ससुराल वाले बड़ी बहू को इंसान क्यों नहीं समझते – सरिता कुमार 

एक गांव में बड़े प्रतिष्ठित शिक्षक का घर है । बहुत बड़ा सा घर , बड़ा दरवाजा , घर के आगे बड़ा सा ओसारा, अंदर बड़ा सा आंगन और पीछे बड़ा दालान जहां दर्जनों अनाजों की कोठियां बनाई हुई है । सभी कोठियों में गेहूं , धान , अरहर , मूंग , सरसों और तोड़ी भरा हुआ है । द्वार पर तीन गाय और दो बछड़ा बांधा हुआ है ।

एक राजदूत मोटरसाइकिल और एक लूना मोपेड भी शोभा बढ़ा रहा है । कुल मिलाकर यह समझा जा सकता है कि घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं है । बहुत सम्पन्न , समृद्ध और सुखी परिवार होगा । मास्टर जी को दवाईयों का भी थोड़ा बहुत ज्ञान था , थोड़ी सी और पढ़ाई-लिखाई कर ली सो अब डॉक्टर साहब भी बन गए ।

धीरे-धीरे इनकी डॉक्टरी चल पड़ी बाइस कोस में इनकी चर्चा होने लगी । बहुत मान सम्मान मिलने लगा । आमदनी का एक और जरिया भी मिल गया । अब डॉक्टरनी बहुत प्रसन्न रहने लगीं । उन्होंने बड़े बेटे की ब्याह की सोची पिता के नाम पर बहुत सारे रिश्ते आने लगा । बेटा कुछ खास अच्छा नहीं था , पढ़ाई-लिखाई भी नहीं की , इसलिए बेरोजगार ही था ऐसे में अच्छे परिवार की लड़की मिलना मुश्किल लग रहा था इसलिए कुछ पैसे देकर मास्टर जी ने एक दुकान खुलवा दिया और जल्दी ही एक सम्पन्न घराने से रिश्ता आया और चट मंगनी पट ब्याह हो गई ।

बहू घर आई जिसे देखकर सभी प्रसन्न हुएं क्योंकि श्याम दुल्हे को श्वेत दुल्हन मिली थी । लेकिन दान दहेज में कुछ भी नहीं लाई थी ।ख़ैर … यह तो दुल्हन के माता-पिता की ग़लती थी । उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि उनकी एक बार की इस ग़लती की सज़ा उनकी बेटी को आठों पहर तीसों दिन और बरसों बरस झेलना होगा ।

यूं तो सुमन देवी इस संभ्रांत परिवार की बड़ी बहू थीं लेकिन इसका कोई मान उन्हें कभी नहीं मिला । बस दिन गुज़र रहें थें एक युग गुजारने के बाद घर में छोटी बहू आई जो साथ में खूब दान दहेज और शहर के नामी कॉलेज की पढ़ी लिखी ग्रेजुएशन की डिग्री लेकर आई । सिर्फ पढ़ी लिखी ही नहीं बल्कि घर के हर काम में प्रवीण थी । सिलाई , कढ़ाई,बुनाई , धुलाई और पाक-कला में भी निपुण । अलग-अलग राज्यों के व्यंजन भी खूब स्वादिष्ट बनाती थी । छोटी बहू के आने से घर की रौनक बढ़ गई थी । पूरे परिवार में खुशहाली छा गई थी ।

घर के भीतर बहुत कुछ बदल गया था मगर एक बात तब भी नहीं बदली वो था बड़ी बहू का खाना पीना , हंसना बोलना और घूमना-फिरना…। अभी भी घर में दो तरह का खाना बनता था एक उच्च कोटि का भोजन जो मास्टर जी , उनकी पत्नी , उनके चारों बच्चें , छोटी बहू और एक पोता और एक पोती के लिए होता और दूसरा अति निम्न कोटि का चावल का खुद्दी जिसमें कुनी भी शामिल रहता था वो चावल के रूप में और दाल में मांड मिलाकर , सब्जी के नाम पर एक चम्मच सब्जी का रस्सा दिया जाता था ।

यह अति विशिष्ट भोजन उस गांव के प्रतिष्ठित संभ्रांत परिवार की बड़ी बहू और उनके तीन अतिरिक्त बच्चे जिसे पूरे मन स्वीकार नहीं किया गया था । ऐसा लगता कि बड़ी बहू को इंसान नहीं समझा जाता है क्योंकि जिस तरह घर और खेतों का काम जानवरों की तरह करवाया जाता था उसी तरह इनका भोजन भी पशुओं जैसा ही बनाया जाता था । यह नियम घर की मुखियाइन का बनाया हुआ था जिसे बदलने की हैसियत किसी की नहीं थी यहां तक कि मुखिया जी भी नहीं हस्तक्षेप कर सकते थें । गृह क्लेश से बचने के लिए बाकी सभी सदस्यों ने मौन सहमति दे दी थी इसलिए यह ज़ुल्म होता रहा । 

