जाहिल कौन ? – संगीता अग्रवाल

” किस जाहिल से रिश्ता जुड़ा है तुम्हारा तुम्हे पता भी है !” रिया तंज भरी मुस्कान के साथ बोली। 

” मुझे अब इससे फर्क नही पड़ता किसी से भी जुड़े मेरा रिश्ता !” निशि उदासी भरी आवाज़ मे बोली!

” मतलब !!! तुम्हारा पति दुनिया की नज़र मे जाहिल है इससे तुम्हे फर्क नही पड़ता ?” रिया हैरानी से बोली । 

” हां नही पड़ता वो कौन है दुनिया उसे क्या कहती उससे मुझे कोई फर्क नही पड़ता । तुम्हारी शादी एक हाई क्लास लड़के से हो गई ना तो तुम खुश रहो !” निशि मानो फट सी पड़ी । फटती भी क्यो नही ये वही रिया है जिसने उसके प्यार उसके तुषार को उससे छीन लिया । कितना विश्वास करती थी वो अपनी चाचा की बेटी रिया पर इसीलिए उसने अपने और तुषार के बारे मे सब बताया था उसे  लेकिन उसी ने तुषार के मन मे उसके लिए जहर घोल दिया । तुषार की माँ को भी चाची ने ऐसी पट्टी पढ़ाई की उन्होंने गरीब निशि को ना चुन अमीर बाप की बिगड़ी बेटी रिया को अपने बेटे के लिए सहर्ष चुन लिया । 

फिर चाची ही उसके लिए देवांश का रिश्ता लाई क्योकि वो अपनी बेटी के भविष्य के लिए निशि को इस घर से जपड़ से जल्द दूर कृ देना चाहती थी । देवांश के आगे पीछे कोई नही था , बस एक बूढी औरत जो कभी उनके घर काम करती थी और उनका बेटा उसके पापा का ड्राइवर था एक हादसे मे अम्मा का बेटा और देवांश के माता पिता चल बसे तबसे उसके लिए अम्मा ही सब कुछ थी । उसी अम्मा के कैंसर होने पर देवांश ने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी । माता पिता के आभाव मे ठीक से पढ़ पाया नही था तो अब अपना सब कुछ बेच एक छोटे से घर मे आ गया था । तबसे ही लोग उसे पागल , जाहिल और जाने क्या क्या बोलते थे जो अपने पिता का पैसा भी संभाल नही पाया । 

अम्मा ने ही इस रिश्ते को हां की क्योकि देवांश तो उसे देखने तक नही आ पाया था । एक टैक्सी ड्राइवर था वो और उस समय कुछ पर्यटको को लेकर उत्तराखंड गया हुआ था । 

निशि की चाची ने माँ को कह जल्द से जल्द शादी की तारीख भी निकलवा दी तो निशि और देवांश बाद मे भी मिल नही सके ।

 ” सच मे जाहिल ही है ये देवांश जो घर की नौकरानी को रिश्ता तय करने भेजा और उनकी पसंद को मोहर भी लगा दी !” रिया ने फिर तंज कसा पर इस बार निशि ने कोई जवाब नही दिया बस भरी आँखों से शून्य मे निहारती रही । 

तुषार तो कबका रिया का हो गया पर अब वो भी किसी ओर की होने जा रही थी ये बात उसे दर्द दे रही थी । 

” चलो चलो बारात आ गई !” तभी बाहर शोर सुनाई दिया और रिया बाहर चली गई । निशि कमरे मे बिल्कुल अकेली थी तो उसकी सोच के घोड़े दौड़ने लगे ” आज वो किसी पराये इंसान के साथ इस घर से चली जाएगी पर क्या वो मन से उसे अपना पायेगी नही नही वो अब तुषार के बारे मे तो सोच भी नही सकती वो अब उसकी चचेरी बहन का पति है !” 

” बेटा क्या सोच रही हो ?” तभी माँ की आवाज़ कमरे मे गूंजी । 

” माँ आप यहाँ पर नीचे तो बारात आ चुकी है !” निशि सोच के दायरे से बाहर आती बोली। 

” तेरे चाचा चाची है वहाँ मुझ विधवा का वहाँ क्या काम बेटा !” माँ नम आँखों से बोली। माँ की बात सुन निशि उनके गले लग गई। कोई विरोध तो वो कर नही सकती थी समाज की इस कुरीति का क्योकि वो खुद चाचा चाची के रहमों करम पर थी ना उसके पिता थे ना भाई और जानती थी उसकी माँ को तो यही रहना होगा तो विरोध करके उनकी मुश्किले और क्यो बढ़ाये । 

थोड़ी देर बाद उसे जयमाला के लिए ले जाया गया उसने सिर उठा एक बार भी देवांश को देखा तक नही बस चुपचाप जयमाला डाल दी। 

” निशि जी मांजी नज़र नही आ रही ?” जयमाला के बाद देवांश धीरे से बोला। 

” वो …वो माँ अपने कमरे मे होंगी शायद !” पहली बार नज़र उठा निशि ने देवांश को देखा और बोली। उसके सामने एक मुस्कुराता चेहरा था जो बहुत प्यार से उसे देख रहा था । फिर उसने अपने किसी दोस्त के कान मे कुछ कहा और उसका दोस्त वहाँ से चला गया ।

जब फेरे शुरु हुए तो कन्यादान के लिए वधु के मां बाप को बुलाया गया । मुंह बनाते हुए उसके चाचा चाची आगे बढ़े । 

” माफ़ कीजिये पर मैं चाहता हूँ कि निशि जी की मां ही कन्यादान करे ।” देवांश अपनी जगह से खड़ा होता हुआ बोला।

” पर बेटा कन्यादान तो जोड़े से होता है !” पंडित जी बोले। 

” पंडित जी वो पिताजी की तस्वीर रखकर कन्यादान कर सकती है पर मैं यही चाहता हूँ कन्यादान वही करें।” देवांश बोला।

” पर एक विधवा ऐसा शुभ काम कैसे कर सकती है !” निशि की चाची मुंह बनाती हुई बोली।

” क्यो नही कर सकती । वो मां है उन्हे पूरा हक है ये करने भी क्योकि मां से शुभ कोई नही  !” ये बोल देवांश कोने मे खड़ी निशि की माँ को लेकर आया इतने उसका दोस्त उनके कमरे से निशि के पिता की तस्वीर ले आया। 

” सच मे ये तो पागल और जाहिल है , जिंदगी के नए सफर की शुरुआत भला कौन विधवा के हाथ से करना चाहेगा !” रिया अपनी मां से हँसते हुए बोली ।कुछ और लोग भी देवांश के इस कदम को गलत ठहरा रहे थे पर कुछ लोग उसकी सराहना भी कर रहे थे । निशि की नज़र मे भी देवांश के लिए प्यार भले ना पनपा हो पर सम्मान कई गुना बढ़ गया जो दाम्पत्य जीवन की प्रथम सीढी होता है । हालाँकि निशि की मां ने भी कन्यादान करने को मना किया पर निशि और देवांश के आगे उनकी एक ना चली । 

निशि देवांश की हो गई । अब आई विदाई की बारी निशि माँ के गले लग फूट फूट कर रो दी। उसे रोता देख देवांश की भी आँख नम हो गई क्योकि माँ से बिछड़ने का दुख उससे बेहतर किसे पता होगा। 

ससुराल आने पर अम्मा ने निशि का ग्रहप्रवेश करवाया और उसे एक कमरे मे ले गई । घर छोटा सा था पर साफ सुथरा था। ससुराल मे बची रस्मे निभाते निभाते निशि थक गई । अपने कमरे मे बैठी वो ऊंघ सी रही थी तभी दरवाजा खुला और वो चेतन सी हो बैठ गई। 

” लगता है आप बहुत थक गई है ।” देवांश कमरे मे आ बोला।

” हम्म्म!” उसने बस इतना कहा। 

” आप कपड़े बदल कर आराम कीजिये !” वो फिर बोला।

” ???” इस बार कुछ बोलने की जगह निशि ने उसे सवालिया नज़र से देखा।

” शादी के इतने काम थे अब आपको नींद की जरूरत है आप यहाँ आराम से सो जाइये मैं बाहर सो जाता हूँ !” देवांश ये बोल बाहर चला गया। 

” सच मे जाहिल ही है ये इंसान शादी की रात कौन ऐसे करता है खैर मेरे लिए तो अच्छा ही है !” ये बोल निशि ने फटाफट कपड़े बदले और लेट गई । हालाँकि उसे मां की याद आ रही थी पर अभी थकी होने कि वजह से सो गई वो । 

सुबह उसकी नींद अम्मा की आवाज़ से खुली ” बेटा लो चाय पी लो फिर नहा कर तैयार हो जाना !” 

” जी…जी अम्मा !” उसने ये बोल चाय ले ली अम्मा वही बैठ गई उसके पास । 

” बेटा रात नींद तो ठीक से आई ना ?” उन्होंने प्यार से पूछा।

” जी मुझे तो पता भी नही लगा कब सो गई !” वो बोली।

” हम्म देवांश को बाहर सोते देख समझ गई थी मैं की तुम थकी हो इसलिए उसने तुम्हे सोने को बोल दिया होगा । ऐसा ही है मेरा देवांश सबकी परवाह है उसे सिवा अपने । उसका यही स्वभाव देख लोग उसे जाहिल बोल देते है पर वो जाहिल नही बहुत समझदार है । सबसे कीमती रिश्तो को खोया है उसने अब जो रिश्ते उससे जुड़ते है उन्हे संभाल कर रखता है भले उसके लिए खुद तकलीफ झेल ले ! बेटा अब तुम्हे उसे संभालना है उसकी पत्नी बनकर नही उसकी साथी बनकर ….संभालेगी ना मेरे देवांश को ?” अम्मा बोली।

” जी….जी अम्मा जी मैं पूरी कोशिश करूंगी !” वो केवल इतना बोल पाई । अम्मा इसी मे खुश हो गई और उसकी बलैया लेती चली गई । वो भी नहा धोकर तैयार हो गई । एक हल्की सी साड़ी पहनी थी उसने क्योकि चाची ने भारी साड़ी चढ़ाई भी नही थे और देवांश की तरफ से जो चढ़ा शादी मे वो तो उसने देखा भी नही था। थोड़ी देर बाद देवांश अंदर आया ।

” मुझे अपने कपड़े लेने है !” दरवाजे से ही वो बोला और कपड़े ले चला गया । रात को फिर वो बाहर जाने लगा तब निशि ने टोका।

” आप यही सो जाइये ये आपका ही कमरा है ऐसे बाहर सोते अच्छे नही लगते आप !” 

” निशि जी ये कमरा ये घर अब आपका भी है और मैं नही चाहता आपको यहां कोई तकलीफ हो । हमारी शादी जिन परिस्थितियों मे हुई उनमे एक संकोच रहना जाहिर है क्योकि शादी से पहले हम मिले भी नही । तो मैं चाहता हूँ आप इस रिश्ते के लिए जितना समय लेना चाहे ले सकती है !” देवांश बोला ।निशि देखती रह गई उसे दुनिया की नज़र मे जो इंसान जाहिल है वो क्या वाकई मे इतना समझदार है । 

” फिर भी मैं चाहती हूँ आप यही सो जाइये !” जाने कैसे निशि बोल गई । देवांश उसे देख हलका सा मुस्कुराया और इधर उधर देखने लगा क्योकि कमरे मे सिर्फ एक बेड , अलमारी और ड्रेसिंग था बस । फिर वो बेड पर जा एक कोने मे बैठ गया । निशि दूसरे कोने मे बैठ गई ।

