आधे पेट तो

कभी भूखे पेट रहकर कुछ डॉलर मैंने घर में भेजना शुरू कर दिए थे। कंप्यूटर सीखने के बाद एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में मुझे कंप्यूटर से बिल काटने के लिए काम मिल गया था। डिपार्टमेंटल स्टोर का मालिक वर्मा जी एक भारतीय थे जिन्होंने अमेरिका की लड़की से ही विवाह किया था। मैं वहां पर

दिल लगा कर सफाई इत्यादि और भी सारा काम करता था, डिपार्टमेंटल स्टोर के मालिक की इकलौती बेटी क्रिस्टीना मुझसे आकर्षित हो रही थी और वर्मा जी की मर्जी से मैंने अमेरिका में

क्रिस्टीना से विवाह भी कर लिया था क्योंकि जब से मुझे पता चला था कि लाजो का विवाह हो गया है मेरा भारत लौटने को कभी मन ही नहीं हुआ और अब क्रिस्टीना और मैं मिलकर  स्टोर को चलाते थे। घर में मैं अब अधिक डॉलर भेजने लगा था। 

     दूसरी बहन की शादी में जब मैं बहुत सारे उपहार लेकर भारत गया था तो मेरे पिताजी को मेरे पर बहुत गर्व हो रहा था। घर में भी अब पिताजी ने और खेत खरीद लिए थे। बड़ी दीदी भी गांव में ही

आकर अपने खेत खरीद कर रहने लगी थी। माताजी ने भी अपने ही गहने जो बेचे थे वापस खरीद लिए थे। पिताजी गर्व से बता रहे थे कि घर की गरीबी को दूर करने वाला इकलौता मैं ही हूं।

सबसे छोटी बहन की शादी में मैं नहीं आ पाया था क्योंकि तभी मेरे भी एक बेटा हुआ था। वर्मा जी बीमार रहने लगे थे और क्रिस्टीना अकेली स्टोर नहीं संभाल सकती थी परंतु मैंने घर में छोटी बहन की शादी के लिए पैसे भेजने की कोई कमी नहीं की थी। 

     मैं अमेरिका में अपने दो बच्चों और क्रिस्टीना के साथ जीवन जी रहा था, तभी मुझे पिताजी के मरने की सूचना मेरे मोबाइल पर मिली परंतु मैं इतनी जल्दी घर नहीं पहुंच सकता था इसलिए मेरे पिताजी का दाह संस्कार चाचा जी के बेटे ने कर दिया था। जब मैं तीसरे दिन घर पहुंचा तो घर में सब कुछ

बदला हुआ था, दूर तक हमारे फैले हुए खेत और घर आधुनिक साज सज्जा से सुसज्जित था। अब मोबाइल का चलन भारत में भी था। यहां अपने ही घर में सारे लोग मुझ को दोषी महसूस करा रहे थे, मानो मैंने घर के लिए कुछ भी नहीं किया हो। 

बहनों के बच्चे और चाचा के बेटे सब मुझे उपेक्षित नजरों से घूर रहे थे । तीसरे दिन तो लाजो भी अपने दो बच्चों के साथ घर पर मातमपुर्सी के लिए आई थी। 

तभी क्रिस्टीना का फोन आया, उसने मुझे सूचना दी कि वर्मा जी को भी हार्ट अटैक हो गया है और उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। दोनों बच्चे और डिपार्टमेंटल स्टोर संभालना क्रिस्टीना के बस की नहीं था इसलिए मुझे भी अब वापस जाना ही था। मैं माता जी के गले लगा हुआ था और माता

जी कह रही थी देख बेटा कैसी काली रात आई जो तेरे पिताजी को ले गई, मैं मन ही मन सोच रहा था काली रात वह नहीं मेरे लिए तो वह काली रात थी जो कि मुझे अमेरिका ले गई। मैंने माताजी को सांत्वना देते हुए कहा मैं अब और अधिक नहीं रुक पाऊंगा मुझे आज रात या कल ही वापस अमेरिका जाना है। सारे लोग मुझे कोस रहे थे और मुझे  महसूस करा रहे थे कि मैं घर का कितना नालायक बेटा

हूं परंतु पाठकगण सच कह रहा हूं मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं हूं, मैंने अपनी जिंदगी का सब कुछ इस घर को दिया है ,परंतु फिर भी लोग मुझे कोस रहे हैं, चाचा जी का बेटा जिसने सब कुछ इनका छीन लिया वह आज इस घर का सगा बेटा हो रहा है। वह बहने जिनके लिए मैंने आधा पेट भूखा रहकर

पैसे भेजे थे आज वह सब मुझे ज्ञान दे रही है। आज शायद फिर वही काली रात आई है जबकि मैं दोबारा से अमेरिका जा रहा हूं और सच कह रहा हूं अब कभी वापस लौट के नहीं आऊंगा। 

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा 

काली रात विषय के अंतर्गत लिखी गईकहानी

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