कठोर क़दम – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

यह लो रोटी मनीषा अपने ससुर रमाकांत जी के आगे प्लेट पटकती हुई बोली, बहू थोड़ा सा घी लगा दे बेटा ,अच्छा अब घी लगी रोटी खानी है। ज्यादा चटोरी जुवान हो गई है जो मिल रहा है खा लो नहीं तो यह भी नहीं मिल पाएगा। नाक में दम करके रखा हुआ है। जाने क्या मैं इस घर में व्याह कर आई पति के साथ मौज मस्ती से रहूंगी, इस बुड्ढे ने नाक में दम कर रखा है।इस घर में इसकी चाकरी करनी

पड़ेगी। तभी कमल ऑफिस से आ गया और पापा  खाना खा रहे थे तो वह बोल पड़ा अरे पापा आज बड़ी जल्दी खाना खा रहे हैं। हां बेटा आज दिन में खाना नहीं खाया था न इसलिए इसलिए भूख लग रही थी। क्यों आज दिन में खाना क्यों नहीं खाया था। अरे आज वह दिन में खाना बना नहीं था ना,

खाना नहीं बना था खाना तो पूरा बना था कमल बोला। तभी मनीषा आ गई उसको देखकर रमाकांत जी थोड़ा घबरा से गए । गांव से  मां के हाथ का बना इतना सारा घी तो लाए हैं थोड़ा सा लगा लिया करिए। नहीं बेटा मोटापा बढ़ता है।  अब चलना फिरना तो ज्यादा होता नहीं है हजम नहीं हो पता अच्छा चलो ठीक है।

                    गांव में रमाकांत जी अपनी पत्नी निर्मला के साथ सुख से रहते थे। एक बेटा था कमल जो पढ़-लिख कर शहर में नौकरी करता था ।और अपने ऑफिस की सहकर्मी को पसंद करता था ।तो उसे शादी करने की बात उसने अपने माता-पिता को बताई तो बेटे की खुशी की को ध्यान में रखते हुए रमाकांत जी ने बेटी की शादी उसकी पसंद से अच्छे से कर दी। खूब खर्चा भी किया ।यहां गांव में

रमाकांत और पत्नी की खूब खुश रहते थे ।उधर बहू बेटे अपने परिवार में। गांव में आसपास रहते भाई बंद और आज पड़ोस के लोग बहुत अच्छे लगते थे रमाकांत जी को। खूब हंसते बोलते दोनों का समय बीत जाता था ।रमाकांत जी ने अपने गांव के सफाई कर्मी का बेटा था एक तरीके से उसको गोद ले

रखा था। वह पढ़ना लिखना चाहता था लेकिन उसके पास पैसे का अभाव था । रमाकांत जी  उसकी पढ़ाई लिखाई के खर्च उठा लेते थे ।तो घर पर यदि कुछ काम होता रमाकांत के, तो वह सफाई कर्मी जिसका नाम भोला था आकर कर जाता था। नहीं तो कभी-कभी उसका बेटा मोहन कर जाता था जिसकी वह पढ़ाई करवाते थे अच्छे से जिंदगी कट रही थी रिटायरमेंट की बाद भी।

                  लेकिन जिंदगी तो रमाकांत कि जब बिल्कुल बदल गई जब एक दिन हृदय गति रुक जाने से पत्नी निर्मला जी दुनिया से चल बसी ।रमाकांत जी के जीवन में दुखों की बादल छा गए । रमाकांत जी बहुत उदास रहने लगे ।खाने पीने की समस्या होने लगी कोई कमी न थी घर में इसलिए अच्छा खाते पहनते थे। अब परेशानी होने लगी इधर कमल को बड़े शहर में फ्लैट लेना था पैसे की

जरूरत थी। पापा आप वहां अकेले कैसे रहेंगे मां थी तो ध्यान रखती थी ।और अब आपको थोड़ी सांस की दिक्कत हो गई है अकेले रहना संभव नहीं है ।घर बेचकर यहां आ जाए हम लोगों के पास। मुझे भी पैसे की जरूरत है यहां फ्लैट ले लेते है यही आ जाइए । रामाकांत जी ने गांव में सबसे कहा बेटा बुला रहा है कि मेरे पास आकर रहो क्या करूं। गांव में सभी लोगों ने सलाह दी अब आपको बेटे के

