काली रात – डाॅ संजु झा :  Moral Stories in Hindi

आज भी कभी-कभी सीमा उस काली रात को याद कर सहम -सी जाती है।उस काली रात की परछाई उसे सपने में आज भी डरा जाती है।पल भर के लिए वह काली रात उसके मन-मस्तिष्क को जकड़ लेती है ,मानो उसकी सारी चेतना को अंधकार से ढॅंककर अपने आगोश में कैद कर लेती है।

उससे छूटने के लिए नींद में छटपटाने लगती है।उसका पति गगन दफ्तर के काम से बाहर गया हुआ है। अकेलेपन में उस काली रात की भयावह यादें उसके सपने में आकर आज भी डरा गईं।वह पसीने से लथपथ होकर घबड़ाकर नींद से उठ बैठी।उसकी साॅंसें अभी भी लुहार की धौंकनी की तरह ऊपर

-नीचे हो रहीं थीं।हाथ बढ़ाकर उसने पानी का ग्लास लिया और धीरे-धीरे पीने लगी।अभी आधी रात ही बीती थी,कुछ देर बिस्तर पर खामोश -सी बैठी रही।संयत होने पर बिस्तर पर दुबारा से लेट गई, परन्तु ऑंखों में नींद आने की बजाय उस काली रात की घटना उमड़ -घुमड़कर उसके जेहन में तैरने लगी।

सीमा बचपन से ही आजाद ख्याल की लड़की थी।उसके माता-पिता ने उसकी परवरिश में बेटा-बेटी का कोई भेद नहीं रखा। उसके व्यक्तित्व में रूप और गुण दोनों का समावेश था।उसे शादी की अपेक्षा अपने  कैरियर की ज्यादा चिन्ता थी।सीमा मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही थी।अभी तक उसने शादी के

बारे में सोचा तक नहीं था।उसके माता-पिता उसकी शादी के लिए चिन्तित रहते। गगन उसके साथ ही मैंनेजमेंट की पढ़ाई कर रहा था।उसकी गुलाबी रंगत,सुती हुई नाक,कजरारी ऑंखें,छरहरी काया,लंबा कद,काले घुॅंघराले बाल पर एक ही नज़र में गगन फिदा हो गया था। गगन उसकी

खुबसूरती से दिनों-दिन आकर्षित होता जा रहा था।सीमा भी गगन के आकर्षक व्यक्तित्व और व्यवहार कुशलता से प्रभावित होती जा रही थी।एक अदृश्य डोर से सीमा भी  गगन की ओर खिंचती चली जा रही थी।गगन के प्रति आकर्षण ने सीमा की शादी न करने की सोच को धाराशाही कर दिया।

मैंनेजमेंट  पूरी होते ही दोनों की नौकरी एक ही शहर में लग गई। गगन ने दोनों की नौकरी एक ही जगह होने को कुदरत का इशारा समझा।एक दिन उसने सीमा को शादी के लिए इजहार करते हुए कहा -“सीमा! क्यों न हम दोनों हमसफ़र बनकर अपनी जिंदगी को और खुबसूरत बनाऍं?”

सीमा भी मन-ही-मन गगन को पसंद करने लगी थी। गगन ने मानो उसके दिल की बात कह दी हो!उसने अपने माता-पिता को अपनी पसन्द बता दी।उनकी शादी से दोनों के माता-पिता को कोई ऐतराज नहीं था। धूम-धाम से दोनों की शादी हो गई। शादी के बाद दोनों ने स्विट्जरलैंड में अपना हनीमून मनाया।मनचाहा जीवनसाथी मिलने से उन्हें मानो दुनियाॅं की सारी खुशियाॅं मिल गईं थीं।

मीठी नोंक-झोंक और समझदारी के साथ उनकी जिंदगी खुशियों के रास्ते चल पड़ी। दोनों अपने दफ्तर जाने लगें। शादी के बाद पहली बार दफ्तर आने पर सीमा के साथ सभी सहकर्मियों की छेड़-छाड़ जारी थी।उसी समय उसके दफ्तर के बाॅस आ गए।सभी सहकर्मी एक साथ खामोश होकर अपनी-अपनी सीट पर काम करने चले गए।

” सीमा!बधाई हो! दफ्तर में दुबारा स्वागत है!”कहकर बाॅस अपने केबिन में चले गए।

सीमा भी अपने काम में व्यस्त हो गई।

कुछ देर बाद फोन पर उसे बाॅस ने कहा-” सीमा! शादी से पहले तुमने काफी छुट्टियाॅं ले ली है,इस कारण तुम्हारे कुछ प्रोजेक्ट अधूरे रह गए हैं, उन्हें जल्द -से-जल्द पूरा करना है। तुम्हें तो अपने दफ्तर  का नियम पता ही है कि जो प्रोजेक्ट शुरू करता है उसे ही पूरा करना पड़ता‌है!

“यश बाॅस”कहकर सीमा अपने काम में लग जाती है।

सीमा काम के बीच -बीच में गगन के बारे में सोचकर मुस्करा उठती है। मैनेजमेंट क्लास में पहली बार उसने गगन को देखकर सोचा था-“उफ्फ!कितना खुबसूरत नौजवान है! जितना  स्मार्ट,लंबा -चौड़ा ,उतना ही वाक््कुशल  भी।काश! यह नौजवान उसका हमसफ़र बन जाता!”

आखिर उसकी मनोकामना पूरी हो ही गई।आज दोनों पति-पत्नी बन गए हैं।इतनी हसीन दुनियाॅं उसे पहले कभी नहीं लगी थी।उसे ख्यालों में गुम देखकर उसकी सहकर्मी नेहा ने चुहल करते हुए कहा -“बस ख्यालों में ही गुम रहोगी या घर जाकर उसका दीदार भी करोगी?”

सीमा जल्दी -जल्दी अपने काम समेटने लगी। दफ्तर का काम खत्म करने पर सीमा घर पहुॅंची।खाना बनाकर मेड जा चुकी थी।सीमा फ्रेश होकर चाय का प्याला हाथों में पकड़े हुए गगन का इंतजार करने लगी।कुछ ही देर में गगन भी दफ्तर से लौट आया।उसने मुस्कुराते हुए पूछा -“सीमा! शादी के बाद दफ्तर का पहला दिन कैसा रहा?”

सीमा -” बहुत अच्छा! सभी सहकर्मियों सहित बाॅस ने भी शादी की शुभकामनाऍं दीं और मजाक भी कर रहें थे।”

गगन -“मेरे दफ्तर में भी यही हाल था!”

सीमा -” हाॅं!बाॅस ने कहा है कि देर तक रुककर शादी के पहले के प्रोजेक्ट जल्द पूरे करने होंगे!”

गगन -“सीमा!देर तक रूकने की कोई जरूरत नहीं है!”

सीमा -“गगन!कैसी बातें करते हो?काम तो करना ही पड़ेगा न!”

गगन -“अच्छा!जिस दिन देर हो जाऍं,तो मुझे फोन कर देना। मैं लेने आ जाऊॅंगा।”

सीमा -“तुम पुरुषों की हमेशा यही कमजोरी रही है कि हमेशा औरत को कमजोर समझते हो।क्या मैं देरी से अकेली दफ्तर से नहीं आ सकती हूॅं?”

गगन बात को सॅंभालते हुए कहता है -” आ क्यों नहीं सकती हो, परन्तु जिसकी इतनी खुबसूरत बीबी हो ,उसे डर तो लगेगा ही।”

सीमा -” मजाक छोड़ो और खाने चलो।”

सीमा को गगन की परवाह करने की आदत बहुत पसन्द थी, परन्तु कभी-कभी गगन की इसी आदत से सीमा झल्ला भी उठती।उसे महसूस होता कि गगन उसे अपने से कमतर ऑंकता है!इसी बात पर यदा-कदा दोनों में बहस हो जाती।कभी-कभी गगन की मजाक में कहीं हुई बातें भी उसके दिल पर चोट कर जातीं। दफ्तर में भी उसे लैंगिक स्तर पर भेद-भाव देखने को मिल जाता था।इसी कारण गगन के साथ बहस में झल्लाते हुए कहती -“तुम पुरुष वर्ग महिलाओं को कभी बराबरी का दर्जा देना ही नहीं चाहते हो!”

गगन बहस को आगे न बढ़ाकर मुस्कुराते हुए चुप हो जाता।

अगले दिन दफ्तर के लिए तैयार होते हुए सीमा ने कहा -” गगन!आज से मैं दफ्तर में कुछ देर तक काम करुॅंगी!”