” निशि जी कल आपको पग फेरे के लिए जाना है अपने घर अम्मा बता रही थी आपके घर से कोई नही आएगा तो हम दोनो को ही चलना होगा !” वो बोला। 

” जी !” निशि सिर्फ इतना बोली उसकी आँख मे आँसू आ गये अगर उसके पिता जिंदा होते तो इस तरह उसके पग फेरे की रस्म नही होती बल्कि शादी भी इस तरह ना होती । 

” चलिए अब सो जाइये सुबह जल्दी निकलना है फिर परसो से मुझे अपने काम पर भी जाना है !” देवांश बोला और सिकुड़ कर लेट गया । निशि भी लेट गई 

अगले दिन देवांश के साथ उसकी टैक्सी मे निशि मायके आई । माँ उससे गर्मजोशी से मिली बाकी सबका व्यवहार ठंडा था । देवांश के लिए नाश्ते मे भी बस चाय बिस्कुट रखे गये जबकि रिया और तुषार के आने पर वो खुद कितने आइटम्स लगाती थी । देवांश फिर भी मुस्कुरा रहा था।

” इन्हे तो अपनी बेइज्जती भी महसूस नही होती कैसे मुस्कुरा कर बात कर रहे है सबसे !” निशि ने सोचा।

” मांजी मैं आज आपसे कुछ माँगने आया हूँ !” देवांश निशि की मां का हाथ पकड़ कर बोला। 

” आ गया अपनी औकात पर उतर गया अच्छे पन का नकाब , मेरी मां की स्थिति पता है कि वो कैसे अपने दिन गुजार रही फिर भी उनसे मांग रख रहा है । पहली बार ससुराल आया है पहली बार मे ही रंग दिखा दिये जाहिल इंसान ने !” निशि के मन मे उसकी बात सुन कड़वाहट सी आ गई ।

” बेटा क्या चाहिए तुम्हे .. मेरे पास तो ऐसा कुछ नही तुम्हे देने को !” कभी निशि कभी देवांश को देखती हुई मां बेबसी से बोली।

” अगर इस जाहिल ने कोई बड़ी मांग रख दी तो नही जाऊंगी इसके साथ वापिस मुझे मेरी मां का सम्मान प्यारा है चाचा चाची उसे रोंदते रहते वो क्या कम था जो ये भी ..!” निशि सोच रही थी।

” मांजी मुझे अपने सिर पर आपका हाथ चाहिए हमेशा के लिए !” उनके कदमो मे बैठ उनका हाथ अपने सिर पर रखता देवांश बोला ।

सबके सब हैरत मे पड़ गये निशि तो समझ ही नही पाई देवांश क्या बोल रहा है । 

” मतलब !” मां भी असमंजस मे बोली।

” मांजी मैं चाहता हूँ आप अब हमारे साथ रहे अपने इस बेटे के साथ पूरे सम्मान के साथ !” देवांश बोला ।

” क्या बोल रहे हो तुम समाज मे थू थू करवानी है क्या हमारी । लोग कहेंगे मां को भी बेटी के साथ विदा कर दिया साहनी साहब ने !” चाची भड़क कर बोली।

” चाची एक बेटा अपनी मां को अपने साथ ले जाना चाहता है उन्हे इज्जत की जिंदगी देना चाहता है इसमे लोगो को क्या दिक्क़त !” देवांश नम्रता से बोला।

” बरखुरदार दामाद हो तुम इस घर के बेटे नही बेटी ब्याही है इस घर की तुम्हारे साथ ये बात को तुम नकार नही सकते !” चाचा बोले। 

” जी दामाद भी बेटा होता है और फिर मुझे भी पूरा हक है मां का प्यार पाने का हालांकि अम्मा ने मुझे कभी प्यार की कमी नही होने दी पर उनमे मैने हमेशा एक दादी देखी अब जो सास के रूप मे मां मिली है तो हमेशा उनकी ममता की छाँव मे रहना चाहता हूँ !” देवांश बोला।

