सेर पर सवा सेर – लतिका पल्लवी :  Moral Stories in Hindi

माँ आज रात के खाने में क्या बनाऊ? जो तुम्हारा मन करे वह बना लो बहू।इतनी छोटी बात के लिए मुझसे क्या पूछना है।ठीक है माँ तो आलू पराठा और प्याज़ का रायता बना ले रही हूँ। ठीक है माँ जी? जाती हूँ तैयारी करने, आलू कुकर में उबलने को रख देती हूँ। फिर चाय बनाती हूँ। चाय पीते पीते आलू उबल जाएगा तो कुचल कर चोखा बना लुंगी। फिर रायता बनाकर और आटा गुंथकर रख दूंगी।

रात में  खाने के वक़्त गरमा गर्म परांठे सेंक लुंगी। ठीक है माँ?अब जाकर पहले आलू चढ़ाती हूँ।रुको बहू। हाँ बोलिए। रात के वक़्त दही खाना सही नहीं रहता है। बेकार का तुम्हारे ससुर जी को सर्दी हो जाएगी। वैसे मिलन का भी तो तुरंत ही गला खराब हो जाता है और सर्दी लग जाती है। एकदम अपने पापा पर गया है। सासु माँ नें रात में रायता खाने के अवगुण बताये। बहू भारती नें पूछा फिर क्या

बनाऊ पराठा के साथ खाने के लिए। अब तुमको जो सही लगे बना लो मै इसमें क्या बताऊ सासु नें फिर वही बात बोला। माँ तो ऐसा करती हूँ टमाटर की चटनी बना लेती हूँ।वह भी तो आलू पराठा के साथ बहुत ही अच्छा लगता है फिर बहू नें नया व्यंजन बताया।कह तो तुम ठीक रही हो टमाटर की

चटनी आलू पराठा के साथ अच्छा तो बहुत लगता है पर टमाटर तो खट्टा होता है और तुम्हे तो मालूम ही है कि खट्टी चीजों को खाने से तुम्हारे ससुर जी को एसीडिटी हो जाती है। सब्जी में तो एक दो टमाटर पड़ता है तो खा लेते है पर सिर्फ टमाटर की चटनी तो उन्हें हानि करेगा। सासु माँ नें चटनी के भी दोष गिना दिए। वह तो आप सही कह रही है चटनी तो मिलन जी भी उतना शौक से नहीं खाते।

अब क्या बनाऊ बहू नें फिर सासु माँ की राय जाननी चाही।पर सासु माँ का तो वही रटा रटाया जबाब है,मै क्या बताऊ तुम्हे जो अच्छा लगे बना लो। अब फिर बहू सोचने लगी कि क्या बनाऊ। थोड़ी देर सोचने के बाद बहू नें कहा माँ ऐसा करती हूँ कि आलू,गोभी, मटर की रस्सेदार सब्जी बना लेती हूँ। यह सब्जी पापा और मिलन जी दोनों को ही पसंद है। देवर जी को भी पसंद ही आएगी। ठीक है माँ वही

बनाती हूँ।मटर दे जाती हूँ ज़रा आप उसमे से दाने निकाल दीजिए। मै छिल तो दूंगी,पर पराठा के साथ मसाले दार सब्जी अच्छी लगेगी?अब आलू में भी,लहसुन प्याज़,मिर्ची, अदरक आदि मसाले पड़ेंगे और सब्जी में भी यही सब पड़ेगा तो दोनों में ही मसाला मसाला होने से कैसा लगेगा? मुझे तो नहीं लग रहा कि अच्छा  लगेगा। हाँ माँ बात तो आप सही कह रही है उतना अच्छा तो नहीं ही लगेगा। अब क्या

बनाऊ मन ही मन बहू सोच रही है।माँ मुझे तो समझ नहीं आ रहा आप ही कुछ बताइए, बहू नें फिर सास से पूछा। मै क्या बताऊ जो समझ आए बना दो सास का तो एक ही जबाब।काफ़ी देर सोचने के बाद बहू नें पूछा माँ कद्दू की बिना मसाले वाली सब्जी बना लू क्या?उसमे तो तेल भी ज्यादा नहीं डलेगा।तुम्हे सही लग रहा है तो वही बना लो सास नें आखिर कद्दू की सब्जी बनाने पर अपनी

सहमति दे दी।ठीक है माँ मै जाकर आलू उबलने को चढ़ा देती हूँ।हाँ जाओ पर ऐसा करना बहू कि आलू थोड़ा कम ही उबालना सासु माँ नें फिर टोका। क्यों माँ? मुझे लग रहा है कि रात में आलू पराठा थोड़ा भारी हो जाएगा।तुम्हारे पापा जी को तो पचने में दिक्कत होंगी तो मै क्या सोच रही थी कि उनके लिए तो रोटी ही बना देना।अब पापा के लिए रोटी बनाओगी ही तो ऐसा करना दो रोटी मेरे लिए भी

