“जितना बोला जाए उतना ही किया करो सुगंधा बहू। किसने तुम्हें हक दिया मनमानी करने का। मेरे बेटे का घर है ये मायके से नहीं लाई हो तुम। मेरे बेटे को फंसाया है तुमने प्रेम जाल में और मकसद में कामयाब भी हो गई इस घर की बहू बनने में।भला कहां औकात थी तुम्हारे घर वालों की जो इतने अच्छे घर में व्याह पाते अपनी बेटी का।” मालती जी की धौंस अब तक तो खूब चलती आ रही थी। बड़ी बहू मोहिनी की तो मजाल ही नहीं थी कि एक पत्ता भी हिला ले, लेकिन इस बार उनका सामना छोटी बहू सुगंधा से हुआ था।
सुगंधा भले ही मध्यमवर्गीय परिवार से थी पर बहुत ही सभ्य और शिक्षित परिवार था उसका। उसके परिवार में लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं था।वो घर की बड़ी बेटी थी और सारी जिम्मेदारी एक बड़े संतान के जैसे ही निभाती थी। मां – बाप से संस्कार विरासत में मिला था साथ ही ये भी की गलत बोलना नहीं और ना ही सहन करना।
मम्मी जी,” मैं मानतीं हूं कि ये घर आपके बेटों का है और आपको पूरा हक है की आप इसपर हक जता सकतीं हैं लेकिन जैसे ये घर आपका है वैसे ही हमारा भी है। मैं और दीदी भी इसी घर के हैं। आपने कहा कि मैं मायके से नहीं लेकर आई हूं इस घर को तो बिल्कुल सही कहा आपने लेकिन आप भी अपने मायके से लेकर नहीं आईं हैं इस घर को।हम भी पत्नी हैं तो हमारे अधिकार कम कहां से हो गए?” सुगंधा ने बड़े तरीके से सासू मां मालती जी को आइना दिखाया।
मालती जी तो समुद्र में आए ज्वार भाटे की तरह उफन पड़ी।उनका सिंहासन डगमगाने लगा था।एक तरफ बड़ी बहू मोहिनी जिस ने तो शायद गलती से होठ फड़फड़ाने तक की हिम्मत नहीं की थी और दूसरी तरफ चार दिन आए नहीं हुए थे दूसरी बहू तो बहसबाजी करने को तैयार थी।
“तुमने कैसे हिम्मत की जबाब देने की। तुम जानती भी हो की मेरे बेटे तक मुझे जबाब देने से पहले दस बार सोचते हैं”।
मम्मी जी,” सही बात को सही कहना जबाब देना नहीं होता है और आपने जो दिमाग में बिठाया है कि मैंने आपके बेटे को फंसाया है तो शायद आपको पता नहीं है कि आपका बेटा ही मुझसे शादी करने के लिए दो साल तक इंतजार किया था।”
ओह!” जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरों को क्या दोष देना। अपने समाज के बाहर शादी करने से ऐसा ही होता है। अगर आज हमारे समाज की लड़की होती तो मजाल है की मुंह खोलती। मोहिनी बहू को ही देखो, उसने आज तक कभी भी मेरी बातों को काटा नहीं है जबाब देने की तो वो सोच ही नहीं सकती है।”
मम्मी जी,” मोहिनी दीदी कितना घुटन महसूस करतीं हैं आपको अहसास भी है। उनको लगता ही नहीं की ये घर उनका भी है। वो जबाब नहीं देती तो भी उनका सम्मान है क्या इस घर में।मेरा तो मानना है कि अपने लिए हमेशा खड़े रहना चाहिए बिना किसी का अपमान किए और माफ कीजिएगा मम्मी जी समाज कोई भी हो बहूओं को भी बराबर का हक मिलना चाहिए।”
मोहिनी सिर नीचे करके मुस्कुरा रही थी कि कोई तो आया इस घर में जो मम्मी जी को सही गलत के बीच का फर्क बता सके। यहां तो बेटे भी धृतराष्ट्र जैसे ही हैं। कभी कुछ कहना भी चाहो तो मां को ऐसे पूजते हैं की मां नहीं देवी मां हैं। यही वजह है की आपस में प्रेम ही नहीं है। है तो सिर्फ शासन।प्रजा और राजा के बीच में जैसे चलता हो। अच्छा हुआ देवर जी ने प्रेम विवाह किया है। कम-से-कम कोई तो आया जिसने रावण की लंका में सेंध करने की कोशिश तो की है।
