एक मुँह दो बात – के कामेश्वरी : लघुकथा

रमा को देखने के लिए चाचा और भाई आए थे । उसकी सास शशि उनको देखते ही प्यार से बिठाया और अंदर की तरफ मुँह करके बोली रमा बेटा रसोई में जहाँ का काम वहीं छोड़कर आ जा तुम्हारे चाचा और भाई आए हैं ।

अब मैं आपको क्या बताऊँ बहुत ज़िद्दी है हम में से किसी को भी काम करने नहीं देती है पूरा काम अकेले ही करती है । मैं हमेशा कहती हूँ इस तरह से तू हमें आलसी बना देगी रमा परंतु सुनती ही नहीं है ।

दस मिनट हो गए थे और रमा का कहीं अतापता नहीं था सौरभ उठकर रसोई की तरफ जाने लगा था कि शशि झटसे उठकर खड़ी हो गई यह कहते हुए कि वह बुला लाएगी ।

वह अंदर से आकर बोली बस बेटे बैठो चाय बना रही है लेकर आ जाएगी । सौरभ ने कहा आँटी हमें जल्दी जाना था इसलिए नहीं तो हम कुछ देर और बैठ जाते । चाचा जी ने कहा हमारे यहाँ बचपन से रमा पढ़ाई में टॉपर रही हम सब बच्चों को उसका ही उदाहरण देते थे आज सौरभ को उससे अधिक अंक मिले हैं तो वह उसे बताने के लिए उत्सुक है।

सौरभ से रहा नहीं गया रसोई में रमा को ना पाकर आँगन की तरफ गया तो वहाँ बर्तन धोती हुई दिखी । उसी समय शशि सौरभ के पीछे से आकर कहती है रमा उठ बेटा कब से तुम्हें आवाज़ लगा रही हूँ तुम हो कि बरतन धोने बैठ गई सौरभ के जाते ही उसका हाथ मरोड़ते हुए लगता है तुम्हारे मायके वाले चाय पिए बिना नहीं जाएँगे रमा चाय लेकर आती है पर बैठक में कोई नहीं था

 सौरभ आँखों में आँसू भर पापा का हाथ पकड़कर ले गया दीदी इतनी जल्दी नहीं आने वाली है उसकी यह सास एक मुँह दो बात वाली औरत है ।

के कामेश्वरी

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