जिद नहीं करते बहू! चलो घर चले••!
नहीं पिताजी! हम लोगों की उस घर में कोई कदर नहीं और जहां इज्जत नहीं वहां जाने से क्या फायदा•••?
कहते शीतल की आंखों में आंसू आ गए।
“मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है” तभी तुम लोगों को वापस लेने के लिए आई हूं! चलो घर चलें बहु!
कहते हुए रमा जी मायूस हो गईं। तभी सदानंद जी धम से कुर्सी पर बैठ गए।
क्या हुआ••• बाबूजी ? घबराते हुए शीतल सदानंद जी के चेहरे को निहारते हुए बोली।
नहीं-नहीं कुछ नहीं बस थोड़ा सिर घूम गया! अब ठीक है••! कुर्सी पर पसरते हुए सदानंद जी बोले।
बाबूजी कई बार कहां है कि आप हमारे लिए ज्यादा टेंशन मत लीजिए!
रितेश पिता के बिगड़ते तबीयत पर चिंता व्यक्त करते हुए बोला। अरे कैसी बातें कर रहा है••? मेरी लक्ष्मी रूठ के चली आई और मैं चुपचाप देखता रहता?
पर बाबूजी आपको भी पता है कि मां का स्वभाव कभी नहीं बदल सकता! इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद भी, हम लोग अगर घर नहीं छोड़ते तो हमारे लिए मुश्किल हो जाता।
हां पर अब सब कुछ सही है उसे भी अपनी गलती का एहसास हो रहा है क्यों रमा सही बोल रहा हूं ना••?
हां जी••! बिल्कुल सही बोल रहे हैं आप! मैने इन लोगों का दिल दुखाया है! मुझे माफ कर दो बेटा! चल घर चल ना मत कहना!
अंजाने में ही सही मैंने भी अगर तुम लोगों का दिल दुखाया हो तो मुझे माफ कर देना ••!सदानंद जी बेटे- बहु से बोले ।
बाबूजी ऐसी बात करके आप हमें शर्मिंदा मत कीजिए हम सब आपके साथ चलेंगे!
ऐसा सुनकर सदानंद जी के चेहरे पर संतुष्टि साफ झलकने लगी।
ऐसा क्या हुआ था इन लोगों के बीच जिसकी वजह से ,दोनों को घर छोड़ना पड़ा ।
आईए जानते हैं।
सदानंद बाबू और रमा जी के तीन बच्चे थे बड़ी बेटी तारा उसके बाद रितेश और सबसे छोटा उमेश ।रमा जी अपने तीनों बच्चों में भेदभाव रखती थीं । उनके लिए सबसे प्राण-प्रिय तारा और उमेश ही थे। रितेश को उन्होंने कभी भी वो प्रेम नहीं दिया जो उन दोनों ने पाया।
बेटी बड़ी हुई तो उसकी शादी एक अच्छे घराने में कर दी गई। तारा के जाते ही रमा जी अपने आपको अकेली महसूस करने लगीं ।
सुनते हो••! रितेश की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई है!
हां तो? सदानंद बाबू अखबार के ओट से पूछे।
तो•• हमें अब उसकी शादी कर देनी चाहिए! तारा के जाने के बाद यह घर सूना-सूना सा लगता है! घर में बहू के आ जाने से मुझे भी अच्छा लगेगा!
फिर थोड़ा रुक के
रिश्ते तो बहुत आ रहे हैं इनमें जो तुम्हें बेहतर लगे पसंद कर, फटाफट उसकी शादी कर दो!
रमा जी की बातों का समर्थन करते हुए सदानंद जी ने एक अच्छे घर-परिवार की लड़की चुन, रितेश की शादी कर दी।
कुछ दिन तो सब कुछ सही चला एक दिन :-
“मां” यह लीजिए मेरी तनख्वाह! रितेश रमा जी के हाथ में अपनी तनख्वाह थमाते हुए बोला।
कुछ देर पैसे गिनने के बाद
बेटा इसमें तो 10000 कम है! क्या किया ?
हां मां! 10000 शीतल को चाहिए थी अपने खर्च के लिए! सो मैंने उसे दे दिया!
खर्च के लिए?
किस खर्च की बात कर रहे हो तुम? सारा खर्च तो हमने संभाल रखा है!
इस बेफिजूल वाले खर्च को रोक सको तो रोक लो !