गगन -” मैं लौटते हुए तुम्हारे दफ्तर आ जाऊॅंगा।”

सीमा -“गगन!बचकानी बातें मत करो।तुम उल्टा क्यों आओगे?मेरे दफ्तर में बेकार बैठने से अच्छा घर जाकर आराम करोगे।”

गगन -“ओके मैडम! मैं जानता हूॅं कि मेरी पत्नी बहुत ही आत्मविश्वासी और निडर है, फिर भी दफ्तर से निकलते समय फोन जरूर कर देना।”

“ठीक है”कहकर सीमा दफ्तर के लिए निकल जाती है।

सीमा अपने दफ्तर पहुॅंचकर तल्लीनता से अपने काम करने लग जाती है। बीच-बीच में बाॅस का रिमांइडर भी आ जाता है।वह आज कुछ ज्यादा ही काम निबटाना चाहती है।काम करते-करते उसे समय का पता ही नहीं चला।उसकी सहकर्मी निशा उसकी तल्लीनता भंग करती हुई पूछती है -“सीमा!लगता है कि अभी से ही पति से लड़ाई शुरू हो गई है?”

सीमा -” तुमने कैसे जाना लिया?”

निशा मुस्कराती हुई कहती हैं -” जब  ेनए शादी-शुदा  लोग दफ्तर में ज्यादा देर तक टिके रहें,तो समझ लेना चाहिए कि दाल में कुछ काला है!”

सीमा -“अरे!ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हें तो पता ही है कि मेरे कितने सारे काम पेंडिंग पड़े हैं, इसलिए थोड़ी देर और रूकूॅंगी!”

“ठीक है”कहकर निशा दफ्तर से बाहर निकल जाती है।

काम में सीमा इस कदर डूब गई कि उसे समय का पता ही नहीं चला। दफ्तर के चपरासी ने आकर कहा -“मैडम!रात के दस बज गए हैं!मुझे दफ्तर बंदकर घर भी जाना है!”

एकाएक सीमा घड़ी पर नज़र डालते हुए कहती हैं -” अरे!दस बज गए,मुझे पता ही नहीं चला?”

वह जल्दी -जल्दी फाइलें समेटकर दफ्तर से बाहर निकल जाती है।उसने चलते-चलते गगन को दफ्तर से निकलने की सूचना दे दी। ठंढ़ का मौसम था।बाहर कड़ाके की ठंड थी।सीमा शरीर पर शाॅल लपेटती हुई  अपनी गाड़ी के पास पहुॅंची।उसने जैसे ही गाड़ी में चाभी डाली,वैसे ही गाड़ी घर्र आवाज के साथ बंद हो गई। बार-बार कोशिश करने पर भी गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई।सीमा ने झल्लाते हुए सोचा -“लगता है कि इतनी ठंढ़ में बैटरी भी ठंढ़ी पड़ गई है!”

सीमा गाड़ी को छोड़कर बाहर कैब बुक करने निकलती है, परन्तु कहते हैं न कि परेशानी अकेली नहीं आती है, बल्कि अपने साथ कई परेशानियाॅं और ले आती हैं।उसके मोबाइल की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी।किसी अन्य वाहन की उम्मीद में सीमा आगे बढ़ती है। ठंढ़ के मौसम में रात के ग्यारह बजे

ही सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। सांय-सांय चलती हुई ठंडी हवाऍं तन के साथ उसके मन को भी सिहरा रहीं थीं।वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगती है।उसी समय एक टैक्सी आकर उसके बगल में रूकती है।सीमा जल्दी से अपने घर का पता बताकर उसमें बैठ जाती है।बैठने के बाद उसे कुछ

राहत महसूस होती है। परन्तु उसकी राहत क्षणिक ही थी।कुछ दूर आगे बढ़ने पर टैक्सी रुक जाती है और उसमें दो आदमी आकर उसके अगल-बगल बैठ जाते हैं।सीमा मन-ही-मन भय से काॅंप उठती है।उसने हिम्मत कर ड्राइवर से कहा -“तुमने इन लोगों को मेरे पास क्यों बिठाया। इन्हें अभी बाहर निकालो।”

उसकी बातें सुनकर ड्राइवर बोलता कुछ नहीं है, बल्कि कुटिल हॅंसी हॅंसने लगता है।सीमा की बगल में बैठा व्यक्ति उसके हाथ पकड़ते हुए कहता है -“मैडम!मुॅंह बंद रखो। हमें भी पता है कि तुम कितनी शरीफ हो? शरीफ घर की लड़कियाॅं इतनी रात सड़क पर नहीं घूमतीं!”

