सैंडिल की खटखट सुनकर निलेश को अंदाज़ा हो गया था कि रीमा अपनी किटी पार्टी से घर आ गई थी।आते ही सोफे पर वह निढाल सी बैठ गई।राधा (काम वाली बाई)उसके लिए पानी ले आई जिसे पीकर उसने अपने लिए उसे ब्लैक कॉफी बनाने को कहा और मेज़ पर पैर रख अपना फोन चलाने लगी।निलेश का आज वर्क फ्रॉम होम था और इसलिए वह सब अपने कमरे से देख रहा था।
रीमा और निलेश दिल्ली के एक पाॅश इलाके में फुली फर्निश्ड फ्लैट में रहते थे।उनका एक बेटा था आरव जो कि अभी तीसरी कक्षा में पढ़ता था।निलेश बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम करता था।अच्छी खासी तनख्वाह..सुख सुविधाओं से पूर्ण घर..मॉडर्न पत्नी.. शहर के बड़े स्कूल में पढ़ने वाला बेटा.. सब कुछ था उसके पास जिसकी इंसान को ज़रूरत होती है।निलेश बहुत मेहनत करके इस ऊंचे ओहदे पर पहुंचा था।
छोटे शहर में एक मध्यवर्गीय घर में पैदा हुआ निलेश अपनी मेहनत और माता-पिता के आशीर्वाद से जीवन में इतनी सफलता प्राप्त कर गया था।निलेश के पिता देवदत्त जी एक छोटे दुकानदार थे और माता अनिता जी गृहिणी थी।निलेश का एक बड़ा भाई शैलेश था ।अपने दोनों बच्चों को देवदत्त जी और अनीता जी ने अच्छे संस्कार दिए थे।दोनों बच्चे पढ़ने में अच्छे थे शैलेश ने बड़ा होकर पिता की दुकान संभाल ली थी और उसे एक बड़ी दुकान में तब्दील कर दिया पर निलेश जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता था इसलिए उसने इंजीनियरिंग के बाद एमबीए कर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी पा ली थी।
देवदत्त जी और अनीता जी दोनों अपने बच्चों की सफलता पर खुश थे। शैलेश माता-पिता के साथ ही रहता.. उसकी शादी हो चुकी थी और एक प्यारा सा बच्चा भी था जो घर में सबका लाड़ला था।निलेश शहर में रहकर ही आगे बढ़ना चाहता था और वहीं उसे एक पार्टी में रीमा मिली थी जो एक अमीर घर की बेटी थी। निलेश और रीमा दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगी और फिर उन्होंने शादी का फैसला किया।हालांकि रीमा उसके परिवार के बारे में जानती थी और उसके माता-पिता ने भी रीमा को आगाह किया था पर उसे तो सिर्फ निलेश से ही मतलब था।बेटी की ज़िद के आगे वे भी झुक गए थे और वैसे भी निलेश का परिवार उन्हें अच्छा ही लगा था क्योंकि वे सब भले लोग थे।निलेश को लगता था कि धीरे-धीरे रीमा उसके परिवार में रम जाएगी पर यह उसकी गलतफहमी थी।
शादी के 10 साल होने को आए थे पर रीमा को अपने ससुराल वालों से कोई मतलब नहीं था।कोई त्यौहार या शादी आती तब भी वह कोई ना कोई बहाना बनाकर निलेश को भेज देती और खुद अपने मायके चली जाती।रीमा के माता-पिता भी उसे ससुराल वालों के साथ घुलने मिलने को कहते पर वो अपनी बात पर अड़ी रहती।अनीता जी भी सब समझती थी पर बेटे को कड़वे बोल बोल कर परेशान नहीं करना चाहती थी। जानती थी कि निलेश भी अपनी बीवी के व्यवहार से दुखी रहता था।
रीमा को कभी अपने ससुराल वालों का प्यार नहीं दिखता था।बस.. उसे यही नज़र आता कि वे उसके स्टैंडर्ड के नहीं है और अक्सर वह निलेश और उसके परिवार वालों को अपनी बातों से अपनी सोच समझा देती थी। देवदत्त जी और अनीता जी कभी निलेश के घर गए भी तो एक-दो दिन के लिए और वह भी इन 10 सालों में शायद दो बार।अनीता जी एक सुलझी हुई महिला थी।इसलिए नहीं चाहती ती थी कि उनके जाने से बेटे की गृहस्थी में व्यवधान पड़े ।
