ससुराल वाले बड़ी बहु को इंसान क्यों नही समझते – लक्ष्मी त्यागी :  Moral Stories in Hindi

क्या बताऊँ दीदी !भारती जब से ससुराल गयी है ,तब से ही परेशान है। 

क्यों क्या हुआ ?

होना क्या है ?घर की बड़ी बहु जो ठहरी, घर की सम्पूर्ण जिम्मेदारी उसी पर आन पड़ी है ,अबकि बार जब ‘तीज’ पर आई थी बहुत रो रही थी ,कह रही थी -बहु ,बनकर क्या गयी हूँ ? नौकरानी बन गयी हूँ। 

क्यों ?उसके घर में कितने लोग हैं ?

उसके सास -ससुर और उसका देवर और दोनों पति -पत्नी ,कुल मिलकर पांच लोग हैं। वैसे तो घर की साफ – सफाई के लिए ,बर्तनों के लिए कामवाली आती है फिर भी कह रही थी -घर में इतना काम हो जाता है ,उसे एक पल के लिए भी चैन नहीं।

 क्या उसकी सास उसकी सहायता नहीं करती है ?

सास की तो पूछो, मत !जब से वो गयी है ,वो बता रही थी ,उसकी सास सारा दिन चौधराइन की तरह बैठी रहती है ,सारा दिन भारती चाय बना ला !अब गर्म पानी ले आ ! पैरों की सिकाई करनी है। कभी कमर में दर्द !कभी टांगों में दर्द !सारा दिन ऐसे ही बैठी रहती है और जब बाहर घूमने जाना हो ,तो सबसे पहले तैयार होकर खड़ी हो जाती है। उसके फैशन और शौक खत्म नहीं हुए किन्तु घर में बहु आते ही पचास बीमारियां लग गयीं। 

तू तो ये सब ऐसे बता रही है ,जैसे उसने यहां तो कोई काम किया ही न हो !उसके परिवार में भी आठ लोग हैं ,मैंने उसे यहाँ भी काम करते देखा है ,उसके यहाँ तो कोई कामवाली भी नहीं लगी थी। ससुराल का मतलब पति के साथ घूमना -फिरना ही नहीं ,ज़िम्मेदारियाँ बढ़ना है ,अब वो तुम्हारे ऊपर है , उन परेशानियों को तुम, समझदारी से कैसे सुलझाते हो ? ये मैं मान सकती हूँ ,घर की बड़ी बहु होने के नाते, उससे कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं रखी जाती हैं। वैसे ये सब किस्मत- किस्मत की बात है ,मैं तो घर में सबसे छोटी थी,मेरी तो सास ही नहीं ,जेठानी भी हुक़्म चलाने लगी थी क्योकि उसका रिश्ता भी मुझसे बड़ा था। इस तरह तो मुझे भी अपने घर रोते  हुए आना चाहिए था किन्तु मैंने अपनी जेठानियों का कहा माना और बड़े प्यार से उनसे कहा -दीदी !मैं भी आपकी तरह ही इंसान हूँ ,आपकी छोटी बहन जैसी हूँ ,मैं अकेली इतना सब नहीं सम्भाल  पाऊँगी क्यों न मिलजुलकर इस काम की मुसीबत से निपटा जाये। एक तो मेरी बात मान गयी थी किन्तु दूसरी का मुँह बन गया था। 

दीदी !आपके पास विकल्प था किन्तु बड़ी बहु के पास कोई विकल्प नहीं होता ,उससे कुछ ज़्यादा  ही अपेक्षाएं रखी जाती हैं। 

हाँ ,ये कह सकते हैं क्योंकि तब तक उन लोगों को भी तो घर में आई नई बहु से कैसा व्यवहार करें ?उसका अनुभव नहीं होता। वे सोचते हैं -‘इस घर में जो नई प्राणी आई है ,वो इंसान नहीं, कोई रोबोट है ,जिससे जैसा कहेंगे वो वैसा ही करेगी ,वे ये भूल जाते हैं ,कि ये हम जैसी ही इंसान है ,जिसे प्यार और अपनेपन की आवश्यकता है। 

सही कह रही हो , इतना तो समझ ही सकते हैं ,जैसी हमारी बेटी ,वैसे ही ये भी किसी की बेटी है। कई बार तो सास कठोर हो तो ससुर और देवर अच्छे मिल जाते हैं किन्तु इसके यहां तो सभी एक जैसे हैं। 

ख़ैर अब ये बात छोड़ो ! शीघ्र ही समझदारी से काम लें  तो अच्छा ही होगा वरना भारती भी कम नहीं है ,जब तक झेल रही है ठीक, वरना उसे ही समझाना होगा ,मैं भी इंसान हूँ।  

             ✍🏻 लक्ष्मी त्यागी

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