पास रहना चाहिए ।यहां अकेले कैसे रहेंगे ।रमाकांत जी को बिल्कुल इच्छा नहीं थी की गांव छोड़कर जाए ।लेकिन बेटा बार-बार जोर दे रहा था । कुछ पैसे बैंक में रखे थे और कुछ मकान की गिरवी रखकर लोन ले लिया और 50 लख रुपए बेटे को दे दिया । बेटे ने कुछ और पैसे का जुगाड़ करके   फ्लैट खरीद लिया। और  रमाकांत जी वही अपने पास बुला लिया। तो आ तो गए  शहर ,पर यहां

उनका मन नहीं लग रहा था ।वह हर वक्त अपना गांव और गांव को याद करते रहते थे सुबह से बहू बेटे ऑफिस चले जाते थे वह दिन पर अकेले-अकेले समय नहीं कटता था ।यहां किसी से जान पहचान भी नहीं थी ।दोपहर में सूखी तीन रोटी और दाल  या सब्जी रखी रहती थी ।जिसको खाने के समय में थोड़ा सा घी निकालने  के लिए उन्होने घी की बरनी निकाली वह उनके हाथ से छूट गई । और जमीन

पर  फैल गया। उन्होने उसे  समेटने की बहुत कोशिश की लेकिन वह पूरी तरह से समेट नहीं पाया। मनीषा जब ऑफिस से आई तो वह 10 बातें सुनाने लगी । कमल थोड़ा बाद में आता था मनीषा कमल के आने के पहले रमाकांत जी को सूखा सूखा खाना खिला देती थी मन मार के रमाकांत जी खा लेते थे ।

                    रमाकांत जी की आज तबीयत ठीक नहीं थी सर्दी जुकाम के साथ बुखार आ गया था ।और बहुत खांसी भी हो रही थी, खाना भी नहीं खाया। बस चाय   लेकर  ऐसे ही लेटे थे। जब दिन भर बीत गया तो थोड़ी भूख लगी। उन्होंने मनीषा को आवाज की बहू थोड़ी सी खिचड़ी बना दे बेटा, मनीषा चिल्लाने लगी अब सबके लिए अलग-अलग खाना बनाऊंगी क्या खिचड़ी बना दो ,कमल उठा और

पापा के पास जाकर बोला पापा जी जो बना है वही खा लो ना, मनीषा भी ऑफिस जाती है थक जाती है ।रमाकांत जी चुप हो गए बेटा रहने दे मुझे भूख नहीं है। और  बिना खाए ह सो गए ।रात में अचानक से खूब खांसी होने लगी रमाकांत जी को ।मनीषा ने कमल को जगाया अरे यार देखो जाकर अपने पापा को जीना हराम कर दिया है। अब सोने भी नहीं देते रात को। खांस खांस कर परेशान कर

दिया है ।क्या पापा दवाई क्यों नहीं लेते सोने नहीं देते। पता है ना सुबह हम लोगों को ऑफिस जाना होता है। दवाई ले ले और हम लोगों को सोने दे इतना कहकर कमल फिर सोने आ गया।

               इस तरह से अपना अपमान और निरादर देखकर रमाकांत जी  की आंखें भर आई। पत्नी निर्मला को याद करके रो पड़े ।कहां चली गई तुम निर्मला  यहां नरक की जिंदगी जीने को मजबूर हो गया हूं ।और पत्नी  निर्मला के साथ बिताए गए खुशियों के पल को याद करते हुए कब सो   गए पता ही

नहीं चला ।सपने में जैसे निर्मला कह रही हो सुनो जी अब तो अपने गांव चले जाओ। वहीं बची खुची जिंदगी को बताओ इतने साल रहे हो वहां सब जानते हैं। कोई ना कोई मदद कर देगा और आपका मन भी लगा रहेगा। और नहीं तो वह भोला है ना उससे कुछ मदद ले लेना ।आप तो उसके बेटे को इतना करते रहते हो उससे थोड़ा बहुत कम करा लेना।

