वह काली रात इतनी सघन थी कि लगता था कोई विशालकाय काली रूई के गठ्ठर ने आकाश को और धरती को, दोनों को दबोच रखा हो। चाँद-तारे तो बहुत पीछे छूट चुके थे। सिर्फ एक टिमटिमाता स्ट्रीटलाइट था, जो अपनी मृत्यु के अंतिम क्षण गिन रहा था।
इसी अँधेरे के बीच, एक पुरानी, जर्जर कोठी का सिल्हूट और भी भयावना दिख रहा था। उसका नाम था ‘शांतिनिकेतन’, पर उसमें शांति नाम की कोई चीज़ बची नहीं थी, सिर्फ एक गहरी, निर्वाक् सन्नाटे की गूँज थी।
राज ने अपनी बाइक रोकी और हेलमेट उतारा। उसके दोस्त विजय ने, जो पीछे बैठा था, एक लंबी साँस ली।
“सच में अंदर जाना है?” विजय की आवाज़ काँप रही थी, “यहाँ तो भूत-प्रेत वगैरह का डर है ना? कहते हैं साल भर पहले एक बूढ़ा माली…”
“अरे छोड़ो ये सब!” राज ने उसकी बात काटी, हालाँकि उसका अपना दिल भी धड़क रहा था, “हमें तो बस उस पागल प्रोफेसर की डायरी चाहिए, जो उसने अपने शोध के बारे में लिखी थी। वो यहीं कहीं छूट गई थी। मिल गई, तो सेमेस्टर की परियोजना पूरी हो जाएगी। डर किस बात का!”
“पर यह काली रात…” विजय ने कहा।
“यह काली रात हमारे हक में है,” राज बोला, “कोई देखेगा नहीं। चलो।”
दरवाज़ा चरचराता हुआ खुला। अंदर का अँधेरा और भी गहरा, और ठंडा था। हवा में धूल और सड़न की गंध थी।
तभी, एक तेज़ आवाज़ आई—किट-किट-किट!
दोनों का खून सूख गया। पलटकर देखा तो एक विशालकाय चूहा अन्धकार में छिपता नज़र आया।
“हाए! मेरे पैर के ऊपर से निकल गया!” विजय चीखा।
“शांत!” राज ने उसे डपटा, “चूहे से डरते हो? तुम्हारी हिम्मत देखो! वो तुमसे ज़्यादा डरकर भागा होगा।”
“पर उसकी आँखें… लाल थीं!”
“तुम्हारी आँखों का भ्रम है,” राज ने टॉर्च जलाई, “डर के मारे तुम्हें सब कुछ लाल दिख रहा है।”
टॉर्च की रोशनी में वे आगे बढ़े। कमरों में टूटे-फूटे सामान, उलटे हुए कुर्सी-मेज़ पड़े थे। हर आवाज़ पर विजय चौंक जाता।
“सुनो!” विजय ने अचानक रुककर कहा, “कोई… कोई सिसकी की आवाज़ आ रही है!”
राज ने कान लगाया। वाकई, दूर से हल्की-सी सिसकी की आवाज़ आ रही थी।
“चलो, देखते हैं,” राज ने कहा।
आवाज़ उन्हें एक बंद कमरे के दरवाज़े तक ले गई। दरवाज़ा अंदर से बंद था। सिसकी वहीं से आ रही थी।
राज ने हिम्मत करके दरवाज़ा खटखटाया। आवाज़ रुक गई।
“कोई है?” राज ने पूछा।कोई जवाब नहीं।
विजय बोला, “चलो भाई, यहाँ से चलते हैं। ये सब…”
इतने में दरवाज़ा धीरे से खुल गया। अंदर एक बूढ़ी औरत खड़ी थी, उसके हाथ में एक मोमबत्ती जल रही थी। उसका चेहरा झुर्रियों से भरा था, पर आँखें अजीब तरह से चमकदार थीं।
“कौन हो तुम?” बूढ़ी औरत की आवाज़ दरारों वाली दीवार जैसी लगी।”हम… हम… एक डायरी ढूँढ रहे हैं,” राज ने हकलाते हुए कहा, “प्रोफेसर वर्मा की।”
बूढ़ी औरत कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “आ जाओ अंदर।”कमरे में एक पुराना चारपाई और एक मेज़ थी। औरत ने मोमबत्ती मेज़ पर रख दी।
“तुम्हें वो पागल प्रोफेसर की डायरी चाहिए?” औरत ने पूछा, “क्यों? उसके पागलपन को कोई और भी बाँटना चाहता है?””नहीं दादी,” विजय बोला, “उसका शोध हमारे काम आ सकता है।”
“शोध?” बूढ़ी औरत का स्वर तीखा हो गया, “उसका शोध था ही क्या? जीवन के उद्देश्य को समझने की कोशिश? हँसती आती है मुझे ये बात!”
“क्यों?” राज ने पूछा।
“क्योंकि वो खुद अपनी ज़िंदगी का उद्देश्य भूल गया था!” औरत ने कहा, “उसने कागजों पर हज़ारों सिद्धांत लिख डाले, पर भूल गया कि उसकी बेटी, जिसे उसने इसी कोठी में अकेला छोड़ दिया था, बीमार पड़ी है। वो ऐसी ही काली रात में अकेली दम तोड़ गई। जब तक वो लौटता, सब कुछ खत्म हो चुका था।”
दोनों दोस्त स्तब्ध रह गए। सिसकी की आवाज़ फिर से आई। अब वे समझ गए, वह आवाज़ इसी बूढ़ी औरत की थी।”तुम… तुम कौन हो?” विजय ने डरते हुए पूछा।
“मैं?” औरत ने एक करारी हँसी हँसी, “मैं वो बेटी नहीं हूँ, अगर तुम यही सोच रहे हो। मैं तो वो हूँ जिसे उसने पाला था,। वो बेटी… वो तो चली गई, पर उसकी याद में रोने वाला कोई नहीं था, सिवाय मेरे। उसकी डायरी? वो तो मैंने जला दी। उसके सारे सिद्धांतों को। क्योंकि जीवन का सच कागजों में नहीं, यहाँ…” उसने अपना दिल थपथपाया, “…यहाँ छुपा होता है। और कभी-कभी, इस काली रात में भी।”
राज और विजय को एहसास हुआ, डायरी नहीं मिलेगी। पर उन्हें जो मिला, वो शायद एक डायरी से कहीं ज़्यादा कीमती था—जीवन का एक कड़वा सच।
बूढ़ी मालिन ने मोमबत्ती उन्हें थमा दी, “ले जाओ इसे। इस काली रात में रास्ता दिखाएगी। और याद रखना, किताबी कीड़े बनने से पहले, इंसान बनो। अपनों का ख्याल रखो, नहीं तो यही काली रात तुम्हारी आत्मा में घर कर लेगी।”
दोनों चुपचाप बाहर निकले। काली रात अब भी वैसी ही थी, पर उनके अंदर का डर कम हो गया था, एक नई समझ ने जगह ले ली थी। सच्चाई यह थी कि जीवन का उद्देश्य महान थ्योरियाँ गढ़ना नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पलों में छुपे प्रेम को पहचानना है। और कभी-कभी, एक काली रात और एक टूटे दिल वाली बूढ़ी औरत, हज़ारों किताबों से ज़्यादा गहरी सीख दे जाती है।
डॉ० मनीषा भारद्वाज
ब्याड़ा (पंचरुखी) पालमपुर
हिमाचल प्रदेश
# काली रात (साप्ताहिक विषय )