मैके में छोटी बेटी होने के कारण संगीता कुछ अधिक हीं नकचढ़ी थी।
और हो भी क्यों नहीं,घर के सारे बड़े उसे इतना चाहते जो थे….
पिता को तो सदैव बस यहीं चिंता सताती रहती कि बिटिया ससुराल में कैसे सबसे घुल-मिल पाएंगी क्यों कि,इसे तो हर चीज में नखरे दिखाने की आदत है….
संयोगवश संगीता ससुराल में बड़ी बहू बन आ गई…
पल भर में हीं जैसे उसकी पूरी दुनिया हीं बदल गई…
पंकज को बिना देखे सुने उसने शादी कर लिया था…
मन में तो बड़ी घबराहट थी कि जाने सब कैसे होंगे वहां…
परंतु सास के आंखों का आपरेशन होना था इसलिए आनन-फानन में बड़े बेटे पंकज की शादी करवाई गई थी..
संगीता के ससुराल आते हीं सास ने अपनी सारी जिम्मेदारियां उसे दे डाली….
सास-ससुर ननद देवर पति सबके नाश्ते से लेकर खाने-पीने तक का सारा कार्यभार संगीता पर हीं आ गया….
सास का आपरेशन हुआ तो संगीता ने एक बहू नहीं बल्कि एक बेटी की तरह उनकी देखभाल किया…
घर में सबकुछ अच्छा चल रहा था सिर्फ इसलिए कि संगीता बीमार होने पर भी कभी रसोई या किसी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ती थी…
सास ने असली रंग तो तब दिखाना शुरू किया जब दो और बहूएं आ गई…
अब तो उन्हें संगीता का रहना खाना पहनना भी बोझ लगने लगा…
शरीर से थोड़ी गोल-मटोल होने के कारण सास अक्सर कहा करती कि तुम्हें क्या तुम तो इतनी मजबूत हो….
इस पर दोनों देवरानियां हंस पड़ती…
संगीता कहती – मां जी क्या मोटे लोगों को बिमारी नहीं होती…
उन्हें दर्द और तकलीफ नहीं होती…
अब तो आपका काम निकल गया अब कैसी बड़ी बहू और कैसा उसका दर्द????
संगीता दूसरी बार मां बनने वाली थी और संयोगवश देवरानी भी मां बनने वाली थी….
संगीता की आदत थी कि हल्की-फुल्की बीमारी को अक्सर वो नजर अंदाज कर दिया करती थी…
मगर देवरानी….
वो भला क्यों गर्भावस्था में काम करने लगी भला….
वो तो सासूमां के सबसे चहेते और लाडले बेटे की पत्नी थी उसे तो सासूमां स्वयं बिस्तर पर पानी दिया करती…
कभी-कभी संगीता को ये बातें बड़ी बुरी लगती परंतु कर भी क्या सकती थी…
पंकज ने तो पहले हीं बोल रखा था कि जितना बन पड़े करो आगे कुछ भी ऊंच-नीच हुआ तो उसकी जिम्मेदार तुम स्वयं होगी…
वो भी क्या करती….
गर्भावस्था में डाक्टर ने हरी सब्जियां ताजा खाना खाने को बोल रखा था…
बनाती नहीं तो खाती कैसे??
और वो कौन सी किसी की चहेती बहू थी जो उसे कोई बना कर खिलाता और एक छोटी बच्ची भी तो थी उसकी उसके लिए तो बनाना हीं था….
देवरानी से कभी कोई मदद करने को कहती तो सास बीच में बोल पड़ती – अरे!! तुम्हें पता नहीं क्या कि,इसकी पहली डिलिवरी है…
तुम तो एक बच्चा कर चुकी हो तुम्हें तो ये झेलने की आदत पड़ चुकी है…
सास की बातें सुनकर ना चाहते हुए भी संगीता को बोलना हीं पड़ता – मां जी एक समय मैं भी तो पहली बार मां बनने वाली थी तब तो आप कहा करती थी कि कौन सा बड़ा काम कर रही हो बच्चा पैदा कर के…
अरे हमने तो चार-चार बच्चे किए हैं….
मेरे समय पर तो आपने कभी भी मेरे नखरे नहीं उठाए हैं…
आज ये सब बातें आपको समझ आने लगी…
अब रहने भी दीजिए दीदी आप अपने आप से मेरी तुलना मत किया किजिए अब हर कोई आप जैसा बुलंद थोड़ी है…
देवरानी उसके शरीर पर कटाक्ष करते हुए बोली।
ये तुम्हारी गलतफहमी है मीनू कि मैं बुलंद हूं तो मुझे तकलीफ नहीं होती…
गर्भावस्था में सबको तकलीफ होती है परंतु मन को कड़ा कर के
काम करने हीं पड़ते हैं…
वैसे मुझे इस बहस में पड़ना भी नहीं है….
जब सासू मां हीं मुझे नहीं समझती तो तुम क्या समझोगी….
जाने क्यों ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते…..
दर्द तकलीफ उसे भी होती है…
आराम और प्यार उसे भी चाहिए होता है…
वैसे भी घर की छोटी बेटी हो कर जितना प्यार पाना था पा लिया अब तो समय से पहले बड़ी बन कर दूसरों को बस प्यार और स्नेह देना हीं है
डोली पाठक