“मम्मी, मम्मी पता है आज स्कूल में क्या हुआ?”
चार साल की पंखुड़ी स्कूल से आते ही अपनी मां अनामिका को जब तक पूरी खबर ना वहां की बता दे चैन नहीं पड़ता उसे। आज तो कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड लग रही थी पंखुड़ी।
“बेटा पहले हाथ पैर धो लो ड्रेस चेंज कर लो फिर खाते खाते अपनी गप्प सुना देना ।” अनामिका प्यार से उसके गालों को सहलाते हुए कहा।
“नहीं नहीं पहले मेरी बात सुनो, पता है….. और पंखुड़ी को लगा कहीं मम्मी जबरदस्ती हाथ पैर ना धुलवाने लगे, और उसकी बात रह जाए तो ताबड़तोड़ बोलने लगी ,
” मोमो, पता है आज ना मैडम बता रही थी, कि बच्चे मम्मी के पेट में होते हैं ”
उसकी बड़ी बड़ी आँखें मानो कोई नई खबर मम्मी को बता रही हो ऐसे फैली हुई थी।
अनामिका को हँसी आ गई
“अच्छा मैडम ये भी बताती हैं तेरी”,
“हां, और बहुत बहुत सारी बातें भी बताई, अच्छा मोमो (पंखुड़ी प्यार से उसे मोमो बुलाती है)
आपको पता है मम्मी के पेट में जब बेबी होता है ना तो डॉक्टर अंकल या आंटी ये पता कर लेते हैं बेबी होगा या बाबा ये भी मैडम ने बताया “
अनामिका चौंक गई
“क्या??? ये क्या कह रही है “
“हां मोमो आज एक डॉक्टर आंटी आई थीं, स्कूल के सारे बच्चों को ऑडिटोरियम में बुलाया गया था और डॉक्टर आंटी ऐसा बता रही थी “
“अच्छा” , अनामिका की उत्सुकता बढ़ गई।
“और क्या बताया “
“वो बता रही थीं जब लोगों को पता चलता है कि मम्मी के पेट में बेबी हैं तो वो उसे मार डालते हैं”
अनामिका मानो बुत बन गई!!!!!
याद आ गया उसे वो पल जब पंखुड़ी होने वाली थी, बड़ी सोना तब चार साल की थी, सभी उम्मीद कर रहे थे इस बार लड़का ही हो, आशीर्वाद भी यही मिल रहा था, पर उसने हमेशा भगवान से यही प्रार्थना की जो भी आए वो स्वस्थ आए, और भाग्यशाली हो,उसके मन में कभी भी लड़का, लड़की को लेकर दुविधा नहीं थी, बस वो दो बच्चों के साथ अपना परिवार पूरा होता देखना चाहती थी, उसे बच्चों से बेहद लगाव था। इसीलिए बेटा या बेटी कभी ये बात उसके दिमाग में आई ही नहीं, वैसे भी उसे बेटियां ज्यादा प्यारी लगती थी। इसलिए जब सोना हुई तो वो बेहद खुश हुई थी, हां सासू मां का चेहरा थोड़ा लटक गया था, पर जब पंखुड़ी होने को थी तब उन्हें पूरा यकीन था कि इस बार लड़का ही होगा, क्योंकि उनके खानदान में ज्यादातर ऐसा ही हुआ था।
और जब उन्हें पंखुड़ी के होने का पता चला तो वो हॉस्पिटल देखने तक नहीं आईं थी, अनामिका के साथ साथ उसके पति राजेश को भी अपनी मां का ये व्यवहार कहीं तकलीफ दे गया था, पर वे कुछ नहीं बोले। सासू मां ने कभी भी पंखुड़ी को तेल तक नहीं लगाया, ना जल्दी गोद में लेती थी, अब तो ज्यादातर अपने छोटे बेटे के साथ ही रहती थी क्योंकि उसको दो लड़का था।
पर अनामिका को सबसे ज्यादा दुःख तब हुआ पंखुड़ी के छठी पूजा के दिन रिश्ते की एक सास ने पूछ दिया
“अरे फिर से बेटी हो गई, अब तो अल्ट्रासाउंड का जमाना है, क्या तुम check नहीं करवाई थी?”
“तो क्या मार डालती इसे?” अब बर्दाश्त नहीं हुआ अनामिका से, और वो बोल पड़ी
“हां पता था मुझे, तो चाची जी मार देना चाहिए था ना मुझे इसे, आपके भरोसे तो नहीं लाई हूं, ये मेरी है, अगर आशीर्वाद नहीं दे सकती तो मत दीजिए पर आज के दिन मेरी बच्ची के लिए ऐसा नहीं बोलिए”
चाची सास और उसकी सास दोनों का मुंह फूल गया था और आज तक वो चाची सास उससे ठीक से बात नहीं करती और अनामिका भी इसकी परवाह नहीं करती।
“मोमो….मोमो …, पंखुड़ी की आवाज उसे वर्तमान में ले आई
“मोमो…..
“चल कपड़े उतार”
अनामिका का मन भारी हो गया था, क्या जरूरत थी अभी से बच्चों को इस तरह के सोशल अवेयरनेस की बातें बताने की, ये स्कूल वाले भी न, पता नहीं क्या क्या करते रहते हैं ।
पंखुड़ी ने हाथ मुंह धोया, और अनामिका उसका खाना निकालने किचेन में आ गई।
पीछे से पंखुड़ी उससे आ कर लिपट गई।
“Thank u मोमो आपने मुझे मारा नहीं, मैं भी तो बेबी हूं ना”
अनामिका….. कांप उठी….. हाथों में छोटी सी थाली…
पैरों के पास लिपटी पंखुड़ी और आँखों से बहता गंगा जमुना….
आत्मा तक कांप गई उसकी और अनामिका आज अपनी पंखुड़ी की कर्जदार हो गई।
स्वलिखित
मौलिक रचना
अर्चना नयन
#”हां रानी बिटिया, चल अब तेरी