सुबह होते ही गांव के जिमींदार की मौत की खबर पूरे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई थी। ऐसी खबरें तो पुराने जमाने में भी पलक झपकते ही पहुंचती थी और आज तो मोबाईल का जमाना है। एक के बाद दूसरी सांस आने से पहले ही मैसेज पहुंच जाता है।
जिमींदारी प्रथा को समाप्त हुए भले ही सदियां बीत गई, लेकिन कुछ पुराने समय के खानदान अब भी अपने आप को वही समझते है। कोई गांव का संरपच, नंबरदार है तो कोई वोटों में जीत गया।कुछ लोगों का स्वरूप बदल गया लेकिन मानसिकता नहीं बदली।
कुछ ऐसे ही थे इस गांव के पुराने जमाने के श्रीमान प्रताप स्वरूप। अग्रेजों के जमानें में उनके दादा जमीदांर रहें होगें इस गांव के, फिर बाप , लेकिन तब तक पांच भाईयों में जमीनें बंट चुकी थी। जमाना भी बदल गया, कुछ बेच गए, कुछ विदेश चले गए, कोई शहरों में जाकर बस गया।
गांव में जर्जर हालत में एक पुरानी सी आठ दस कमरे की हवेली और बामुशकिल गुजारे लायक कुछ जमीन प्रताप के हिस्से में आई। आगे उसके दो बेटे, एक न्यूजीलैंड और दूसरा देहली में जाब पर है। पत्नी हीरादेवी नेक दिल औरत थी,सबका भला करने वाली, लेकिन प्रताप तो अपने आप को महाराजा समझते।
दो साल पहले हीरा देवी भी चल बसी। गांव में सरंपच कोई और है लेकिन प्रताप की कभी उनसे नहीं बनी। प्रताप के आस पास जी हजूरी के लिए दो चार चमचे जरूर रहते और एक मुनीम जो कि प्रताप के पैसे ब्याज पर देता। गांव के कुछ गरीब लोग इसीलिए प्रताप को सलाम ठोकतें, क्योंकि कभी मकान, कभी जमीन या फिर थोड़ा बहुत गहना रखकर उनहें ब्याज पर धन मिल जाता, लेकिन ब्याज ही इतना होता कि एक बार जो चंगुल में फंसा, निकल न पाता।
भले ही कुछ काम गैरकानूनी होते है, लेकिन शातिर दिमाग वाले सब कर लेते है। प्रताप की उम्र लगभग साठ की रही होगी, व्यसनी भी नहीं था, लेकिन हुक्का गुड़गुड़ाने का पुराना शौक था। घुड़सवारी भी करता। यानि कि शाही शौंक थे जनाब के।
आधे से ज्यादा गांव के लोग उनके कर्जदार थे । शव यात्रा पर तो जाना ही होता है, बाहर वाला बेटा तो नहीं आया, लेकिन देहली वाला पहुंच गया था। उसके बीवी बच्चे नहीं आए, शायद बच्चों के पैपर थे या फिर उस भूतिया हवेली में रहने के डर से नहीं आए, वैसे भी उनहें गांव में कभी देखा नहीं। कभी कभार छोटा बेटा वीरेन जरूर दिखा, वो भी दिन में दो तीन घंटे के लिए।
कुछ लोग रो रहे थे, लेकिन ज्यादातर की जैसे एक आंख हंस रही थी, एक रो रही थी। लगता है ये सब देनदार थे।चलो जान छूटी ब्याज भरने से और शायद वीरेन बाबू कुछ लिहाज कर दे।
अगले दस दिनों में सब रीतिरिवाज पूरे हो गए तो वीरेन ने मुनीम से सलाह मशविरा किया। फैसला ये किया कि जल्द से जल्द सबका हिसाब करके उनहें उनके कागज लौटा दिए जाए और ब्याज माफ कर दिया जाए। मूलधन में भी काफी कटौती कर दी गई। जमीन को ठेके पर दे दिया और हवेली में से दो कमरे रख कर बाकी पंचायत को सौंप दी ताकि, ठीक करवा कर उसका प्रयोग लोकभलाई के लिए किया जा सके।
वीरेन बाबू चले गए लेकिन गांव वालों की आंखों में अब घड़ियाली आंसू नहीं , खुशी, गमी के मिलेजुले आंसू थे।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
कहावत- एक आँख से रोवे, एक आँख
से हँसे।