एक शाम, पुराने आम के पेड़ की छाया में नाना पंडित जगन्नाथ शर्मा अपनी दो नातिनों मनू और तनू के साथ लूडो खेल रहे हैं। सुनहरी धूप पत्तों से छनकर बिखर रही है।
तनू:(एक पासा फेंकते हुए) नाना, ये आम का पेड़ कितना पुराना है? इतने सारे फल लगते हैं!
मनू:(मुस्कुराते हुए) हाँ नाना! पर कुछ आम कच्चे-खट्टे हैं, कुछ मीठे-मीठे! क्यों ऐसा होता है?
नाना जगन्नाथ की आँखों में एक चमक आ गई। उन्होंने लूडो की गोटियाँ सहेजी और गहरी साँस ली।
नाना(स्नेह से दोनों का सिर सहलाते हुए) अच्छा सवाल किया, बिटियों! ये पेड़ तो जीवन की एक जीती-जागती कहानी कहता है। सुनोगी?
दोनों:(एक साथ उत्सुकता से) हाँ नाना! जरूर सुनाइए!
नाना ने आम के एक पत्ते को सावधानी से तोड़ा और उसकी नसों की ओर इशारा किया।
नाना: देखो, ये पत्ता… कितनी नसें हैं इसमें? जैसे हमारी जिंदगी के रास्ते। अब सुनो एक कहानी…
“बहुत पहले की बात है। एक विशाल आम का पेड़ था – गंगाराम। वह इतना उदार था कि हर मौसम में कुछ न कुछ देता: छाया, फूल, फल, लकड़ी तक। पर एक दिन, एक छोटी चिड़िया ने उससे पूछा – ‘गंगाराम, तुम इतना सब क्यों देते हो? क्या तुम्हें दुख नहीं होता जब कोई तुम्हारी डाल तोड़ लेता है या कच्चा फल तोड़कर फेंक देता है?’
गंगाराम हल्के से हिला और बोला – ‘प्रिय चिड़िया, देने में ही मेरा आनंद है। कच्चा फल टूटा तो क्या? वो किसी भूखे की जान बचा सकता है। टूटी डाल? वो किसी गरीब का चूल्हा जला सकती है। और मीठा फल? वो तो खुशी बाँटने का बहाना है! देखो, जो दिया, वह व्यर्थ नहीं जाता। हर क्रिया का एक प्रतिफल होता है – कभी मीठा, कभी खट्टा, पर हमेशा जरूरी।’
चिड़िया ने पूछा – ‘पर क्या तुम्हारा कोई अपना उद्देश्य नहीं?’
गंगाराम गहराई से मुस्कुराया – ‘मेरा उद्देश्य? बस जीना है! हर क्षण अपनी पूरी ऊर्जा से। सूरज को थामना, बारिश को सींचना, धरती से रस खींचना और उसे फलों में बदलना। सच्चाई यही है – जीवन वही सार्थक है जो दूसरों में रस भर दे। खट्टा हो या मीठा, सबका अपना स्थान है। कच्चा फल अचार बन जाता है, पका फल मुरब्बा। क्या किसी को व्यर्थ जाना?'”
नाना ने कहानी समाप्त की। मनू और तनू गहरे विचार में डूब गए।
मनू:(धीरे से) तो नाना… जीवन का उद्देश्य है – बस पूरी ईमानदारी से जीना और देना?
तनू:पर कभी-कभी तो बहुत कठिन लगता है… जब कोई हमारी मेहनत की कदर न करे।
नाना ने दोनों का हाथ थाम लिया। उनकी आवाज़ में गंभीर मिठास थी।
नाना: सुनो बच्चों, गंगाराम ने सिखाया – सच्चा जीवन वही है जो सिर्फ लेने के लिए नहीं, देने के लिए जीया जाए।** दुख? वो तो जीवन का कच्चा आम है, जो समय के साथ पककर अनुभव का मिठास बन जाता है। और हाँ… जो फल तुम्हारी मेहनत को न समझे, समझ लो वो अभी कच्चा है! तुम तो बस अपनी जड़ों से रस खींचते रहो। बाकी… ऋतुएँ सब संभाल लेंगी।
ऊपर आम की एक पकी टहनी से एक मीठा आम टपककर नाना के पास आ गिरा। नाना ने उसे उठाया, और मनू-तनू को दे दिया। नाना: (आँखों में चमक) देखा? यही है जीवन का रस! कभी खट्टा, कभी मीठा… पर हमेशा सच्चा। बस जीवन को पूरे प्रेम से… इस पेड़ की तरह फलना-फूलना है।
दोनों नातिनों ने आम का मीठा रस चखा। उस स्वाद में जीवन का पूरा सच घुला हुआ था – खट्टा-मीठा, गहरा और अनमोल। आम के पेड़ की छाया उस क्षण सिर्फ शीतलता नहीं, ज्ञान की शांति लेकर आई थी।
डॉ० मनीषा भारद्वाज
ब्याड़ा (पंचरुखी) पालमपुर
हिमाचल प्रदेश
नाना की आम-कथा: रस और सच का पेड़