सीमा चिल्लाते हुए -” मुझे ऐसा कहने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मैं दफ्तर से आ रही हूॅं। मुझे देरी हो रही है!”

दूसरा आदमी अपनी गंदी-सी दाॅंत दिखाते हुए कहता है-” मैडम!हम भी तुम्हें सारी रात कहाॅं रोकेंगे?घंटे-दो-घंटे बाद तुम्हें छोड़ देंगे। फिर आराम से घर चली जाना।”

सीमा गुस्से से थर-थर काॅंपती हुई बदमाश को मारने के लिए थप्पड़ उठाती है।पलक झपकते ही एक बदमाश उसकी बाॅंहों को जकड़कर पकड़ लेता है,दूसरा उसके साथ मनमानी करने की कोशिश करने लगता है।सीमा को महसूस हो रहा था कि वह बदमाशों की चंगुल में पूरी तरह फॅंस चुकी है, परन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी,न अपना धैर्य ही खोया।उसने धीरे से पैर से गाड़ी का हैंडल घुमाया।

संयोग से पैर के झटके से एकाएक गाड़ी का दरवाजा खुल गया। अचानक झटका लगने से एक बदमाश तेजी से सड़क पर आ गिरा।मौका पाकर गाड़ी से निकलकर सीमा तेजी से भागने लगी। ड्राइवर ने देखा कि उसका एक साथी सड़क पर चोट लगने से बुरी तरह कराह रहा है,तो अपना इरादा बदलकर साथियों के साथ उल्टी दिशा में भाग खड़ा हुआ।

सीमा बदहवास -सी सूनी सड़क पर दौड़ रही थी।अभी वह सॅंभल भी नहीं पाई कि अचानक से तीन शराबी आकर उसका रास्ता रोककर खड़े हो गए।अब सीमा को एहसास हुआ कि ‘आसमान से गिरे और खजूर पर लटकने’ वाली कहावत आज उसी के साथ चरितार्थ हो गई।सीमा ने अपना संयम बरकरार रखा। तीनों शराबी  उसका रास्ता रोककर आपस में बातें कर रहें थे -“दोस्त!आज का दिन हमारे लिए शुभ प्रतीत होता है।”

दूसरा शराबी -“दोस्त!तुम्हारी बातें सोलह आने सच है!आज हमें मुफ्त में ‌शराब भी मिली और मुफ्त में मन बहलाने के लिए गुड़ियाॅं भी।”

तीसरे शराबी ने कुछ अत्यधिक पी रखी थी।उसने केवल उन दोनों की बातों के समर्थन में सिर हिलाया।उस समय इस मुसीबत से छुटकारा पाने का उपाय सीमा का दिमाग तेजी से सोच रहा था। दोनों ‌शराबी‌ सीमा को पकड़कर जबरदस्ती ‌झाड़ियों‌ में‍‌ ले जाने का प्रयास करने‌ लगें।तीसरा शराबी झूमता हुआ पीछे-पीछे चल रहा था।बचपन में स्कूल में सीमा ने कुछ ही दिन जूडो-कराटे सीखा था।

उसी को याद करते हुए उसने अपनी  संचित सारी शक्तियों को बटोरकर दोनों शराबियों को जोर से‌ धक्का‌ देते‌ हुए जमीन पर गिरा दिया।तीसरा शराबी भौंचक होकर इधर-उधर देखने लगा।जब तक दोनों शराबी सॅंभलते,तब तक वह तेजी से भागते हुए उनकी पहुॅंच से दूर निकल चुकी थी।उस दिन

भगवान मानो उसकी हिम्मत की परीक्षा लेना चाह रहे थे। भागते-भागते वह थक चुकी थी,कुछ देर किनारे में बैठकर सुस्ताने लगी।उसकी हिम्मत जबाव दे चुकी थी।उसे  सही-सलामत घर लौटना दुस्तर कार्य प्रतीत होने‌ लगा था। संयोग से एक ऑटोवाला अपने घर लौट रहा था,उसकी नजर

बदहाल, बदहवास सीमा पर पड़ी।उसने आगे बढ़कर सीमा को अपनी ऑटो में बैठने को कहा।उस सुनसान काली रात में ‌ऑटो में बैठने के सिवा उसके पास कोई उपाय नहीं था।वह चुपचाप आशंकित मन से ऑटो में बैठ गई और मन-ही-मन अपने को तसल्ली देती हुई सोचने लगी कि अगर फिर कुछ ग़लत घटित हुआ तो ऑटो से तो कूदकर निकल ही सकती है!

