आज रजनी उदास थी कारण बस एक रात ने उसका सबकुछ छीन लिया।पापाजी तो पागल ही हो गये।
रजनी यानि तीस वर्षीया एक महिला जिसने पांच साल पहले राकेश से विवाह किया था।
पापाजी रोने से सब ठीक होगा -वह चाय देते बोली।
ना बहू-मरने बाले कभी लौटते हैं क्या?-वे आंसू पोंछते हुए बोले।
फिर हम दोनों को ही सब ठीक करना होगा।हमसे ही परिवार चलता है। आप हिम्मत करें -कहती उन्हें खुद से साट सिर पर हाथ फेरने लगी।
वे भी छोटे बच्चे सा फफक कर रोने लगे मानो दरिया फूटकर बह निकला हो। बड़ी मुश्किल से चुप हुए और चाय पी सके।वह भी चाय पी रही थी।
आज श्वसुर यानि रमणजी एक विद्वान हैं और एकाउंट की दुनिया में जाना नाम है।
आज वे अपनी बहू ,बेटे और पोतियों से बहुत प्यार करते हैं।
आज लगभग साठ साल की आयु में भी लगातार काम करते हैं।
दूसरी ओर बेटा एक इंजीनियर था और एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता है।उसी कंपनी में रमेश जी भी थे जिनकी बेटी रजनी भा गई।फिर तो दोनो प्यार करने लगे और भागकर शादी भी कर ली।
इसका मलाल हमेशा रमणजी और उनकी पत्नी को रहा।मगर पोतियों के जन्म और स्नेह ने उन्हें सहज बना दिया था।
मगर अभी दस दिन पूर्व की घटना ने हिलाकर रख दिया था।
इनके गांव में शादी थी जिसमें शामिल होने पूरा परिवार गया था।
पत्नी,बेटा और बहू के साथ बच्चे भी गये थे। संयोगवश बहू के मायके में मुंडन था सो वह दो बजे भाई के साथ चली गयी थी संग में छोटी पोती भी थी।
बस यहीं चुक हो गई और उसी रात आंधी पानी और फिर आकाशीय बिजली गिरी।वह #काली रात सर्वनाश की रात बनकर आयी। उसमें सारे लोगों के साथ इनका बेटा,पत्नी और बड़ी पोती भी जल मरे।अब तो सबकुछ छोड़कर वे निकले और वहां जाकर दाह संस्कार और सारा कुछ निपटाया।
आज दस दिन हो चुके हैं, मगर सारा कुछ काम बाकी है। श्राद्ध भी कराया ।बस पैसे दस लाख से ज्यादा लगे।इसका ग़म नहीं बस इस बात का ज्यादा दुख है कि पूरा परिवार खत्म हो गया।
यही वजह है कि आज वे टूट गये हैं।बहू के समझाने पर काम करते हैं ,खाना भी लेते हैं मगर रह रहकर फूट फूटकर रोने लगते हैं।
सो आज इसने संभाला था।क्या करें वह #काली रात ऐसी भयावह थी जो सब बहा ले गई।
#बेटियां वाक्य इन साप्ताहिक प्रतियोगिता
#दिनांक-19-8-2025
#देय विषय-काली रात
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।
कुल शब्द-कम से कम 700
#रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।