जहां तक घर के कामकाज की बात होती तो बड़ी बहू को कर्तव्य बोध का अहसास कराया जाता । धान पीटने , उबालने , सुखाने के बाद कूटने फटकने तक की जिम्मेदारी सौंपी जाती । गेहूं का दौनी , मूंग , राई , सरसों पीटना , चना , मक्का उलावन करना और जाता में पीसकर गाय के दलिया और परिजनों के लिए सत्तू पीसना , चौका बर्तन धोना लिपना पोतना और सांझ ढलते छत पर चढ़कर गोबर से उपले ठोकना भी उन्हीं का काम होता लेकिन ताजे गेहूं के आटे का रोटी उन्हें नसीब नहीं होता और ना ही साबूत चावल का भात , दूध , दही , धी और पकवान खाना तो जैसे अपराध था ।

छोटी बहू को यह बात स्वीकार नहीं हुई इसलिए उसने विरोध करना शुरू किया । घर के बाकी लोगों ने छोटी बहू को समझने की बहुत कोशिश की लेकिन छात्रसंघ की नेता रह चुकी छोटी बहू अपनी नेतागिरी चलाना शुरू कर दिया । घर के पुरुषों के भोजन के बाद सभी महिलाओं को एक साथ भोजन करने का नियम बनाया और पांचों बच्चों को भी एक साथ एक जैसा भोजन देने के लिए आगे बढ़ी ।

लेकिन घर में कोहराम मच गया घर के तमाम लोग एक तरफ हो गए और छोटी बहू दूसरी तरफ । छोटी बहू को समझाया जाने लगा कि तुम पढ़ी लिखी , सुंदर , सुघड़ , सर्वगुण संपन्न हो और बेहिसाब दान दहेज लेकर आई हो । तुम्हारे घर वालों ने बारातियों का जो स्वागत किया वो पूरे गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है पिछले बीस पच्चीस सालों में ऐसी खातिरदारी नहीं हुई थी इस गांव में किसी की जो तुम्हारे दरवाजे पर हुई थी । कहां तुम और कहां वो ?

तुम दोनों की कोई बराबरी नहीं हो सकती बड़की कभी तुम्हारे साथ खाना नहीं खा सकती है। इस घर में जो चल रहा है वैसा ही चलने दो । छोटी बहू ने इस बात को हल्के में लिया और अपनी बात पर अड़ी रही कि वो खाना खाएगी ही नहीं जेठानी के बिना । चुंकि छोटा बेटा कमा कर मोटी रकम हर महीने भेजता था इसलिए खून का घूंट पीकर एक साथ खाना खाने की इजाजत मिल गई । धीरे-धीरे बच्चों की स्थिति भी ठीक हो गई । बड़ी बहू के मायके वाले आने लगें और सभी ने छोटी बहू को खूब आशीर्वाद दिया । घर का माहौल खुशनुमा हो गया । छोटी बहू ने बड़ी बहू की सारी जिम्मेदारी उठा ली । सभी लोग खुशी खुशी रहने लगें ।

छोटी बहू को लगने लगा की वो जीत गई उसने बरसों की गलत परंपरा को तोड़ दिया है । परिवार में समानता लाकर सबको सुखी और भावनात्मक रूप से समृद्ध बना दिया है । जेठानी के चेहरे पर रौनक चढ़ने लगी और वो छोटी बहू से अधिक सुंदर दिखने लगी । बाहर आना-जाना घूमना फिरना सब शुरू हो गया ।

एक तरफ से खुशहाली बढ़ी , सुख वैभव और शांति बढ़ी । बच्चे पढ़ाई लिखाई करने लगें । सभी के कपड़े इस्त्री किए और जूते पॉलिश करके रखे हुए मिलने लगे । बड़ी बहू अब हंसने बोलने और खुलकर ठहाके भी लगाने लगीं लेकिन परिवार की महिलाओं के बीच में ही । जब गांव की महिलाएं आतीं तो दोनों बहूएं अपने अपने कमरे में चलीं जाती । 

छोटी बहू एक आफिसर की बेटी, पढ़ी-लिखी थी लेकिन रिश्तों की मर्यादा समझती थी इसलिए कभी किसी बात का गुमान नहीं किया और घर में सबसे छोटी और कमतर बन कर रहते हुए बड़ी बहू को उनके हिस्से का मान सम्मान और उनका सही ओहदा दिखाया । ईश्वर ने भी बड़ी बहू का साथ दिया और उनके हाथों में आ गया वह सम्राज्य जिस पर उनका अधिकार तो था लेकिन हासिल नहीं हुआ था । 

स्वरचित 

लिटरेरी जनरल सरिता कुमार , फरीदाबाद

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