मैं कठपुतली नहीं हूँ – संगीता त्रिपाठी :  Moral Stories in Hindi

” प्रतियोगिता का परिणाम निकल आया, शुभम का क्या रिजल्ट आया “

      “अरे कब निकला भाभी “पड़ोसन की बात सुन शोभा बेटे के कमरे की तरफ गई,

  कमरा खाली था, बाथरूम में देखा वहाँ भी शुभम नहीं दिखा, अब तो शोभा का माथा ठनका, आज सुबह से ही शुभम अनमना था, शोभा ने ध्यान नहीं दिया, हाँ महेश जी बोल कर गये थे “ये लास्ट प्रतियोगिता है, इसमें भी तुम्हारा चयन नहीं हुआ तो देखना….”

       दुबारा शुभम के कमरे में गई, कमरे से कोई सामान इधर -उधर नहीं हुआ था, तभी उनकी निगाहे रीडिंग टेबल पर गई, एक पन्ना फड़फड़ा रहा था, दौड कर गई तो शुभम की लिखावट थी।

  “प्यारी माँ 

               माफ करना मैं आपके और पापा के सपने पूरे नहीं कर पा रहा हूँ, लाख कोशिश करता हूँ लेकिन मुझे मैथ समझ में नहीं आता, बारहवीं तो मैंने किसी तरह पास कर लिया लेकिन हर प्रतियोगिता में मैं नाकाम रहा,मुझे पता है मुझे किसी भी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन नहीं मिलेगा, मैं जाना भी नहीं चाहता हूँ, कितनी बाऱ मैंने आपसे भी कहा मुझे होटल मैंनेजमेंट में जाना है, जाने क्यों मुझे रसोई में आपके साथ काम करने में मजा आता है, ये देख पापा कितना मजाक उड़ाते थे,”अपनी मम्मी की तरह खाना पकाने में ही लगा रहेगा, बावर्ची कहीं का….”और एक हिकारत भरी नजर से देखते चले जाते थे,माँ मैं कठपुतली नहीं हूँ,मेरे भी शौक और सपने है,

कभी पापा के सपने पूरे करने का तो कभी आपके ख़्वाबों का रंग भरने के लिये जो दबाव रहता है, वो मैं ही जानता हूँ,. आपने और पापा ने कभी सोचा है मैं और तन्वी क्या चाहते है,हमें कठपुतली समझ हमारे डोर को इतना मत खींचे नह डोर टूट भी जाती है।

        पापा की हिकारत भरी नजर से बचने के लिये मैंने बहुत मेहनत की लेकिन अपने को एकाग्र नहीं कर पाता था, मैथ्स के फॉर्मूले मेरे सर के ऊपर से गुजर जाते है,

    एक बात बताओ माँ क्या सिर्फ इंजीनियर लोग ही बुद्धिमान होते है, और कोई क्षेत्र में सफल इंसान बुद्धिमान नहीं होता., माँ-बाप के अधूरे सपने पूरे करने की जिम्मेदारी बच्चों की ही क्यों होती है??

     आज सुबह रिजल्ट मैं देख चुका, पापा की आखिरी उम्मीद भी टूट गई, मैं सहन नहीं कर पा रहा हूँ, घर छोड़ कर जा रहा, दुबारा मिलूंगा या नहीं कह नहीं सकता, क्योंकि मुझे इतनी नाकामी ले कर जीना नहीं है…। मुझे भूल जाना, आप लोग समझ लेना आपका सिर्फ एक ही बच्चा तन्वी है,वो पापा का सपना जरूर पूरा करेंगी,.।

                                      तुम्हारा नालायक शुभम 

   पत्र पढ़ शोभा बेहोश हो गई, ऑंखें खुली तो महेश जी और तन्वी पास थे, “मेरा बच्चा कहाँ है “

    “परेशान मत हो पुलिस ढूढ़ रही,”महेश जी भीगी आँखों से बोले, कहाँ जानते थे, उनकी अभिलाषा उन्हें ये दिन दिखाएगी।

         “महेश जितनी गलती आपकी है मेरी उससे ज्यादा है, मैं भी उसे दूसरे बच्चों का उदहारण दे कर ताना देती थी, कभी कहती इंजीनियर बनों, कभी सिविल सर्विसेज की ओर तो कभी डॉ. बनने को कहती, मैं भूल गई थी हर बच्चा अलग होता है, दूसरे बच्चों को देख मुझे अपने बेटे में ढेरों कमियाँ दिखती थी,काश मेरा बेटा सुरक्षित घर लौट आये “शोभा रो पड़ी।

       “जरूर लौटेगा शोभा, अपनी गलती सुधारने का एक मौका ईश्वर जरूर देते है “

            रात गहरा रही थी शुभम का कुछ पता नहीं, रात बारह बजे घंटी की आवाज सुन महेश भाग कर दरवाजे पर गये सामने पुलिस के साथ शुभम खड़ा था, महेश जी को देख काँपने लगा,महेश जी आगे बढ़ कर बेटे को बांहों में भर लिये, पिता का सुरक्षित आश्वासन पा शुभम सिसक पड़ा, “पापा मैं आपका सपना पूरा नहीं कर पाया “

                 “माफ़् करना बेटे, मैं अपनी असफलता को तुम्हारी सफलता में देख रहा था, अरे हर बच्चे को अपने सपनों में रंग भरने का अधिकार है,मैं गलत था, मैं पढ़ा -लिखा होकर भी नासमझ हो गया था, मेरे पिता मुझे अपना पुश्तैनी बिजनेस देना चाहते थे पर मेरी रूचि उसमें नहीं थी, इंजीनियरिंग करने का बड़ा मन था लेकिन पिता से बगावत नहीं कर पाया .,आज मैं भी पुश्तैनी बिजनेस संभाल रहा हूँ…लेकिन हर पिता की तरह मैं भी तुम पर अपनी चाहत थोप रहा था.., भूल गया तुम्हारी अपनी भी कोई पसंद होगी “

          हर आँखों नम थी लेकिन शुभम की ऑंखें चमक रही थी, वो अब अपना सपना पूरा कर लेगा और एक दिन पिता का नाम रोशन करेगा.

             जिस दिन शुभम होटल मैनेजमेंट का कोर्स करने गया, तय किया माता -पिता के साथ रहते वो यहीं पर एक रेस्टोरेंट खोलेगा, एक छोटे रेस्टोरेंट की शुरआत पिता के नाम से शुरु किया, दिल से बनाये उसके व्यंजन की खुश्बू शहर से फ़ैल कर दूसरे शहर चली गई, और “महेशा”सबका मन मोहने लगी,

         आज पिता को फ़ख्र था बेटे पर, जिसने अपने सपनों को मंजिल देकर उनका नाम भी रोशन किया.

         . बच्चों पर अपना निर्णय न थोपे, जो आप नहीं कर पाये उसकी अपेक्षा बच्चों से क्यों…?, बच्चों को उनके सपने जीने दें हाँ मार्गदर्शक जरूर बने लेकिन उन्हें कठपुतली न बनाये।

   . —–संगीता त्रिपाठी 

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