सीमावर्ती गाँव सिजोरीपुर की हवा में मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू के साथ एक अलग ही मिठास घुली है । सिजोरीपुर सीमा के निकट बसा एक छोटा-सा गाँव है — सरहद से सटा पर दिलों से जुड़ा हुआ। रक्षाबंधन का त्योहार आने में कुछ दिन ही शेष हैं। वहाँ की एक लड़की चम्पा की राखी सिर्फ घर की चौखट तक सीमित नहीं है — वह हर साल अपने हाथों से राखी बनाकर बॉर्डर पर तैनात सैनिकों को भेजती है। चम्पा — उम्र यही कोई उन्नीस-बीस, बड़ी-बड़ी जिज्ञासु आँखें और हृदय में अपार अपनापन। हर साल वह राखी के त्योहार से कुछ दिन पहले खुद अपने हाथों से रंग-बिरंगी राखियाँ बनाती, उन्हें साफ़-सुथरे लिफाफ़े में रखती और उसके साथ एक छोटी-सी चिट्ठी रखकर बॉर्डर पोस्ट भेज देती।
उस चिट्ठी में बस दो ही पंक्तियां होती —
“ये कच्चा धागा है, लेकिन इसमें बहन की दुआ और भरोसा है।”
“आप हमारे रक्षक हैं, तो मैं आपकी बहन क्यों नहीं?”
उसकी ये राखियाँ सीमा की पोस्ट पर पहुँचती हैं जहाँ दूर-दराज़ से आए कई सैनिक तैनात हैं — कुछ के अपने हैं वहीं कुछ बिल्कुल अकेले। ऐसी ही एक राखी हर साल एक सैनिक को भी मिलती है — रणवीर सिंह राठौड़ — एक गंभीर स्वभाव का सैनिक, जो सालों से अपने परिवार से कट चुका था। उसकी आँखों में पहरा था — बीते वर्षों के संघर्षों का, टूटी यादों का। वर्षों पहले उसने पारिवारिक विवाद के चलते अपने घर से रिश्ता तोड़ लिया था या यूँ कह सकते हैं कि पिता के स्वर्गवास के बाद सौतेली माँ, भाई और बहन ने उससे नाता तोड़ दिया था । तब से उसके जीवन में कोई त्यौहार न था, कोई राखी न थी।
लेकिन पिछले तीन सालों से चम्पा की भेजी राखी ही उसका एकमात्र पर्व बन गई है।
वह उसे बड़े जतन से लिफाफ़े से निकालता, अपनी सूनी कलाई पर बाँधता और बार-बार चिट्ठी को पढ़ता।
“आप हमारे रक्षक हैं, तो मैं आपकी बहन क्यों नहीं?”
वह हर साल जवाब देने की सोचता, पर भावनाओं को शब्दों में ढालना इतना सरल कहाँ है भला ?
उस साल, राखी से कुछ दिन पहले गाँव में एक अफवाह फैली — सीमा के पास से आतंकवादियों की घुसपैठ की आशंका है।
गाँव वालों में डर का माहौल है। लोग सहमे हुए हैं । उन्हीं दिनों, चम्पा रोज़ की तरह सुबह पहाड़ी के पीछे फूल लेने निकली लेकिन उस दिन वह लौटी ही नहीं। शाम ढल गई, अंधेरा गहराने लगा पर चम्पा का कोई पता नहीं चला। माँ की रुलाई फूट पड़ी, पिता खेत छोड़ गल-गली ढूंढने लगे।
गाँव में कोहराम मच गया।
जब यह खबर सीमा पर सैनिक पोस्ट तक पहुँची। रणवीर के कान खड़े हो गए। रणवीर जो पहले कभी गाँव नहीं आया था, एकदम चौकन्ना हो गया।
“चम्पा… वही जो हमें राखी भेजती है?” उसने अपने कमांडर से पूछा
“हाँ… वही।”
रणवीर के भीतर कुछ टूटने और जुड़ने जैसा हुआ। वो आदेश लेकर तुरंत गाँव पहुँचा। एक अजीब बेचैनी के साथ वह गाँव की ओर रवाना हुआ — पहली बार अपने “अनदेखे रिश्ते” को खोजने। खेतों से होते हुए वह उस पहाड़ी तक पहुँचा जहाँ चम्पा जाया करती थी।
वह सीधे पहाड़ी की ओर बढ़ा। कुछ दूर जाकर झाड़ियों में पड़ी चम्पा की चप्पल दिखी। तभी झाड़ियों के पीछे से किसी लड़की की घुटी हुई चीख़ सुनाई दी।
रणवीर ने एक पल की भी देर नहीं की।
बिना सोच-विचार किए उसने राइफल संभाली और झाड़ियों में घुस गया। वहाँ दो हथियारबंद घुसपैठिए चम्पा को बाँधने की कोशिश कर रहे थे। एक की बंदूक रणवीर की तरफ़ मुड़ी लेकिन उससे पहले रणवीर की गोली चली। कुछ ही देर में दोनों घुसपैठिए पकड़े जा चुके थे।
चम्पा बेहोश थी। रणवीर ने उसे अपनी गोद में उठाया और पानी के छींटे मारे। धीरे-धीरे जब चम्पा को होश आया, उसकी नज़र रणवीर पर पड़ी।
“भैया…?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
रणवीर की आँखें भीग गईं। पहली बार वह मुस्कराया — “हाँ चम्पा… तेरा भाई हूँ। अब से हमेशा रहूँगा।”
उस साल की राखी अलग थी। उस दिन गाँव में पहली बार सैनिक और आम जन एक-दूसरे के और करीब आए। राखी के दिन चम्पा ने खुद रणवीर की कलाई पर राखी बाँधी — इस बार पोस्ट से नहीं भेजी , सामने खड़े भाई की कलाई पर खुद बाँधी।
चम्पा की आँखों में श्रद्धा थी और रणवीर की आँखों में स्नेह।
चम्पा बोली — “मैंने तो बस कच्चा धागा भेजा था, लेकिन आपने तो जान की बाज़ी लगाकर एक अटूट डोर से जोड़ लिया।”
रणवीर ने धीरे से उसका सिर सहलाया —
“कच्चा नहीं था वो धागा, चम्पा… वो तो उस रिश्ते की बुनियाद थी, जो खून से नहीं, विश्वास से बना था। “
अब रणवीर हर साल राखी के दिन छुट्टी लेकर गाँव आता है। चम्पा से राखी बँधवाने क्योंकि
“ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है। कभी-कभी जो धागा सबसे कच्चा लगता है वह फौलाद से मज़बूत साबित होता है — क्योंकि उसमें विश्वास की गाँठ होती है और भावनाओं की सिलाई।”
-प्रियंका सक्सेना ‘जयपुरी’
(मौलिक व स्वरचित)
वाक्य – #ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है