ससुराल वाले बडी बहू को इंसान क्यूं नहीं समझते – विमला गुगलानी :  Moral Stories in Hindi

छोटा हो या बड़ा सम्मान और प्यार कमाना पड़ता है

       नंदनी बहू, थाली तैयार रखना, नंदू प्लीज मेरी मैंचिग में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, नंदी बेटा, चार दिन की दवाईयां एक और अलग से रख लो, कहीं मौके पर मैनें दवाई न खाई और मुझे कुछ हो गया तो रंग में भंग ही न पड़ जाए। 

         ओफ्फ हो, नंदनी न हुई जादू की छड़ी हो गई, जिसे जब चाहो घुमा दो। मायके में तीन भाई बहनों में सबसे छोटी नंदू ससुराल में चार भाई बहनों में सबसे बड़ी बहू बन कर बड़ी खुश थी। सबसे बड़े उसके पति शान्तनु, फिर नीना ,सारांश और सुदेश थे। उसे मायके में अक्सर लगता कि सब उस पर रौब झाड़ रहे है, मनोज और कपिल दोनों भाई उससे बड़े थे, प्यार तो बहुत करते थे लेकिन जमाने को देखते हुए उस पर पूरी नजर भी रखते।

      उसे बिल्कुल भी प्रमिशन नहीं थी उंटपटाग कपड़े पहनने की , रात को अकेले बाहर जाने की , यहां तक कि कई बार तो वो उसके ढ़ग से  बाल न बनाने पर भी मनोज एतराज कर देता । उसे कई बार बड़ा गुस्सा आता, काश कि वो सबसे बड़ी होती। लेकिन ये उसका वहम था, वो तो सबकी लाडली बेटी और बहन थी,तभी तो इतना लिख पढ़ पाई और इतने अच्छे घर में उसकी शादी हुई। रोक टोक तो उसकी भलाई के लिए थी और  बात सिर्फ संस्कारों और जमाने की हवा की थी। बचपन बीता , जवानी आई तो शादी की बात चली, अब किस्मत देखिए, एक घर की सबसे छोटी लड़की दूसरे घर की सबसे बड़ी बहू बन गई। 

       मन ही मन नंदनी बहुत खुश थी कि अब बड़ी बहू बनी है तो सब पर खूब रौब झाड़ेगी। जैसा कि अक्सर होता है, घर की पहली बहू को खूब लाड प्यार भी मिलता है और उससे उम्मीदें भी बहुत होती है। सास को लगता है कि चलो कोई तो आया उसका हाथ बंटाने के लिए। बेटियों को तो दूसरे घर जाना ही होता है। 

     नंदनी को खूब लाड प्यार, कपड़े गहने तो मिले लेकिन जिम्मेवारियां भी मिली। उसकी शादी के एक साल बाद ही उसकी ननद नीना की शादी हो गई। जाहिर है कि घर बाहर का काम उसी के हिस्से आया। यहां वहां इतनी भागदौड़ रही कि कई बार तो वो ढ़ग से तैयार भी न हो पाई। अगले साल उसके बेटा हुआ, तो उसी साल नीना के बेटी हुई और नीना का प्रसव मायके में हुआ। भले ही घर में हैल्पर थे लेकिन काम था कि दिन बदिन बढ़ता ही जा रहा था। नंदनी की नौकरी करने की इच्छा शुरू से मन में ही रह गई।

    शादी से पहले कुछ समय काम किया था, असल में वो आर्किटेक्ट थी, चाहती थी अपनी पहचान बनाना लोकिन ऐसा नहीं हुआ और घर की अच्छी आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसने ज्यादा कोशिश भी नहीं की और हालात भी नहीं बने। घर से ही काम करने की कोशिश की लेकिन समय ही नहीं मिल पाया। दो तीन साल बाद देवर सारांश की शादी हुई , फिर वही भागदौड़, रिशतेदारों की आवभगत, हजारों काम, ननद नीना भी समय पर आई, वो नौकरी करती थी, उसने हाथ तो क्या बंटाना उल्टा उसके ससुराल वालों की हर समय सेवा करनी पड़ी।

      शादी के बाद सारांश हनीमून से आते ही पत्नी सहित मुंबई चला गया क्यूंकि उसकी नौकरी वहीं थी।इसी बीच उसके बेटी हुई , तो सास ने खूब सेवा की, उसे कोई परेशानी नहीं हुई, उसकी मां मायके ले जाना चाहती थी लेकिन उसे किसी ने जाने नहीं दिया। शांतनु की अपनी कंपनी उसी शहर में थी तो कहीं जाने का सवाल ही नहीं था। नंदनी को लगता कि बड़ी बहू बनना तो सजा हो गई। सास ससुर थे तो रिशतेदारों का भी आना जाना रहता। 

    उसने कई बार शांतनु से कहना चाहा कि वो अलग हो जाए लेकिन उसका कहना था कि उसे क्या तकलीफ है, प्यार सम्मान सब कुछ तो है। बच्चे भी आराम से दादा दादी के पास खुश रहते है, लेकिन नंदनी को कई बार घुटन महसूस होती। सुदेश की भी शादी हो गई, उसका ज्यादा काम टूरिंग का था तो उसकी पत्नी शालू सबके साथ ही रही। लेकिन उसका स्वभाव कुछ अलग ही था। 

   वो मिक्स नहीं होती थी। उसने स्कूल में नौकरी ज्वाईन कर ली और ज्यादातर ऊपर  अपने कमरे में ही रहती। नीना की ननद की शादी पर जब सबको जाना था तभी उसे सब काम कह रहे थे। ये भी रख लो, वो भी ले लो।

       नीना के ससुराल वालों ने सबका दिल से स्वागत सतकार  किया, लेकिन नंदनी जितना सम्मान बाकी दोनों बहूओं को नहीं मिल रहा था।ये  नहीं कि उनमें कोई बुराई थी, दरअसल मुंबई वाली को वो बहुत मिले नहीं थे और दूसरी किसी से मिक्स नहीं होती थी, नंदनी को सब जानते थे।   हर जगह उसी को ही बुलाया जाता।

      सब वापिस आ गए। अब बच्चे भी बड़े हो गए थे और मां बाप वृद्ध। शांतनु ने नंदनी से पूछा कि क्या वो अलग रहना चाहता है तो वो बात करेगा घर वालों से। लेकिन नंदनी ने साफ मना कर दिया। उसने कहा कि ये उसका वहम था कि घर वाले बड़ी बहू को इंसान नहीं समझते। 

     वैसे तो छोटा बड़ा होना अपने हाथ में नहीं लेकिन शख्सियत और कामों से सब मिलता है, आदर, प्यार, इज्जत उसी को मिलेगी जो उसे कमाएगा, छोटा हो या बड़ा कोई अंतर नहीं।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

  वाक्य- ससुराल वाले बडी बहू को इंसान क्यूं नहीं समझते

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