बहू ने ना बोलना सीख लिया

कल शाम से ही जया जी की नजरें अपनी बहू रुची के चेहरे के पर ही रह रह कर दौड़ रही थी। क्योंकि जब से उनकी बहू रुची पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली नीति के यहां जाकर आई थी। तब से ही उसका मन उखड़ा उखड़ा लग रहा था। जया जी का बार-बार मन हो रहा था। बहू रुची से पूछ ले । आखिर अपनी सहेली नीति के यहां ऐसी क्या बात हो गई। जो वहां से आकर उदास और निराश हो गई है क्योंकि ऐसे रुची कहीं से भी आती, तो तुरंत अपनी सारी बातें अपनी सास जया जी से कहे बगैर नहीं रहती थी क्योंकि दोनों का रिश्ता फूल और माली जैसा ही था। जो एक दूसरे के बगैर बिल्कुल अधूरा था ।

 हालांकि हर वक्त जया जी भी हर किसी की जरूरत पर मदद के लिए तैयार रहती थी, हंसते-हंसते हर किसी की उलझन को एक पल में ही सुलझा दिया करती थी। पूरी सोसायटी में सभी उनको बहुत प्यार करते थे। उनका आदर सम्मान करते थे। उसी में उनकी अपनी बहू रुची भी शामिल थी। जया जी का मन तो बहुत किया मगर, फिर कुछ सोच कर अपने ख्याल को झटक दिया और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई ।

 शाम ढलते ही जैसे ही जया जी ने रुची से सोसाइटी के कीर्तन में चलने को कहा तो रुची शांत मन से बोल उठी। मम्मी जी आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। आप ही सोसाइटी के कीर्तन में होकर आ जाइए कहते हुए वह अपने कमरे की ओर जाने लगी। 

जया जी ने रुची की बात सुनते ही उसका हाथ पकड़ लिया और प्यार से बैठा कर पूछने लगी। क्या बात है बहू ?? कल शाम से ही मैं तुम्हें निराश देख रही हूं। मुझे बताओ मैं तो तुम्हारी सास और मां दोनों ही हूं। अपनी मां को भी नहीं बताओगी । अपनी सास की प्यार भरी बात सुनकर रुची से रहा नहीं गया और कहने लगी ।

 बस मम्मीजी आपका यही प्यार मेरी सहेली नीति को अच्छा नहीं लगता।  उसे यह सब ड्रामा लगता है क्योंकि उसकी खुद की तो कभी अपनी सास से बनी नहीं और अब आपके और मेरे रिश्ते के बीच भी नफरत के बीज बोने चली थी। जो मुझे स्वीकार नहीं था,इसीलिए कल शाम मैंने उसकी दोस्ती को ना कह दिया है ।

 नहीं चाहिए ऐसी दोस्ती, जो मेरे और आपके बीच की नजदीकियों को खत्म कर दे। नहीं चाहिए ऐसी दोस्ती जो मेरे और आपके बीच के रिश्ते को ग्रहण लगा दे, हालांकि मुझे बहुत पहले ही इस दोस्ती को ना कर देना चाहिए था मगर, फिर मैंने सोचा नीति को एक मौका दिया जाना चाहिए मगर कल तो उस ने हद ही कर दी।

 पता है मम्मी जी वह मुझे आपसे अलग रहने की सलाह दे रही थी। बस यही बात मुझे उसकी अच्छी नहीं लगी और उसकी दोस्ती को ही मैंने ना कह दिया क्योंकि नीति को तो दोस्ती का मतलब ही नहीं पता। दोस्ती तो हमेशा इंसान को जोड़ना सिखाती है मगर नीति तो हम दोनों को ही अलग करना चाह रही थी। 

रुची की बात सुनते ही जया जी भाव विभोर हो उठी और उन्होंने रुची को गले से लगा लिया और फिर कहने लगी। तुमने तो आज दो घर की लाज रख ली है बहू। तुम्हारे मायके के दिए हुए संस्कार ने तुम्हें मुझसे अलग नहीं होने दिया या फिर मेरे प्यार ने यह तो ऊपर वाला ही जाने,मगर,तुम जैसी बहू पाकर मैं तो धन्य हो गई।

 अच्छा अभी फिलहाल मैं सोसाइटी के कीर्तन में जाकर आ जाती हूं फिर रात को मैं बादाम वाली खीर बनाऊंगी और अपने हाथों से अपनी बहू को खिलाऊंगी यह कहते हुए जया जी घर से निकल पड़ी। रास्ते भर उनके चेहरे पर जो खुशियां थी। वह रह रह कर झलकी जा रही थी क्योंकि बहुत सब्र के बाद उनकी बहू रुची ने ना कहना सीख लिया था। 

वहां जाते ही जया जी का सामना नीति से हो गया। जया जी को देखते ही नीति उनके करीब आ गई और कहने लगी। आंटी आप मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं अपनी भूल मानती हूं,मैं रुची को आपसे अलग करने की बहुत कोशिश करती रही। हमेशा आपके बारे में मैं रुची को भला बुरा कहती रही क्योंकि मैंने अपने घर में हमेशा यही देखा था। 

शुरुआती दिनों में तो रुची ने मुझे समझाना चाहा मगर, कल वो हमेशा के लिए मुझसे नाता तोड़ कर चली गई। प्लीज आंटी मैं रुची जैसी सहेली खोना नहीं चाहती हूं। जया जी ने नीति के चेहरे को गौर से देखा। जो काफी मुरझाया हुआ लग रहा था। तब जया जी ने नीति को समझाते हुए कहा ।

 नीति आज के बाद वादा करो। तुम फिर कभी किसी का घर नहीं तोड़ोगी। ऐसी गलत राय नहीं दोगी। दोस्ती का फायदा नहीं उठाओगी, वरना फिर मेरी बहू और तुम्हारी सहेली तुम्हें ना कहते देर नहीं करेगी और जाओ,अब अपनी सहेली रुची को मना लो कह कर जया जी मुस्कुराने लगी। जी आंटी कहकर नीति जया जी के कदमों में झुक गई।

कीर्तन के बाद घर लौटते वक्त जया जी का मन अपनी बहू रुची को बहुत आशीर्वाद दे रहा था  क्यों कि उनकी बहू ने अपने घर को बचाने के लिए नीति की दोस्ती तक को भी ना बोलना सीख लिया था।

स्वरचित 

सीमा सिंघी

गोलाघाट असम

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