रिश्ते भावनाओं से निभाये जाते हैं – डॉ बीना कुण्डलिया 

आज बेला जी भीतर से आनंदित आँगन में बैठी गुनगुना रही उनकी बहु माया रसोईघर में व्यस्त तभी फोन की घंटी घनघनाती है। बहु माया दौड़कर फोन उठाती है… हाँ,हाँ क्यों नहीं कैसी  बात करती हो । जरूर आओ मानसी इसमें पूछने वाली क्या बात हुई भला ? तुम्हारा ही घर है जब मर्जी चली आओ अरे मैं तो कहती हूँ पूरे अधिकार से आओ । उधर से मानसी कहती हैं भाभी “माँ कैसी है ? आंगन में बैठीँ हैँ… दो मिनट रूको बुलाती हूँ , माया बोली अरे नहीं रहने दो न परेशान मत करो भाभी माँ को,मैं आ ही रही हूँ उधर, वहीं मिल लुंगी उनसे। अच्छा भाभी मिलती हूँ जल्दी ही कहकर मानसी ने फोन बंद कर दिया।

बेला जी पूछती है किसका फोन था बहु माया कहती हैं मांजी ननद रानी मानसी का दो दिन बाद आ रही है बच्चों की छुट्टी है और जवाई राजा ऑफिस से टूर पर जा रहे हैं। अब बताओ मांजी, “पूछ रही क्या मैं आ जाऊं “ ये ननद रानी भी… बेटी के आने की खबर सुनकर बेला जी के चेहरे पर चमक आ जाती है। अच्छा बहु आ रही मानसी याद भी बहुत आ रही थी उसकी इस बार तो साल भर बाद आ रही है। हां मांजी सही कह रहे आप कहते हुए माया दुबारा रसोईघर में व्यस्त हो गई ।

दो दिन बाद मानसी जब मायके आती है तो भाभी माया बहुत ही स्नेह से स्वागत करती है। बेला जी बेटी को गले लगा लेती है। कहतीं हैं अरे बेटा आ जाया कर जल्दी जल्दी माँ से मिलने का मन नहीं करता क्या तेरा ? मेरी तो आँखें ही तरस जाती है तुझे देखने के लिए। मानसी बच्चों के स्कूल पढ़ाई-लिखाई पति के ऑफिस का हवाला देकर माँ को समझाती है। भाई भाभी के बच्चे मानसी के बच्चे घर में चहल पहल खुशियों भरा माहौल हो जाता है। मानसी दिल की बहुत ही रहमदिल भाभी को घर के काम में हर तरह मदद करती जिससे भाभी माया को उसके आने पर अतिरिक्त कार्य का भार या परायापन बिल्कुल भी महसूस नहीं होता है।

शाम को मानसी के भाई  खूब सारी आइसक्रीम चाकलेट मिठाई फल फ़ूड लेकर आते हैं सभी बच्चों को प्यार से बांटते हैं। बच्चे मामा के साथ खूब हिले मिले और उनके बच्चे बुआ के बच्चों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध रखते हैं। लेकिन बेला जी को मानसी की कुछ ज्यादा ही फिक्र रहती वो उसको बात बात पर टोकती मानसी तु मेरे साथ बैठ सारा समय रसोईघर में घुसी रहती है। वो बहु माया संभाल लेगी दो चार दिन के लिए तो आई है अरे मायके बेटियां आराम करने आती है काम करने नहीं आती है। आजा थोड़ा आराम कर ले बैठ मेरे पास आकर । मानसी कहती हैं माँ बस दोपहर का काम निपट जाये खा पीकर आराम से बैठते हैं चिंता न करें फिर जी भरकर बातचीत करती हूँ आपसे।

