आज ठाकुर गिरधारी जी दुखी थे कारण पत्नी और बच्चे आज अलग थे।आज चाय पीने उठे मगर हाथ से कप गिर गया और वे रोने लगे।
आज अकेले थे,आटो चलाकर दिन गुजारते थे।दिनकट जाता था मगर रात का अकेलापन। ठाकुर भूखे पेट बिस्तर पर लेट गये और खो गये अतीत की याद में।
आज से पचास साल पहले तीस साल की आयु में तीन बेटियां और एक बेटा लेकर आये थे।शुरू से क्रोधी और अपनी बात पर दृढ़ की किसी से भी नहीं बनती थी परंतु वह मेहनती बहुत थे।
फिर क्या था -वे डाबरी में रहकर आटो चलाने लगे। सुबह-सुबह निकलना और लगातार काम करना फिर परिवार पालना। फिर तो वक्त कटे , बच्चे बढे और अपना-अपना परिवार बना खो गये। मां रही नहीं, जिद्दी बाप बोझ होता है सो कौन पाले।
गिरधारी इन्हें कानपुर घुमा लाओ।पूरे बीस हजार का काम था चार दिन लगने थे। बाबूजी चाय पियोगे,यह पूछा था-वे सब झट तैयार हो गये।
अब तो चाय नाश्ता करके निकला और दोपहर तीन बजे तक कानपुर।
भाई खाना खा लो-कहते उन लोगों ने खाना खिलाया। फिर कार में सो गया।
शाम तीन चार घंटे का काम था , फिर खाना और सोने के लिए एक बिस्तर दी गई तो यह रोने लगा।
जब से रानी मरी किसी ने इतना सम्मान नहीं दिया।आज अकेले में याद सता रही थी। फिर सुबह चाय के साथ छ बजे काम पर भेजा गया।दस बजे नाश्ता,दोपहर दो बजे खाना, फिर एक दो घंटे का आराम,फिर काम-चार दिन आराम से निकले। लड़की की बिदाई भी इलाहाबाद में करा आया।
सो सारा कुछ होने पर इसे वापस डाबरी लाया गया और बीस हजार मिले ही साथ में बिदाई के कपड़े, मिठाई मिले तो यह रोने लगा।
आज पांच दिन बाद कमरे पर था।गंदा कमरा ,गिरा हुआ कप और गंदे कमरे मानो चिढ़ा रहे थे।इसने सबसे पहले सभी गंदे कपड़े को वाशिंग मशीन में धुलने डाला फिर कमरा साफ़ कर कड़क चाय और बिस्कुट, मिठाई के साथ खाया और बर्तन भी साफ कर डाले।
फिर तीन बजे बैंक खाते में पंद्रह हजार जमा भी करा दिया था।
शाम को नोएडा बुकिंग पर निकला और रात भर में तीन हजार कमा आया। फिर तो आराम से नहाना खाना और सही रहना।
रोने से कुछ नहीं होता,कोई मदद नहीं करता।सो बस अपना काम करें।
यही वजह है कि जैसे ही अगले दिन की लखनऊ की बुकिंग मिली तो तैयार होकर चल निकला।अब खून के आंसू नहीं रोना है, बल्कि मजे में जीना है।ऐसा सोचकर यह न जाने कब सो गया।
(कथा मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं भेजा गया है।)
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।