गऊ – गीता वाधवानी

” देवकी के पापा, मुझे तो देवकी की बहुत चिंता हो रही है,विवाह तो कर दिया हमने उसका, परंतु इतनी सीधी लड़की ससुराल में कैसे रहेगी,ना जाने इतनी सीधी गाए जैसी लड़की, आज के कलयुग में कैसे पैदा हो गई, इसे तो सतयुग में पैदा होना चाहिए था,ना मुंह में जुबान और ना हाथों को आराम।सारा दिन कुछ ना कुछ काम करती रहती है,कभी पढ़ाई लिखाई,,कभी घर के काम,कभी सिलाई बुनाई और आज तक अपने छोटे भाई को डांटा तक नहीं,बस बड़ी बहन बनाकर खूब प्यार जताया। मुझे तो डर है कि कहीं उसकी सास और उसकी जेठानी उसे अपनी नौकरानी की तरह बनाकर ना रख दे। ” 

 यह सब देवकी की मां लक्ष्मी अपने पति गोपाल से कह रही थी। 

    गोपाल-” तू चिंता मत कर लक्ष्मी देवकी से कोई कभी नाराज नहीं हो सकता, देखना ससुराल में हमारा मान बढ़ाएगी और सदा सुखी रहेगी। सीधी है तो क्या हुआ समझदार भी तो बहुत है। समय के साथ चालाक भी हो जाएगी। उसकी सास तो बहुत ही अच्छी औरत है, लेकिन जेठानी के बारे में मैं कुछ नहीं जानता। ” 

     देवकी सचमुच बहुत अच्छी थी। सहेलियां में से कोई कुछ कह दे, पड़ोसी कुछ कह दे किसी को कभी पलट कर जवाब नहीं देती थी,बस मुस्कुरा कर कहती थी कोई बात नहीं और गिले शिकवे भूल जाती थी। 

       देवकी ब्याह कर ससुराल पहुंची। मन में बस एक ही चाहत थी कि ससुराल में सब मुझे प्यार करें,देवकी की सास सचमुच बहुत अच्छी थी और देवकी का पति दीपक उसे बहुत चाहता था। 

     देवकी के जेठ जेठानी बहुत कुटिल स्वभाव के थे। वह देवकी की अच्छाई और सीधेपन का बहुत फायदा उठाने लगे थे।जेठानी सारे काम उसी से करवाती थी और उसे नकली प्यार दिखा कर कहती थी तू तो मेरी छोटी बहन जैसी है। 

      कभी-कभी सास देवकी से कहती, ” देवकी कभी तो किसी काम को मना कर दिया कर अपनी जेठानी को, तुझे भी आराम की जरूरत होती है। ” 

 देवकी मुस्कुरा देती। 

    विवाह के कुछ समय उपरांत दीपक को शराब पीने की लत लग गई। वह जूते बनाने की फैक्ट्री में सुपरवाइजर था। पहले वह कभी-कभी शराब पीता था लेकिन अब वह कुछ दिनों से प्रतिदिन शराब पीने लगा था और देवकी के ऊपर हाथ भी उठाने लगा था। देवकी उसे समझाती थी। सुबह नशा उतारने पर वह माफी मांगता था और रात को फिर पीकर आ जाता। मां ने भी उसे बहुत समझाया,पर शराब अब उसके सिर चढ़कर बोलने लगी थी। 

      देवकी ने अपने इस दुख की भनक कभी मायके में लगने ना दी,मायके वाले बेहद खुश थे कि हमारी बेटी देवकी सुखी है। 

      देवकी के जेठ जेठानी देवकी को ताने मारते थे। कहते थे तू ही मनहूस है, क्योंकि पहले तो दीपक ऐसा नहीं था। देवकी चुप रहती। 

     एक दिन देवकी ने अपने गर्भवती होने का समाचार अपनी सास को बताया। सासू मां बहुत खुश हुई और दीपक को समझाया कि “तू अब सुधर जा, बाप होने की जिम्मेदारी समझ और शराब पीना छोड़ दे। दीपक भी बहुत खुश था लगभग 15 दिन निकल गए,उसने शराब को हाथ तक नहीं लगाया और फिर 16 दिन शराब पीकर आ गया देवकी को कहने लगा खाना लगा दे।देवकी जब तक रोटी सेंकती,तब तक दीपक को गुस्सा आ गया और उसने देवकी को बहुत पीटा। 

 सुबह दीपक की मां ने, उसके होश में आने पर, दीपक को जोरदार तमाचा गाल पर जड़ते हुए कहा -” बेशर्म, वह इतनी सीधी लड़की है,तुझे कुछ भी नहीं रहती, कोई और लड़की होती तो तेरा हाथ तोड़ देती, शर्म कर वह गर्भवती है।आज मैं तुझे आगाह कर रही हूं कि अगर तू अब भी नहीं सुधरा,तो यही सीधी लड़की तुझे एक दिन ऐसा सबक सिखाएगी कि तूने कल्पना भी नहीं की होगी,याद रखना मेरी बात,ये गऊ एक दिन तुझे अपने नुकीले सींग जरूर दिखाएगी, क्योंकि बर्दाश्त की भी एक सीमा होती है। ” 

        देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ड्यूटी पर समय पर न पहुंचने के कारण दीपक की नौकरी जाती रही। सास बहू दोनों मिलकर लोगों के कपड़े सिलने लगी। बच्चा भी धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था उसकी पढ़ाई के लिए बहुत पैसों की जरूरत थी। 

