सावित्री दस दिन से शापिंग करने में व्यस्त थी साथ ही …… अपनी पल्लू से आँसू पोंछती जा रही थी क्योंकि ……उसकी बेटी रत्ना की बिदाई जो है । वह बहुत कुछ अपनी बेटी को देना चाहती थी ……इसलिए जितना भी खरीदती थी उसका दिल नहीं भरता था ।
यहाँ तक ठीक है ….. लेकिन बात – बात पर यह भी कहतीं थी कि देख रत्ना ……तुझे तेरे ससुराल तेरी भाभी के समान खाली हाथ झुलाते हुए नहीं भेजूँगी …..अभी तक मैंने दो लाख रुपए खर्च कर दिए हैं ……..जबकि अभी भी कुछ ख़रीददारी बाकी है ।
तुम्हें मालूम है तुम्हारी भाभी के घर से हमने कुछ भी नहीं माँगा था …..बिना दहेज लिए शादी की थी …..इसके बावजूद वहाँ से हमें कुछ नहीं मिला ।
उसकी माँ ने मेरे हाथ में ….एक लाख रुपए रख दिए और कहा कि …… आप सामान खरीद लीजिए यहाँ से भेजने पर डेमेज हो सकता है ।
हमने कुछ नहीं कहा फिर भी ….मेरे बेटे को पल्लू से बाँध कर ले गई वहाँ जाकर बहुत सारा पैसा सामान ख़रीदने में बहाया….. कहते हुए….. बिना आँसू के ही आँखें पोंछने लगी । मैं तेरे साथ ऐसा नहीं करूँगी …….. तेरे ससुराल वालों को तुझे एक बात भी कहने का मौक़ा नहीं दूँगी …… तेरी सास है ना दहेज को देखते ही बेहोश हो जाएगी सब अच्छा ब्रैंडेड खरीद रही हूँ !!
एक बात और गाँठ बाँध ले ज़्यादा सासु के पीछे घूमने की जरूरत नहीं है तू और तेरा पति बस…. मेहमान आए या काम ज़्यादा हो तो अपने सर पर मत ले लेना समझ रही है ना!!! एक माँ की तरह अपनी बेटी को समझा रही थी…… साथ में जब भी मौका मिलता अपनी बहू और उसके मायके को ताने मारना नहीं छोड़ती थी …… इसी तरह से रत्ना के जाने का समय आ गया था ।
राजशेखर अपनी पत्नी की बातें सुन रहे थे साथ ही बहू के लिए ताने भी सुन रहे थे । जब उनके सब्र का बाँध टूटा तो उन्होंने कहा कि …. सावित्री बिटिया का घर बस जाने दो …. उसके ससुराल जाने के पहले ही तुम उसके दिमाग़ में नकारात्मक विचारों को फैला रही हो ……वहाँ के लोगों के लिए उसके मन में ज़हर मत तो घोलो ।
सावित्री की आँखों में सच में ही आँसू आ गए और कहने लगी कि मैं माँ हूँ ….. अपनी बेटी को सुरक्षित रखने की कोशिश करना मेरी गलती है क्या ?
मैं आपकी नज़रों में हमेशा से ही गलत ही रही हूँ । आपकी इन हरकतों के कारण ही बहू के लिए आप अच्छे और मैं बुरी हूँ । मुझे मुँह नहीं खोलने देते थे .. …. इसलिए एक साल में ही आपके बेटे को लेकर फुर्र हो गई।
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि बेटी के लिए कुछ मत कर…. मेरा एक ही मकसद है कि बिटिया ससुराल में रहने के लिए जा रही है …..उसके मन में गलत बातें क्यों र रही हो……. और रही बहू की बात …… .. जब से वह आई है लेन देन के ताने दे देकर तुमने उसका जीना दुशवार कर दिया है ……अब वह खुशी से अपना जीवन जी रही है तो बिटिया के दिल में भी …..उसके लिए कड़वी बातें बता रही हो ….. पता नहीं तुम कब सुधरोगी …कहते हुए वहाँ से चले गए ।
रत्ना को ससुराल जाने के लिए अब दो दिन ही बचे थे….. राजशेखर रत्ना के कमरे में गए और उसके हाथ में मेग्निफाइंग ग्लास रखा । उसे देखकर रत्ना को हँसी आई और उसने अपने पिता की तरफ प्रश्नचिह्न लिए हुए मुस्कुरा कर देखा ?