” क्या वाकई मे ये इतना अच्छा है , तो लोग इसे जाहिल क्यो बोलते है । निशि को अपनी सोच पर भी शर्मिंदगी सी हो रही थी । साथ ही उसे याद आ रहा था घर का दूसरा जमाई तुषार भी सबकी तरह मां को एक नौकरानी ही समझता था जबकि वो इतना पढ़ा लिखा अमीर था । देवांश ना पढ़ा लिखा है ज्यादा ना पैसे वाला पर आज उसे वो सबसे अमीर लग रहा था । कौन कहता है ये जाहिल है जाहिल तो ये लोग है जो एक विधवा और उसकी बेटी को सम्मान की जिंदगी भी ना दे पाये । ये तो एक ईश्वर का भेजा फरिश्ता है जिसे मैं नकार रही हूँ दुनिया की बातो मे आ । या यूँ कहो अपने अतीत का क्रोध इसपर उतार रही हूँ !” निशि मन ही मन सोच रही थी । उधर सब देवांश के निर्णय को गलत ठहरा रहे थे । मां भी प्यार से समझा रही थी पर देवांश जिद्द पर अडा था मां को साथ लेके जायेगा । निशि भी तो यही चाहती थी कि मां को इस दुनिया से निकाल सके जहाँ सिर्फ तिरस्कार है पर वो मजबूर थी । देवांश ने जाने कैसे उसके मन की बात पढ़ ली थी । 

आखिरकार मां को उसकी ज़िद्द के आगे झुकना पड़ा क्योकि सवाल बेटी के भविष्य का भी था । लेकिन चाचा चाची गुस्सा हो वहाँ से उठकर चले गये । 

” निशि जी आप मांजी का सामान लेके आ जाइये मैं बाहर खड़ा हूँ इतने !” ये बोल देवांश बाहर चला गया । 

” देखा सब गलत नही बोलते थे तुम्हारा पति वाकई मे जाहिल है वरना कौन सास को साथ रखता है वो भी सबसे लड़ झगड़ के । देखना चार दिन के चोंचले है फिर वापिस यही छोड़ जायेगा ये इन्हे जाहिल कही का !” रिया फिर से तंज कसती हुई बोली।

” वो दुनिया की नज़र मे क्या है मुझे फर्क नही पड़ता पर मेरी नज़र मे इंसान के रूप मे देवता है जो रिश्तो को रिश्ते समझते है और इंसान को इंसान । पैसो के लिए अपनी बात से ना वो कल पलटे थे ना कल पलटेंगे वो मां का ध्यान अपनी मां की तरह रखेंगे इतना मुझे यकीन है । और हाँ फिर भी वो जाहिल है तो ऐसे जाहिल पर सौ समझदार कुर्बान !” निशि तुषार कि तरफ देखते हुए ये बात बोली जिससे उसकी नज़र झुक गई। उधर दरवाजे के बाहर खड़ा देवांश निशि की बात सुन मुस्कुरा दिया । वो ये सोच वापिस आ रहा था कि सामान उठाने मे मदद कर सके । 

थोड़ी देर बाद निशि अपने ससुराल जा रही थी अपना मायका भी साथ लेकर इस बार उसके मन मे ना देवांश को ले कोई कड़वाहट थी ना गुस्सा बल्कि था तो प्यार , सम्मान और समर्पण । उसने निगाह उठा उसकी तरफ देखा तो दोनो की नज़र टकराई क्योकि देवांश भी उसे ही देख रहा था।  निशि की नज़र मे जहाँ कृतज्ञता का भाव था वही देवांश की नज़र मे एक वादा था हमेशा साथ निभाने का । उसने निशि के हाथ पर अपना एक हाथ रख आश्वासन सा दिया । निशि ने उसके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रख इस रिश्ते को दिल से अपना लिया । 

समाप्त

लेखिका : संगीता अग्रवाल

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