बेटी का घर बसने दो भाभी – मंजू ओमर 

हेलो अंकिता क्या कर रही हो बेटा क्या करूंगी मम्मी, खाने की तैयारी कर रही हूं। अभी अभी तो ऑफिस से आई होगी थोड़ा आराम कर ले बेटा खाने में लग गई। नहीं तो बाहर से कुछ आर्डर कर ले। अरे नहीं मम्मी बुढ़िया  को घर की दाल रोटी खानी है ।और रोज-रोज  बाहर का खाना खाने से फैट बढ़ रह है ।अब देखो न पहले से  मैं कितनी मोटी हो गई हूं। तो तू अपने संग निखिल को भी लगाया कर काम पर अकेले-अकेले लगी रहती हो। हां लाओ फोन जरा मुझे दो अंकिता के पापा ने फोन नीलम के हाथ से ले लिया। हां बेटा अंकिता इतना काम मत किया करो घर का और बाहर का कोई खाना बनाने वाली रखो बेटा। हां पापा देखती हूं । अच्छा फोन रखती हूं पापा बाद में बात करूंगी।ये रोज का काम था नीलम और पति अनिल का बेटी को हिदायतें देना।

                 आज नीलम के घर उनकी नंद आई हुई थी। इतनी देर से बैठी दोनों बातें सुन रही थी । बोली अरे यह क्या हर वक्त   फोन करके बेटी को हिदायतें देना बंद करो । बेटी का घर बसने दो ।इस तरह से रोज रोज ससुराल में फोन करके एक एक बात पूछने से उसके घर में परेशानी पैदा होगी।तुम लोग हर बात जानने के उत्सुक रहते हो । अरे कुछ उनको भी उसके हिसाब से करने दो । बेटी को ससुराल में बसने दो । ऐसे घर बसते नहीं है टूटते हैं।

             नीलम और अनिल की दो संताने  थी ।एक बेटा और एक बेटी ।बेटी की शादी हो गई है । पहले जिस लड़के को अंकिता ने पसंद किया था वो लड़का नीलम और अनिल को पसंद नहीं था। लेकिन अंकिता उसी लड़के से शादी करना चाहती थी ‌मां नीलम ने अंकिता को समझाया कि निखिल देखने सुनने में अच्छा नहीं है,तो अंकिता ने जवाब दिया नहीं मम्मी शादी की मेरी कुछ शर्ते हैं ।जो लड़का मेरी शर्तों को मानेगा मैं उससे ही शादी करूंगी।ऐसी क्या शर्त रखी है मां नीलम ने पूछा , पहली शर्त,कि निखिल देखने सुनने में ज्यादा अच्छा नहीं है और मैं अच्छी हूं तो वो मुझसे दबकर रहेगा। दूसरी शर्त है कि मैं जब भी अपने मम्मी पापा के पास जाना चाहुंगी कोई मना नहीं करेगा ।और तीसरी शर्त कि मैं अपनी सैलरी का चाहे जितना पैसा अपने ऊपर और अपने मम्मी पापा पर खर्च करूं कोई रोकेगा नहीं ।तो क्या ये तीनों शर्तें निखिल मानने को तैयार हैं , हां,बस इसी लिए मैं उससे शादी करना चाहती हूं । ठीक है बेटा जब सबकुछ तेरी मर्जी से हो रहा है तो बढ़िया है हम लोग भी तैयार हैं शादी को।

        अंकिता की शादी हो गई । अंकिता की ससुराल में अंकिता की सास और एक दिव्यांग नन्द जी ।सास भी नौकरी करती थी लेकिन अब रिटायर है । निखिल , मम्मी ,और बहन रक्षा तीन लोग ही थै घर में। निखिल के पापा की बहुत पहले ही मृत्यु हो गई थी। निखिल को मां सरस्वती देवी ने बड़ी मेहनत से पढ़ाया लिखाया था।और पूरे घर की जिम्मेदारी नौकरी के साथ बहुत अच्छे से निभाई थी। बेटी दिव्यांग थी तो उसकी भी देखभाल करनी पड़ती थी।अब सोचती थी कि चलो निखिल की शादी कर दूंगी तो थोड़ा आराम मिल जायेगा। बहुत सालों से जिम्मेदारी यां निभाई है तो अब बहू से पूरा नहीं तो थोड़ा तो सहारा मिल जाएगा।बहू भी नौकरी करती है तो पूरा समय तो दे नहीं सकती । थोड़ी बहुत जिम्मेदारी उठा ले यही बहुत है । बहुत थक गई हूं इन जिम्मेदारियों को निभाते निभाते।