      दीपक की नौकरी जाने के बाद,जेठ जेठानी ने जिम्मेदारियां से बचने के लिए अलग होने का फैसला कर लिया था। तब पहली बार देवकी ने अपना मुंह खोलकर अपनी जेठानी से कहा था-” आपसे यही उम्मीद थी। ” 

    फिर उसने हिम्मत करके अपने थोड़े बहुत गहने बेच दिए और कुछ रुपए उसकी सास ने दिए। उन्होंने बाहर वाले कमरे में बुटीक खोल लिया। दीपक शराब के लिए पैसे मांगता तो देवकी मना कर देती थी। अब वह कभी-कभी घर में चोरी करने लगा था। 

     एक बार बुटीक में सूट सिलवाने वाली एक औरत ने देवकी से कहा-” अपने फैंसी बटन का रेट बहुत ज्यादा लगाया है, बाजार में सस्ता मिलता है। ” 

 देवकी ने तुरंत कहा-” ठीक है आप लाकर दीजिए, हम लगवा देंगे लेकिन बटन लगाने के अलग से पैसे लगेंगे। ” 

 सास को खुशी थी कि देवकी अब बोलना सीख गई है। इसी तरह एक बार एक सूट सिलने को देने के लिए औरत आई थी, जाते समय उसने कहा आधा मीटर कपड़ा ज्यादा है, कहीं अपने पास रख मत लेना। ” 

 देवकी ने तुरंत कहा -” 1 मिनट रुकिए, और उसने कपड़ा नाप कर देखा तो कपड़ा पूरा 4 मीटर था। उसने कहा आधा मीटर कपड़ा ज्यादा नहीं है। आपने हमसे गलत कहा। आगे आपकी मर्जी है सूट सिलवाना है तो सिलवाइए,वरना अपना कपड़ा ले जाइए क्योंकि इसमें से कपड़ा बचेगा नहीं। ” 

    उस औरत को पता था कि कपड़ा पूरा 4 मीटर है ज्यादा नहीं है। 

 एक बार दीपक ने शराब के लिए पैसे मांगे तो देवकी ने साफ इनकार कर दिया, तब उसने देवकी को करने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, देवकी ने उसका हाथ जोड़ से मरोड़ दिया और कहा -” बस अब बहुत हुआ, अब और नहीं, अब मुझ पर हाथ उठाया तो हाथ तोड़ दूंगी। ” 

 दीपक एकदम चौंक गया,तब से उसने देवकी पर हाथ उठाने की हिम्मत नहीं की। एक बार देवकी ने अपने बच्चों की नर्सरी की फीस भरने के लिए 3 महीने के 12000  रखे थे। वह पैसे दीपक चुरा रहा था, तब देवकी ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। देवकी ने कहा-” आपको शर्म आनी चाहिए। माँ जी इस उम्र मे भी काम कर रही है, सारा दिन मेरे साथ बुटीक में लगी रहती है, और आप शराब पीकर पड़े रहते हैं, आपको शर्म नहीं आई, बच्चा पहली बार स्कूल जाएगा और आप उसकी फीस के पैसे चुरा कर शराब पीना चाहते हैं। इसे छोड़ क्यों नहीं देते, शराब ने हमारी सारी खुशियां निगल ली हैं। ” 

 दीपक जोर से चिल्लाया-” भाषण मत दे, हर वक्त बच्चा-बच्चा करती रहती है, बड़ा आया पढ़ाई करने वाला, क्या करेगा पढ़ लिखकर, जब होगा तभी तो पढेगा, ऐसा कहकर वह बच्चे की तरफ ऐसे बढा, मानो वह उसका बेटा ना होकर कोई दुश्मन हो। देवकी उसका इरादा भांप चुकी थी। वह समझ गई थी कि यह बच्चे को नुकसान पहुंचाने वाला है। 

    उसने आव देखा न ताव, पास में पड़ी कैंची उठाई, और बच्चे को बचाने की खातिर दीपक के सिर पर दे मारी। वार भारी नहीं हल्का था। दीपक के सर से थोड़ा सा खून निकल रहा था। देवकी ने डॉक्टर के पास ले जाकर मरहम पट्टी करवाई।  

      पूरे 10 दिन दीपक दवाई लेता रहा और देवकी उसकी तीमारदारी करती रही।उसने दीपक से कहा-” आपने शराब पीकर हर बार मुझे मारा पीटा, मैं सहन करती रही, पर मैं अपने बच्चों का बाल भी बांका होने नहीं दूंगी, मैं अपने बच्चों को किसी को छूने भी नहीं दूंगी, आपको भी नहीं,ना किसी और को। आइंदा ऐसी गलती कभी मत करना। अब आप शराब छोड़ने की कोशिश कीजिए, आप इसे छोड़ सकते हैं। ” 

      देवकी 10 दिन से दीपक को नशा छुडवाने वाली दवाई सब्जी में मिलाकर दे रही थी, दीपक को बिना बताए। एक दिन वह बुटीक का कुछ सामान लेने बाजार गई, तब दीपक ने अपनी मां से कहा-” मां मैं मानता हूं की सारी गलती मेरी है, पर देवकी कितना बदल गई है। ” 

 मां ने कहा-” हां, और वह करती भी क्या, बहू ने  ना, अब बोलना सीख लिया है। हम सब ने ही उसे बोलना सिखाया, पहले तो वह सचमुच गऊ थी, शायद तुम्हें मेरी बात याद होगी। ” 

 दीपक को अपनी मां की कहानी बात अच्छी तरह याद थी। 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली 

कहानी का शीर्षक- गऊ

# बहू ने ना, बोलना सीख लिया

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