सुरूचि की शादी तय हो चुकी थी,वैसे तो एंकाश से उसकी अरैंज मैरिज थी, लेकिन शादी से पहले वो तीन चार बार मिलकर आपस में कई बातें कर चुके थे। दोनों की उम्र ही परिपक्व ,तीस से ऊपर थी, एक दूसरे के परिवार के बारे में , उनकी पंसद, नापंसद को अच्छे से जानने की कोशिश की थी। एकांश के परिवार में ममी पापा के इलावा एक छोटी बहन रिनी और एक छोटा भाई अशुंल था जबकि सुरूचि का बड़ा शादी शुदा भाई विस्तार था जो कि कैनेडा में सैटल था।
दोनों खाते पीते, खुले विचारों वाले परिवार थे। शादी किसी ऐजेसीं के द्वारा सैट हुई थी।जात बिरादरी भी एक ही थी जब आपस में बात चीत हुई तो सब ठीक लगा और लेन देन , फालतू खर्च से दूरी , सादा समारोह में शादी सम्पनं हो गई। लेकिन अपने मन के चाव जरूर पूरे किए गए। अपनी खुशी से मां बाप अपनी बेटी, बहू, दामाद को कोई कुछ नेग देना चाहे तो उसके लिए तो मना नहीं किया जा सकता। सुरूचि और एंकाश दोनों ही अच्छी नौकरी पर थे।
हनीमून से आने के बाद दोनों अपने अपने काम पर जाने लगे। दो मजिंला घर था। दो बैड रूम ऊपर और तीन नीचे थे। एंकाश और अशुंल के कमरे ऊपर और बाकी नीचे थे, एक ममी पापा, एक में रिनी और एक को गैस्ट रूम कह सकते है। कहने का भाव कि अच्छा बड़ा घर था, अभी एंकाश के पापा की भी जाब थी। अशुंल पढ़ाई के साथ साथ वर्क फराम होम भी कर रहा था। रिनी पढ़ रही थी।
सुरूची भी अच्छे घर से थी। हर कोई चाहता है कि बहू घर में बेटी की तरह रहे, सब से घुल मिल जाए, लेकिन क्या ऐसा होता है, यह आज का बहुत बड़ा प्रश्न है। पहले सयुक्तं परिवार थे, आज नहीं है, क्यों नहीं है, इसके पीछे कई कारण है। जिस परिवार में पैसे या जगह की कमी हो या फिर विचारों में मतभेद हो, वहां इकटठे रहना मुशकिल है, लेकिन जहां सब ठीक हो, वहां भी रहना मुशकिल है आजकल।
बात करते हैं सुरूचि की, आजकल बच्चों का देर से सोना, देर से उठना, तो एक आम सी बात है। लड़कियों का घर के कामों में दिलचस्पी न लेना भी कोई नई बात नहीं। भले ही कोई सिलाई कढ़ाई न करे मगर रसोई की और , घर के रख रखाव की और तो ध्यान देना ही पड़ता है, आजकल वो जमाना भी नहीं रहा कि एक तरह का नाशता बना या एक सब्जी बनी और सबने खा ली।
जितने लोग, उतनी फरमाईशें।और सब अंबानी, अदनानी तो होते नहीं, हाई मिडल क्लास परिवार भी घर के काम के लिए पार्ट टाईम हैल्पर या कोई कोई फुल टाईम भी रख ले तब भी बहुत से काम स्वंय करने पड़ते है। इस मामले में सुरूचि काफी समझदार थी,जब भी समय मिलता वो घर के काम में योगदान देती। सबका आदर सम्मान करती, मेहमानों की आवभगत करती, यानि कि हर गुण था उसमें।