               लेकिन निखिल की शादी के बाद जैसा सरस्वती जी ने सोचा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ। अंकिता आए दिन मायके चली जाती थी।और अपने मम्मी पापा के लिए पैसे भी खूब खर्च करती थी। खुद तो मायके चली ही आती थी साथ में निखिल को भी साथ में ले आती थी । ऐसे ही एक दिन सरस्वती जी ने टोका दिया कि अंकिता जब देखो तुम मायके चली जाती हो । तुम्हारी अब शादी हो गई है इस घर की भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है।इस घर को भी संभालो।तुम तो जाती ही हो साथ में निखिल को भी ले जाती हो।तो अंकिता ने बीच में बोल दिया मम्मी जी आप हमारे बीच में न बोलें। मुझे क्या करना है क्या नहीं करना मुझे न बताएं। सबकुछ पहले से तय करके ही मैंने निखिल से शादी की है चाहे तो निखिल से पूछ ले।ये क्या कह रही है बेटा अंकिता, हां  मां आप बीच में न पड़ो सबकुछ हम लोगों के बीच में तय है।बस फिर क्या था अंकिता सबकुछ अपनी मनमर्जी करती थी। अपने मम्मी पापा और अपने घर पर सैलरी का खूब पैसा खर्च करती थी। ससुराल तो बस नाम का था।इधर अंकिता के मम्मी पापा भी खूब खुश थे कि बेटी घर में खूब पैसा खर्च करती है।और  निखिल को दबा कर रखती है। उसकी इतनी हिम्मत ही नहीं कि वो अंकिता को कुछ बोल सके ।बस अंकिता के आगे पीछे घूमता रहता था ।

             लेकिन अचानक से  ऐसा कुछ हुआ  कि निखिल को नौकरी से फायर कर दिया। इधर कुछ समय से  निखिल नौकरी में लापरवाही कर रहा था ।जब देखो तब छुट्टी लेकर घर बैठा रहता था। तो नौकरी से भी छुट्टी हो गई उसकी।अब अकेले अंकिता की ही सैलरी रह गई थी। जिसे वो अपने घर पर इस्तेमाल करती थी। आजकल सरस्वती जी की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी ।उनको अस्थमा की प्राब्लम थी जो आजकल परेशान कर रही थी। उन्हें अस्थमा का अटैक आ जाता था जिससे उन्हें बहुत परेशानी हो जाती थी।और इधर अंकिता के मम्मी नीलम के पैर मैं फैक्चर हो गया था। अंकिता को पता चला तो वो सास को बीमारी की हालत में छोड़कर निखिल को लेकर मायके में आ बैठी।और आफिस का काम घर से करने लगीं ‌निखिल तो इस समय नौकरी पर था नहीं तो दोनों आकर घर में बैठ गए ।अब अंकिता की मम्मी बेटी को देख-देखकर खुश होती रहती थी कि मेरी बेटी पति पर कितना हुक्म चलाती है।और वो अंकिता की हर बात मानता है । वहां अपनी बीमार मां को छोड़कर ससुराल में बैठ गया था आकर पत्नी के कहे अनुसार।

