सबकी प्यारी दुलारी सत्रह वर्षीया आशी! उस बड़े से संयुक्त परिवार की लाडली! घर में उसके मां पापा, भाई, दादा, दादी, चाचा, चाची, चचेरी बहन, और चचेरा भाई। सबके प्रेम प्यार और एकता का अद्भुत संगम था इनका परिवार! और आशी… वह तो सबसे छोटी सबकी आंखों का तारा थी! सब जी
भरकर नेह लुटाते थे उस पर। और प्यारी चुलबुली आशी थी भी ऐसी.. पढ़ाई लिखाई, खेलकूद, सब में अव्वल! और दिखने में भी इतनी प्यारी जैसे ईश्वर ने अपने हाथों से गुड़िया गढ़ कर भेजी हो… रुई के फाहे जैसी जैसे.. छूने से मैली हो जाएगी!
रक्षाबंधन का दिन था। सुबह से ही घर में तैयारियाँ चल रही थीं। आशी के उत्साह का ठिकाना नहीं था। वह भाग भाग कर रक्षाबंधन की तैयारी कर रही थी। अपने भाइयों के लिए राखी वह चुन चुन कर अपनी पसंद से लेकर आई थी। और भाइयों से उपहार के उस मीठे अनुरोध और बाल सुलभ है हठ में भी कितना प्यार छुपा था! मांँ और चाची भी रसोई में भांँति-भांँति के पकवान बनाती
जा रही थी। इस बार आशी के मामा को कुछ आवश्यक कार्य आ गया तो रक्षाबंधन पर वह नहीं आ सके तो माँ ने उन्हें डाक के द्वारा राखी प्रेषित कर दी थी। और चाची का अपना कोई भाई नहीं था। एक चचेरे भाई थे जो हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आज आने वाले थे। बुआ इसी शहर में रहती थी तो पापा भी आज बुआ के घर जाने वाले थे घर में सब की राखी बंध जाने के बाद!
आशी और उसकी चचेरी बहन ने खूब उत्साह, आह्लाद और स्नेह से भाइयों को राखी बांधी और चाची और मांँ ने चाची के भाई को। मिठाइयों से सबका मुंह मीठा हो गया और स्नेह से सबका मन! फिर खाने पीने, चाय नाश्ते का दौर चलने लगा। हंसी ठहाकों से पूरा घर गूंज रहा था और आशी के चुलबुले पर और नटखटपने पर तो सब हंस-हंस कर दोहरे हुए जा रहे थे। …फिर बाहर घूमने का
कार्यक्रम बना। सबने दिन भर खूब आनंद उठाया मामा अर्थात चाचा के भाई भी आशी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे। रात को घर आने के बाद सब इतना थक चुके थे कि शीघ्र ही सोने चले गए।
आशी अपने कमरे में निश्चिंत सो रही थी कि अकस्मात किसी स्पर्श की अनुभूति से उसकी नींद खुल गई। उसने घबराकर आंखें खोली तो देखा मामा अर्थात चाची के भाई उसके ऊपर झुके हुए थे। वह चिहुंक उठी…”-मामा!!!”
अचानक मामा ने उसका मुंह कसकर दबा दिया। फिर फुसफुसाते हुए बोले, “-अरे धीरे बोल! कौन मामा… कैसा मामा! मैं कौन सा तेरा सगा मामा हूं! एक तो तेरी चाची का भाई वह भी चचेरा !…घबराती क्यों है। तू तो मुझे इतने दिनों से जानती है। बचपन से तुझे देख रहा हूंँ पर अब बड़ी होकर तो इतनी सुंदर हो गई है कि मेरा मन किया तुझे जी भर कर प्यार करूं…. तू घबरा मत मैं तुझे किसी भी तरह की कुछ तकलीफ नहीं होने दूंगा।….” मामा की फुसफुसाती हुई घिनौनी हंसी निकली…
वासना से उनकी आंखें दहक रहीं थीं। आशी छटपटाती रही और उनकी पकड़ से छूटने का जी तोड़ प्रयत्न करती रही, परंतु मामा के वासना की आंधी ने उस रात को काली रात में परिणत कर दिया। संतुष्ट होने के बाद उन्होंने निढाल आशी को बिस्तर पर छोड़ दिया और कड़ी दृष्टि से उसे देखकर
चेतावनी देते हुए कहा,”- अगर यह बात तूने किसी को बताई ना तो फिर समझ ले कि पूरी बिरादरी में तुझे बदनाम कर दूंगा। कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोडूंगा। शर्म से डूब मरेंगे तेरे माता-पिता! और उसकी भी जिम्मेदार तू ही रहेगी! इसलिए किसी को बताने की तो सोचना भी मत …देख, मुझे परसों जाना है इसलिए मैं कल भी आऊंगा तैयार रहना।” और तीर की तरह बाहर निकल गए।
आशी बिस्तर पर पड़ी टूटी बिखरी सिसकती रही। शरीर के साथ-साथ जैसे मन भी कुचल कर तहस नहस हो चुका था। संबंधों की मर्यादा तार तार हो चुकी थी। जिसे बचपन से मामा कहती आई थी और मानती आई थी, उसी ने उसके शील पर आघात कर सब कुछ अपवित्र कर दिया था।
सुबह हुई.. फिर सूरज निकला लेकिन सब कुछ पहले जैसा होकर भी आशी के लिए कुछ भी पहले जैसा नहीं था। पूरे दिन वह खोई खोई सी रही। सब उस बार-बार पूछते रहे । पूरा दिन इसी प्रकार व्यतीत हो गया।
रात को जब वह सोने कमरे में गई, तो कुछ ही देर के बाद मामा दबे पांँव उसके कमरे में आ गए। उसे एक बार भरपूर दृष्टि से देखा फिर विद्रूप हंसी हंसते हुए उसके बगल में लेट गए। आशी को पकड़ कर उन्होंने अपनी तरफ घुमाने का प्रयत्न किया ही था कि अचानक आशी बिजली की तरह उछलकर उन्हें बिस्तर पर धकेलते हुए उनकी छाती पर बैठ गई। उसके हाथों में सब्जी काटने वाली छुरी थी जो उसने झट मामा की गर्दन पर रख दी
और सिंहनी की तरह दहाड़ी, “- कमीने !तूने सोच लिया कि मैं डर जाउंगी तुझसे ! लेकिन मैं डरने वाली लड़कियों में से नहीं हूं ।तुझे तो तेरे कर्मों का फल अभी और इसी समय मिलेगा। अब कल तूने जो जो मेरे साथ किया उसे अपने मुंह से बोल दे सब कुछ और यदि एक मिनट की भी देरी की तो यह छुरी तेरा खून पीने में समय नहीं लगाएगी… चल बक फटाफट…”
मामा इस अप्रत्याशित वार से एकदम तिलमिला गया… उसने घिघियाते हुए कहा,”- क्या कर रही है आशी बेटा! देख मैं तो तेरा मामा हूं ना! देख बात को समझने का प्रयास कर ! अब से ऐसी गलती नहीं करूंगा। मैं आज ही अपने गांव चला जाऊंगा। छोड़ दे मुझे…”
आशी ने चिंघार कर मामा के गर्दन पर छुरी का दबाव बढ़ाते हुए कहा, “- मामा होने के रिश्ते की दुहाई मत दे तू पापी! उस संबंध की मर्यादा और पवित्रता को तो तू कब का विध्वंस कर चुका है।… अब तू बकता है या लगा दूं छुरी…!!”
भय से मामा की पुतलियां फैल गईं। कांपते स्वर में उसने अपनी सारी करतूत बक दी। इसके साथ ही कमरे के साथ लगे स्नान घर से अचानक पुलिस निकल कर बाहर आ गई और साथ में सभी घर वाले भी।आशी ने मामा की छाती से उतरते हुए कहा, “- लीजिए गिरफ्तार कर लीजिए इस इंस्पेक्टर साहब! यह रहा आपका अपराधी!”
फिर खींच कर एक तमाचा मामा के गाल पर मारते हुए आशी फिर दहाड़ी,”- तूने क्या सोच लिया था कमीने , कि मैं तुझसे डर जाउंगी..?? तूने मेरी एक रात को काली रात में बदल दिया तो उस रात के अंधेरे में मैं अपना सारा जीवन घुट घुट कर बिताती रहूंगी तो बहुत ही गलत सोचा तूने! बहु
त बड़ी भूल हो गई तुझसे! उस रात की सुबह का सूरज मैं अपने हाथों से उगाऊंगी और समाज की दूसरी लड़कियों के लिए भी मिसाल बनकर दिखाऊंगी। तुझ जैसे कमीनों के साथ ऐसा ही सलूक होना चाहिए। तूने सोचा कि मैं तेरी धमकियों से डर जाउंगी लेकिन मैंने कल ही सबको सब कुछ बता दिया और सबकी सहायता से पुलिस को बुलाकर आज तेरी करतूतों का पर्दाफाश कर दिया।अब जा और जाकर जेल में चक्की पीस!”
मामा हथकड़ियों में दृष्टि झुकाए पानी पानी सा हुआ खड़ा था। चाची ने आगे बढ़कर उसके गाल पर तमाचा मारते हुए, “- आज तुझे अपना भाई कहते हुए शर्म आ रही है.. थूकती हूं तुझ पर..आज से तेरा और मेरा कोई संबंध नहीं!”
इंस्पेक्टर साहब ने भी आशी के साहस और दृढ़शक्ति की भूरि भूरि प्रशंसा और बहुत शाबाशी दी।
पुलिस मामा को गिरफ्तार कर ले जा रही थी और आशी दृढ़ता से चट्टान की तरह अपने घर वालों के साथ खड़ी नई सुबह के सूरज का स्वागत करने के लिए तैयार थी।
निभा राजीव”निर्वी”
स्वरचित और मौलिक रचना
मुंद्रा, गुजरात
#काली_रात