ऑटो में बैठने के बाद सीमा अपनी घबड़ाहट पर काबू पाने की कोशिश करने लगती है, परन्तु उसकी साॅंसें अभी भी अनियंत्रित थीं।सीमा अपने पर्स से पानी का छोटा बोतल‌ निकालना चाहती है, परन्तु उसे अब एहसास हुआ कि भागने के क्रम में पर्स भी कहीं छूट गया था।उसकी मनोदशा को समझकर ऑटो चालक ने एक अपने परिचित दुकानदार से पानी का बोतल लिया और सीमा के हाथ में पकड़ाते हुए कहा -“मैडम! थोड़ा पानी पी लो,घबड़ाहट से आपका गला सूख रहा है!”

सीमा ने अविश्वास के साथ पानी का बोतल लिया।आज उसे किसी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था।उसने बस दो घूॅंट ही पानी का पिया।रास्ते भर वह सजग और सतर्क रही। उस दिन उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो घर की दूरी सुरसा की तरह बढ़ती ही जा रही है! आखिरकार  कुछ समय बाद उसका घर पहुॅंच गया।सामने लाॅन में  चहलकदमी करते हुए उसका  पति गगन बेचैनी से इंतजार कर रहा था।सीमा ने जल्दी से गगन से ऑटो चालक को पैसे देने कहा और सीमा  तेजी से घर के अंदर घुस गई।गगन ने ऑटो चालक से पूछा -“भाई!रास्ते में क्या बात हो गई?”

ऑटो चालक -“साहब!मुझे कुछ नहीं पता।मुझे जब मैडम मिली तो काफी घबड़ाई हुई थी। ‌इस कारण मैं  घर जाना छोड़कर मैडम को पहुॅंचाने आ गया!”

“ठीक है”कहकर उसे जाने कहता है और घर के अंदर आता है।उसे देखकर सीमा दौड़कर उसके गले लगकर जोर-जोर से रोने लगती है।गगन उसे सांत्वना देते हुए पूछता है-” सीमा!बताओ,क्या हुआ?तुम ठीक तो हो न!”

हिचकियों के बीच वह खुद को संयत कर सब कुछ कहने की कोशिश करने लगी, परन्तु उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही थी।आज के मिले गहरे जख्म के दर्द से वह कराह रही थी।घटना के बारे में कहते वक्त उसके चेहरे पर जो भाव थे,वह‌ शायद  पहले कभी नहीं थे।काली रात की दास्तां उसे अंदर तक हिलाऍं जा रही थी।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह आज की घटना को बयां करें?

गगन ने उसे सॅंभालते हुए कहा -“सीमा !आज बहुत रात हो चुकी है,सो जाओ।कल बातें करेंगे।”

सीमा -” नहीं गगन!इतनी मुसीबत में भी मैं टूटी नहीं,हारी नहीं।तुमसे शेयर करने से मेरे दिल को  सुकून मिलेगा।”

सीमा काली रात की घटना गगन को बताने लगी। 

उस घटना‌ केबारे में सोचते-सोचते‌ वह नींद के आगोश में चली गई। सुबह-सुबह गगन के दरवाजा खटखटाने से सीमा की नींद खुल गई।उसने दरवाजा खोलते ही गगन को गले लगाते हुए कहा -“तुम मुझे छोड़कर बाहर मत जाया करो।”

गगन -” क्या फिर सपने में डर गई थी?”

सीमा -“हाॅं!”

गगन -“सीमा!जब उस दिन तुमने इतनी बहादुरी से काम लिया था तो अब उस काली रात की यादों को मिट्टी में दफन कर डालो।”

सीमा -“तुम सच कहते हो।बुरी यादों से पीछा छुड़ाना ही बेहतर है!”

 सुनहरे भविष्य की कल्पना में दोनों एक-दूसरे  की ऑंखों में देखकर मुस्कुरा उठे।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

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