ट्रिन ट्रिन फोन की घंटी बजी प्रतीक ने आवाज दी प्रमिला देखो मेरा फोन बज रहा है। प्रमिला शायद घर पर नहीं थी वह दूध लेने के लिए गई हुई थी। जब प्रमिला का कोई जवाब नहीं आया और नानस्टाप घंटी बज रही थी तो खुद उसे उठाने गया नाम देखा प्रभात उसके छोटे भाई का फोन था जैसे ही हेलो कहा उसने चहकते हुए कहा गुडमार्निंग भाई कैसे हैं घर में सब ठीक हैं ना।
प्रतीक सब ठीक है बिना बात घुमाए बता तूने फोन किस काम से किया है क्योंकि उसके भाई बहन बिना किसी काम के फोन नहीं करते हैं। प्रमोद ने कहा अरे भाई ऐसा कुछ नहीं है असल में मेरी पत्नी श्यामा की नौकरी लग गई है दोनों बच्चों के साथ वह काम नहीं कर पा रही है अभी नया-नया है ना तो अगर आप भाभी को कुछ दिनों के लिए भेज सको तो………
प्रतीक ने कहा मैं उससे पूछ कर बताता हूँ। प्रमोद- आप शाम तक बता दें तो मैं ही उनका रिजर्वेशन करा देता हूँ।
प्रतीक जल्दी से फ्रेश होकर बाहर आता है तो प्रमिला दोनों के लिए चाय के कप लेकर आती है और खुद भी उसके साथ चाय पीने लगती है ऐसा मौका उन्हें बहुत कम मिलता था। दोनों बातें नहीं करते हैं सिर्फ चाय एक साथ पीते हैं जब वह कप लेकर उठी तो प्रतीक ने कहा प्रमिला तुम्हें प्रभात अपने घर पर कुछ दिन रहने के लिए बुला रहा है।
प्रमिला कुछ कहती उसके पहले सास संगीता कहती है पिछले महीने बडकी ने बुलाया वहाँ पंद्रह दिन रहकर आई थी अब प्रमोद बुला रहा है इन दोनों की देखादेखी छुटकी भी बुलाने लगेगी। मुझे एक बात समझ में नहीं आती है प्रतीक कि प्रमिला अपने मुँह से उफ तक नहीं करती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसे फुटबॉल के समान इधर-उधर भगाया जाए। तुम्हारी पत्नी है तुम ही कुछ बोलो। मैंने कुछ कहा तो सब मेरे ऊपर चढ़ जाएँगे ।
मैं देख रही हूँ जब से शादी करके इस घर में बड़ी बहू बनकर आई है सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ ही उठा रही है वह भी इंसान है तुम लोग यह क्यों नहीं समझते ?
प्रतीक क्या करूँ माँ अपने से छोटे भाई बहनों को मना नहीं करते बनता है। संगीता ने प्रमिला की तरफ मुड़कर कहा जब तक तुम अपना मुँह नहीं खोलोगी तब तक यह ऐसा ही चलेगा ।
प्रमिला ने कुछ नहीं कहा और अपनी अटैची में सामान रखने के लिए कमरे में चली गई । उसे वह दिन याद आया जब वह गाँव से ब्याह कर शहर में आई थी । संयुक्त परिवार था… बिन ब्याही दो ननद जो पढ़ रही थी, एक देवर जो एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था लेकिन वह अपने इस नौकरी से नाखुश था ।
ससुर रिटायर हो गए थे और सास हमेशा रसोई में काम करती रहती थी । पति एकदम चुपचाप सबकी फ़रमाइशों को पूरा करते रहते थे।
उनके घर के पास ही मंदिर भी है । उनके घर के सामने ही एक बहुत ही खूबसूरतसा बगीचा भी है वह खुश थी हम रोज मंदिर जा सकते हैं बगीचे में सैरसपाटा कर सकते हैं ।
वहाँ से आने के कुछ दिन बाद पता चला कि मंदिर की घंटियों की आवाज भी सुनाई नहीं देती है क्योंकि घर में सुबह घर में इतनी हलचल रहती है कि मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई नहीं देती है।