आंखें गोल करते हुए रमा जी उठकर अपने कमरे में चली गईं। मुझे नहीं चाहिए पैसे••• जाकर इसे
मां जी को लौटा दें! सही तो कहती है वह••कि जब तक हम उनके साथ हैं तो हमें पैसों की क्या जरूरत ?
शीतल पैसे निकालते हुए बोली। नहीं शीतल कुछ पैसे तुम्हारे पास भी रहनी जरूरी है! मैं घर में रहूं ना रहूं तुम्हें कभी भी इनकी जरूरत पड़ सकती है!
रितेश शीतल के हाथ में पैसे लौटाते हुए बोला।
अरे मां है ना! मैं उनसे ले लूंगी आप टेंशन मत लो! जाइए मां को दे दीजिए! वह मुस्कुराते हुए बोली।
पर रितेश पैसे वही रखकर कमरे से निकल गया।
उस दिन के बाद से रमाजी शीतल और रितेश के पीछे पड़ गईं।
आए दिन कुछ ना कुछ उनमें खोट निकालती रहतीं ।
शीतल बाबूजी बाजार से आ गए हैं••• मां तुम्हें खाना परोसने के लिए आवाज दे रही हैं! जाओ जल्दी!
वह अभी-अभी सारा काम निपटा के अपने कमरे में आई ही थी कि रितेश उसे बुलाने कमरे में पहुंच गया।
हां बस कंघी कर लूं!
कहते हुए उसने फटाफट कंघी करी और रसोई में खाना परोसने चली गई।
अभी उसने खाना टेबल पर लगाया ही था कि
अरे बहु! उमेश को सब्जी ,सलाद ज्यादा दिया कर क्योंकि वह ज्यादा सब्जी खाना पसंद करता है ! रमा जी बोलीं ।
ऐसा सुन शीतल को बुरा तो लगा परंतु वह चुप रही ।
रात के भोजन के बाद
बहु तू जल्दी-जल्दी रसोई साफ कर ले और हां दूध मैं उमेश और तेरे बाबूजी को खुद दे दूंगी!
जी मां जी !
कहते हुए शीतल रसोई साफ करने लगी। सब काम निपट जाने के बाद रमा जी रसोई में आकर तीन गिलास दूध ले ,यह कहकर चली गईं कि रितेश और तुम दूध ले लेना। जब वह दूध लेने आई तो यह क्या••• सिर्फ एक ग्लास दूध ही बचा था।
शायद मां जी मेरे लिए रखना भूल गई होंगी••कोई बात नहीं आज मैं सिर्फ इन्हें ही दे देती हूं! धीरे-धीरे शीतल को पता चल गया कि मां जी एक गिलास दूध ही पतीले में छोड़ती हैं ।
यानी यहां रितेश और उमेश में भेदभाव किया जा रहा था।
एक बात पूछूं ?
शीतल रितेश से जो की किताब पढ़ने में व्यस्त था, पूछी ।
हां पूछो शीतल ?
तुम मां जी के अपने ही बेटे हो ना?
हां क्यों ?
रितेश आश्चर्य से पूछा।
नहीं मुझे आए अभी कुछ ही महीने हुए है परंतु मां आप में और देवर जी में भेदभाव रखती हैं! जो कि मुझे सही नहीं लगता! अरे नही••• उमेश छोटा है ना! इसलिए हम दोनों भाई-बहन में मां उसे ही ज्यादा लाड़ करती हैं।
तुम टेंशन ना लो यह शुरू से ही होता आ रहा है!
कहते हुए रितेश लाइट ऑफ करके सो गया ।
दूसरे ही दिन
अजी सुनते हो••! तारा का फोन आया था कल हमारी बेटी ,जमाई और नाती आ रहे हैं !
आज मार्केट जाकर घर की घटी- बढी चीज़ें लेते आइये!और बच्चों के लिए मिठाई-चॉकलेट भी !
ठीक है ठीक है भाग्यवान !
मैं रितेश को फोन कर, कहे देता हूं कि स्कूल से लौटते समय सारी चीजें ले आए! तुम सिर्फ लिस्ट बनाकर मुझे दे दो!
सदानंद जी बेटी के आने की खबर से काफी प्रसन्न थे ।
लिस्ट बनी और सामान लाने का जिम्मा रितेश पर मढ दिया।
मां 5000 के सामान आए हैं पैसे तो दे दो!
