ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान नहीं समझते क्या? सब सारी उम्मीदें मुझसे ही लगाएंगे। उनके आने पर अम्मा भी उन पर ऐसी बलिहारी जाएगी कि पूछो ही मत। हम तो हर समय साथ रहते हैं ,हमारी कोई कीमत ही नहीं है। अगर इतना ही प्यार जताना है तो क्यों नहीं उनके साथ ही चली जातींईईईई—–। अनायास ही बड़बड़ाती हुई उर्मिला सासू मां को सामने देखकर झेंप गई और बोलते बोलते रुक गई।
मालती जी के तीन बेटे थे । पवन, गगन और मनन। मालती जी के पति वर्मा जी की घर के पास ही एक स्वीट शॉप थी। दसवीं के बाद से ही पवन अपने पिता की स्वीट शॉप में बैठने लगा था। समय के साथ में स्वीट शॉप रेस्टोरेंट में परिवर्तित हो गई और गगन और मनन का ध्यान पढ़ाई में अधिक लगता था। गगन ने सी.ए. और मनन ने इंजीनियरिंग कर ली थी। कुछ समय बाद दोनों का विवाह भी हो गया
था और दोनों क्रमशः बैंगलोर और मुंबई चले गए थे। घर में सब कुछ अच्छा चल रहा था। पवन का रैस्टोरैंट अच्छा चल रहा था। कुछ समय पहले पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी , तब से पवन अत्यधिक व्यस्त हो गया था। सुबह से ही रेस्टोरेंट का काम शुरू होता था और आने में पवन को 11
बज ही जाते थे।अब घर में माताजी और अपने दोनों बच्चों टीना और पिंटू की जिम्मेवारी उर्मिला पर ही आ गई थी। दोनों बच्चे भी पांचवी और सातवीं कक्षा में थे, उनकी पढ़ाई और घर का काम करते हुए उर्मिला अब कई बार बहुत झल्ला जाती थी। दिनों दिन अम्मा की तबीयत भी अब खराब ही रहती थी शुगर ब्लड प्रेशर और गठिया के कारण कई बार वह तो बिस्तर से भी नहीं उठ पाती थी।
वर्मा जी ने घर में ही ऊपर दोनों बेटों के लिए दो-दो कमरों का सेट बनाया हुआ था। जो कि अक्सर बंद ही रहता था। चाबी नीचे ही रहती थी परंतु मालती जी से ऊपर चढ़ा नहीं जाता था तो वह पहले के जैसे शांताबाई से अच्छी तरह से साफ नहीं करवा पाती थी।
छुट्टियों में या कभी भी जब गगन और मनन अकेले या अपने परिवार के साथ आते थे
तो उपहार तक तो सही था उसके बाद उर्मिला को हमेशा यही लगता था कि सारा घर और बाहर तो मुझे ही संभालना पड़ता है यह लोग मजे करते हैं सोशल साइट पर उनके परिवार की फोटो देखते हुए उसका गुस्सा दोगुना हो जाता था। हालांकि पवन खाने-पीने का सामान अपने रेस्टोरेंट से भिजवाता रहता था परंतु फिर भी उर्मिला को कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। जब से माताजी की बीमारी बढ़ गई तब से तो उसको गुस्सा भी अधिक आने लगा था। उसे यही लगता था कि उसके सिवा सब भाई मजे में है।
मनन अभी अपने परिवार के साथ सप्ताह रहने को आया था। वह सातों दिन अम्मा के साथ ही सोया और माधवी अपने बच्चों के साथ ऊपर ही सोया करती थी।
पवन रेस्टोरेंट से ही उनके लिए सुबह नाश्ता इत्यादि भिजवा देता था। माधवी अगर रसोई में आए भी तो उर्मिला उसे पहले तो काम करने ही नहीं देती थी और फिर बेवजह सुनाती भी रहती थी इसलिए माधवी भी 3 दिन अपने चाची चाचा के घर इस शहर में मिलने और रहने के लिए चली गई थी।
जब घर आई तो उसकी तबीयत खराब थी और अम्मा अपनी तबीयत का भी भूल कर माधवी के लिए परेशान हो रही थी। यह सब उर्मिला को अच्छा नहीं लग रहा था।
माधवी के जाने के बाद उर्मिला जब ऊपर के कमरे साफ करवाते हुए बड़बड़ा रही थी कि ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान नहीं समझते क्या? तो आज अम्मा को भी गुस्सा आ गया था। उन्होंने कहा तुम्हें बोलने से पहले कुछ सोचना तो चाहिए। बड़ी बहू को कहां इंसान नहीं समझा पूरे घर की जिम्मेदारी ही नहीं घर से मिलने वाली सहूलियते भी तो तुम्हें ही मिली है। यह भरा पूरा घर जबकि तुम्हारे देवर छोटे ही थे और एक भाभी का सम्मान और प्यार जो तुमने पाया है वह क्या यह दोनों पा सकती हैं? तुमने ही इन दोनों की शादी की हर रस्म अच्छी है। तुम्हारे दोनों बच्चों को मैंने बड़ा कर
दिया तुम एकदम निश्चिंत घूमती थी। यह दोनों बहुएं दूर रहकर अपने घर का हर सामान लाती है और अपनी सारी जिम्मेदारी घर से दूर रहकर निभा रही है, कुछ दिन अपने घर में रहने का भी यह सुख नहीं पा सकती क्या? तुम बड़ी हो इसलिए तुम अधिकार से कुछ भी कह देती हो, क्या मुझे नहीं सुनता? बड़ी हो या छोटी, बहुएं घर की बहुएं ही होती है। जब तक मैं हूं तब तक ही यह यहां आ रही है, मुझे नहीं लगता तुम्हारे व्यवहार से यह बाद में आएंगी। बड़ी हो तो थोड़ा बड़ों की तरह सोचो तो
सही, क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। रहीम जी का यह दोहा नहीं सुना क्या? बड़ी बहू को अगर जिम्मेदारियां मिलती है तो बड़ी बहू को एक परिवार भी मिलता है अगर वह चाहे तो उस परिवार को अपना बना कर, सदा के लिए सम्माननीय हो सकती है। समय तो गुजरता ही जाता है जिम्मेदारियां सदा नहीं रहती। यह बेटे बहु मेरे से मिलने आ रहे हैं बाद में तुम्हारा व्यवहार होगा तो मिलने आएंगे
वरना नहीं। समय के साथ जरूरत अपनों की ही पड़ती है यूं भी अब रिश्ते बच ही कहां रहे हैं तुमको जो मिले हैं उन्हें संभाल लो। वह दोनों भाई भी तुम्हारे बच्चों के जैसे ही है, इनके पिताजी ने दुकान भी तो बड़े भाई को ही दिया है तो दुकान के साथ क्या उनकी जिम्मेदारियां तुम्हें नहीं मिलेंगी? जब मैं
सारा काम कर रही होती थी तब तक तुमको इतनी परेशानी नहीं होती थी अब जैसे तुमको मेरे से ही परेशानी हो रही है कुछ समय बाद तुम्हारे बच्चों को तुमसे परेशानी नहीं होगी क्या? कोई नहीं आएगा मिलने के लिए तब अकेली ही ऊपर नीचे सारे घर में घूमती रहना। प्रत्येक अधिकार कर्तव्य निभाने से ही मिलता है।
माताजी शायद सही कह रही थी उर्मिला को भी ख्याल आया कि उसने भी बड़ी बहू होने के नाते सबको कुछ भी कहने का अपना अधिकार ही समझ लिया है। उसने माता जी से क्षमा मांगी और पाठकगण वास्तव में ही उर्मिला का व्यवहार धीरे-धीरे बदल ही रहा था । जब नाम बड़ी बहू है तो दिल भी तो बड़ा रखना चाहिए पाठकगण आपका क्या ख्याल है कमेंट में बताइए?
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद हरियाणा