सेक ही देना।अब बहू का दिमाग़ पूरा खराब हो रहा था।आधा घंटा से क्या बनेगा पर चर्चा हो रही थी और अंत में माँ नें रोटी सब्जी पर ही बात को लाकर खत्म कर दिया। सासु माँ कि यही बात भारती को बिल्कुल नहीं पसंद थी। खाने में क्या बनाऊ पूछने पर माँ कभी भी सही सही जबाब नहीं देती है।बस यही कहती है कि जो मर्जी वह बना लो, पर प्रतिदिन आधा घंटा चर्चा करके अंत में वही बनवाती है जो

वे खाना चाहती है पर कभी सीधे सीधे नहीं कहेंगी कि यह बना लो। हर बार यही कहेंगी कि इससे पापा को दिक्कत है तो कभी मिलन को दिक्कत है,कभी छोटू को पसंद नहीं। यदि कभी भारती बिना उनसे पूछे बना लेगी तो फिर उनका यह रोना शुरू हो जाएगा कि मेरी तो इस घर में इतनी भी हैसियत नहीं है कि कोई यह भी पूछे कि माँ आज खाना क्या बनेगा? चीत भी इनकी और पट भी इनकी। यही

सोच थी भारती की सास का कि मन का भी हो जाए और कोई यह ना कहे कि तुम्हारे मन का हुआ।अभी बात यही खत्म नहीं होंगी, बात तो रात के खाने के वक़्त पूरी होंगी। लेकिन आज तो भारती नें सोच लिया था अब नहीं सहूंगी। आज तो कुछ फैसला होगा ही। भारती नें कद्दू की सब्जी और रोटी बना दिया। रात में उसके ससुर, पति और देवर खाने के टेबल पर बैठे तो भारती नें सभी को रोटी

सब्जी निकाल कर दे दिया।खाना देखते ही ही देवर नें कहा भैया भाभी का कुकिंग क्लास में एडमिशन करा दो।मिलन नें कहा,अरे!भाई इतना अच्छा आइडिया तुमने कहाँ छिपा कर रखा था।पहले बोलते तो हम कब का अच्छा खाना खाना शुरू कर चुके होते। अब ससुर जी भी क्यों पीछे रहते उन्होंने भी कहा सही में दिनभर काम करता हूँ पर कभी भी मुझे अपनी उम्र का एहसास नहीं होता है पर खाना देखते

ही लगता है कि हमारी बहू मेरा कितना ख्याल रखती है सोचती है कि पापा को इस उम्र में ऐसा ही खाना खाना चाहिए और कभी कद्दू कभी तोरी तो कभी टिंडा और सादी रोटी बना देती है।भारती अंदर ही अंदर कुढ़ रही थी पर क्या ही करती चुपचाप सब सुन रही थी।यह तो रोज़ का है ऐसे ही

खाना में रोज़ मिनमेख निकाला जाता है।फिर मिलन नें कहा भारती तुम्हे और कुछ बनाने नहीं आता है? आज बारिस हो रही थी आज तो आलू पराठा या सत्तू पराठा बना ही सकती थी। उसमे दिक्कत थी तो सब्जी तो थोड़ी मसाले वाली बना ही सकती थी।सुबह में तो आदमी जैसे तैसे खाकर काम के लिए निकल जाता है पर रात को तो ढंग का खाना बनना चाहिए। तुमको नहीं आता तो माँ से पूछ लेती उन्हें

तो सब बनाने आता है। अभी भारती कुछ बोलती उसके पहले ही सास नें कहा इसे आता क्या नहीं है? सबकुछ बनाने आता है। पर अच्छा खाना बनाने में मेहनत जो लगता है इसलिए रोटी सब्जी बना कर रख देती है।अब तो भारती का दिमाग़ एकदम गर्म हो गया। उसने सोचा ना आज तो कुछ ना कुछ फैसला होगा ही। जब से विवाह करके आई हूँ माँ का यही रवइया है अपने बोल कर कोई भी काम

करा देती है, खाने में कुछ भी बनवा देती है,और जब दूसरा उसमे कमी बताता है तो अपना अपना पल्ला झाड़ लेती है और भारती को फँसा देती है।  भारती नें कहा पापा जी बात यह है कि खाना तो मै मायके में भी बनाती थी, पर कभी भी यह फैसला नहीं लिया कि क्या बनेगा। माँ जो कहती थी हम

ननद भाभी दोनों मिलकर उसे बना देते थे।लेकिन जब मै यहाँ आई तो माँ नें कहा जो मर्जी वह बना लो। मैंने अपनी मर्जी से खाना बनाने की बहुत कोशिश किया।लकिन मै समझ ही नहीं पाती हूँ कि

आपलोगो को क्या पसंद है और कब क्या बनाना चाहिए? इसलिए पापा मुझसे अब यह ना हो पाएगा। आप माँ को बोल दीजिए कि वह दोनों समय मुझे बता दे की आज खाना क्या बनेगा।माँ जब तक नहीं बताएंगी तब तक मै खाना नहीं बनाउंगी।अब माँ जब भी यह कहेंगी की जो मर्जी बना लो। मै साफ मना कर दूंगी कि नहीं अब मै फैसला नहीं लुंगी।माँ के बिना बताए मै कुछ भी नहीं बनाउंगी।

लतिका पल्लवी

विषय — बहू नें ना बोलना सीख लिया 

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