बहू ने ना बोलना सीख लिया है – प्रतिमा श्रीवास्तव :

Moral Stories in Hindi

रजनी के मुंह से कभी भी किसी काम के लिए ना निकलता ही नहीं था। बड़े ही खुशी से हर किसी के काम को करती थी।उसे लगता था की सब अपने ही तो हैं कितने हक से मुझे कुछ कहते हैं वरना आजकल तो कोई किसी से मतलब ही कहां रखता है और हां ये सही बात थी की लोग अपने मतलब के लिए ही उससे जुड़े हुए थे।उसे उस दिन बहुत बड़ा झटका लगा जब उसने सुना की सास – ससुर और ननद जी मिल कर उसमें इतनी कमियां निकाल रहे हैं जैसे कोई प्रतियोगिता चल रही हो की कौन सबसे ज्यादा कमी निकालेगा रजनी में।

कुछ देर के लिए तो उसे अपने कानों पर ही भरोसा नहीं हुआ की ऐसा नहीं हो सकता है क्योंकि सभी तो मेरे अपने हैं और कितना प्यार करते हैं मुझसे। कहते हैं ना आंखों देखी कानों सुनी बात हर बार गलत नहीं होती है।

रजनी पूरी तरह से टूट चुकी थी और उसका भ्रम तो बचा ही नहीं था। कैसे इस परिवार को मैं अपना मानूं जहां उन्होंने मुझे कभी अपनाया ही नहीं था। सिर्फ दिखावा था वो भी अपने काम के लिए मेरा इस्तेमाल किया जा रहा था। मीठी-मीठी बातें कैसे कर लेते हैं ये लोग। इससे अच्छा था की असलियत में जैसे हैं वैसे ही मेरे साथ पेश आते।

जब पंचायत खत्म हुई तो फिर शुरू हो गया रजनी को बेवकूफ बनाने का सिलसिला।जिस खाने और चाय की कमियां निकाली जा रही थी थोड़ी देर पहली,उसी की फरमाइश बड़े ही सलीके से चाशनी लगा कर परोसी गई थी कि ,”रजनी बेटा अपनी वो अदरक वाली चाय तो पिलाना और हां तेरे हाथों के भजिए रेनू दीदी को बहुत पसंद हैं बना लेना “सासू मां ने फ़रमाया था।

पहले तो वो साथ में प्याज,बैगन और आलू के पकोड़े भी खुशी – खुशी बनाती थी क्योंकि उसे अच्छा लगता था की सभी उसके हाथों के बने व्यंजन पसंद करते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं हुआ था।

रजनी चाय और भजिए बनाया और रख कर कमरे में चली गई।मन तो कर रहा था की कुछ ना बनाए पर इतने सालों की आदत एकदम से नहीं जाती है पर मन ही मन फैसला कर लिया था की आदत भी बदली जा सकती है।

“ये क्या? भाभी ने तो सिर्फ भजिए ही बनाए”रेनू को थोड़ा अजीब लगा था क्योंकि रजनी की चहकती आवाज में खुशी – खुशी सबको खिलाना ये बात सभी को पता थी। ” आज भाभी हमारे साथ बैठी भी नहीं। ऐसा तो नहीं की उन्होंने कुछ सुना हो,जो हम सभी बातें कर रहे थे।”

रेनू थोड़ी दूर ही व्याही थी तो कभी भी आ जाती मायके और फरमाइशें शुरू हो जाती थी। मां – पापा को भी बड़ा मज़ा आता था बेटी के साथ भड़ास निकालने में लेकिन उनको नहीं पता था कि वो अपने घर के साथ – साथ बेटी की गृहस्थी में भी जहर घोल रहें हैं क्योंकि वो तो अपने परिवार की अहमियत देती नहीं थी और यहां एक परिवार तोड़ने की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी।

दूसरे दिन सासू मां ने बहुत सारा काम निकाला जो की उनकी आदत थी की बहू दिन में आराम ना करने पाए। कुछ ना कुछ सफाई या सिलाई – बुनाई निकाल ही लेती थी और ये भी डायलॉग होता था कि” हमारे जमाने में तो फटकना – पीसना सबकुछ पड़ता था।अब तो सब काम मशीन से हो जाता है। हमें तो आराम करने को मिलता ही नहीं था,मजाल है की दिन में लेट जाओ। मेरी अम्मा तो कहतीं थीं की बुड्ढों की तरह क्या लेटना दिन में।”

रजनी की आदत पड़ चुकी थी आराम ना करने की सुबह का जो उठी चकरघिन्नी की तरह चलती ही रहती थी।रात में जो बिस्तर पर पडती तो होश ही नहीं रहता। पतिदेव अलग नाराज हो जाते थे की “पूरे परिवार के लिए समय रहता है तुम्हारे पास मेरे लिए ही नहीं रहता है।”

आज दोपहर में जब मां जी ने ढेर सारा काम निकाला तो रजनी ने कहा मां,” मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं अब से दिन में आराम करूंगी,थक जाती हूं। देखिए ना जब से उठती हूं बस काम ही काम। मेरे लिए कभी वक्त ही नहीं निकाल पाती हूं।

दीदी के घर जैसे कामवाली है यहां भी रख ही लीजिए।”

सासू मां को उम्मीद ही नहीं थी कि रजनी ऐसा जबाब देगी। उन्होंने रेनू को फोन लगाया और कहा कि,” बहू ने भी ना कहना सीख लिया है।जो बिना जुबान की थी वो अब कह रही है की कामवाली बाई लगाने को।”

मां,” मुझे लगता है कि हम लोगों ने सचमुच भाभी के साथ ज्यादा बुरा बर्ताव कर लिया और आप ने भी अपनी सास का बदला भी भाभी से ही लिया है।”

” चुप कर मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा है की आखिर क्या हुआ अचानक से बहू को?”

रजनी अब घर के नियमित काम करती और कमरे में जाकर अपनी पसंद की किताबें पढ़ती तो कभी गाना सुनती।अब शाम को पतिदेव के आने के बाद सजी संवरी दिखती तो कभी – कभी शाम को घूमने भी निकल जाती मंदिर के बहाने वरना फुर्सत ही नहीं होती थी की वो कुछ भी सोचे।

वो तो खुश रहने लगी थी पर सासु मां बेचैन।वो जो भी नई योजना बनाकर रजनी को फसाना चाहती अब वो बेझिझक ही ना कह दिया करती थी।

सासू मां की भी आदत पड़ने लगी थी ना सुनने की क्यों कि कभी भी किसी के साथ अति नहीं करना चाहिए और किसी में इतनी भी कमी ना निकालो की करने वाले इंसान का रिश्तों के ऊपर से विश्वास ही ना उठ जाए। अगर दूसरा इंसान आपके सम्मान में आपके लिए कुछ करता है तो उसकी कद्र करो ना की बुराई क्योंकि बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है और अच्छे इंसान को भी मजबूर कर देता है आपके लिए ऐसा व्यवहार करने को। वरना कितना अच्छा परिवार धर्म निभाया था रजनी ने।

                                 प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी

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