मालती जी बुरी तरह से तिलमिलाई थीं और उनको शाम का इंतजार था कि कैसे तो बेटे आएं और वो महाभारत शुरू करें। उन्होंने भुमिका बनाना भी शुरू कर दिया था। सुगंधा तो ऑफिस निकल गई थी।
मालती जी खाना पीना त्याग करके कोप भवन में जा चुकी थी। मोहिनी ने कई बार मनाने की कोशिश की पर उन्होंने खाना खाने से इंकार कर दिया था।
शाम की चाय लेकर जब मोहिनी मालती जी के कमरे के बाहर पहुंची तो देखा मालती जी खूब मजे से नमकीन बिस्कुट और फल खा रहीं थीं। मालती जी के कमरे अल्पाहार की व्यवस्था वो रखतीं थीं। मोहिनी को हंसी आ गई की मम्मी जी सबको ये ये बताने की कोशिश कर रहीं हैं की सुबह से कुछ नहीं खाया है और ये तो मस्त खा पी रहीं हैं।उसको समझ में ही नहीं आ रहा था की इस समय अंदर जाए की नहीं।
मोहिनी भी भर चुकी थी सासू मां के नाटक से।मन तो उसका भी करता की वो जबाब दे लेकिन पति का इतना दबाव था की कभी हिम्मत ही नहीं कर पाई की अपनी बात भी रख सके।वो चाय लेकर गई तो मालती जी सकपका सी गई। मेज पर चाय की प्याली रख कर चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई।
शाम को तो आज सभा का आयोजन था जहां की जज मालती जी थीं और वकील छोटा बेटा राजू और कटघरे में सुगंधा थी।
सुगंधा को अंदाजा भी नहीं था कि मम्मी जी ने तो शतरंज की विसात बिछाकर रखी है और हम सब प्यादे अब उसमें बिठा दिए गए हैं। मालती जी दिनभर बड़ी अच्छी तरह से प्लानिंग और प्लाटिंग कर ली थी और भावनात्मक रूप को अपनाते हुए कमरे में से निकलने को मना कर दिया था।उनका कहना था कि बहू को माफी मांगनी पड़ेगी नहीं तो मैं यहां नहीं रहूंगी और खाना – पीना त्याग दूंगी।
मोहिनी को सबकुछ समझ में आ गया था की सुगंधा को कहीं बहुत बड़ी क़ीमत ना चुकानी पड़े।
राजू को मम्मी जी ने कमरे में बुलाया और रो – रो कर कहानी सुनाने लगी। तभी सुगंधा भी अंदर आ गई और राजू से बोली की तुमको दोनों की बातें सुननी चाहिए। राजू को पता था की मम्मी ने मोहिनी भाभी को बहुत तंग किया है।अब उनकी नई शिकार सुगंधा है और सुंगधा मेरी पसंद है तो वो शुरू से उनकी आंखों में खटकती है।
मम्मी गुस्सा छोड़िए और चलिए खाना खाइए।रही बात घर की तो ये घर हमारा है और हम सभी एक परिवार हैं। सुगंधा से मैं बात कर लूंगा लेकिन मम्मी आपको भी बदलने की जरूरत है। भाभी और सुगंधा का भी तो हक है इस घर पर। आपतो राजपाठ छोड़ कर खाओ – पीओ और गृहस्थी इन लोगों को संभालने दीजिए ” राजू ने कहा।
ओह ! दांव उल्टा पड़ गया था। राजू से डांट लगवाने वालीं थीं मालती जी यहां तो उनको ही ग़लत साबित किया जा रहा था। उनका गुस्सा फूट पड़ा था कि राजू तो जोरू का गुलाम हो गया है। बड़े बेटे बबलू को देखो उसने कभी भी अपनी पत्नी का पक्ष नहीं लिया और ना ही मुझसे जुबान लड़ाने की हिम्मत की ।
बबलू ने भी आकर मां से कहा कि,”मम्मी आप तो अब जिम्मेदारी से मुक्त हो जाइए। दोनों बहूंए समझदार हैं घर गृहस्थी संभाल लेंगी।” मालती जी के होश उड़ गए थे कि सुनंधा ने ऐसा क्या किया की सभी उसी की भाषा बोल रहे हैं।
सच्चाई ये थी कि सहनशीलता की भी एक सीमा होती है।
सभी यही चाहते थे पर हिम्मत नहीं थी।जब पहल सुगंधा ने की तो सभी ने उसका साथ दिया था।
मालती जी अब नरम पड़ने की कोशिश करने लगी थी क्योंकि इसी में उनकी भलाई थी और परिवार में अब सब खुलकर अपना विचार रखने लगे थे और माहौल सुधरने लगा था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी