“नीरज ओ नीरज,जल्दी घर आना आज ऑफिस से।रिद्धि के घर जाना है।उसके मम्मी -पापा ने बुलवाया है विवाह के बारे में बात करनी है उन्हें।चलो अच्छा है,जल्दी से लेन-देन की बातें तय हो जाएं तो ही अच्छा है।रिश्तेदारी में खबर फैली नहीं कि बातें बनाना शुरू।”नमिता अपने बेटे के जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही बोले चली जा रही थी।विनय जी(नमिता के पति) ने टोका”अरे नमिता,ऑफिस जाते समय तो यह कुड़-कुड़ मत किया करो।जो जरूरी बात थी,वह बता दी ना बस।बेटे के मन में अभी से जहर मत घोलने लग जाना तुम।”
“हां-हां,बेटे के तुम्हीं तो एक शुभचिंतक हो,मैं तो दुश्मन हूं उसकी।तुम्हें बस बहाना चाहिए मेरी गलतियां निकालने की।बाजार जा रहे हो तो शाम के लिए कुछ मिठाईयां लेते आना।अब कुछ बोला है तो कम ही लाना।धन्ना सेठ नहीं हैं हम,और ऊपर से लड़के वाले हैं।”नमिता की बक-बक चल ही रही थी।विनय ने बिना कुछ बोले थैला हांथ में लिया और बाजार की ओर निकल पड़े।यह बरसात की धूप भी ना,जलाती नहीं पिघला देती है बदन।
लौटते समय ऑटो से ही आने का विचार किया और स्टैंड में रुककर ऑटो की प्रतीक्षा करने लगे।तभी एक भद्र महिला ने पीछे से आकर कहा”नमस्ते भाई साहब।कैसे हैं आप?बहन जी कैसी हैं?”
सामने हांथ जोड़े खड़ीं महिला को देखकर विनय जी लज्जित हो गए।नमिता ने कितना अपमान किया था इनका,और कोई होतीं तो पहचानने से ही मुकर जातीं।गंभीर मुद्रा ,शालीन व्यवहार और शांत चित महिला कोई और नहीं, उनकी समधन थी।बेटी,समायरा की सास(सीता देवी)।विनय जी ने हांथ जोड़कर नमस्ते का उत्तर दिया और कहा”मैं और नमिता दोनों अच्छे हैं।आप कैसी हैं? यशवर्धन जी कैसे हैं?”आप यहां कैसे?मेरा मतलब है कि यह जगह तो आपके घर से बहुत दूर पड़ती है।”
सीता देवी ने अपने हांथों में पकड़ा हुआ एक छोटा थैला दिखाते हुए कहा”आपके दामाद जी,ओह सॉरी,यश अब बैंक का मैनेजर बन गया है।खाना जानबूझकर भूल आता है रोज।ताकि मैं लेकर आऊं,और उसे परोस कर खिलाऊं।बस वही लेकर आई हूं।चलिए ना,मिल लीजिए उससे।वह तो आपका बहुत सम्मान करता है।”
विनय जी को तो कोई संदेह ही नहीं था कि यश उनका सम्मान करता है।पिछले दो सालों से ना मुलाकात की,ना ही बात ही हुई थी उससे। कोर्ट से बाहर निकलते समय भी वह आंखों में बहुत सारी बातें लिए,देख रहा था।समीप आकर बात करने की कोशिश भी की थी,पर नमिता ने उससे बात ही करने नहीं दी।दुश्मन बना दिया उसे इस परिवार का।अब आज यूं अचानक मिलना सही रहेगा क्या?इसी उधेड़बुन में थे कि तभी यश वहीं आ गया।उसने अपनी मां को बहुत देर से किसी से बातें करते
अपने ऑफिस से देखा था।जानने के लिए वह नीचे आ गया ।सामने विनय जी को देखकर झुककर पैर छुए उसने।वहीं सादगी,वही अपनापन।व्यवहार में कहीं कोई अंतर ही नहीं था।”कैसे हैं पापा जी?इतनी धूप में भारी थैला पकड़े क्यों जा रहें हैं पैदल।टैक्सी कर लेना था आपको?”जिस अधिकार से यश ने विनय जी के हांथ से थैला लिया,लगा ही नहीं कि वह अब परिवार का सदस्य नहीं हैं।अपने केबिन में अपनी मां और विनय जी को लेकर आया यश।विनय जी की आंखें खुशी से झरने लगीं।यश के सिर पर हांथ फेरकर उन्होंने मन से आशीर्वाद दिया।दोनों को कुर्सियों पर बिठाकर कॉफी लाने के
लिए कहा चपरासी से।विनय जी तो अपना सर नीचे किए हुए बैठे थे।मन में पछतावा इतना ज्यादा था कि नजर उठाकर बात करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे।तभी सीता देवी ने नीरज के बारे में पूछा।उसकी नौकरी और शादी के बारे में पूछने लगीं वे, कौतूहल वश।यश ने बात बदलते हुए कहा”चलिए मां,खाना लगा लीजिए।आज हम तीनों साथ में खाएंगे।पापा बड़े खुश हो जाएंगे।”
विनय जी चौंककर पूछे”पापा खुश हो जाएंगे?मतलब?क्या आशीष की मृत्यु की खबर झूठी थी।मैं तो जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया था बेटा।”
यश ने जवाब दिया”मृत्यु तो हो गई है उनकी,पर वो हमेशा हमारे साथ,हमारे पास में ही रहतें हैं।अपने जिगरी दोस्त को अपने बेटे और पत्नी के साथ, इतने दिनों के बाद खाना खाते देखकर बहुत खुश होंगे पापा।चलिए अंकल शुरू कीजिए। मम्मी के हांथ की भंरवा भिंडी।संयोग देखिए,आज आप हैं यहां और मम्मी ने भी बहुत दिनों के बाद यह डिश बनाई है।”
यश और सीता देवी के आग्रह को नकार नहीं सकते थे विनय।उसके इकलौते दोस्त का परिवार थे ये।इधर शर्ट की जेब में रखा मोबाईल लगातार बज रहा था।यश ने इशारे से कॉल रिसीव करने को कहा भी।मगर क्या कहते नमिता से।सच सुनकर तो तांडव शुरू कर देती।इनके सामने झूठ बोला नहीं जा सकता था।फोन रिसीव ना करना ही अंतिम विकल्प था।
बातों -बातो में नीरज की शादी की बात चलने की खबर सुनाई उन्हें विनय जी ने।सीता जी सुनकर बहुत खुश हुईं।ढेर सारी बधाइयां दे डालीं
विनय जी ने उठकर चलने की इजाजत मांगी।घर पंहुचते ही नमिता सवाल के साथ खड़ी थी”इतनी देर कहां हो गई?मैं कब से राह देख रहीं हूं।फोन तो कर सकते थे ना।”
“यश और उसकी मां से मुलाकात हो गई थी रास्ते में।यश जिद करके अपने केबिन में ले गया मुझे।खाना खाकर ही आने दिया।”विनय जी ने जैसे ही कहा,नमिता फट पड़ी”क्या कहा?यश और उसकी मां के साथ खाना खाकर आ रहें हैं!उस फटीचर क्लर्क यश को कब से केबिन मिल गया जी?”
“नमिता ,मैं शुरू से ना कहता था कि बेटी के ससुराल में जहर मत घोलो।उसे सामंजस्य बिठाने दो उस परिवार के साथ।यश बहुत होनहार बच्चा है।मुझे पता था,एक ना एक दिन वह तरक्की जरूर करेगा।अपनी मेहनत और बुध्दि के दम पर अब वह मैनेजर हैं वहां।नीना(बेटी)के मन में सास के प्रति इतनी नकारात्मक भावना तुमने भर दी,कि उसका घर ही नहीं बस पाया।अरे नमिता,मां किसी की भी
हो, आदरणीय होती है।झूठे आरोप लगा-लगा कर तुमने अपने बेटी का संबंध विच्छेद ही करवा दिया।कभी पश्चाताप भी होता है तुम्हें?”विनय जी ने अपना पक्ष रखा।नमिता और चिढ़ते हुए बोली”आपसे तो बस दूसरों की वकालत करवा लो और मुझ में दोष निकलवा लो। अरे,मेरी नीना के लायक ही नहीं था
वह यश।उसकी मां ने तो अपने बेटे को मानो अपने पल्लू से बांध कर रखा है।हर वक्त मां की देखभाल करने के लिए एक बाई रख लेना था यश को।मेरी बेटी उनकी गुलामी क्यों करती?जो हुआ ,अच्छा हुआ।अब करते रहें पछतावा।नीना के साथ यश का कोई मेल ही नहीं है।आपकी दोस्ती की वजह से उसे इतनी तकलीफ़ झेलनी पड़ी।मैं तो शुरू से इस रिश्ते के खिलाफ थी।”
विनय जी ने नमिता की बातें सुनकर हंसते हुए कहा”शादी -ब्याह ऊपर से लिखकर आतें हैं नमिता।ईश्वर ही सबकी जोड़ियां बनाता है।हम मां-बाप का बस यही फर्ज है कि उनकी गृहस्थी बसाने का प्रयास करें,ना कि तोड़ने का।खैर!अफ़सोस है कि तुम यह बात अभी नहीं समझोगी।कल को जब तुम्हारी बहू आएगी,तब समझोगी तुम बेटी की मां होने का दायित्व।तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।मैंने और यश
के पापा ने एक दूसरे को वचन दिया था,अपने बच्चों के माध्यम से सदा जुड़े रहने का।अब वचन भी टूट गया और दोस्त का साथ भी छूट गया।”
बहस का कोई अंत नहीं था।शाम को नीरज की होने वाली ससुराल जाना था।नमिता ने खुद का और नीना का मेकओवर करवाने पार्लर से लड़की को बुलवा लिया।शाम को नीरज जल्दी आकर तैयार हो गया।विनय ने नमिता से कहा था कि नीना को साथ ना ले जाएं,पर नमिता जी नहीं मानी। रिद्धि और नीरज की जान-पहचान ऑफिस में ही काम के दौरान हुई थी।दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे।रिश्ता रिद्धि के घरवालों की तरफ से आया था।आज मिलकर सारी बातें साफ करनी है।
रिद्धि के घर पर, नीरज और उसके परिवार का गर्मजोशी से स्वागत हुआ।बातचीत के दौरान। रिद्धि के पिता रिटायर हो चुके थे।मां आधुनिक ही थीं।नीरज उन्हें भी पसंद था। बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए नमिता ने सास की ठसक दिखाते हुए पूछा रिद्धि से”क्या -क्या शौक हैं तुम्हारे बेटा?”
