“माँ, इस बार जब छुट्टी पर आया हूँ, तो सोच रहा हूँ कि रिया की शादी की बात आगे बढ़ाई जाए।”
रितेश ने खाने की मेज़ पर बैठते हुए कहा।
माँ ने रसोई से मुस्कुराकर जवाब दिया,
“बहुत अच्छा सोच रहे हो बेटा, तेरे पापा की जगह तूने हमेशा निभाई है। रिया के लिए अच्छा रिश्ता देख रखा है?”
“हाँ माँ, एक रिश्तेदारी में देखा है – लड़का भला है और परिवार सादा-सुधा। रिया वहाँ खुश रहेगी।”
रिया, जो रसोई में चाय बना रही थी, चुपचाप सब सुन रही थी। भाई की बातों में उसके लिए जो चिंता और स्नेह था, वह उसकी आँखों को नम कर गया।
कुछ ही दिन में लड़के वाले घर आए। रिया ने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी – वही जो भैया लाए थे पिछली बार छुट्टी पर।
उन्हें पहली नजर में ही रिया पसंद आ गई। दोनों परिवारों की सहमति से सगाई तय हो गई और चार महीने बाद शादी की तारीख पक्की हो गई।
रितेश ने ड्यूटी पर लौटने से पहले रिया से वादा किया—
“रिया, दो महीने की छुट्टी लेकर आऊँगा। तेरी शादी का हर लम्हा मैं तेरे साथ रहूंगा।”
रिया मुस्कुरा दी, “भैया, तू साथ होगा तो सब आसान लगेगा।”
रिया को याद आया—बचपन में जब भी कोई उसे परेशान करता, भैया कहते,
“मेरी बहन को कोई आँच नहीं आ सकती, जब तक मैं हूँ।”
रितेश की पोस्टिंग पुलवामा, कश्मीर में थी—जहाँ हर मोड़ पर जान का खतरा था। लेकिन रितेश हमेशा हँसकर कहता,
“मौत से क्या डरूं माँ, जब तक तेरी दुआ और रिया की राखी मेरी कलाई पर बंधी है।”
घर पर रिया और माँ शादी की तैयारियों में जुट गईं—गहने, कपड़े, लिस्ट, निमंत्रण… सब धीरे-धीरे पूरा हो रहा था।
रितेश के लौटने का दिन नज़दीक था। रिया ने खुद भैया के लिए कुर्ता सिलवाया था। माँ ने उसके पसंदीदा व्यंजन पकाने शुरू कर दिए थे।
लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था…
फौजियों की टुकड़ी की गाड़ी पुलवामा से निकल रही थी, तभी एक शक्तिशाली ब्लास्ट हुआ। रितेश समेत सभी जवान शहीद हो गए।
टीवी पर न्यूज़ चली—”पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला, कई जवान शहीद”
रिया और माँ का दिल काँप उठा।
फिर कंट्रोल रूम से फोन आया।
रिया ने काँपते हाथों से उठाया—
“हैलो?”
“आप रितेश की बहन हैं? हमें दुख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि रितेश शहीद हो गए हैं।”
फोन हाथ से गिर गया। रिया ज़मीन पर मूर्छित हो गई।
माँ जैसे पत्थर की मूर्ति बन गईं—न रो पाईं, न बोल पाईं।
अगले दिन तिरंगे में लिपटा रितेश का पार्थिव शरीर आया। पूरा गाँव सैलाब बनकर उमड़ पड़ा।
रिया की आँखें सिर्फ भैया का चेहरा देखती रहीं…
“भैया… तूने तो वादा किया था, तू आएगा…”
तेरहवीं के बाद सन्नाटा घर का हिस्सा बन गया था।
लेकिन एक दिन रितेश के चार फौजी साथी वर्दी में, नम आँखों के साथ घर आए।
उन्होंने रिया से कहा,
“बहन, तूने रितेश को खोया है, लेकिन अब तू अकेली नहीं है। आज से हम चारों तेरे भाई हैं… और माँ जी हमारी माँ हैं।”
रिया की आँखें भर आईं। उन्होंने अपनी कलाई आगे बढ़ाई—
“हम चाहते हैं कि तू हमें राखी बाँधे। ये धागा अब सिर्फ रस्म नहीं, तेरा हक़ है बहन।”
रिया ने कांपते हाथों से राखी बाँधी। सभी की आँखें नम थीं।
अब शादी की तैयारियाँ उन्हीं भाइयों ने संभालीं—निमंत्रण, खरीदारी, संगीत, मंडप।
शादी के दिन कन्यादान भी उन्होंने मिलकर किया।
रिया की आँखों में आँसू थे—लेकिन अकेलापन नहीं।
विदाई के समय, रिया फूट-फूटकर रोने लगी। सभी भाइयों से लिपटकर बोली—
“भैया… तू नहीं है, लेकिन तेरी याद, तेरा वादा आज भी मेरे साथ है।”
तभी एक भाई ने उसका हाथ थामा और कहा—
“रिया… रितेश भले ही अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन जब तक तू हम चारों की कलाइयों पर राखी बाँधती रहेगी, समझना कि तेरा भाई जिंदा है… हर त्योहार पर तुझसे किया हर वादा निभाते हुए
राखी का बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं होता — ये रिश्तों की गहराई, प्रेम और निस्वार्थ समर्पण का प्रतीक होता है।
वाक्य:#ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है
Rekha Saxena