ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते – सीमा सिंघी :  Moral Stories in Hindi

यह क्या मानवी, बच्चों की तरह नाचने लगी हो। तुम्हें शोभा नहीं देता है। तुम तो घर की बड़ी बहू हो। जरा ध्यान रखा करो। तुम कभी चित्रकारी लेकर बैठ जाती हो,कभी कोई गेम खेलना शुरू कर देती हो। तुम यह क्यों भूल जाती हो। तुम इस घर की बड़ी बहू हो। तुम्हारे ऊपर बहुत सारी जिम्मेदारियां है। अगर तुम इन सब में लगी रही, बचपना नहीं छोड़ा तो तुम्हारी ननद रिया तुमसे क्या सीखेगी??

अपनी सास ललिता जी की इस तरह की कड़क बातें सुनकर मानवी का मन उदास हो गया। वह फिर रसोई में जाकर पराठे सेकने लगी। पराठे सेकते सेकते ही वह मन ही मन सोचने लगी। माना कि मैं इस घर की बड़ी बहू हूं तो क्या, अब मैं अपने मन का कुछ भी नही कर सकती।

 कल तक मायके में गेम खेलना, नित्य करना, चित्रकारी करना ये सब करने की मुझे पूरी आजादी थी, तो फिर सात फेरे लेकर ससुराल आते ही, मायके की दहलीज पार करते ही, क्यों मुझे बेड़ियों में बांधा जा रहा है ??

 क्यों मुझे रोका जा रहा है?? माना मैं इस घर की बड़ी बहू हूं, तो इसमें मेरा क्या दोष ? अपनी सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी तो मैं अपने शौक जारी रख सकती हूं । यह जरूरी तो नहीं, मैं अपने सारे शौक को मार कर ही अपनी जिम्मेदारी निभाउं ।

अचानक रिया मानवी के करीब आकर कहने लगी । 

भाभी न जाने मां को तो क्या हो जाता है, वह ऐसा क्यों कहती है। यकीन मानिए, ये बातें मैं भी नहीं समझ पाती हूं। बस इतना जानती हूं । हम दोनों के बहुत सारे रिश्ते हैं, जैसे दो बहनों का,दो सहेलियों का और ननद भाभी का तो है ही कह कर वह मेरे गले में झूल गई । मैं भी उसका यह लाड़ प्यार देखकर सब कुछ भूल गई ।

 जब से मानवी इस घर की बहू बनकर आई थी। उसके हर रिश्ते पर भारी पड़ता था पति और ननद रिया का प्यार, जिसे वो किसी भी हालत में खोना नहीं चाहती थी। बस इसीलिए सब कुछ समझते हुए भी वो अनदेखा कर भूल जाती थी।

कुछ दिन बाद रिया के लिए एक रिश्ता आया। जिसमें रिया को उस घर की बड़ी बहू बनना था । रिया ने तुरंत इनकार करते हुए ललिता जी से कहा। मां मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है, क्योंकि बाकी सब तो ठीक है, मगर मैं उस घर की बड़ी बहू नहीं बनना चाहती ।

 बेटी रिया की बात सुनते ही ललिता जी तुरंत बोल उठी । अरे रिया इसमें परेशानी वाली क्या बात है ? तुम्हारी भाभी भी तो इस घर की बड़ी बहू है । 

ललिता जी की बात सुनकर रिया तुरंत बोल उठी। मां एक परेशानी हो, तो बताऊं। यहां तो परेशानियों का अंबार है,क्योंकि फिर मुझे वहां चित्रकारी करने नहीं दिया जाएगा, कुछ गाना चाहूंगी तो गाने नहीं दिया जाएगा,नित्य करना चाहूंगी, तो वह भी नहीं दिया जाएगा और हर वक्त एक सलीके से रोबोट की तरह रहना होगा । न जाने ये ससुराल वाले अपनी बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते।

 मैं तो भाभी की तरह कतई नहीं बन सकती। मां मैं तो इंसान हूं।  मुझे इंसान ही रहने दीजिए कहते हुए रिया अपनी सहेली के घर के लिए निकल पड़ी। रिया के जाने के बाद ललिता जी भी अपने कमरे में आकर लेट गई और शांत मन से सोचने लगी। 

ठीक ही तो कह रही है रिया। जब से मानवी इस घर की बड़ी बहू बनकर आई है।तब से ही उनका हर वक्त मानवी को टोकते रहना, बार बार यह जताते रहना कि वह इस घर की बड़ी बहू है । न जाने ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते। यह बात शायद आज भी ललिता जी को समझ नहीं आती। आज उनकी खुद की बेटी रिया ने उन्हें ये आईना अगर नहीं दिखाया होता।

उन्हें अपनी बहू के साथ किए गए व्यवहार पर ग्लानि होने लगी। वह तुरंत उठ खड़ी हुई और बाहर आकर देखा । मानवी गुमसुम सी बैठी हुई है। मानवी को ऐसे गुमसुम देखकर तुरंत ललिता जी बोल उठी। 

अरे मानवी तुम अपना वह नित्य अपनी मम्मीजी को नहीं दिखाओगी। जो कल तुम कमरे में कर रही थी। क्या थे उसके बोल,अरे हां याद आया,बड़ा नटखट है कृष्ण कन्हैया कहते हुए अपने फोन से वह गाना निकालने लगी।

 अरे वाह मम्मी क्या बात है। आज आप खुद भाभी से कह रही हैं नृत्य करने को अचानक रिया ने घर में अंदर आते हुए कहा।

 हां बिटिया क्योंकि मैं समझ गई हूं, बड़ी बहू भी इंसान ही होती है। उसके भी अपने सपने होते हैं।

 मुझे क्षमा कर दे मेरी बिटिया कहते हुए मानवी को गले लगाया और झटपट गाना लगा दिया अचानक मानवी यह सब देखकर हैरान मगर बहुत खुश होते हुए रिया के साथ नृत्य करने लगी। आज पहली बार मानवी के चेहरे में ललिता जी को माता यशोदा के भक्ति वाले भाव नजर आए। ये देख उनकी आंखें भर आई। सच कहूं, तो आज ललिता जी बहुत खुश थी, क्यों कि उन्हें समझ आ गया था, कि घर की बड़ी बहू भी इंसान ही होती है।

स्वरचित 

सीमा सिंघी 

 गोलाघाट असम

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