सबक – डा० विजय लक्ष्मी :  Moral Stories in Hindi

बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठे श्यामलाल जी बार-बार एक ही लिफाफा खोलकर देख रहे थे। भीतर से लड़के की फोटो और बायोडाटा निकालते, माथे पर शिकन डालते और फिर अंदर रख देते।

उनकी पत्नी सुमित्रा देवी ने पानी का गिलास बढ़ाते हुए पूछा,
“क्या हुआ? रिश्ता पसंद नहीं आया क्या?”

श्याम लाल जी ने लंबी साँस लेते हुए कहा –
“लड़का देखने में अच्छा है, अपनी ही जात का है,  पीजी (MS) का फाइनल  है… पर दहेज पच्चीस लाख और गाड़ी माँग रहे हैं।”

सुमित्रा देवी के चेहरे पर निराशा फैल गई।
“इतना दहेज हम कहाँ से लाएँगे? ये तो बेटी को बेचने जैसा है। फिर क्या हमारी बेटी की पढ़ाई में पैसे नहीं खर्च हुए क्या दोनों मिलकर फिर कमा न लेंगे। “

पूजा, उनकी इकलौती बेटी, मेडिकल कॉलेज में पीजी का फर्स्ट ईयर है, अंदर से चाय की ट्रे लेकर आते हुए उसने अपने माता-पिता की बात सुनी ।
“पापा, अगर शादी सिर्फ पैसे के आधार पर होगी तो क्या ये रिश्ता टिकेगा इंसान का और उसकी काबिलियत का कोई मोल नहीं ?”

श्याम लाल जी ने गुस्से से देखते हुए कहा –
“तुम चुप रहो। बड़े-बूढ़े जो तय करेंगे, वही होगा।”

अगले ही हफ्ते उन्होंने एक और लड़का देख लिया — इस बार दहेज की मांग कम थी, पर लड़के की पढ़ाई बस बीए तक थी और काम भी स्थायी नहीं।
“जात का है, अपने लोग हैं, लड़के वाले कम में तैयार हैं।” श्याम लाल जी ने जैसे राहत की साँस ली।

लेकिन यह सुनकर पूजा का चेहरा उतर गया।
“पापा, मैं डॉक्टर बनने वाली हूँ… और आप मेरी शादी ऐसे लड़के से करना चाहते हैं जो मेरे सपनों को समझ ही नहीं पाएगा?”

श्याम लाल जी की आवाज़ में कठोरता थी –
“लड़की की शादी में जात और खानदान सबसे ऊपर होते हैं। बाकी सब बाद में।”

पूजा ने हिम्मत जुटाई,
“पापा, मैं आपको एक बात बताना चाहती हूँ… मेरे एक सीनियर है – डॉ. विवेक। अलग जात के हैं, लेकिन बहुत अच्छे इंसान है। अपना क्लिनिक चलाते है, परिवार पढ़ा-लिखा और संस्कारी है। उनके एक बड़ी बहन हैं जो इंजीनियर है ब्राह्मण परिवार में शादी हुयी है।”

श्याम लाल जी जैसे भड़क उठे –
“बस! आगे एक शब्द मत कहना। हमारी जात के बाहर शादी करके तुम हमें मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ोगी।”

पूजा की आँखें भर आईं –
“पापा, क्या जात रिश्ते निभाती है? क्या जात से प्यार और सम्मान मिलता है फिर आपने मुझे पढाया ही क्यों ?”

शाम को रसोई में सुमित्रा देवी बर्तन धो रही थीं, पर उनके मन में उथल-पुथल मची थी। उन्होंने पूजा की सारी बातें सुनी थीं।
रात में उन्होंने श्याम लाल जी से कहा –
“आप जो लड़का देख रहे हैं, क्या वह हमारी बेटी को समझ पाएगा? क्या उसकी काबिलियत के बराबर है? ऐसी जात का क्या करेंगे जो पूरा जीवन विषाक्त कर दे?”

श्याम लालजी चुप रहे, तो सुमित्रा देवी ने सख्ती से कहा –
“अगर आपने बेटी की जिंदगी बेमेल शादी में झोंकी, तो याद रखिए… मैं उसके साथ घर छोड़ दूँगी। अपात्र को बेटी नहीं दूँगी।”

श्याम लाल जी थोड़ा चौंके पर उन्हें लगा जब ये कभी अपने लिए नहीं बोल सकी तो आज इतनी हिम्मत कहाँ केवल धमका रही है –
“तुम पागल हो गई हो क्या?”

सुमित्रा देवी की आवाज़ में ठहराव था –
“नहीं। मैं माँ हूँ। और माँ का धर्म है कि बेटी का घर खुशियों से बसाए, न कि उसे उम्र भर के समझौते में झोंके। एक माँ अपनी बेटी के लिए शेरनी हो जाती है “

अगले दिन विवेक और उसका परिवार  श्याम लालजी के घर आया।
सादगी और आदर से बात करते विवेक के माता-पिता, और विवेक की साफ-सुथरी सोच ने श्याम लालजी को प्रभावित जरूर किया पर रिश्ते की मंजूरी न दी । उनके भाइयों ने और कान भरे कोई रास्ते की धूल को चंदन नहीं बनाता।

सावित्री जी जो अपने लिए कभी नहीं बोल सकीं थीं
उन्होंने बेटी के साथ घर छोड़ दिया –

पूजा अपनी माँ को अपने साथ ले आई और माँ के कहने पर कोर्ट में विवाह के लिए आवेदन पत्र दे दिया। श्याम लाल जी घर में अकेले रह गये थे । अभी मुश्किल से किसी तरह 20-25 दिन गुजरे थे घर के दस काम कभी कोई नौकर नहीं आता कभी कोई ।

श्याम लाल जी बहुत परेशान हो चुके थे ऐसे में ही उन्हें वायरल फीवर ने दबोच लिया अब श्याम लाल जी तन और मन दोनों से टूटने लगे थे पर अपने अहं भाव में पत्नी बेटी को फोन भी नहीं लगा रहे थे । भाइयों की बीवी ने दो-चार दिन तो उनका खाना बनाकर भेजा पर अब साफ जवाब दे दिया था जब अलग रहते हैं तो हम क्यों भेजें कौन सा हमें जमीन जायदाद लिखे दे रहे हैं।

अभी 1 हफ्ते पहले पूजा ने डा० विवेक से अपनी माँ और  विवेक के माता-पिता की मौजूदगी में कोर्ट मैरिज कर ली उनको फोन भी किया आने से इनकार कर दिये।

एक दिन श्याम लाल जी चक्कर आने से बेहोश होकर गिर गए तब उनके पड़ोसी ने अस्पताल में भर्ती कराया और किसी ने उनकी बेटी को सूचना दी पूजा और विवेक अपने साथ श्यामलाल जी को ले जा कर मेडिकल कॉलेज में एडमिट करा उनकी तन-मन से सेवा करने लगे और वे बहुत शीघ्र स्वस्थ्य हो गये ।

विवेक बेटा मुझे माफ कर दो मैं गलत थामैं सोच रहा था कि जात सबसे बड़ी है… लेकिन शायद इंसानियत होना उससे भी बड़ी होती है । जो अपने थे उन्होंने तो साथ ही नहीं दिया आज तुम्हारे मम्मी पापा और तुम्हारा व्यवहार देखकर मैं शर्मिंदा हूँ

पूजा की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।

मौका देखकर सुमित्रा देवी ने श्याम लाल जी के कान में धीमे से कहा –
“देखा, जात नहीं, सोच ही घर बसाती है।”

श्यामलाल जी ने बेटी का माथा चूमते हुए कहा –
” बिटिया, तेरा घर सच्चे मायनों में आज बसा है।

“बिटिया का घर बसना” का मतलब सिर्फ शादी कर देना नहीं, बल्कि ऐसे साथी और परिवार से जोड़ना है, जहाँ उसे सम्मान, बराबरी और खुशियाँ मिलें। जात या दहेज की दीवारें तोड़कर ही असली सुख संभव है।
  स्वरचित डा० विजय लक्ष्मी
अनाम अपराजिता

#”बिटिया का घर बसने दो 

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