अरे पैसे मेरे पास कहां है? इस बार मैनेज कर ले !
पर मां••! मेरे पास ख़र्च के लिए सिर्फ 5000 ही थे जिसका आपने सामान मंगवा ली! अब मेरे खर्च कैसे चलेंगे !
कोई ना उस दिन जो तुमने बहू को पैसे दिए थे आज उसी पैसे से अपना काम चला ले !
10 दिन बाद तुझे सैलरी मिल जाएगी तो उसे दे देना!
ऐसा सुनकर रितेश का खून खौल गया। वह कुछ अटपटा सा बोलता कि शीतल ने चुप रहने का इशारा किया।
देखा ना मां को•••! ऐसा मेरे साथ वह हमेशा करती हैं !
कोई बात नहीं आप ये पैसा रख लीजिए मुझे वैसे भी इनकी जरूरत नहीं!
कहते हुए पैसे रितेश के हाथ में दे दिये। रितेश शीतल को देख वहां से चुपचाप निकल जाता है।
दूसरे दिन तारा और दामाद जी आये ।
बहु! जल्दी-जल्दी खाना निकाल दे सभी भूखे हैं !
हां अभी निकालती हूं! यह भी आने ही वाले होंगे लंच के लिए••! सभी साथ में ही खा लेंगे!
उसे आने में टाइम लगेगा! तब तक क्या दामाद जी भूखे रहेंगे? वैसे भी उमेश है ना जीजा जी के साथ बैठकर खा लेगा! रितेश को तू बाद में खिला देना! चल जल्दी कर! कहते हुए वह रसोई से बाहर चली आईं ।
शीतल फटाफट मां जी के हुकुम का पालन करने में लग गई। सभी खा रहे थे कि तभी रितेश भी आ गया ।
अरे साले साहब! आप आने ही वाले थे तो हम 5-10 मिनट और इंतजार कर लेते? सभी एक साथ मिल बैठकर खाते तो अच्छा लगता! शैलेश बाबू ( दामाद जी) रितेश को देखते ही बोले।
रितेश आता नहीं आता••आप कब तक बैठे रहते ? उमेश तो था ही आपका साथ देने के लिए!
रमाजी झट से बोल पड़ीं ।
पर मां आज तो मैंने आपके सामने ही शीतल को बोला था कि हम इकट्ठे लंच करेंगें !
तो अभी क्या हुआ है? जा शीतल रितेश के लिए भी खाना लगा दे! दामाद जी आप और लीजिए ना!
दामाद को खाना खिलाने में रमा जी मगन हो गईं।
कुछ महीने बाद ही उमेश की भी पोस्ट ऑफिस में क्लर्क पद पर चयन हो गया।
अब उसके लिए भी एक से बढ़कर एक रिश्ते आने शुरू हो गए ।सदानंद जी ने एक अच्छा परिवार देखकर उसकी शादी भी जल्द कर दी।
छोटी बहू के आ जाने से रमा जी काफी प्रसन्न रहने लगीं।
उसको वह वो सारी खुशियां देती जिससे शीतल वंचित थी।
मां लीजिए यह मेरी सैलरी है••! उमेश रमा जी के हाथ में पैसे थमाते हुए बोला।
पैसे किस लिए दे रहा है?
अब तेरा भी परिवार हो गया! छोटी बहू को भी पैसों की जरूरत होगी !बेटा पैसे अब मुझे मत दिया कर! तेरे खर्चे भी बढ़ गए होंगे ।
कहते हुए उन्होंने सारे पैसे उमेश को वापस दे दिए ।
जब इस बात की जानकारी रितेश को हुई तो उसे बहुत बुरा लगा। यहां भी उन्होंने भेदभाव शुरू कर दिया।
दोपहर के खाने के बाद जेठानी- देवरानी किचन का काम जल्द-जल्द निपटा रही थी कि तभी रमा जी आईं ।
अरे छोटी•••!तु किचन में क्या कर रही है? बड़ी है ना••
काम संभाल लेगी! तू मेरी सिर की मालिश कर दे!
अभी आती हूं मां जी!
काम छोड़कर छाया रमा जी के पीछे-पीछे चली आई ।
तू इतना काम मत किया कर•• इसकी तो आदत है काम करने की! मैंने तुझे आराम करने के लिए बुला लिया है! मेरे बगल में लेट जा रमा जी अपने बगल में लेटने का इशारा करती हैं ।
शाम के 5:00 बजे
अरे बहु•••! तू लेटी है? जा-जाकर चाय बना ले 5:00 बज गए हैं तेरे बाबूजी चाय के लिए बोल रहे हैं!
पर मां जी! मैं अभी-अभी तो लेटने आई हूं! छाया को बोलिए ना चाय बना लेगी!
अब ये क्या ?मैं एक बार तुझे बोलूं फिर उसे बोलूं? क्या यही काम रह गया है मेरा•••?
रमा जी गुस्से से बोलीं।
नहीं मां जी आप शांत हो जाइए! चाय मैं बना लाती हूं!
कहते हुए शीतल किचन में चली गई!
अपनी जीत पर मुस्कुराते हुए रमा जी कमरे में चली आईं। जब चाय पहुंचाने शीतल रमा जी के कमरे में आई तो दोनों के बीच हुई वार्तालाप से उसका खून खौल गया•••।
” देखा कैसे मैंने तुझे काम से बचा लिया”!
रमाजी छाया से बोल रही थीं।
हद कर दी आपने मां? हमने आपके सामने कभी भी जुबान नहीं खोली इसका मतलब यह नहीं कि हम कुछ समझते नहीं••! या हमें जवाब देना नहीं आता••? आपकी हर गुस्ताखी को हम माफ करते आ रहे हैं यह सोचकर कि आप हमारी मां हैं ••कभी ना कभी आपको अपनी गलती का एहसास जरूर होगा! लेकिन नहीं••• ऐसा लगता है कि आप कभी सुधरेंगी ही नहीं! कहते हुए उसने चाय का प्याला वही पटक दिया।
अब बस और नहीं! अब हम दोनों में काम•• बराबर-बराबर का बटेगा! वरना•••
वरना क्या ?तू मुझे धमकी दे रही है! मैं तेरी धमकी से डरने वाली नहीं!
मां जी मैं यहां एक पल भी नहीं रुकूंगी•• अब घर आप संभालो क्योंकि #मैने भी ना बोलना सीख लिया है !
कहते हुए शीतल कमरे में चली आई।
5 दिन बीत गए लेकिन रमा जी और छाया ने शीतल को मनाने की कोई कोशिश नहीं की। उल्टे दोनों मिलकर उसकी दिन-रात चुगली करते रहतीं ।
हम साथ नहीं रह सकते! कहीं आसपास कमरा लेकर अलग रह लें वो अच्छा रहेगा!
दिन-रात की टेंशन मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही है! शीतल रोते हुए बोली।
रितेश भी शीतल की मन:स्थिति को समझते हुए घर छोड़ने का फैसला ले, किराए के मकान में रहने चला ।
जब इस बात की जानकारी सदानंद जी को हुई तो उन्होंने अपने पत्नी को खूब जली-कटी सुनाई और उन्हें उनकी गलती का अहसास करवाते हुए कहा कि “शीतल तो इस घर की लक्ष्मी है”! उसने कभी भी तुम्हारी बातों का जवाब नहीं दिया•• और तुम ने उसके साथ बहुत बड़ा गुनाह किया! इस गुनाह के लिए शायद तुम्हें भगवान भी माफ ना करें••! हमारे लिए सभी बच्चे बराबर हैं और तुमने रितेश के साथ बचपन से ही भेदभाव किया•••जो सही नहीं!
बुढ़ापे में कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा•• अगर एसी स्थिति रही तो•••!
पति के ऐसे वाक्य को सुनकर रमा जी ‘पश्चाताप में जलने’ लगी और
सारे क्लेश को त्याग ,सदानंद बाबू के साथ बेटे-बहु को मनाने चली आईं।
दोस्तों कई मां-बाप अपने बच्चों से एक समान प्यार नहीं करते••। किसी से ज्यादा तो किसी से कम। कभी-कभी भेदभाव की वजह से बच्चों के मन में खटास पैदा होती है और यह खटास मां बाप की अवस्था गिरने पर नजर आती है। उनके लिए सभी बच्चें एक समान होनी चाहिए।
अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज लाइक्स, कमेंट्स और शेयर जरूर कीजिएगा।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह