अमावस्या की काली रात थी रात के 12:00 बज चुके थे, रुचि गेट पर खड़ी अपने पति का इंतजार कर रही थी, साथ में उसकी बेटी जो 11 साल की थी सहमी खड़ी थी और कह रही थी मम्मी पापा नहीं आए ना। मम्मी क्या आज भी पापा दारू पीकर आएंगे? मम्मी आप पापा को क्यों नहीं डांटती? आप
मुझे तो डांटती हैं ,अगर मैं लेट हो जाती हूं तो, पापा को क्यों नहीं डांटती? रुचि ने कहा, जाओ तुम जाकर सो जाओ ,मैंने कहा ना तुमसे, मेरे से फालतू बात ना करो। छोटी सी गुड़िया ने कहा मम्मी अगर मैं सो गई ,तो पापा मुझे जगा देंगे, मुझे तंग करेंगे, फिर आप दोनों की लड़ाई होगी। आज मैं
देखूंगी पापा मुझे क्यों जागते हैं। रुचि ने अपनी बेटी को जोरदार चांटा लगाया और कहा तुम कमरे में कुंडी लगा कर सो जाओ, मैंने कहा ना सो जाओ। रात और अधिक काली होती जा रही थी ,उधर मायूस बेटी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है। आज उसके मन में था कि वह
जरूर अपने पापा की इंतजार करेगी और देखेगी कि आखिर होता क्या है, लाख कहने पर भी जब वह नहीं मानी तो रुचि ने ना चाहते हुए भी उसे दो चांटे लगाए और कमरे में बंद कर दिया और कहा कि तुम चुपचाप अंदर की कुंडी लगा लेना और कोई कितना मर्जी कुंडी खड़काए, तुमने दरवाजा नहीं
खोलना, समझी। बेटी जोर से चिल्लाती रही, नहीं मां मुझे बंद ना करो, पापा तुम्हे मारेंगे और तुम्हारे रोने की आवाज सुनकर, मैं कमरे में नहीं रह सकती, गुड़िया चिल्लाती रही, पर मां ने एक नहीं सुनी और कहा तुम चुपचाप अपने कमरे में बैठी रहो ,गुड़िया ने कहा अच्छा मां एक बात तो बता दो ,पापा
के साथ रोजाना कोई अंकल आते हैं और रोजाना कोई ने अंकल ही होते हैं, तो वह पापा को क्यों नहीं रोकते ,तुम पापा से इतना क्यों लड़ती हो ,बताओ ना मां, पापा तुम पर हाथ क्यों उठाते हैं?? बच्ची के मुंह से इतना सुनते ही, रुचि जोर से चिल्लाई ,मैंने कहा ना तुम चुप हो जाओ और कौन से अंकल, अरे
वह तो तुम्हारे पापा के साथ आते हैं और चले जाते हैं ,तुम्हें कहा ना तुम चुप रहो और किसी से तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं, मासूम बेटी कुछ नहीं समझ पा रही थी कि आखिर हो क्या रहा है। वह
गेट खड़काती रही ,पर रुचि ने गेट नहीं खोला ।रात को 1:00 बजे गुड़िया की आंख लग गई, फिर वही हंगामा जोर-जोर से आवाज आ रही थी, रुचि चिल्ला रही थी ,बचाओ बचाओ और उधर से रुचि का पति ,रुचि को दबोच कर खड़ा था ।गुडिया ने खिड़की से झांका और जोर से चिल्लाई ,मां गेट खोलो ,पापा गेट खोलो, अंकल गेट खोलो ।जैसे ही नशे में धूत पापा ने कहा कि आज तेरी बेटी की बारी है, आज यह मेरे दोस्त का सामान बनेगी।
दोस्त ने भी क्या बात है?यार आज तो तुमने मुझे खुश कर दिया ,अब मैं तुम्हे खुश रखुंगा। इतना कहकर उसने एक नोटों की गट्टी रुचि के पति के हाथ में दी। रुचि घायल शेरनी की भांति पति पर टूट पड़़ी । उसने अपने पति पर चाकू रखकर कहा कि खबरदार मेरी बेटी का नाम लिया तो। रूचि ने
जोर से चिल्लाकर कहा गुड़िया, तुम खिड़की बंद कर लो ।डर से घबराई गुड़िया ने खिड़की बंद कर ली और कोने में दुबक कर बैठ गई ,उधर आवाज आ रही थी मैंने पैसे दिए हैं तेरे पति को अब तो तेरी बेटी मेरी हुई ,खोल ताला,दे चाबी मुझे। लेकिन थोड़ी देर में सब शांत हो गया ,सुबह हो गई ।आज
-पड़ोस में भीड़ जमा हो गई, पुलिस भी आ गई ।पुलिस ने गुड़िया का दरवाजा खोला ,गुड़िया देखकर हैरान थी, पापा और अंकल दोनों धरती पर ढेर थे ,वह भाग कर अपनी मां से चिपक गई और बोली मां-मां यह क्या हुआ ??पापा यूं क्यों पड़े हैं और यह अंकल जो रात को आए थे यह भी ऐसे क्यों पड़े
हैं ???पुलिस ने रुचि के हथकड़ी लगा ली। रुचि ने कहा, बेटा हमारे जीवन में काली रात ,हमेशा के लिए खत्म हो गई है। रुचि डरी सहमी थी उसने इंस्पेक्टर से गुहार लगाई कि मेरी बेटी को मेरे साथ ले जाने दिया जाए ।वकील किए गए जज ने भी निर्णय लिया कि 11 साल की लड़की मां के बिना नहीं रह सकती ,अगले दिन ही उसे जमानत हो गई।
रुचि ने जज के सामने बयान दिया कि मेरा पति रोजाना नशे में धुत होकर आता था और रोज नए मर्द लेकर घर में आता था। जज साहब घर को चलाने के लिए, मैं मजबूर थी,उसके अनुसार चलती थी ,लेकिन जब उसने मेरी बेटी पर गंदी नजर डाली तो मैं सहन नहीं कर पाई, जो काली रातें मेरी बीती
है, मैं नहीं चाहती कि वह काली रातें मेरी बेटी जिंदगी में बिताए। मैं मेरी बेटी को पढ़ा लिखा कर एक बड़ा अफसर बनाना चाहती हूं, ताकि मेरे जीवन की काली रातों का साया इसके ऊपर ना पड़े। कोर्ट में मौजूद सभी लोगों की आंखों में आंसू थे। जज ने कहा बेटा मैं तुम्हें न्याय दिलाऊंगा और मैं तुम्हारे लिए लडूंगा, तुम्हारे लिए लडूंगा ।ऐसा ही हुआ 6 महीने की लंबी लड़ाई के बाद रुचि को बाइज्जत बरी कर दिया अब वह अपनी बेटी के साथ खुश थी।
लेखिका : ऊर्मिल शर्मा