इधर रीमा की सोच को निलेश चाह कर भी नहीं बदल पाया था।वह बस व्यक्ति के कपड़ों और घर के साजो सामान को ही इंसान के व्यक्तित्व का आईना मान चुकी थी।उसे लगता था कि साधारण से दिखने और रहने वाले उसके ससुराल के लोग जाहिल हैं और खासकर उसके सास ससुर जो ज़्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं है और गांव में पले बड़े हैं।
खैर, कुछ देर अपना काम कर निलेश ने लैपटॉप बंद किया और बाहर आकर रीमा से बोला ,”दो दिन बाद मम्मी और पापा यहां आने वाले हैं 10 दिन के लिए वे यही रुकेंगे” सुनते ही रीमा का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया ,”क्यों दस दिन के लिए यहां क्यों आना चाहते हैं “।
“वह इसलिए क्योंकि भैया भाभी घूमने जा रहे हैं और इसलिए मैंने ही उन्हें यहां बुला लिया है.. यहां आ जाएंगे तो उनका मन भी बदल जाएगा और मैं भी 2 साल से उनके पास नहीं जा पाया हूं।मेरा भी उनसे मिलने का.. उनके पास बैठने का.. उनसे बातें करने का कितना मन कर रहा है”।
“तुम्हारे भैया को और कोई काम धाम नहीं है क्या” रीमा की आवाज़ गुस्से में और तेज़ हो गई थी।
“मेरे भाई के बारे में बोलने से पहले कुछ सोच लो”, इस बार निलेश भी ज़ोर से चिल्लाया,” सालों से वह कहीं नहीं गए। हमेशा उन्होंने ही माता-पिता का ध्यान रखा। उनके बच्चों का भी मन करता है कहीं जाने के लिए वह तो मां पिताजी को भी साथ लेकर जाना चाहते हैं पर वे लोग बिल्कुल नहीं मान रहे इसलिए मैंने ही उन्हें सुझाव दिया की वे मेरे पास आ जाएं और एक बात ध्यान से सुन लो अगर तुमने इस बीच उनके साथ कोई बदतमीजी की तुम मुझसे बुरा कोई नहीं होगा”।
“तुम्हारे जाहिल मां बाप को कोई मुंह लगाना चाहेगा”, कहती हुई रीमा पैर पटकती हुई कमरे के अंदर चली गई।
निलेश उसकी घटिया सोच को देखकर हैरान रह गया पर इस वक्त चुप कर गया क्योंकि ज़्यादा बात बढ़ाने से घर का क्लेश बढ़ता और बेटे पर बुरा असर पड़ता।
दो दिन बाद देवदत्त जी और अनीता जी आ गए थे। रीमा उन्हें देखकर थोड़ा उखड़ तो गई थी पर उसने फिर भी अपनी नकली मुस्कुराहट बनाई रखी थी। अनीता जी भी सब जानती थी पर चुप रही। हां उनका पोता आरव उनके आने से बहुत खुश हो गया था। हालांकि रीमा नहीं चाहती थी कि वह अपने दादा दादी से ज़्यादा घुले मिले पर कुछ दिनों की बात है यह सोचकर चुप कर गई थी और कुछ निलेश भी इस बार ज्यादा सख्त नज़र आ रहा था।
देवदत्त जी और अनीता जी को आए हुए पांच दिन हो गए थे ।आरव उनके साथ बहुत घुल मिल गया था। स्कूल से आकर उनके पास बैठा रहता और अब तो उनके साथ ही रात को सोता था। अगले दिन आरव की टीचर का रीमा को फोन आया उन्होंने पूछा ,” आरव आजकल किससे पढ़ाई कर रहा है”।
रीमा तो फोन सुनते ही पहले बौखला गई थी ।उसे लगा आजकल सारा दिन दादा दादी के पास बैठा रहता है कोई ना कोई गड़बड़ ज़रूर करके आया होगा।
“हां जी.. कहिए क्या बात है” अपने स्वर को नरम बनाते हुए रीमा ने टीचर से पूछा।
“आज आपके बेटे ने हिंदी में बहुत अच्छी कविता सुनाई है और साथ ही रामायण के बारे में भी अपने कक्षा के बच्चों को जानकारी दी है। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप अपने घर में बच्चों को इतनी अच्छी बातें सीखा रही हैं। नहीं तो ज़्यादातर माता-पिता बच्चों को मोबाइल देकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते नज़र आते हैं।
टीचर की बात सुनकर रीमा हैरान रह गई थी। वह भी तो यही करती आई थी लेकिन इन पांच दिनों में ही उसके दादा दादी ने उसे कितनी अच्छी बातें सिखा दी थी। रीमा को याद आया सच में इन दिनों उसने आरव को ना तो कोई वीडियो गेम खेलते देखा ना ही मोबाइल चलाते हुए और साथ ही अब तो वह मंदिर में भी दादी के पास बैठकर पूजा करता नज़र आता था।
2 दिन बाद रीमा को उसकी सोसाइटी की पार्किंग में आरव के दोस्त की मम्मी मिली। उन्होंने उनसे पूछा,” अरे रीमा ,जो तुम्हारी सास ने आरव को टिफिन में परांठा डाल कर दिया था वह कितना स्वादिष्ट था असल में पार्थ थोड़ा सा परांठा घर ले आया था इसको इतना पसंद आया कि मैंने भी चखकर देखा सच में वह बहुत स्वादिष्ट और हेल्दी लग रहा था।आरव आजकल रोज़ नई-नई चीज़ें लाता है..पार्थ बता रहा था । यार,अपनी सास से मुझे भी कुछ रेसिपीज दिलवा दो ना ।बच्चे जंक फूड खाकर कर अपनी सेहत ही तो खराब कर रहे हैं अच्छी पौष्टिक चीज़ें खाएंगे तो हमें भी मन में तसल्ली रहेगी” ।
रीमा घर आई तो लिफ्ट में यह सोचती रही कि मैं अपने सास ससुर को कितना गलत समझती थी हमेशा उन्हें देहाती लोग.. जाहिल.. न जाने किन-किन नामों से संबोधित करती रही। कभी यह नहीं सोचा कि उन्होंने अपना घर कितने अच्छे से संभाला था और आज कुछ दिनों में ही मेरे बेटे की टीचर और मेरी पड़ोसन को भी प्रभावित कर गए हैं। सोचते हुए रीमा घर पहुंची तो देखा आरव और उसकी दादी दोनों रसोई में कुछ तैयार कर रहे थे।
” अरे रीमा ,तुम आ गई ..आओ देखो.. यह मैंने दाल के चीले बनाए हैं अगर तुम्हें पसंद हो तो तुम भी चखकर देख सकती हो”, अनीता जी ने धीमे से पूछा।
रीमा ने चीले का एक टुकड़ा उठाया और सच में कितना स्वाद भरा था मां के हाथों में। उसने अपनी सास के दोनों हाथ पकड़ लिए और बोली,” मां, मुझे माफ कर दो मैंने हमेशा आपसे दूरी बनाई रखी.. कभी आपके मन में छिपी ममतामई मां और इतनी गुणी महिला को देख नहीं पाई। ना जाने अपने अहंकार में क्या-क्या सोचती रही और ना ही पापा की सहृदयता को समझ पाई”।
” कोई बात नहीं रीमा ,इंसान की सोच कभी-कभी उसके मन के भावों पर हावी हो जाती है। तुम शहर में शुरू से पली बड़ी हो इसलिए छोटे शहर के लोगों के प्रति तुम्हारा वही नज़रिया रहा जो तुमने सोचा पर मैं सिर्फ एक बात कहना चाहती हूं बिना परखे किसी के बारे में भी कोई धारणा नहीं बनानी चाहिए”।
“आप बिल्कुल सच कह रही हैं अब मैं आपको यहां से कहीं नहीं जाने दूंगी।भैया भाभी के साथ आपने बहुत दिन बिता लिए अब आप यहीं पर रहो”।
“हम तो दोनों बेटों के साथ खुश हैं ।जहां हमारे बच्चे खुश वहां हम खुश। मां बाप को और क्या चाहिए” उनकी बात सुन रीमा उनके गले लग गई।
ऑफिस से आया निलेश उनकी बातें सुनकर हैरान था और साथ ही अपनी पत्नी का नया रूप देखकर विस्मित भी। रीमा और नीलेश दोनों की आंखें मिली और रीमा ने आंखों ही आंखों में क्षमा याचना कर ली और निलेश ने आंखों से बता दिया कि उसकी क्षमा याचना स्वीकार हो गई है।कुछ देर बाद पूरा परिवार हंसता खिल खिलाता नज़र आ रहा था।
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#अप्रकाशित
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।