                 आज अंकिता निखिल के लिए नाश्ता बनाने लगी तो नीलम ने उसको बुला कर उसके कान भरे । अंकिता ये क्या तुम उसकी  जी हुजूरी करती रहती हो ।अरे चाय के साथ नमकीन बिस्कुट दे दो ।एक तो वो खुद कोई नौकरी नहीं कर रहा है और तुम नौकरी भी करो और उसके लिए चाय नाश्ता भी बनाओ। निखिल से कह दो कि खुद चाय बना लें क्या कर रहा है बैठे बैठे।ऐसे खाने के समय भी मम्मी अंकिता को टोकने लगी। कोई जरूरत नहीं है उसके पसंद की सब्जी बनाने की जो बना है वही खाने को दे दो ।और कपड़े मशीन में पड़े हैं निखिल से बोलो छत पर सुखा दें ।अब ससुराल में बैठा दामाद वो भी बिना नौकरी के तो क्या इज्जत रहेगी उसकी। ऐसे ही उल्टी सीधी बातें अंकिता के कानों में भरकर नीलम बेटी का घर बर्बाद कर रही थी ‌दो तीन साल तक ऐसे ही चलता रहा निखिल अंकिता से बिल्कुल ही दब कर रह गया था।

                 ससुराल में सरस्वती जी बीमार थी और उनकी देखभाल की बजाय बेटा ससुराल में जाकर बैठ गया था। सरस्वती जी के मन में बेटे बहू के लिए बहुत गुस्सा भर गया था। सरस्वती जी की एक नंद थी जिनके पति का देहांत हो चुका था और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी एक बेटा था पंद्रह साल का तो सरस्वती जी ने उनको अपने घर पर बुला लिया ।और उनको अपने पास रहने को कह दिया। दोनों मां बेटा मिलकर सरस्वती जी की सेवा करने लगे।

                  अब इधर करीब एक महीने अपने घर पर रहने के बाद अंकिता और निखिल जब अपने घर गए तो मां सरस्वती जी ने घर में आने को मना कर दिया। बोली जाओ वहीं ससुराल में रहो जाकर और दरवाजा जोर से बंद कर दिया। कुछ देर बाहर खड़े रहने के बाद अंकिता और निखिल फिर से अपने घर आ गए ।

            आज राखी का त्यौहार था अंकिता की बुआ घर आई हुई थी तो नीलम अंकिता की सास की सब बातें ननद को बता रही थी बड़े गुस्से में। सबकुछ सुनने के बाद अंकिता की बुआ सविता जी ने कहा देखो नीलम जब बेटी की शादी हो जाए तो उसके ससुराल में ज्यादा दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए।घर टूटता है ऐसे। बेटी को अपने घर में बसने दो , ससुराल ही अब उसका घर है।तुम उसका घर बसने नहीं दे रही हो। जाने दो उसको अपने ससुराल ।तुम क्यों उसका घर बर्बाद कर रही हो। बहुत समझाया सविता ने तब जाकर नीलम की आंखें खुली । सविता बोली शादी के बाद बेटी को मायके में ज्यादा दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए । इससे दोनों घरों में फर्क पड़ता है।कल के नीलम बेटे की शादी करोगी और अंकिता का मायके में इतनी दखलंदाजी रहेगी तो तुम्हारे बेटे बहू का घर बसेगा।बहू बेटों से तुम्हारी पटरी बैठ पाएगी।यहां भी वही होगा जो अंकिता के घर हो रहा है। इसलिए समझों नीलम भाभी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है । जाने दो अंकिता और निखिल को अपने घर। मम्मी है निखिल की बेटा है उनका एक बार माफी मांगेगा तो झट से माफ़ कर देंगी।खुश रहने दो उनको अपने घर में।

           निखिल मां से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा था माफ़ कर दो मां ,मैं अंकिता के बहकावे में आ गया था ।अब ऐसा नहीं होगा,मैं आपके पास ही रहूंगा अंकिता को जाना है तो जाए ।मैं समझाऊंगा उसे कि अब से यही है तुम्हारा घर इसको देखो। इतना कहते ही सरस्वती जी मान गई और बेटे को गले से लगा लिया। अंकिता ने भी सास के पांव छूकर माफी मांगी अब से ऐसा नहीं होगा ।

मंजू ओमर 

झांसी उत्तर प्रदेश

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