पापा की परी – विमला गुगलानी :Moral Stories in Hindi

    कामिनी दो कप चाय लेकर बाहर लान में ही ले आई जहां देवेश अखबार लेकर बैठे थे। अखबार सामने रखा था मगर देवेश का ध्यान कहीं और ही था। 

“ चाय”, कामिनी ने देवेश के हाथों में कप पकड़ाते हुए कहा।

“ओह, हाँ” कह कर देवेश ने अखबार एक और रखते हुए कप पकड़ लिया ।देवेश की आंखों का सूनापन कामिनी से छुपा नहीं था। उदास तो वो भी थी, लेकिन वो समझ चुकी थी कि अब इसकी आदत डालनी होगी।

       दोनों की लाडली बेटी क्यारा की शादी को लगभग एक महीना होने को आया। सब रस्में अच्छे से संम्पन हो गई थी। नवविवाहित जोड़ा सिंगापुर में हनीमून मना कर लौट भी आया था। क्यारा और उसके पति वियांश ने आफिस जाना भी शुरू कर दिया था।

    होता तो ये है कि अक्सर मांए बेटियों को मिस करती है और यहां देवेश ही अपने आप को नहीं संभाल पा रहे थे।

     क्यारा अभी बाईस की ही थी, पढ़ी लिखी, सुंदर, सुशील, सर्वगुण

सम्पंन । देवेश तो उसकी शादी अभी करना ही नहीं चाहते थे, वो तो कहते थे, तीस के बाद सोचेगें लेकिन संयोग की बात है।

   उनके दोस्त ने अपने भांजे वियांश के लिए जब रिशता बताया तो उनहें हर प्रकार से जंच गया। एक तरफ बेटी की इतनी जल्दी विदाई का दुःख वहीं इतना अच्छा रिशता कि वो हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। 

       वियांश की शख्सियत ही ऐसी थी कि सामने वाला देखता ही रह जाए और फिर क्यारा भी किसी तरह से कम नहीं थी। सचमुच ही दोनों की जोड़ी ऊपर से ही बन कर आई थी। सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला।

     अब जब सब मेहमान चले गए, बेटी दामाद अपने काम पर लग गए और पिछले चार दिन से बेटी से सिरफ हाय, हैलो ही हो पाई तो देवेश उदास हो गए।

    शादी के बाद वो चार पांच बार रस्मों रिवाज के बहाने उसके ससुराल हो आए, लेकिन बार बार जाना तो अच्छा भी नहीं लगता। दामाद वियाशं का एक छोटा भाई सारांश भी था जो कि उससे चार साल छोटा था। 

      क्यारा के सास ससुर भी बहुत अच्छे स्वभाव के थे। क्यारा भी बहुत सुलझी हुई थी, आधुनिक होते हुए भी उसकी घर के कामों में रूचि थी। मां के साथ वो अक्सर रसोई में आ जाती और कुछ न कुछ बनाती रहती।

   देवेश हमेशा मना करते और कहते क्या जरूरत है रसोई में हाथ जलाने की, माया है तो सही काम के लिए।लेकिन पापा, मुझे अच्छा लगता है खाना बनाना, अच्छा बताओ, आज आपके लिए कौनसी नई डिश बनाऊं, और हो जाती शुरू।

        बेटी की कमी उन्हें हर दम खलती, अभी वो रिटायर नहीं हुए थे, आफिस में तो फिर भी भूल जाते, घर में फिर वही उदासी।

चलो, बेटी के घर चलें, आफिस से आते ही कामिनी से बोले।

   अभी पिछले हफ्ते तो जाकर आए हैं, यूं क्या अच्छा लगता है रोज रोज जाना। वो अपने घर में सुखी है, देखा नहीं कैसे चहक रही थी, जब हम गए थे, और बच्चों की तरह आपके गले लग गई थी।

     देवेश सचमुच सोच में पड़ गए। चलो फिर ऐसा करो, कल डिनर पर सबको बुला लो। और अगली रात सब देर तक इकटठे बैठे रहे, क्यारा और वियांश के साथ उसके ममी पापा और भाई सारांश भी आया था।

     कुछ दिन और बीत गए। फोन पर बेटी से बात होती रहती। कई बार देवेश बेटी के कमरे का चक्कर लगा कर आ जाते।

      कामिनी सुनो, क्यों ना कुछ दिनों के लिए क्यारा को यहीं बुला लें, मैं तो कहता हूं दोनों को ही बुला लेते हैं। ये ठीक रहेगा, कामिनी भी बेटी के लिए तड़फ रही थी।

     क्यारा की सास से बात की तो वो राजी हो गई। शुक्रवार रात को बेटी दामाद दोनों आ गए। घर में पहले से भी ज्यादा रौनक लौट आई। सोमवार की सुबह दोनों आफिस गए तो शाम को क्यारा अकेली आई, वियांश अपने घर चला गया। पूरा हफ्ता क्यारा वहीं से आफिस जाती रही, इतवार को वियाशं आया और दोनों वापिस अपने घर आ गए।

    फिर से वही सूनापन। “ एक बात कहूं, देवेश ने कुछ सोचते हुए कामिनी से कहा, इससे पहले कि कामिनी कुछ जवाब देती, देवेश बोले, क्यूं ना हम वियांश को यहीं पर रहने के लिए कहें, दोनों हमारी आंखों के सामने रहेंगे तो कितना अच्छा रहेगा।उनको पास तो साराशं है, उसकी भी शादी हो जाएगी तो उनहें महसूस नहीं होगा।

    “ क्या पागलों सी बातें कर रहे हो, बेटी अपने घर में सुखी है, उसे वहीं रहने दो”। बेटियां ससुराल में ही अच्छी लगती है। खुशकिस्मत है हम कि हमें इतने अच्छे समधी मिले। 

   बिटिया का घर बसने दो, धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी, कौन मां अपने बेटे को घर दामाद देखना पंसद करेगी। और वो कितने खुशमिजाज लोग है, जब जी करो मिल आया करो। फोन करो, विडियो काल करो, कितनी सुविधाएं है आजकल। 

    अक्सर माएं दिल की कमजोर होती है और यहां आप, कामिनी ने हंसते हुए कहा।

हां,शायद तुम ठीक ही कह रही हो, देवेश ने धीरे से कहा। बेटियां पापा की परियां होती है, लेकिन एक दिन तो उड़ना ही होता है।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़।

वाक्य- बिटिया का घर बसने दो

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