मंदिर जाना , बगीचे में घूमना तो क्या पति – पत्नी साथ में कभी बाहर मिलकर नहीं गए थे। उनका बेडरूम रसोई था सबके सोने के बाद वे दोनों रसोई में अपना बिस्तर डालकर सोते थे। वहां भी उसे सावधानी बरतनी पड़ती थी चूडियों का खनकना या पायल की रुनझुन की आवाज बाहर सुनाई ना दें। उसे कई बार लगता था कि प्रतीक के साथ सिनेमा देखने जाएँ , साथ मिलकर चाय पिए लेकिन सब सपना बनकर रह गया था हाँ इस बात की खुशी थी कि प्रतीक ऑफिस से कितना भी थका हुआ हो घर में आते ही प्रमिला को देखकर मुस्कुराता था। उससे ही वह खुश हो जाती थी।
कालांतर में दोनों ननदों की शादियाँ हो गई थी साथ ही देवर की भी हुई वे दोनों शादी होते हो बैंगलोर चले गए। अब उनके घर में सास – ससुर , उनके दो बेटे तथा खुद प्रतीक और प्रमिला ही रह गए थे। प्रमिला को इस बात की खुशी थी कि उसे अच्छा ससुराल और पति मिले थे बड़ी बहू बनकर इस घर में आई थी दूसरों की तो छोड़िए लेकिन सास ने उसे इंसान समझकर साथ देती रही उसके दोनों बेटे बहुत ही होशियार थे।
बडे बेटे सुहास ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की एमएस करने के लिए अमेरिका चला गया और दूसरा बेटा सुबोध की पढ़ाई अभी चल रही है।
प्रमिला देवर के घर पंद्रह दिन रहकर आई उसके वहाँ से आने के बाद हो संगीता की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद ससुर की देखभाल करनी थी इसलिए प्रमिला को सबने अपने घर बुलाना छोड़ दिया था पर वे खुद यहाँ आकर रहने लगे। प्रमिला के लिए काम ज्यादा हो जाता था पर उसे इस बात की खुशी थी कि उसे प्रतीक को छोड़कर जाना नहीं पड़ता था। सास की मृत्यु के कुछ ही दिनों में ससुर जी भी स्वर्ग सिधार गए।
अब सबने उसे काम के लिए बुलाना बंद कर दिया था। इतना बडा परिवार था अब इस घर में प्रतीक और प्रमिला ही बच गए थे उनका छोटा बेटा सुबोध भी अपनी पढ़ाई पूरी करके बाहर नौकरी करने के लिए चला गया। उन्होंने दोनों बेटों की शादियाँ भी कर दी और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर लिया।
सुहास और सुबोध दोनों ने माँ से कहा कि माँ आपने अब तक बहुत ही मुश्किलों का सामना किया है हमने बचपन से आपको इस घर के लिए खटते देखा है कभी – कभी हमारे मन में यह विचार आते थे कि ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते हैं काम के कारण आप दोनों को अपने लिए समय निकालने का समय ही नहीं मिल पाया है। हम चाहते हैं कि आप अपना समय अपने तरीके से बिताएँ और उसके बाद हम दोनों के पास रहने के लिए आ सकते हैं।
इस तरह से दोनों अपना समय व्यतीत कर रहे थे उनका साथ देने के लिए बच्चे आ गए सब हँसी खुशी अपना समय बिता रहे थे कि छोटा भाई और बहन भी आ गए। प्रतीक खुश हो गए कि बहुत दिनों बाद घर में रौनक हो गई है। एक दिन बातों _ बातों में भाई ने कहा भैया अब आपके बच्चे बड़े हो गए हैं शादियाँ हो गईं हैं मेरे ख्याल से आप लोगों को उनके पास जाकर रहना चाहिए और हम चाहते हैं कि इस घर को बेच कर सबको हिस्सा दे दीजिए। उसी समय सुबोध अंदर आता है वाह चाचा जी काम के वक्त आपने कभी नहीं कहा कि हम भी थोडी सी जिम्मेदारी ले लेते हैं जायदाद में हिस्सा माँगने लगे हो हम दोनों भाइयों ने निर्णय लिया है कि इस घर को हम भाई खरीद लेते हैं और आपका हिस्सा आपको दे देते हैं।
माता-पिता की तरफ मुड़कर देख कर कहते हैं आप यहीं इसी घर में रहकर अपने सपनों को पूरा कीजिए जब चाहिए तब आप हमारे पास आते रहिए।
इस तरह से बच्चों ने अपने माता – पिता को इंसाफ दिलाया।
क़े कामेश्वरी