उसे याद आया कि बचपन में पापा से रो धोकर इस ग्लास को खरीदवाया था …। धूप में इसे रखकर कभी पेपर जलाकर तो कभी हाथों को जलाकर खेलती थी ।
आज जब पिताजी मैग्निफाइंग लाकर उसके हाथ में रखा तो उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था । पिताजी उसके पास बैठ गए और उसका सर सहलाते हुए उसकी हाथ पर रख कर हाथ की लकीरों को दिखाया दुनिया के नक़्शे के समान आड़ी तेडी बहुत सारी लकीरें दिखाई दे रही थीं कुछ बड़ी सी थीं कुछ बहुत छोटी थीं ग्लास को एकदम नज़दीक ले जाने पर वे भी बड़ी दिखाई दे रही थीं …… रत्ना को समझ नहीं आ रहा था पिता की तरफ देखती जा रही थी आखिर कहना क्या चाहते हैं ? जहाँ तक उसे पता है पिता ज्योतिष और हाथ देखकर भविष्य की बात जानने में विश्वास नहीं करते हैं । वैसे भी उसकी शादी हो चुकी है ससुराल घर बसाने जा रही है फिर यह सब क्या है? तभी उन्होंने उस ग्लास को दूसरी तरफ पलटाया और दिखाया तो हाथ की बड़ी लकीरें भी बहुत छोटी दिखाई दे रही थीं छोटी लकीरें तो दिखाई भी नहीं दे रही थीं । उसने पिता से इस मैग्निफाइंग ग्लास के बारे में पूछा…… उन्होंने प्यार से कहा बेटा हमारी आँखें इस ग्लास की तरह हैं एक तरफ इच्छा और दूसरी तरफ अनिच्छा समझ लो । उदाहरण दूँ तो तुम्हारी माँ की तरह कह ही रहे थे कि सावित्री आ गई और कहने लगी ।
सावित्री- तुम्हारे पिता को मेरा उदाहरण देना बहुत पसंद है । मुझे नीचा दिखाए बिना इनका खाना कहाँ पचता है ? जो कुछ भी बोलना चाहते हैं बोल दीजिए अपनी बेटी से मैं जा रही हूँ ।
रत्ना ने कहा आप एक मिनट रुको ना माँ!
माँ को चुप कराते हुए, जी पापा बोलिए आप क्या कहना चाहते हैं ?
राजशेखर ने कहा- बिटिया तुम बताओ तुम्हें मेरे इस हरकत से क्या लगता है मैं तुम्हें क्या समझाना चाहता हूँ ?
रत्ना- मैं समझ नहीं पा रही हूँ आप ही बताइए न! मुझे तो लगता है कुछ इंटरेस्टिंग बताने वाले हो ।
राजशेखर ने कहा- ठीक है थोड़ी देर के लिए इसे तुम्हारी माँ है समझ लेते हैं । सावित्री अंदर से ही कहने लगी हाँ आप मुझे ही दोष दोगे बिटिया ससुराल जा रही है …… उसे समझा दिया है तो मुझे ही दोषी ठहरा रहे हो कहते हुए आँखें पोंछने लगी ।
उनकी बातों पर ध्यान न देते हुए …… राजशेखर ने रत्ना से कहा तुम्हारी माँ का ही उदाहरण मैंने दिया है क्योंकि …… वह तुम्हारी माँ है बेटी से बहुत प्यार करती है तुम कुछ भी करो उसे अच्छा लगेगा । तुम चाय बनाकर उसमें शक्कर डालना भूल गई तो भी …… वह खुशी से यह कहकर पी लेगी कि बिटिया को मेरी सेहत का कितना ख़याल है ! वही चाय तुम्हारी भाभी ने बनाई तो उसे ताने देती थी कि बार – बार मुझे याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि मुझे शुगर की बीमारी है थोड़ी सी शक्कर डाल कर चाय मुझे दे । वही शक्कर डाल कर देती तो कहेगी मेरी बीमारी बढ़ाकर मुझे जल्दी ऊपर भेजना चाहती है ?