तभी मानसी देखती है माया भाभी किसी से फोन में बातचीत कर रही होती हैं। और रो रही होती हैं। जैसे ही वो फोन रखती है मानसी पास जाकर पूछती है- भाभी क्या हुआ किसका फोन था आप रो क्यों रही है ? माया बताती है मानसी मेरी माँ बहुत बीमार है पिताजी ने उनको अस्पताल में भर्ती करवाया दिया है ‌। मानसी कहती हैं भाभी आप जाये उनके पास, मिलकर आयें खूब देखभाल कीजिए जाकर उनकी। माया कहती हैं मगर मैं कैसे जाऊं ?  कल से दोनों बच्चों के प्रेक्टिकल शुरू है । तीन दिन चलेंगे छोड़े नहीं जा सकते।

मानसी भाभी की बात से थोड़ा रूष्ट होकर कहती हैं आप चिंता न करें मैं हूँ न यहां, दो चार दिन ज्यादा रूक जाऊंगी मेरे बच्चों के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। आप जाये माँ से मिलें जब तक ठीक नहीं हो जाती रूकें देखभाल करें उनकी। बच्चों की घर की चिंता न करें मैं सब देख लुंगी। आप बेफिक्र होकर जाये।

भाभी माया बच्चों को मानसी के हवाले करके अपने मायके चली जाती है। मानसी अच्छे से घर को संभालती है।रात को बेला जी और मानसी बैठे बातें कर रहे होते हैं। बातों ही बातों में बेला जी मानसी से कहती हैं अलमारी की चाबी ले इससे मेरी अलमारी खोलकर मेरे गहनों का डब्बा ले आ । मानसी गहनों के डब्बे उठा लाती है। बेला जी मानसी से कहती हैं ले इनमें से जो गहने चाहिए लेकर रख ले अपने पास आज बहु माया नहीं है घर में वरना तो ये गहने उसके सामने मैं निकालती भी नहीं । अब क्या भरोसा इन बहुओं का ?  ये तो सास के मरने का इंतजार करतीं रहती अब मरे बुढ़िया तब मरे ताकि गहनों कपड़ों पर हाथ साफ करें।

मानसी माँ की बातें सुनकर थोड़ा बुरा सा मान जाती है। मां आप ऐसा क्यों सोचती हो । भाभी ने कभी आपको कुछ कहा क्या ?

नहीं नहीं कहा तो कभी कुछ नहीं बेला जी नम्र लहजे से बोली।

तो माँ बैठे बैठे अपने आप ऐसी बेकार की उलूल जलूल बातें मत सोचा करें। 

भाभी आपकी कितनी देखभाल करती है कभी आपको शिकायत का मौका ही नहीं देती है। 

“ माँ देखिए, रिश्ते कभी खत्म नहीं होते हैं अगर उनको प्यार से सींचते रहो तो, कभी कभी हम जीवन भर रिश्तों के महत्व उसकी कीमत का अंदाजा ही नहीं लगा पाते,ये रिश्ते जो होते हैं ये हमारी ताकत होते हैं ,जिनकी नींव प्रेम और त्याग पर ही टिकती है “।

मानसी माँ को समझाती है माँ आप भाभी को भरपूर प्यार दें उन पर विश्वास करें फिर देखना वो आपको और अधिक सम्मान देने लगेंगी फिर आप दोनों का रिश्ता सास बहु का नहीं मां बेटी का बन जायेगा।

 ये जो गहने है आपके इन पर सबसे ज्यादा हक भाभी का ही है मेरा नहीं है वो इस घर की लक्ष्मी है।और लक्ष्मी गहनों से लदी अच्छी लगती है। आपके दुख सुख में भाभी ही बराबर हिस्सेदार रहती है मैं तो कभी कभी ही आ पाती हूँ । इसलिए मुझसे ज्यादा भाभी का ही अधिकार है माँ… मानसी रूआंसी सी होकर बोली।

बेला जी बेटी की बात से प्रभावित होकर कहती हैं तु सही कह रही है मानसी मेरी बहु मेरा बहुत ख्याल रखती है। जब मैं उसको ये गहने दूंगी तो वो बहुत खुश हो जायेगी। सयझेगी मैं कितनी इज्जत और विश्वास करती हूँ उस पर ।

दो दिन बाद बहु माया मायके से लौट आती है और आते ही ननद मानसी को गले लगा लेती है।

मानसी कहती हैं कैसी है अब आपकी माँ की तबीयत भाभी ?