जबकि रिनी का घर के काम में कोई योगदान नहीं था। एंकाश की माँ सुनयना काफी काम संभाल लेती थी, उसकी सेहत भी ठीक थी। सास बहू में अच्छा तालमेल था। सुरूचि अपनी और से सब को खुश रखने का प्रयास रखती, बस उसकी एक आदत थी कि कोई उसकी प्राईवेसी में दखल न दे और न ही वो किसी को डिस्टर्ब करती थी, यहां तक कि वो एकांश से भी यही उम्मीद रखती थी।
दूसरा वो अपनी चीजे़ किसी से शेयर नहीं करना चाहती थी। अब रिनी से टकराव यहीं से शुरू हुआ।रिनी बिना पूछे ही कभी उसका दुपट्टा ओढ़ लेती, मेकअप किट यूज कर लेती, जो कि सुरूचि नहीं चाहती थी। ऐसी बहुत सी बातें हुई, पहले पहल तो सुरूचि चुप रही, उसने बड़े प्यार से रिनी से कहा कि उसे जो भी चाहिए वो उसे ला देगी, आजकल तो आनलाईन सब मिलता है, लेकिन रिनी कहां मानती।
सुरूचि तो सुबह आठ बजे ही निकल जाती, लेकिन शाम को उसे अपना कमरा कुछ अस्त व्यस्त ही मिलता। अल्मारी खुली होती, ड्रैसिंग टेबल का सामान बिखरा होता, यहां तक कि कंघी में बाल फंसे होते, हेयर ड्रायर यहां वहां रखा होता।उसे बहुत बुरा लगता लेकिन वो चुप रहती।
एंकाश से कहती तो वो हंसी में टाल देता।
एक दिन उसे एक अपनी कीमती मनपंसद साड़ी नहीं मिली तो उसने डरते डरते सास से पूछा। इसके पहले कि वो कुछ कहती रिनी लापरवाही से बोली कि वो उसकी एक सहेली के पास है, उसे शादी में जाना था, तो उसे दे दी। एक दो दिन में वापिस कर देगी। कम से कम मुझसे पूछ तो लेती, सुरूचि ने शायद साल भर में पहली बार मुँह खोला।
इसमें पूछना कैसा, सब अपना ही तो है, और रिनी तमतमाते हुए उठकर चली गई। रात को सुरूचि ने पहली बार एंकाश से कहा कि अपनी बहन को समझा ले, उसे बिल्कुल पंसद नहीं कि कोई उसकी चीज यूज करे और न ही वो किसी का पहना हुआ सामान यूज करना पंसद करती है।
वैसे तो सुनयना बहुत अच्छी थी लेकिन बेटी की बात पर अक्सर माएं पर्दा डालती हैं, तो उसने भी बात रफा दफा करने की कोशिश की। सुरूचि ने भी बात बढ़ाना ठीक नहीं समझा।ऐसी छोटी मोटी बातें होती रही। एक शाम जब सुरूचि आफिस से आई तो उसकी वही साड़ी उसके बिस्तर पर पड़ी थी। कोई सस्ती साड़ी होती तो वो शायद पहनती भी ना, लेकिन साड़ी बहुत मँहगी थी, तो उसने सोचा कि ड्राईक्लीन करवा कर पहन लेगी।
वो साड़ी को उठाकर लिफाफे में डालने लगी तो क्या देखती है कि एक तरफ पल्लू से फटी पड़ी है, और काफी मोती भी गिर चुके थे। एकदम से उसकी आंखों में आसूं आ गए।अब तो वो खुद को रोक न पाई और नीचे आकर रिनी की अच्छी क्लास लगाई।
फिर सास की और मुखातिब होते हुए कहा, माफ करना ममी , अब ये मत कहना कि बहू को न कहना आ गया, चाहती मैं भी नहीं थी, लेकिन मजबूर हो गई हूं। और उम्मीद करती हूं कि आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा।और वो अपने कमरे में चली गई।
दोस्तों कई बार छोटी छोटी बातें बड़ा रूप धारण कर लेता है।हो सके तो ऐसी स्थिति नहीं आने देनी चाहिए।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- बहू ने ना बोलना सीख लिया।