रत्ना को पिता की बातें कुछ हद तक समझ में आ रही थी । मेरा मतलब है कि इस ग्लास के एक तरफ बिटिया दूसरी तरफ बहू दिखती है मैं सही हूँ ना पापा रत्ना ने कहा ।
राजशेखर ने कहा यस ! सही कहा है तुमने । चाय की कप नहीं बदली व्यक्ति नहीं बदली टेस्ट नहीं बदला बदले हैं तो सिर्फ़ रिश्ते बदले हैं ।
रत्ना ने हँसकर कहा समझ गई मैं!! राजशेखर ने गदगद कँठ से कहा एक बात और है बेटा मुस्कुरा कर कहा अब यही मैगनेफाइंग ग्लास तुम हो समझ लो रत्ना ने पिता की तरफ देखा मायके में माँ के साथ झगड़ती हो फिर उन बातों को भूल जाती हो सही कह रहा हूँ ना ।
रत्ना ने हाँ में सर हिलाया और पिता की ओर देखा वहाँ ससुराल में सास के साथ भी कहा सुनी हो जाती है…. सास भी तुम्हारी माँ की तरह बात करेगी तब तुम्हें इस ग्लास के एक तरफ माँ दूसरी तरफ सास दिखाई देंगी । यह कहते हुए उनकी आँखें गीली हो गईं ।
रत्ना पिता को भावुक होता हुआ देख कहती है अभी यह सब क्यों पापा रहने दीजिए ना । राजशेखर ने कहा यह सब अभी ही कहना जरूरी है बेटा एक परिवार प्यार से आगे बढ़ता है या उस घर में कलह का माहौल होता है उसमें बहुत बड़ा योगदान एक गृहणी का होता है । इसलिए तुम भी माँ और सास को एक तरफ से देखना सीखो तब ही घर में शांति बनी रहेगी ख़ासकर तुम्हारे पति को सुकून मिलेगा नहीं तो माँ और पत्नी के बीच उसे पिस जाना पड़ेगा इस दर्द से कभी- कभी तो वह गलत संगत में पड़ जाता है नई आई पत्नी को कुछ कह नहीं सकता और ना ही जन्म देने वाली माँ से कुछ कह सकता है । मेरा यही हाल हुआ था तो मेरे पिता ने मुझे समझाया कि ….अगर घर में शांति चाहते हो तो ….अपनी पत्नी के साथ अलग रह लो ……बेटा हम मिलेंगे प्यार से बातें करेंगे मैंने उनकी बात नहीं सुनी लेकिन यही सीख मैंने तुम्हारे भाई को दिया है । मेरे कहने से ही वह अलग रहने गया है…… तुम्हारी भाभी बहुत अच्छी है बेटा!! वैसे भी बेटा मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे कारण घर में कलह नहीं हो यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी है ।
बिटिया अच्छी बात को बड़ा करके देखो और गलत बात को छोटा करके देखो तब ससुराल में तुम्हें और परिवार वालों को सुकून के पल बिताने को मिलेंगे और तुम्हारे रिश्तों में दरार नहीं पड़ेगी । पिता की बातों को सुनकर अपने आगे की ज़िंदगी को खूबसूरत बनाने के सपने देखते हुए पिता के हाथ से मैग्निफाइंग ग्लास को लेकर अपनी अटैची में रखकर पिता के गले लग जाती है जैसे उन्हें आश्वासन दे रही हो “ आपकी सीख सर माथे पर “
के कामेश्वरी