माया कहती हैं- शुक्रिया मानसी, तुम्हारी वजह से ही मैं माँ की देखभाल कर सकी उनकी तबीयत अब ठीक है बड़ी दीदी आ गई उनकी देखभाल के लिए अब मुझे ज्यादा चिंता नहीं है वो क्या है न ? हमारा कोई भाई तो है नहीं, हम दो बहनें ही हैं माँ पिताजी अकेले ही रहते वैसे दीदी आती जाती रहती है उनके पास । माया आँखों में आये आँसू पौछती हुए बोली 

 तभी बेला जी कमरे में आ जाती है बोलती है अरे बहु कैसी तबीयत है समधन जी की सब कुशल मंगल है न

माया बोली मांजी,सब ठीक है मांजी ।

बेला जी उत्सुकता से बोलीं चलो ऊपर वाला जो करता सब भले के लिए ही करता । अच्छा चलो अब ये बताओ कल क्या क्या प्रोग्राम रहेगा ?

कैसा प्रोग्राम मांजी मैं समझी नहीं माया चौंकते हुए बोली ?

बेला जी मुस्कुराते हुए बोली अरे भई कल जन्म दिन है तुम्हारा 

माया बोली अच्छा मांजी आपको याद है। 

बेला जी बोली याद कैसे नहीं रहेगा अरे जब मैं अपनी बेटी का जन्मदिन नहीं भूल सकती तो बेटी जैसी बहु का कैसे भूल सकती हूँ भला।

 दूसरे दिन घर में खुशी का माहौल सुबह से ही ननद भाभी मिलकर तरह तरह के पकवान बनाने में व्यस्त बहु माया दौड़ दौड़कर खुशी खुशी काम कर रही वो मानसी से कहती हैं मानसी जाओ तुम थोड़ा आराम कर लो मै जानती हूँ मेरे बन्दर बच्चों ने तुमको दो दिन बहुत दौड़ाया होगा परेशान किया होगा एक नम्बर के शरारती जो हैं वो ।

मानसी कहती हैं कैसी बात करती हो परेशान कैसा ? भाभी, मेरे भतीजे भतीजी हैं वो बुआ हूँ मैं उनकी ।

सभी मिलकर बहु माया का जन्मदिन मनाते हैं पति राजेश और बच्चे गुब्बारे फोड़ रहे। हंसी मजाक भागदौड़ धमाचौकड़ी मचा रहे । तभी बेला जी और मानसी गहनों का डब्बा लेकर आती हैं । बेला जी वो डब्बा माया के आगे रखकर कहतीं हैं माया बहु लो पसन्द कर लो क्या चाहिए ? माया की आँखें खुशी से छलक जाती है सासूमां का इतना प्यार दुलार विश्वास देखकर वो डब्बा खोलकर मानसी की तरफ बढ़ा देती है। मांजी पहले मानसी अपनी पसंद का लेगी फिर मैं लुंगी।

मानसी झुमके ले लेती है मुझे बस यही लेने है। बेला जी बाकी के गहने बहु माया को देते हुए कहती हैं ले बहु संभाल इनको, मैंने तो बहुत पहन लिए अब ये मेरे किसी काम के नहीं हैं।आज से ये मेरी बहु की शौभा बढ़ायेंगे। तभी सभी बच्चे हैप्पी बर्थडे की मधुर ध्वनि में नाचने लगते हैं। सभी खुशनुमा माहौल के रंग में रंगे मस्ती में झूमने खाने पीने में मस्त हो जाते हैं। बेला जी सोफे पर बैठी कभी बहु माया को कभी बेटी मानसी को निहारती मन ही मन खुशी से बुदबुदाती हैं सही में रिश्ते भावनाओं से ही निभाये जाते हैं। अगर सभी एक दूसरे को समझें तो इस जिंदगी में जीना कितना आसान हो जाता है।

लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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