               फिर रमाकांत जी सुबह उठे तो कुछ फैसला करके उठे ।और उन्होंने सुबह-सुबह चाय पी और अपना सामान उठाया और बहू बेटे की ऑफिस चले जाने के बाद घर से निकल गए।

              शाम को जब बहू बेटे घर आए तो चाबी पड़ोस में थी ,चाबी लेकर दरवाजा खोला ।आज घर में रमाकांत जी को न देखकर मनीषा बहुत खुश हो गई। पता नहीं कहां गया बुड्ढा चलो जान छूटी। फिर जब कमल आया तो पता लगा पापा घर पर नहीं है तभी रमाकांत जी का फोन आया  बेटे के

पास, कहां हो पापा आप, बेटा में आप अपने घर आ गया हूं ,अपने घर मतलब अपने गांव मगर क्यों बेटा मैं अपना अपमान  नहीं सह सकता। तुम लोगों के रवैये ने मुझे यह कठोर कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है ।अब मकान को गिरवी रखकर जो लोन लिया था उसमें अपना नाम हटा लिया उसे अब तुम पूरा करोगे मैं अपने घर में रहूंगा।

                  गांव जाकर रमाकांत जी ने सुकून की सांस ली । आते ही आस पड़ोस के लोग हाल-चाल पूछने आ गए। कोई चाय नाश्ता लेकर आया तो कोई खाना दे गया। सबका स्नेह देखकर मन गदगद हो रहा था। कि दूसरे दिन भोला से कहा अपनी पत्नी को भेज दिया करो घर पर मेरे घर की सफाई

,खाना वगैरह बना जाए ।पर साहब जी हम कहां छोटी जात के, कुछ नहीं भोला इंसान हो न, सबको भगवान ने  बनाया है कोई बड़ा छोटा नहीं है ।दूसरे दिन भोले की पत्नी आकर घर का सारा काम कर जाती ।और रमाकांत जी बस कभी चौपाल में कभी बरगद की छांव में कभी मोहल्ले पड़ोस वालों के साथ बैठकर गप शप करते रहते ।कब समय बीत जाता पता ही न चलता।

                   बस ऐसे ही 2 साल बीत गए गांव आए हुए और फिर एक दिन रमाकांत जी दुनिया से चल बसे। किसी ने कमल को खबर भी ना करी। रमाकांत जी उससे बात करना ही बंद कर दिया था। फिर एक दिन कमल को लगा कि गांव जाकर देखना चाहिए पापा को, वह तो मुझसे बात ही नहीं करते। कमल जब गांव आया तो पता लगा कि रमाकांत जी को  गए एक महीना बीत गया ।मुझे किसी

ने खबर नहीं की, क्या बताएं बेटा रमाकांत जी ने मना किया था ।फिर उनका अंतिम संस्कार किसने किया कमल बोला अरे वही भोले का बेटा जिसको पढ़ाई के खर्चा देते थे ।   उनका परिवार रमाकांत जी की सेवा करता रहा और ये मकान भी रमाकांत जी ने उस बेटे के नाम कर दिया है।

              कमल पापा की फोटो के आगे बैठकर हाथ जोड़कर माफी मांग रहा था ।पापा माफ कर दो मुझसे गलती हो गई ।भोले ने कहा अरे बिटवा बड़े बूढ़े तो बरगद की छांव होते हैं। उनकी छत्रछाया में परिवार फलता फूलता  है। बेटवा ई  मकान हमको ना चाहिए यह तुम अपने नाम कर लो ।नहीं नहीं

भोला अंकिल इसे पापा अगर आपको दे गए  है तो यह आपका ही हुआ ,इसे आप सबसे  वापस लेकर अपनी उनकी आत्मा को कष्ट नहीं दे सकता। माफ कर देना पापा और आप सब लोग भी। मैं अपने पापा का ध्यान नहीं रख सका । अच्छा मैं चलता हूं एक गिल्ट के साथ कमल वापस आ गया आगे कभी किसी को दिल ना दुखाऊंगा,ये मन में संकल्प लिया । आंखों के आंसू पोंछते हुए अपने गन्तव्य को रवाना हो गया।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

4 अगस्त 

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