रिद्धि ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया “आंटी मुझे बुजुर्ग लोगों के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है।पास के वृद्धाश्रम में मैं हर हफ्ते जाती हूं।उनके साथ समय बिताती हूं।उन्हें कंप्यूटर सिखाती हूं।”नमिता ने अवाक होकर देखा रिद्धि की ओर,कुछ कहा नहीं।तभी रिद्धि के पिता ने कहा”हमारा परिवार संयुक्त परिवार था कई पीढ़ियों से।नए जमाने के साथ नारी सशक्तिकरण की मशाल लेकर एक दो बहुएं क्या आईं, संयुक्त परिवार एकल में बदल गए।मेरी रिद्धि ऐसे घर से बेदखल हुए वृद्धों को अपना प्रेम और सम्मान बांटती है।”
विनय जी ने कनखियों से नमिता की ओर देखा।ज्यादा खुश नहीं दिख रही थी वह।अब रिद्धि की मां ने नमिता से सवाल किया”बहन जी,आपकी बेटी तो शादीशुदा हैं,फिर कुंवारी लड़की की तरह क्यों रहती है?इसकी ससुराल कहां है?”
नमिता जी सकते में आ गईं।नीना ने खुद ही जवाब दिया”आंटी ,मेरा अपने पति से तलाक हो चुका है।बस कुछ दिनों की औपचारिकताएं रह गईं हैं।मैं अब मम्मी -पापा के साथ ही रहतीं हूं।”
रिद्धि की मां ने कारण जानना चाहा ,तो नीना से सास की बुराइयों का पुलिंदा खोल दिया।सास से अनबन ही तलाक का कारण थी,यह जानकर रिद्धि की मां ने कहा”बहन जी,बुरा मत मानिएगा,हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं। आपके घर पर आपकी जवान तलाकशुदा बेटी है,जिसकी जिम्मेदारी कल को नीरज पर ही पड़ेगी।लोग क्या कहेंगे कि जवान बेटी बैठी है घर पर,और बहू आ गई मूंग दलने।हमें हमारी बेटी पर पूरा भरोसा है, पर आपने ही कभी कोई लांछन लगा दिया,तो!”
रिद्धि की मां की बातें सुनकर नमिता के होश उड़ गए।ये तो उन्हीं के जैसी मानसिकता वाली महिला हैं।बेटी घर पर हैं तो,क्या बेटे की शादी नहीं होगी?
खिसियाकर चलने को तैयार होने ही वाली थी कि रिद्धि के पिता कीआवाज ने आश्चर्य चकित कर दिया।वह अपनी पत्कीनी की बातों के लिए माफी मांग रहे थे।अपनी पत्नी को समझाते हुए कहने लगे वे”रिद्धि ने हमेशा सही निर्णय लेकर हमें चिंता से मुक्त रखा है।यदि उसने अपने जीवन साथी का
चुनाव किया है,तो सोच -समझ कर ही किया होगा।पत्नी का स्थान किसी दूसरे स्थान की आपूर्ति नहीं करता।पत्नी के आने से पहले,बेटे के जीवन में माता-पिता रहते हैं।ना ही माता-पिता का स्थान कोई ले सकता है,ना ही जीवनसंगिनी का स्थान कोई ले सकता है।बेटियों का घर बसाने की जिम्मेदारी होती है हम पर,ना कि तोड़ने की।हमारी बेटी सक्षम है सभी रिश्तों में तालमेल बिठाने में।रही बात नीना की,तो वह उस परिवार की बेटी है।उसके माता-पिता उसका घर फिर से जरूर बसा लेंगे।”
रिद्धि के पिता की बात सुनकर विनय जी ने हांथ जोड़कर कहा”भाई साहब,काश आपकी तरह मैंने भी कठोरता से अपनी पत्नी का विरोध किया होता,तो मेरी बेटी का भी घर बसा होता।”नमिता की और नीना की नजरें झुकी हुई थीं।नीरज को विश्वास हो चुका था कि बड़ी बहन और जीजा जी का घर फिर से बस सकता है।एक माफी मांगने की जरूरत है दीदी और मां को,जीजाजी की मां से।
शुभ्रा बैनर्जी
बेटी का घर बस जाने दो